पहाडों में जहां झीलें हैं, वहां प्रकृति अपने पूरे यौवन पर दिखती है। किसी भी झील को देख लें, लहरों के थपेडों के साथ प्रकृति झूमती, गाती, गुनगुनाती मालूम पडती है। इस अदभुत खूबसूरती का नजारा दिखा रहे हैं गुरमीत बेदी:
जब पहाड का जिक्र चलता है तो प्रकृति के कितने ही चेहरे हमारी आंखों के आगे तैरने लगते हैं। कहीं पहाडी की चोटी से गिरता कोई झरना हमारे दिल-दिमाग को शीतलता से लबरेज कर देता है तो कहीं पहाडों की हथेलियों में चमचमाती झीलें हमारे भीतर के किसी खाली कोने में भावनाओं का ज्वार पैदा कर देती हैं। कहीं बरफ की चादर ओढे पहाड मौन तपस्वी मालूम पडते हैं तो कहीं बादलों से गुफ्तगू करते नजर आते हैं। ये पहाड ही हैं जिनके भीतर नदियों की कल-कल का स्पंदन और वनौषधियों की महक को हिलोरे लेते हुए महसूस किया जा सकता है। पहाड की खूबसूरती को झीलें, झरने, जल प्रपात, नदियां, बर्फ और बादलों के काफिले ही चार चांद लगाते हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर पहाड के दामन में प्रकृति के ये तमाम चेहरे झिलमिलाते हों। किसी पहाड का श्रंगार झीलें करती हैं तो किसी की पहचान उसके दामन में इठलाते बहते किसी झरने से होती है। यह झीलों का ही सम्मोहन है कि प्रकृति प्रेमी सैकडों मील सफर तय कर, पहाडों का सीना नापते हुए, झीलों के दीदार को पहुंच जाते हैं।
झीलें चाहें हिमाचल की हों, उत्तरांचल की, मेघालय की हों या कश्मीर की; सदियों से सैलानियों, घुमक्कडों व श्रद्धालुओं को आकर्षित करती आई हैं। सैलानी अगर यहां की नैसर्गिक छटा निहारने आते हैं तो श्रद्धालुओं को इन झीलों में झलकती पौराणिक कथाओं का सम्मोहन खींच ले आता है। हिमाचल को तो झीलों का प्रदेश कहलवाने का गौरव हासिल है। ये झीलें ढाई हजार फुट से लेकर 15 हजार फुट तक की ऊंचाई पर स्थित हैं। कुछ झीलों तक पहुंचने के लिये सडक मार्ग हैं तो कुछ तक पहुंचना केवल पर्वतारोहियों या फिर जोखिम उठाने वाले घुमक्कडों के बस की ही बात है, क्योंकि ऐसी झीलें अत्यन्त दुर्गम स्थानों पर हैं और यहां पहुंचने के लिये कई ग्लेशियर लांघने पडते हैं। हिमाचल की अधिकतर झीलें पर्वतीय संस्कृति की प्रतीक होने के साथ-साथ मेलों व त्यौहारों की परम्पराओं से भी जुडी हुई हैं। यहां छोटी-बडी दो दर्जन के करीब प्राकृतिक झीलें हैं। इनमें आधी से अधिक दुर्गम जनजातीय क्षेत्रों में हैं।
हिमाचल की सबसे खूबसूरत और पर्यटकों के लिये सबसे सुगम रेणुका झील है जो सिरमौर जिले में नाहन से 38 किलोमीटर की दूरी पर है। इस झील तक पहुंचने के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध है। समुद्र तल से ढाई हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित करीब तीन किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस झील की धार्मिक महत्ता के विषय में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार सदियों पहले महर्षि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ इस झील से कुछ ही दूर स्थित जामू के टिब्बे पर निवास करते थे। महर्षि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ही विष्णु ने उन्हें पुत्रप्राप्ति का वर दिया था। यह पुत्र कोई साधारण बालक न होकर स्वयं विष्णु के अवतार भगवान परशुराम थे। उन्हीं दिनों नर्मदा नदी के किनारे राज करने वाले सम्राट सहस्रार्जुन ने कई ऋषियों पर अत्याचार शुरू कर दिये। तपस्या में लीन महर्षि जमदग्नि तक की इस क्रूर सम्राट ने हत्या कर दी। कहा जाता है कि अपने पति के वियोग में रेणुका ने पहाड की चोटी से छलांग लगा दी। जिस स्थान पर उनका शरीर गिरा, वही यह झील बन गई। यहां हर वर्ष भव्य मेला आयोजित होता है। झील में नौका विहार के शौकीनों के लिये मोटरबोट की भी व्यवस्था है। इसके अलावा यहां का मिनी चिडियाघर व लॉयन सफारी भी सैलानियों को आकर्षित करते हैं।
आकार में छोटी लेकिन पर्यटकों के लिये सुगम एक अन्य झील मंडी नगर से 25 किलोमीटर दूर रिवाल्सर में स्थित है। इस झील का सबसे बडा आकर्षण इसमें तैरते भूखण्ड हैं। इन भूखण्डों को श्रद्धालु बडी श्रद्धा से पूजते हैं और पर्यटक प्रकृति के इस अजूबे के प्रति सहसा ही नतमस्तक हो उठते हैं। झील के किनारे लोमस ऋषि व भगवान शिव के प्राचीन मन्दिरों के अलावा बौद्ध गुरू पदमसम्भव का एक प्राचीन गोम्पा और दसवें सिख गुरू गोविन्द सिंह का गुरुद्वारा भी स्थित है। बैसाखी पर यहां सैलानियों का सैलाब उमड पडता है।
चम्बा जिले में समुद्र तल से 6000 फुट की ऊंचाई पर खजियार झील में भी सैलानी खिंचे चले आते हैं। डलहौजी से 22 किलोमीटर और चम्बा नगर के पश्चिम में करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खजियार को मिनी स्विट्जरलैंड और मिनी गुलमर्ग के नाम से भी जाना जाता है। घने वृक्षों के साथ सर्पीली बलखाती सडकों का सुहाना सफर सैलानियों को जैसे मायालोक में ले जाता है। आसमान से बतियाते इन वृक्षों पर जब बादलों के काफिले आ ठिठकते हैं तो प्रकृति के कई चेहरे यहां देखने को मिलते हैं। जब खजियार सर्दियों में बर्फ का दुशाला ओढता है तो यहां का सौन्दर्य गजब ढाने लगता है। खजियार में चारों तरफ से देवदार के वृक्षों से घिरा एक हरियावल मैदान है और इस मैदान के बीच स्थित है- एक छोटी सी तश्तरीनुमा झील। हालांकि इस झील में अब गाद भरने लगी है, लेकिन फिर भी इस झील का वजूद खजियार की खूबसूरती को मादक बना देता है। झील के किनारे पहाडी शैली में नाग देवता का एक प्राचीन मन्दिर बना है और लकडी से बने मन्दिर के चौखट पर बहुत महीन नक्काशी हुई है।
चम्बा जिले के भरमौर में साढे तीन हजार फुट ऊंचाई पर मणिमहेश झील सैलानियों व श्रद्धालुओं के लिये आकर्षण का केन्द्र है। मणिमहेश पर्वत की गोद में इठलाती इस झील के किनारे अगस्त-सितम्बर माह में भारी मेला लगता है। मणिमहेश पर्वत को छोटे कैलाश के नाम से भी जाना जाता है और जब इस पर्वत का प्रतिबिम्ब झील में पडता है तो लगता है जैसे पर्वत ने झील में जल समाधि ले ली हो। चम्बा जिले में महाकाली व घडासरू झीलें भी दर्शनीय हैं।
हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र लाहौल-स्पीति व किन्नौर में स्थित झीलें भी जादुई आकर्षण समेटे हैं। चारों तरफ झीलों, दर्रों और हिमखण्डों से घिरी लाहौल-स्पीति घाटियां प्रकृति की विविधताओं के लिये विख्यात हैं। लाहौल को चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ‘लो-यू-लो’ के नाम से पुकारा था और राहुल सांकृत्यायन ने इसे ‘देवताओं का देश’ नाम दिया था। स्पीति घाटी को ‘मणियों की घाटी’ का खिताब भी दिया जाता है। सूरजताल, चन्द्रताल, मणि यंग छोह और ढंकर छोह लाहौल-स्पीति की चार प्रमुख झीलें हैं जो बर्फीले शैल शिखरों के बीच स्थित हैं। इन झीलों का सौन्दर्य नयनाभिराम है। लेकिन ये अत्यन्त दुर्गम स्थलों पर हैं। जिनके पांवों में दमखम है और सीने में रोमांच, वे ही इन झीलों का सौन्दर्य आत्मसात कर सकते हैं।
चन्द्रताल झील कुंजम दर्रे से 15 किलोमीटर ऊपर 16 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है और करीब दो किलोमीटर क्षेत्र में फैली है। इस झील का उदगम स्थल केलांग से सात किलोमीटर पीछे तांडी के पास है। झील तक पहुंचने के लिये करीब 15 किलोमीटर का सफर तय करना पडता है। सूरजताल झील समुद्र तल से करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील से ही ‘भागा’ नदी निकलती है। अगर चन्द्रताल से बारालाचा दर्रा पार करते हुए इस झील तक पहुंचना हो तो दो दिन लग जाते हैं। समुद्र तल से करीब साढे पन्द्रह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित मणि यंग छोह झील चार किलोमीटर की परिधि में फैली है। इसे मणि झील के नाम से भी जाना जाता है। गर्मियों में झीलों के किनारे बडी संख्या में देशी-विदेशी सैलानियों को तम्बू लगाये देखा जा सकता है।
किन्नौर जिले में समुद्र तल से 11 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित नाको झील देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। शिमला से यह झील 320 किलोमीटर दूर है। इसके साथ किन्नौर वासियों की ढेरों धार्मिक भावनाएं जुडी हैं। स्थानीय लोग इस झील को ‘छो’ कहते हैं।
इन झीलों के अलावा मंडी की पराशर झील, कमरुनाग झील, धर्मशाला की डल व करेरी झील, कांगडा घाटी की पौंग झील और बिलासपुर की गोविन्दसागर झील भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र हैं।
लेख: गुरमीत बेदी (दैनिक जागरण यात्रा, 28 मई 2006)
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