बुधवार, अप्रैल 27, 2011

हिमालयी प्रकृति से एकाकार कराता है चोपता तुंगनाथ

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 24 फरवरी 2008 को प्रकाशित हुआ था।


हिमालय इतना विशाल है कि उसके हर हिस्से में अलग खूबसूरती झलकती है। मजेदार बात यह भी है कि किसी एक हिस्से की खूबसूरती भी बदलते मौसम के साथ नया रूप लेती जाती है। गढवाल में चोपता तुंगनाथ की खूबसूरती बयां कर रहे हैं रविशंकर जुगरान:

उत्तराखण्ड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिये काफी हैं। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी, तरह तरह के फूल, कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडियां और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल दुनिया का एहसास कराते हैं। चमोली की शांत फिजाओं में ऐसा ही एक स्थान है चोपता तुंगनाथ। बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये इलाका गढवाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।

जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढे इस स्थान की सुन्दरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुन्दरता देखने लायक होती है। इसीलिये अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते। सबसे खास बात ये है कि पूरे गढवाल क्षेत्र में यह अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों (ऊंचाई वाले स्थानों पर मीलों तक फैले घास के मैदान) की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानी यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और सैलानियों की साधारण पहुंच में है।

ऋषिकेश से गोपेश्वर या फिर ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर यहां पहुंचा जा सकता है। ये दोनों स्थान बेहतर सडक मार्ग से जुडे हुए हैं। गोपेश्वर से चोपता चालीस किलोमीटर और ऊखीमठ से चौबीस किलोमीटर की दूरी पर है। मई से नवम्बर तक यहां की यात्रा की जा सकती है। हालांकि यात्रा बाकी समय में भी की जा सकती है लेकिन बर्फ गिरी होने की वजह से मोटर का सफर कम और ट्रेक ज्यादा होता है। जाने वाले लोग जनवरी व फरवरी के महीने में भी यहां की बर्फ का मजा लेने जाते हैं। स्विट्जरलैंड का अनुभव करने के लिये तो यह जरूरी है ही।

यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढवाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे सफर बढता जाता है। रुद्रप्रयाग पहुंचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना हो तो अलकनंदा को छोडकर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यहां से मार्ग संकरा है। इसलिये चालक को गाडी चलाते हुए काफी सावधानी बरतनी होती है। मार्ग अत्यंत लुभावना और खूबसूरत है। आगे बढते हुए अगस्त्यमुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दीदार होने लगते हैं। चोपता की ओर बढते हुए रास्ते में बांस और बुरांश का घना जंगल और मनोहारी दृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं।

चोपता समुद्र तल से बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद तेरह हजार फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मन्दिर है, जो पंचकेदारों में एक केदार है। सच पूछिये तो चोपता भ्रमण का असली मजा तुंगनाथ जाये बिना नहीं उठाया जा सकता। चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुन्दर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। यहां पर प्राचीन शिव मन्दिर है। इस प्राचीन शिव मन्दिर के दर्शन करने के बाद यदि आप हिम्मत जुटा सकें तो मात्र डेढ किलोमीटर की ऊंचाई चढने के बाद चौदह हजार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है… जहां ठीक सामने छू लेने लायक हिमालय का विराट रूप किसी को भी हतप्रभ कर सकता है। चारों ओर पसरे सन्नाटे में ऐसा लगता है मानों आप और प्रकृति दोनों यहां आकर एकाकार हो उठे हों।

तुंगनाथ से नीचे जंगल की खूबसूरत रेंज और घाटी का जो नजारा उभरता है, वो बहुत ही अनूठा है। चोपता से करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवरिया ताल पहुंचा जा सकता है जोकि तुंगनाथ मन्दिर के दक्षिण दिशा में है। इस ताल की कुछ ऐसी विशेषता है जो इसे और सरोवरों से विशिष्टता प्रदान करती है। इस पारदर्शी सरोवर में चौखम्भा, नीलकण्ठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिम्ब स्पष्ट नजर आने लगते हैं। इस सरोवर का कुल व्यास पांच सौ मीटर है। इसके चारों ओर बांस व बुरांश के सघन वन हैं तो दूसरी तरफ एक खुला सा मैदान है।

चोपता से गोपेश्वर जाने वाले मार्ग पर कस्तूरी मृग प्रजनन फार्म भी है। यहां पर पर्यटक कस्तूरी मृगों की सुन्दरता को करीब से निहारते हैं। मार्च-अप्रैल के महीने में इस पूरे मार्ग में बुरांश के फूल अपनी अनोखी छटा बिखेरते हैं। जनवरी-फरवरी के महीने में यह पूरा इलाका बर्फ से ढका रहता है। चोपता के बारे में ब्रिटिश कमिश्नर एटकिंसन ने कहा था कि जिस व्यक्ति ने अपनी जिंदगी में चोपता नहीं देखा उसका इस पृथ्वी पर जन्म लेना व्यर्थ है। एटकिंसन की यह उक्ति भले ही कुछ लोगों को अतिरेकपूर्ण लगे लेकिन यहां की खूबसूरती बेमिसाल है, इसमें किसी को संदेह नहीं हो सकता।

कब व कैसे

सडक मार्ग: आप इन दो रास्तों में एक को चुन सकते हैं- ऋषिकेश से गोपेश्वर होकर या ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर। ऋषिकेश से गोपेश्वर की दूरी 212 किलोमीटर है और ऊखीमठ की दूरी 178 किलोमीटर है। गोपेश्वर से चोपता 40 किलोमीटर और ऊखीमठ से 24 किलोमीटर है, जोकि सडक मार्ग से जुडा है।

यातायात सुविधा: ऋषिकेश से गोपेश्वर और ऊखीमठ के लिये बस सेवा उपलब्ध हैं। इन दोनों स्थानों से चोपता के लिये बस सेवा के अलावा टैक्सी व जीप भी बुक कराई जा सकती हैं।

आवासीय सुविधाएं: गोपेश्वर और ऊखीमठ, दोनों जगह गढवाल मण्डल विकास निगम के विश्रामगृह हैं। इसके अलावा प्राइवेट होटल, लॉज, धर्मशालाएं भी हैं जो आसानी से मिल जाती हैं। चोपता में भी आवासीय सुविधा मिल जायेगी, यहां स्थानीय लोगों की दुकानें हैं।

समय और सीजन: मई से लेकर नवम्बर तक यहां की यात्रा थोडी आसान है। यात्रा के लिये सप्ताह भर का वक्त काफी है। यूं तो गर्म कपडे साथ हों चाहे महीने कोई भी हों, क्योंकि ऐसी जगह पर हर महीने का अपना रंग और अपना मजा है।

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