शनिवार, अप्रैल 02, 2011

इतिहास की धरोहर, महलों और बागों का कस्बा- डीग

राजस्थान में भरतपुर जिले का ऐतिहासिक डीग कस्बा अपने खूबसूरत बगीचों व जल महलों के शिल्प के लिये भी बहुत जाना जाता है। इस शहर की खूबियां बता रहे हैं प्रेम एन. नाग:

राजस्थान की गौरव गाथा में भरतपुर का विशेष स्थान तो है परन्तु इससे जुडे कई तथ्यों की जानकारी लुप्तप्राय है। ब्रिटिश साम्राज्य को टक्कर देने वाली इस छोटी सी रियासत के राजाओं ने अपनी वीर सेनाओं की सहायता से चार महीनों तक चली जंग में अंग्रेजी फौजों को करारी मात देकर उन्हें भारी क्षति पहुंचाई। भरतपुर पहला राज्य बना जिसके साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी को चिरस्थाई समान मित्रता (परमानेण्ट इक्वल फ्रेण्डशिप) की सन्धि करनी पडी। इसके पश्चात भरतपुर वासी समस्त ब्रिटिश शासन काल में चैन से रहे। इस सन्धि के पश्चात आने वाले समय में राजघराने ने डीग नामक स्थान पर अपने जलमहल बनवाये जो पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण और पर्यटन के आकर्षण हैं।

इतिहास बताता है कि 17वीं शताब्दी के अन्तिम दौर में बहादुर जाटों के नेता चूडामण और बदनसिंह ने सभी जाटों को संगठित किया और एक शक्तिशाली फौज तैयार की। राजा बदन सिंह के पुत्र सूरजमल भरतपुर के सबसे महान राजा हुए। उन्होनें 1732 में भरतपुर के किले का निर्माण कार्य शुरू करवाया जिसे बनने में साठ वर्ष लगे। इस किले को लोहागढ भी कहा जाता है जिसमें अंग्रेज प्रवेश नहीं कर सके थे। किले के चारों ओर विशाल और गहरी खाई हैं जिसमें पानी भरा रहता है। आज इसके भीतर एक सरकारी कार्यालय और एक संग्रहालय है।

भरतपुर से उत्तर की ओर चौंतीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है डीग, जो अपने महलों और बागों के लिये प्रसिद्ध है। गोपाल भवन, कृष्ण भवन, नंद भवन और केशव भवन यहां के मुख्य महल हैं। वास्तुकला के सुन्दर नमूने गोपाल भवन की एक मंजिल पश्चिम की ओर के जलसरोवर गोपाल सागर में जलमग्न रहती है। सामने से गोपाल भवन एक मंजिला दिखाई देता है। बायीं ओर से दो मंजिला और पीछे गोपाल सागर की ओर से इसकी तीन मंजिलें दिखाई देती हैं। भवन के सामने संगमरमर का झूला बना है। सुन्दर बारादरी और मुगल छत्ता विशाल प्रांगण में मौजूद है। गोपाल भवन के दोनों ओर बने सावन और भादों नामक मंडप महल की सुन्दरता को बढाते हैं।

केशव भवन में सारे महलों और परिसर के लिये जल व्यवस्था के लिये किया गया योजनाबद्ध और दक्षतापूर्ण निर्माण कार्य उस समय की दूरदर्शिता का नायाब नमूना है। दस हजार गैलन पानी की क्षमता वाला जलाशय यहां बना हुआ है। बागों में लगे फव्वारे भी इस जल की सहायता से चलाये जाते हैं। महलों के परिसर में बने बाग मुगलों द्वारा उत्तर भारत में बनाये गये बाग-बगीचों की तर्ज पर हैं। सारे निर्माण कार्य में भी मुगल शिल्पकला की झलक मिलती है। पुराने महल की शान भी निराली है जो रूप सागर नामक सरोवर के साथ बना है। गुडगांव केनाल/यमुना फीडर चैनल गोपाल सागर और रूप सागर के जल के मुख्य स्त्रोत थे। पर्याप्त आपूर्ति न होने से यहां का जल स्तर बहुत नीचे गिर चुका है।

गोपाल भवन के भीतर एक संग्रहालय है जहां अन्य बहुमूल्य वस्तुओं के अतिरिक्त विभिन्न युद्धों में जीत के उपरान्त लाई गयी वस्तुओं का संग्रह है। राजा और रानी के अलग-अलग कक्ष हैं। रानी के कक्ष में प्रवेश वर्जित है। भवन की ऊपरी मंजिल में नृत्य घर है जो दर्शकों के लिये बन्द है। कहा जाता है कि इस सुन्दर नृत्य घर में गायन और साज-बाज की आवाज बाहर सुनी नहीं जा सकती थी। रख-रखाव की दृष्टि से भी पुरातत्व विभाग के अधिकारी और कर्मचारी यहां विशेष ध्यान दे रहे हैं। दुनियाभर में मशहूर केवलादेव घना पक्षी विहार भी भरतपुर राजघराने की देन है जिन्होनें समय-समय पर इसका विकास किया। लेकिन डीग के जलमहलों की तो अलग ही शान है। कृषि प्रधान डीग क्षेत्र में होली से एक सप्ताह पूर्व रंगीले महोत्सव होते हैं जिनमें ब्रज महोत्सव प्रमुख है।

दिल्ली से भरतपुर की दूरी लगभग दो सौ किलोमीटर है और यह शहर रेल तथा बस से भली-भांति जुडा है। आगरा से भरतपुर केवल 50 किलोमीटर की दूरी पर है। सबसे नजदीक का हवाई अड्डा भी आगरा में है। मथुरा डीग के बहुत समीप है। ठहरने के अच्छे होटल भरतपुर में हैं।

लेख: प्रेम नाथ नाग (दैनिक जागरण यात्रा, 26 फरवरी 2006)

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