रविवार, अप्रैल 24, 2011

गंगा की मौज पर क्रूज का मजा

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 अक्टूबर 2007 को प्रकाशित हुआ था।

क्रूज के नाम से अगर आपके जेहन में सिर्फ समुद्र में तैरते बडे जहाजों की तस्वीर उभरती हो तो आप गलत हैं। भारत में गंगा व ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां हैं जिनके पाट इतने चौडे व गहरे हैं कि छोटे जहाज उनमें आसानी से चल सकते हैं। नदियों की धार के साथ-साथ चलते चलते देश को देखने का मजा ही कुछ और है।

भारत जैसे समृद्ध इतिहास व संस्कृति वाले देश को देखने व समझने के कई तरीके घुमक्कडों के पास हो सकते हैं। लेकिन कई बार ये तरीके ही इतने मजेदार हो जाते हैं कि लोग जगह के साथ-साथ इनका भी मजा लूटने आते हैं। भारत में सैलानियों के लिये हाउसबोट तो श्रीनगर से लेकर केरल तक कई जगहों पर हैं लेकिन नदियों में क्रूज का चलन अभी तक बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया है। अब जबकि क्रूजलाइनर भी भारतीय बाजार में जगह बनाने में लगे हुए हैं, मुमकिन है कि नदियों में क्रूज का प्रचलन भी जोर पकडने लगे।

इस बार हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही क्रूज की जो शायद फिलहाल भारत में अपनी तरह का अकेला क्रूज है। कोलकाता से दो क्रूज हैं- एक मुर्शिदाबाद के लिये और दूसरा सुन्दरबन के लिये। दोनों ही क्रूज तीन रात व चार दिन के हैं। कोलकाता से मुर्शिदाबाद तक 260 किलोमीटर का सफर गंगा की धारा में तय करना इतिहास, अध्यात्म व प्रकृति का एक सफर है। वहीं विश्वप्रसिद्ध सुन्दरबन का क्रूज इको टूरिज्म, एडवेंचर स्पोर्ट्स, आराम व नेचर ट्रेक का एक यादगार अनुभव है। आखिरकार रॉयल बंगाल टाइगर के इस इलाके में ही दुनिया के सबसे अनूठे इको-सिस्टम में से एक आपको देखने को मिलेगा। मजेदार बात यही है कि यह क्रूज तमाम बाकी गतिविधियों का मिला-जुला स्वरूप है। जैसे कि आप सुन्दरबन जायें तो वहां जंगल में पैदल घूमने, एक द्वीप को बनते देखने, मछुआरों की बस्तियों को देखने, वगैरह का मौका भी आपको मिलेगा।

इस बार हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही क्रूज की जो शायद फिलहाल भारत में अपनी तरह का अकेला क्रूज है। कोलकाता से दो क्रूज हैं- एक मुर्शिदाबाद के लिये और दूसरा सुन्दरबन के लिये। दोनों ही क्रूज तीन रात व चार दिन के हैं। कोलकाता से मुर्शिदाबाद तक 260 किलोमीटर का सफर गंगा की धारा में तय करना इतिहास, अध्यात्म व प्रकृति का एक सफर है। वहीं विश्वप्रसिद्ध सुन्दरबन का क्रूज इको टूरिज्म, एडवेंचर स्पोर्ट्स, आराम व नेचर ट्रेक का एक यादगार अनुभव है। आखिरकार रॉयल बंगाल टाइगर के इस इलाके में ही दुनिया के सबसे अनूठे इको-सिस्टम में से एक आपको देखने को मिलेगा। मजेदार बात यही है कि यह क्रूज तमाम बाकी गतिविधियों का मिला-जुला स्वरूप है। जैसे कि आप सुन्दरबन जायें तो वहां जंगल में पैदल घूमने, एक द्वीप को बनते देखने, मछुआरों की बस्तियों को देखने, वगैरह का मौका भी आपको मिलेगा।

संस्कृति की धरोहर दिखाने वाले दूसरे क्रूज का आनन्द बिल्कुल अलग है। इसमें पहले दिन कोलकाता से रवाना होने के बाद हावडा पुल के नीचे से गुजरते हुए नदी के किनारे बने मन्दिरों व घाटों, हाउस ऑफ डॉल्स, नीमतोला घाट, काशीपुर में भारत की सबसे पुरानी बंदूक व गोला फैक्टरी को निहारते हुए बेलूर पहुंचते हैं। यहां उतरकर स्वामी विवेकानन्द द्वारा स्थापित किये गये बेलूर मठ को देखने का मौका मिलता है। शाम ढलते-ढलते सैलानी फिर जहाज पर पहुंच जाते हैं और चंदननगर निकल पडते हैं। यह 1950 तक फ्रांस की एक कॉलोनी थी। जाहिर है, यहां का हर माहौल फ्रांसीसी होगा। आसपास के इलाके का मजा लेकर जब सैलानी वापस जहाज में पहुंचेंगे तो रात में खाना भी फ्रांसीसी स्वाद का ही मिलेगा। वहां से चलकर जहाज रात बिताने के लिये त्रिवेणी में लंगर डाल देता है।

दूसरे दिन का सफर ग्रामीण बंगाल की खूबसूरती को निहारने का होता है। सवेरे के समय एक इतिहासकार जहाज पर आकर गंगा की अनमोल विरासत के बारे में जानकारी देता है। दोपहर में जहाज मायापुर पहुंचता है जो इस्कॉन का मुख्यालय है। यहां शानदार शाकाहारी भोजन आपका इंतजार कर रहा होता है। हरे कृष्ण सम्प्रदाय का मानना है कि मायापुर में ही चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था इसलिये यह दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी है। साथ ही में नबद्वीप है जो अब नदी के रास्ता बदल लेने से गंगा के पश्चिमी तट पर आ गया है। नबद्वीप को अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये बंगाल का ऑक्सफोर्ड भी कहा जाता है। चैतन्य महाप्रभु से जुडे इन दो शहरों की सैर के बाद शाम फिर से जहाज पर बीतती है। रात में जहाज हजारद्वारी में लंगर डाल देता है।

मुर्शिदाबाद पश्चिमी बंगाल के सबसे पुराने और सम्पन्न विरासत वाले शहरों में से है। नवाब मुर्शीद अली खान ने बंगाल, बिहार और उडीसा को मिलाकर जो सूबे बांग्ला बनाया था, मुर्शिदाबाद उसकी राजधानी थी। यह बंगाल के आजाद नवाबों की आखिरी और अंग्रेजों के शासन में बंगाल की पहली राजधानी भी रही। तीसरे दिन यात्री हजारद्वारी में उतरकर खुशबाग में सैर करते हैं। इसी में बंगाल के आखिरी आजाद नवाब सिराज-उद-दौला का मकबरा है। नाश्ते के लिये लोग जहाज पर लौटते हैं और उसके बाद फिर तरोताजा होकर शहर में निकल पडते हैं। निजामत किला, हजारद्वारी पैलेस, म्यूजियम, कटारा मस्जिद, नाशीपुरा पैलेस, वगैरा घूमकर सैलानी भोजन के लिये जहाज पर लौटते हैं। मुर्शिदाबाद का सिल्क बहुत लोकप्रिय है। दोपहर बाद का समय उसकी खरीदारी में लगाया जा सकता है। शाम को इस शहर से विदा लेकर प्लासी की लडाई के ऐतिहासिक मैदान की झलक देखने के लिये वापसी का सफर शुरू हो जाता है। चौथे दिन सवेरे कालना के प्राचीन टेराकोटा मन्दिर देखे जा सकते हैं। चिनसुरा व बंदेल होते हुए कोलकाता में सफर खत्म हो जाता है। थोडा महंगा सही लेकिन यह अनुभव शानदार होगा।

एक झलक तीन डेक वाला क्रूज जहाज ऐशो-आराम की सारी सुविधाएं उपलब्ध कराता है। जहाज में 32 एसी कमरे हैं। सैलानियों की देखरेख के लिये 40 लोगों का स्टाफ जहाज पर मौजूद रहता है।

किराया (अक्टूबर 2007 से मार्च 2008 तक): व्यक्तिगत दरें मुख्य डेक (डीलक्स केबिन)- 24000 रुपये फर्स्ट डेक (लग्जरी केबिन)- 28500 रुपये

ग्रुप रेट (न्यूनतम दस यात्री) मुख्य डेक (डीलक्स केबिन)- 21400 रुपये फर्स्ट डेक (लग्जरी केबिन)- 25500 रुपये

ये प्रति व्यक्ति दरें तीन रात, चार दिन के पूरे पैकेज के लिये हैं। इसमें सभी भोजन, गाइडेड टूर, एंट्री फीस, मनोरंजन आदि शामिल हैं। पांच साल से छोटे बच्चे के लिये 20 फीसदी अतिरिक्त किराया, दो के कमरे में तीसरे व्यक्ति के लिये 50 फीसदी ज्यादा किराया। किराये में 4.94 फीसदी सर्विस टैक्स शामिल नहीं है।

रवानगी: (मिलेनियम पार्क जेट्टी से): हर सोमवार दोपहर तीन बजे वापसी: हर बृहस्पतिवार सवेरे ग्यारह बजे उसी स्थान पर सम्पर्क: विविडा क्रूज, कोलकाता।

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