रविवार, मई 01, 2011

रोमांच बिन जिंदगी कैसी

लेख: गुरमीत बेदी

खुले आकाश में पंछियों की तरह उडना, ऊंवे-ऊंचे पहाडों की चोटियों को छूना या बर्फीली वादियों में अठखेलियां करने का मजा और रोमांच लोगों को साहसिक पर्यटन की ओर आकर्षित करते हैं। यही वजह है कि देश के पर्यटन मानचित्र पर कुछ ऐसे स्थान बहुत तेजी से उभरे हैं, जो देश-विदेश के युवाओं को साहसिक पर्यटन के लिये लुभा रहे हैं। इसी को चुनौती के रूप में स्वीकार कर साहसी लोग ट्रैकिंग, स्कीइंग, हैलीस्कीइंग, ग्लाइडिंग, पैरा ग्लाइडिंग, वाटर राफ्टिंग, पैरासेलिंग, जेट स्कीइंग, वाटर सर्फिंग जैसे रोमांचक पर्यटन अभियानों पर निकल पडते हैं।

पहाड जहां सैलानियों को लुभाते हैं, वही अपनी विशालकाय चोटियों को छूने के लिये मौन निमन्त्रण सा भी देते हैं। इस निमंत्रण को स्वीकार कर कई साहसी युवा ट्रैकिंग और पर्वतारोहण जैसे अभियानों पर निकल पडते हैं। पहाड की चोटी से छलांग लगाकर हवा में उडते हुए आसमान का सीना नापने के दो खेल- हैंग ग्लाइडिंग और पैरा ग्लाइडिंग हाल ही के वर्षों में काफी लोकप्रिय हुए हैं और इनकी गिनती साहसिक व जोखिम भरे खेलों में की जाने लगी है। राफ्टिंग व कयाकिंग ऐसी जलक्रीडाओं में शुमार हैं। गर्मी हो या सर्दी, कभी भी उफनती लहरों से अठखेलियां की जा सकती हैं। इसी तरह सर्दियों में जब पहाडों की चोटियां बर्फ की चादर से ढक जाती हैं, कई रोमांच प्रेमी पर्यटक बर्फ के खेलों का लुत्फ उठाने पहाड चले आते हैं। स्कीइंग और हैलीस्कीइंग ऐसे ही बर्फानी खेलों के नाम हैं। भारत में हिमानी खेलों के लिये उपयुक्त स्थल हिमाचल में सोलांग नाला, कुफरी, नारकंडा और रोहतांग हैं, जबकि कश्मीर में गुलमर्ग और गढवाल में औली प्रमुख हैं।

समुद्र तल से 10 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित औली उत्तराखण्ड के चमोली जिले में नंदा देवी पर्वत श्रंखला के आगोश में है। स्कीइंग विशेषज्ञ इसे एशिया का सर्वश्रेष्ठ बर्फीला खेल मैदान मानते हैं। यहां पर कई बार राष्ट्रीय शीतकालीन खेलों का आयोजन हो चुका है। गढवाल मण्डल विकास निगम स्कीइंग के शौकीनों को प्रशिक्षण देने के लिये बाकायदा स्कीइंग पाठ्यक्रम चलाता है।

कश्मीर में गुलमर्ग स्कीइंग के लिये विख्यात है तो हिमाचल में मनाली (सोलांग नाला), कुफरी, नारकंडा और रोहतांग में स्कीइंग के लिये उपयुक्त ढलान मौजूद हैं। इन ढलानों पर हर वर्ष सैंकडों देशी-विदेशी रोमांच प्रेमी स्कीइंग का लुत्फ उठाने आते हैं।

हिमाचल में स्कीइंग शुरू करने का श्रेय कुफरी को प्राप्त है। भारत-तिब्बत राष्ट्रीय राजमार्ग पर शिमला से 18 किलोमीटर दूर स्थित कुफरी अत्यंत मनोहारी पर्यटन स्थल है। स्कीइंग प्रेमियों के लिये तो यह स्थल स्वर्ग से कम नहीं। यहां पर महासू से कुफरी बाजार तक जाते 3 किलोमीटर लम्बे स्कीइंग ढलान पर फिसलते हुए पहला पडाव ‘कुबेर’ के पास आता है। वहां से ‘जंप’ लगाकर स्कीयर कुफरी बाजार तक फिसलते हुए पहुंच जाता है। मनाली के पास स्थित सोलांग नाला तो हिमानी खेलों के प्रमुख खेलों के रूप में उभर कर सामने आया है। यहां प्रति वर्ष पर्वतारोहण संस्थान द्वारा शीत ऋतु में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इस स्थल को स्कीइंग की दृष्टि से अब और विकसित किया जा रहा है।

स्कीइंग की तरह एक अन्य रोमांचक खेल है- हैली स्कीइंग। समुद्र तल से 13050 फुट की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे पर 1989-90 की शीत ऋतु में इस खेल का आयोजन शुरू हुआ था। दुनिया की सबसे तेज व नवीन पद्धति पर आधारित इस खेल में स्कीइंग खिलाडी को हैलीकॉप्टर के जरिये हिम शिखर पर उतारा जाता है, जहां से मीलों लम्बे ढलानों पर वह तूफानी रफ्तार से फिसलता चला जाता है।

बर्फ पर फिसलने की तरह आसमान में उडने के रोमांचक खेलों के प्रति भी युवा पीढी का रुझान बढा है। इन खेलों को हैंग ग्लाइडिंग व पैरा ग्लाइडिंग के नाम से भी जाना जाता है। पैरा ग्लाइडिंग की शुरूआत फ्रांस में 1978 में हुई थी, जहां पहली बार आल्प्स पर्वत की ऊंचाईयों से उडान भरी गई। पैरा ग्लाइडिंग में कपडे की दो सतह होती हैं जिनको सिलाई करके छोटे-छोटे हिस्सों में बांट दिया जाता है। ज्यों ही खिलाडी पैरा ग्लाइडर को लेकर दौडता है, इस हिस्से में हवा भर जाती है जिसके कारण पैरा ग्लाइडर हवा में तैरने लगता है। यदि खिलाडी हवा में दायें मुडना चाहता है तो वह ग्लाइडर में लगी दायें हाथ की रस्सियों को खींचता है और अगर बायें मुडना चाहता है तो बायें ओर की रस्सियों को अपनी ओर खींचता है। जब खिलाडी को नीचे उतरना होता है तो वह सारी रस्सियों को अपनी ओर खींच लेता है। भारत में पैरा ग्लाइडिंग के लिये मशहूर सोलांग नाला के अतिरिक्त बिलासपुर, जोगिंदर नगर व बिलिंग भी शामिल हैं। इसके अलावा मुम्बई, सिक्किम और उत्तराखण्ड में अनेक स्थानों पर इस खेल के लिये अभ्यास और प्रशिक्षण की व्यवस्था है। राजस्थान में अरावली पर्वत श्रेणियां, तमिलनाडु में नीलगिरी पहाडियां और बैंगलूर में कोनिकट पैरा ग्लाइडिंग के लिये सर्वोत्तम स्थल हैं।

हिमाचल प्रदेश की बिलिंग घाटी को पैरा ग्लाइडिंग के लिये एशिया में सर्वाधिक उपयुक्त स्थल माना जाता है और जब इस घाटी में पैरा ग्लाइडिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है, तो आसमान रंग बिरंगी छतरियों से भर उठता है। बडा अदभुत व अलौकिक दृश्य होता है। यहां की पथरीली जमीन से छलांग लगाकर पैरा ग्लाइडर हवा में तैरने लगता है तो पौराणिक कथाओं में उपजी उडन खटोलों की कल्पना मानों जीवंत हो उठती है।

हवा में उडने, उन्मुक्त आकाश में विचरण करने और धरती व आसमान के बीच अठखेलियां करने का एक अन्य रोमांचक खेल है- हैंग ग्लाइडिंग। हवा में उडने की चाह हममें से अधिकांश के मन में होती है। उडते परिंदों को देख कर यह चाह और भी बलवती हो उठती है। जर्मनी के नागरिक आटो लिलिएंथल के मन में भी कभी ऐसी चाह ही उठी थी और वह आकाश में उडने की कल्पना को साकार करने में इतना तल्लीन हो गया कि उसने सचमुच में ऐसी तकनीक विकसित कर डाली जिससे इंसान पंछियों की तरह हवा में उड सकता था, नटों की तरह अठखेलियां दिखा सकता था। इस तकनीक का नाम था हैंग ग्लाइडर। लिलिएंथल ने 1891 में पहला हैंग ग्लाइडर बना कर आसमान का सीना नापा था। फिर विश्व के कई उत्साही व साहसी लोग इस तकनीक की तरफ आकर्षित हुए। उसके बाद तो यह रोमांचक खेलभर हो गया।

कुछ लोगों को उफनती नदी की लहरों से अठखेलियां करने में भी अदभुत रोमांच हासिल होता है। उत्तराखण्ड के गढवाल और हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में राफ्टिंग शिविरों का आयोजन अक्सर होता ही रहता है। गर्मियों के मौसम में नदी में जलक्रीडाएं देखते ही बनती हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला, ब्यासी के आसपास कई एजेंसियां राफ्टिंग का समुचित प्रशिक्षण देती हैं। रोमांचक खेलों में पर्वतारोहण व ट्रैकिंग सबसे आसान हैं और सुलभ भी। कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गढवाल, सिक्किम, पूर्वोत्तर व दार्जीलिंग में पर्वतारोहण व ट्रैकिंग के लिये मशहूर कई स्थल हैं। दार्जीलिंग, उत्तरकाशी, जम्मू व मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान पर्वतारोहण का समग्र प्रशिक्षण भी देते हैं। लाहौल और कुल्लू-मनाली की घाटियां भी साहसिक पर्यटन के शौकीनों को लुभाती हैं। इन घाटियों में प्रकृति के विभिन्न नजारे दिखते हैं। साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिये लेह-लद्दाख भी स्वर्ग से कम नहीं।

कुल मिलाकर पर्वतीय स्थल रोमांच का दूसरा नाम हैं। इस रोमांच का लुत्फ उठाने के लिये साहसी नौजवान व युवतियां जोखिम उठाने से भी गुरेज नहीं करते। पिछले कुछ वर्षों से देश की पीढी का रुझान साहसिक खेलों के प्रति बढा है और इस पीढी की नजर में सबसे बडी शिद्दत से यह सोच पनपी है- आखिर बिन रोमांच जिंदगी कैसी…

रोमांचक पर्यटन के लिये पैकेज
ट्रैकिंग

मुम्बई के पास: लोनावाला, राजामाची
हिमाचल: कुल्लू, धौलाधार पहाडियां
सिक्किम: तोलुंगमठ ट्रैक, मालेडुंगा ट्रैक
उत्तराखण्ड: गढवाल, पिथौरागढ, कौसानी
मध्य प्रदेश: पचमढी
कब जायें: बारिश व हिमपात के 4 महीने छोडकर साल में कभी भी जा सकते हैं।
खर्च: सात दिन से एक महीने तक के प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये जाते हैं, जिनका 3 से 10 हजार का खर्च आता है।
स्कीइंग

हिमाचल: कुफरी, सोलांग नाला, नारकंडा, रोहतांग
कश्मीर: गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम
उत्तराखण्ड: गढवाल, जोशीमठ, चमोली
कब जायें: स्कीइंग के लिये दिसम्बर से मार्च के बीच सबसे अच्छा समय है।
खर्च: 5 से 7 दिन के प्रशिक्षण कोर्स के लिये 3000 से 5000 रुपये तक।
ग्लाइडिंग

मुम्बई के पास गोल्डन ग्लैड, खंडाला, लोनावाला
बंगलौर के पास नीलगिरी की पहाडियां
हिमाचल: बिलिंग घाटी, सोलंग नाला, बिलासपुर, जोगिंदर नगर
उत्तराखण्ड: औली और गढवाल घाटी
कब जायें: मार्च से जून तक का समय उपयुक्त
खर्च: 5 से 7 दिन के प्रशिक्षण कोर्स के लिये 3000 से 4000 रुपये।
वाटर स्पोर्ट्स

हिमाचल: कुल्लू घाटी की ब्यास नदी में।
उत्तराखण्ड: ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर गंगा, गढवाल घाटी में अलकनंदा और भागीरथी नदी में।
सिक्किम: कलिंपोंग में तीस्ता और रंगित नदी में।
कब जायें: अक्टूबर से अप्रैल।
खर्च: दो दिन के लिये लगभग 3000 रुपये प्रति व्यक्ति।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 27 अप्रैल 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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