मंगलवार, मार्च 13, 2012

श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान- पवित्र पहाडियों का उद्यान

आन्ध्र प्रदेश के दक्षिणी छोर पर तिरुमलै-तिरुपति की पवित्र पहाडियों के अंचल में स्थित श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान वन्य जंतु प्रेमियों के लिये आकर्षण का केन्द्र है। पूर्वी घाट की इन छोटी पथरीली पहाडियों में भले ही बडे पेड और हरियाली का विराट साम्राज्य तो नहीं है, मगर वन्य जन्तुओं की विविधता की दृष्टि से यह किसी दूसरे राष्ट्रीय उद्यान से कम नहीं है। 

यह राष्ट्रीय उद्यान 352.62 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। पहले यह एक अभयारण्य था। तिरुपति जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के निकट होने के कारण इसे तिरुपति के मुख्य देवता श्री वेंकटेश्वर का नाम दिया गया। 

कब जायें: यूं तो श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान की सैर बरसात को छोडकर वर्ष पर्यन्त की जा सकती है, मगर अक्टूबर से मार्च का समय पर्यटन के लिये अधिक अनुकूल रहता है। वर्ष भर यहां ठण्ड नहीं पडती इसलिये सर्दियों में भी यहां गर्म कपडे ले जाने की जरुरत नहीं है। 

कैसे जायें: श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान पहुंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन तिरुपति है। तिरुपति चेन्नई, मुम्बई और हैदराबाद से सीधी विमान सेवाओं द्वारा जुडा हुआ है। देश के प्रायः सभी शहरों से इसका सडक सम्पर्क भी है। आन्ध्र प्रदेश पर्यटक विभाग की ओर से भी राज्य के महत्वपूर्ण शहरों से यहां के लिये टूरिस्ट बस सेवाएं सुलभ हैं। तिरुपति से भी श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान पहुंचने के लिये चंद्रगिरि होते हुए एक घण्टे से कम समय लगता है। 

प्रमुख नगरों से दूरी: चन्द्रगिरि 20 किलोमीटर, तिरुपति 31 किलोमीटर, चेन्नई 178 किलोमीटर, बंगलौर 252 किलोमीटर, मुम्बई 1183 किलोमीटर। 

कहां रहें: श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के आवास के लिये वन विश्राम गृह की सुविधा सुलभ है। आन्ध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के निकटतम गेस्ट हाउस चन्द्रगिरि और तिरुपति में हैं जहां वातानुकूलित कमरों की व्यवस्था है। इनके अतिरिक्त प्राइवेट होटल भी हैं। 

क्या देखे: यदि आप झाडदार वृक्षों का सौन्दर्य निहारने की चाह रखते हैं तो श्री वेंकटेश्वर नेशनल पार्क इसके लिये एक बेहतरीन जगह है। इस उद्यान में पेडों की बजाय रंग बिरंगी झाडियों का बाहुल्य है और पेडों की ऊंचाई आमतौर पर दस मीटर से अधिक नहीं है। रेड सेंडर यहां की मुख्य वृक्ष प्रजाति है जो आर्थिक दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण है। 

श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान अनेकानेक वन्य प्राणियों का घर है। बाघ और तेंदुए तो यहां हैं ही साथ ही हिरण, गौर, भालू, सूअर, लोमडी, भेडिया और जंगली कुत्ते भी यहां पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं। स्वच्छंद विचरण करते चीतल, सांभर और काले हिरणों के झुण्ड देखने वालों का मन मोह लेते हैं। बंदरों की एक विशेष प्रजाति बोनिट भी यहां का एक अन्य आकर्षण है। 

श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान के इर्द-गिर्द अनेक दर्शनीय स्थल हैं। इनमें तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर का सुप्रसिद्ध मन्दिर (31 किलोमीटर), चन्द्रगिरि दुर्ग (20 किलोमीटर), होर्सले हिल्स (175 किलोमीटर) और नारायणवनम (67 किलोमीटर) आपकी यात्रा को अविस्मरणीय और परिपूर्ण कर देंगे। 

लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

सोमवार, मार्च 12, 2012

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान- हरे वन और वन्य जन्तुओं का प्रदेश

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान का नाम सुनते ही जेहन में एक चित्र सा उभर आता है जिसमें चारों ओर ऊंचे ऊंचे वृक्ष, लहराती घास और एक-दूसरे से गुंथी सघन झाडियां नजर आती हैं। नीलगिरि की नीली नीली पहाडियां और उनके बीच में कल कल का निनाद करते नदी नाले बह रहे होते हैं। इस वैविध्यपूर्ण जड-जगत को वन्य प्राणियों की गूंज और चहलकदमी और भी जीवन्त बना देती है। 

एक सा लगते हुए भी हर जंगल का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान का भी अपना एक खास व्यक्तित्व है जो वन्य पर्यटन की असीम सम्भावनाओं को समेटे हुए है। यहां चंदन, टीक और रोजवुड जैसी प्रजातियों के पेड हैं और बांस के कुंजों की भरमार है। प्रकृति की यह सघनता वन्य प्राणियों के फलने-फूलने के लिये स्वर्ग के समान है। 

बांदीपुर देश की बाघ परियोजनाओं में से एक है। यह कर्नाटक के दक्षिणी छोर पर स्थित प्राचीन अभयारण्य है। मैसूर के रियासती दौर में 1931 में तत्कालीन महाराजा मैसूर ने यहां के समृद्ध वन्य जीवन से प्रभावित होकर इस अभयारण्य की स्थापना की थी। स्वतंत्रता के पश्चात इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। बांदीपुर कर्नाटक का पहला और सबसे बडा राष्ट्रीय उद्यान है। यह 874.20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।

कब जायें: पर्यटन प्रेमियों के लिये बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान सितम्बर से अप्रैल तक खुला रहता है और इस पूरे सीजन में यह देखने योग्य है। फिर भी वर्षा के बाद यानी सितम्बर से नवम्बर तक यह विशेष रूप से दर्शनीय हो जाता है। वर्षा के बाद हरीतिमा कई गुना बढ जाती है और मेघ रहित आकाश काफी नीला लगने लगता है। 

दिसम्बर से फरवरी के मध्य यहां सर्दी होती है। इस मौसम में हल्के गर्म कपडों की जरुरत पडती है। वसन्त के मौसम का भी अपना आनन्द है, जब जंगली फूलों की खुशबू से जंगल और जानवर मस्ती में झूमने लगते हैं। वृक्षों पर नई नई कोंपलें और फूल सजने लगते हैं जिससे सारा जंगल कभी हल्का गुलाबी, थोडा बैंगनी और कुछ कुछ नीला नजर आने लगता है। ऐसे खुशगवार मौसम में बांदीपुर की धरती स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति प्रदान करती है। 

कैसे जायें: निकटतम हवाई अड्डा बंगलुरू है, जो हैदराबाद, दिल्ली, चेन्नई, मदुरई, तिरुअनन्तपुरम, कोयम्बटूर, कोच्चि, मंगलौर, गोवा, पुणे और मुम्बई की वायुसेवा से जुडा है। निकटतम रेलवे स्टेशन चामराजनगर यहां से 53 किलोमीटर दूर है। वहां से बांदीपुर का सफर सडक मार्ग से तय किया जा सकता है। बांदीपुर स्टेट हाइवे से जुडा है। यहां दक्षिण भारत के सभी प्रमुख नगरों से सडक परिवहन के द्वारा पहुंचा जा सकता है। 

प्रमुख नगरों से दूरी: बंगलुरू 220 किलोमीटर, मैसूर 80 किलोमीटर, ऊटी 82 किलोमीटर, कोयम्बटूर 187 किलोमीटर, चेन्नई 569 किलोमीटर। 

कहां ठहरें: बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के आवास के लिये वन विश्राम गृह और कॉटेज की उचित व्यवस्था है। इसके लिये चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन अथवा फील्ड डाइरेक्टर प्रोजेक्ट टाइगर कार्यालय से अग्रिम आरक्षण करा लेना सुविधाजनक रहता है। 

क्या देखे: बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान अपने अंचल में कई प्रकार के पशु-पक्षियों को सहेजे हुए है। वनराज बाघ आकर्षण का केन्द्र है। बाघ के अलावा यहां तेंदुए भी हैं पर इनका दर्शन बडा ही दुर्लभ है। यहां हाथियों के कई जत्थे हैं, जो यत्र-तत्र भटकते हुए अक्सर पर्यटकों के सामने आ जाते हैं किंतु मनुष्य की दखलअंदाजी उन्हें जरा भी पसन्द नहीं है। पर्यटकों को हाथियों से दूर ही रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि कई बार ये उग्र और हिंसक हो जाते हैं। चीतल, सांभर, काकड और चौसिंगा के झुण्ड प्रायः सब कहीं नजर आ जाते हैं। जंगली कुत्ते ‘धौर’ झुण्डों में रहते हैं। ये बडे आक्रामक और खतरनाक होते हैं। 

बांदीपुर का एक और खास आकर्षण है- गौर। यह विशालकाय शाकाहारी जीव यहां घास के मैदानों में चरते समय बेहद चित्ताकर्षक लगते हैं। रीछ, गिलहरी, लंगूर और अन्य अनेक प्रकार के छोटे जीव-जन्तु सतर्कतापूर्वक विचरण करते हुए नजर आते हैं। यहां कई किस्मों की मछलियां, सांप और नागराज भी मिलते हैं। पक्षियों में तीतर, बटेर, पी-फाउल, धनेश और हरे कबूतर के साथ ही दर्जनों प्रकार के रंग बिरंगे पंछी हैं, जो पर्यटकों के स्वागत में हमेशा चहकते रहते हैं। 

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण के लिये सफारी वाहन, प्रशिक्षित हाथी और मार्ग निर्देशकों की अच्छी व्यवस्था है, जो आपके सफर को अविस्मरणीय बना देते हैं। 

लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित) 
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

रविवार, मार्च 11, 2012

मैरीन नेशनल पार्क- समुद्र की निराली जीव सृष्टि

अरब सागर की गोद में प्रवाल (मूंगा) द्वीपों का एक विस्तृत दयार है अंडमान निकोबार। छोटे बडे आकार के इन द्वीप समूहों का प्राकृतिक सौन्दर्य, प्रदूषण मुक्त निर्मल समीर, नारियल के वृक्षों से आच्छादित जमीन, साफ-सुथरे समुद्री तट, मूंगे की चट्टानों से घिरी नीली झीलें और उनमें तैरती असंख्य प्रजातियों की रंगबिरंगी मछलियां सुन्दरता में चार चांद लगा देती हैं। इसी नैसर्गिक वातावरण के बीच स्थित अंडमान का सुप्रसिद्ध मैरीन नेशनल पार्क देश-विदेश के सैलानियों को अपनी ओर खींच लेता है। 

समुद्र के जल में जो जीव सृष्टि है वह धरातल के प्राणियों से कम सुन्दर और आकर्षक नहीं। इस बात का एहसास वंडूर स्थित मैरीन नेशनल पार्क में पहुंचते ही हो जाता है। लाब्रेंथ द्वीप समूह और उससे जुडे समुद्र में पसरा मैरीन नेशनल पार्क दक्षिणी अंडमान के पश्चिमी तट पर स्थित है। क्षेत्रफल (281.5 वर्ग किलोमीटर) की दृष्टि से यह अंडमान के छह राष्ट्रीय उद्यानों मंज सबसे बडा है। 

कब जायें: दिसम्बर से अप्रैल का समय मैरीन नेशनल पार्क की सैर के लिये सर्वोत्तम है। इस दौरान यहां मौसम खुशगवार और पर्यटन के लिये उपयुक्त होता है। 

कैसे जायें: देश की मुख्य भूमि से वायु मार्ग अथवा जलमार्ग से अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर पहुंचकर मैरीन नेशनल पार्क जाया जा सकता है। इंडियन एयरलाइंस की कोलकाता और चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर के लिये नियमित उडानें हैं। दो सप्ताह में एक बार दिल्ली से भुवनेश्वर होते हुए भी पोर्ट ब्लेयर की हवाई यात्रा की जा सकती है। 

कोलकाता, चेन्नई और विशाखापटनम से शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इण्डिया के समुद्री जहाजों के जरिये भी आप अंडमान पहुंच सकते हैं। इसके लिये अग्रिम आरक्षण की व्यवस्था है। विदेशी पर्यटकों के लिये अंडमान की सैर के लिये विशेष अनुमति पत्र लेना अनिवार्य है। पोर्ट ब्लेयर से मैरीन नेशनल पार्क के भ्रमण के लिये अण्डमान निकोबार पर्यटन विभाग की ओर से मोटर बोट और लांच की समुचित व्यवस्था है। 

प्रमुख नगरों से दूरी: पोर्ट ब्लेयर 20 किलोमीटर, विशाखापत्त्नम 1220 किलोमीटर, चेन्नई 1153 किलोमीटर, कोलकाता 1300 किलोमीटर। 

कहां रहें: वंडूर स्थित वन विश्राम गृह ठहरने के लिये एक उपयुक्त जगह है। यदि आप नारियल के पत्तों से बनी निकोबारी झोंपडी में रहने का लुत्फ लेना चाहते हैं तो पोर्ट ब्लेयर स्थित मेगापोड नेस्ट में ठहर सकते हैं। अण्डमान बीच रिसॉर्ट में भी ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। अण्डमान में दक्षिण भारतीय एवं समुद्री मछलियों से निर्मित स्वादिष्ट व्यंजन पर्यटकों को बेहद पसन्द आते हैं। 

क्या देखे: मैरीन नेशनल पार्क की सीमा में 15 छोटे-छोटे प्रवाल द्वीपों का एक समूह है। लाब्रेंथ द्वीप समूह के नाम से प्रसिद्ध ये द्वीप आकार में जितने छोटे हैं उतने ही आकर्षक भी हैं। लाब्रेंथ द्वीप प्रकृति की एक अदभुत कृति हैं। यह आश्चर्य की बात है कि इनका निर्माण सामान्य धरती की तरह नहीं हुआ बल्कि इन्हें समुद्री जीव मूंगों (कोरल) ने बनाया है। 

मूंगे की चट्टानों की रचना के सम्बन्ध में अनेक सिद्धान्त प्रचलित हैं। इनमें चार्ल्स डार्विन की अवधारणा सबसे अधिक मान्य है। चार्ल्स डार्विन ने सन 1842 में कहा था कि एक ज्वालामुखी के शान्त होने के परिणामस्वरूप तटीय प्रवाल भित्ति का निर्माण हुआ और उसके लगातार अवतलन के कारण यह भाग ऊपर उठा। जब ज्वालामुखी पूरी तरह शान्त हो गया तो प्रवाल द्वीप अस्तित्व में आये। इनमें कई लगून (मूंगे की चट्टानों से घिरी झील) बने। प्रवाल द्वीपों पर सबसे पहले रेत टीले के रूप में जमा हुई। पक्षियों की बीट से यह जमीन उपजाऊ बनी और भूमि पर वनस्पति का उगना सम्भव हुआ। मैरीन नेशनल पार्क में समुद्री जीव मूंगे अथवा कोरल की यह अदभुत कारीगरी देखकर आप दंग रह जायेंगे। पानी में उतरकर आप एक विशेष यन्त्र से जीवित मूंगों को भी देख सकते हैं। 

मूंगों के साथ ही पानी में तैरती विभिन्न प्रजातियों की मछलियां देखकर भी आप जरूर रोमांचित हो उठेंगे। तुना, सारडिनी, एंचोव, बर्राकुडा, मुल्लेट, मैकिरिल, पोमफ्रिट, झींगा और हिल्सा यहां पाई जाने वाली मछलियों की कुछ प्रजातियां हैं। 

लाब्रेंथ द्वीप समूह के तटीय क्षेत्र समुद्री कछुओं के प्रजनन की भूमि है। यहां पांच प्रजातियों के समुद्री कछुए पाये जाते हैं। वाटर मोनिटर, छिपकलियां, जंगली सूअर, समुद्री सांप, लॉबस्टर, केकडा (क्रैब), घोंघा (आइस्टर) और समुद्री सांपों की कई प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं। समुद्री जीव जन्तुओं के साथ ही मैरीन राष्ट्रीय उद्यान अनेक दुर्लभ पक्षी प्रजातियों का भी डेरा है। इनमें निकोबारी कबूतर और समुद्री गरुड जैसे दुर्लभ पक्षी शामिल हैं। 

कुल मिलाकर अण्डमान स्थित मैरीन नेशनल पार्क पर्यटन की दृष्टि से पूरी तरह विकसित है। यहां समुद्री जीव जन्तुओं के अवलोकन के साथ ही कार्वोनस कोव बीच में स्नान और तैराकी का भी मजा लूट सकते हैं। ताड और नारियल के वृक्षों से आच्छादित द्वीप समूहों की यह धरती प्रकृति प्रेमी पर्यटकों के लिये एक शानदार जगह है। 

मैरीन नेशनल पार्क के साथ ही आप अण्डमान की सैर भी कर सकते हैं। इनमें चिरैया टापू, माउंट हैरियट, वाइपर आइलैण्ड, चाथम द्वीप, सिप्पीघाट फार्म, रॉश आइलैण्ड और ऐतिहासिक सेल्यूलर जेल आदि दर्शनीय जगहें आसपास ही हैं। अण्डमान प्रशासन और स्थानीय लोग अपने पर्यावरण संरक्षण के प्रति बेहद सजग हैं। वे यहां पर्यटन गतिविधियों को सीमित रखना चाहते हैं। यही वजह है कि जब आप अण्डमान के खूबसूरत समुद्री तटों की सैर करते हुए मूंगे का कोई टुकडा उठा लेते हैं तो यकीन कीजिये आपका गाइड जरूर यही कहेगा कि, ‘प्लीज थ्रो दी कोरल पीसेज बैक इन टू दि सी।’ 

लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

शनिवार, मार्च 10, 2012

वन्य पर्यटन- कुछ उपयोगी सुझाव

वन्य पर्यटन अथवा राष्ट्रीय उद्यानों में सैर सपाटा काफी लोकप्रिय होता जा रहा है। जंगलों की सैर हमें प्रकृति के करीब ले आती है। वन्य जन्तुओं की बहुरंगी दुनिया में पहुंचकर एक नवीन ताजगी का एहसास होता है और अपनी सारी थकान मिटाकर हम खुद को फिर से तैयार कर लेते हैं जीवन की संघर्षमय यात्रा के लिये। 

सामान्य पर्यटन से कई मायनों में अलग है- वन्य पर्यटन। जंगलों में स्वच्छंद विचरण करते पशु-पक्षियों को करीब से देखना बेहद रोमांचक और थोडा जोखिमभरा काम है। अपनी तथा दुर्लभ वन्य जन्तुओं की सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय उद्यानों में घूमते-फिरते समय कुछ हिदायतों का पालन करना बेहद जरूरी है। वन-यात्रा के दौरान नीचे दिये गये सुझावों को ध्यान में रखें, तभी आप अपनी यात्रा का भरपूर लुत्फ उठा पायेंगे।

- देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित राष्ट्रीय उद्यानों में भ्रमण के लिये मौसम के अनुरूप स्थल का चयन कीजिये। मसलन गर्मी के मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित राष्ट्रीय उद्यानों का भ्रमण ज्यादा उपयुक्त रहता है।  
- राष्ट्रीय उद्यान अथवा अभयारण्यों में जाने से पूर्व अपने आवास का अग्रिम आरक्षण सुनिश्चित कर लें।
- अभयारण्यों अथवा राष्ट्रीय उद्यानों में आग्नेय हथियार ले जाना निषिद्ध है, भले ही आपके पास अपने हथियार का लाइसेंस ही क्यों न हो।
- राष्ट्रीय उद्यानों में साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, थ्री व्हीलर जैसे वाहनों से घूमने का इरादा छोड दें। इन वाहनों को उद्यान क्षेत्र में ले जाने की अनुमति नहीं है।
- यदि आप पार्क का भ्रमण अपनी कार से करना चाहते हैं तो वाइल्ड लाइफ वार्डन से अनुमति लेने के बाद अपने साथ प्रशिक्षित मार्गदर्शक (गाइड) ले जाना न भूलें।
- कार से पार्क में भ्रमण के समय खिडकियों के शीशे ऊपर चढा लें। हॉर्न न बजायें। जंगल में वाहन से नीचे बिल्कुल न उतरें। वहां पैदल घूमना खतरनाक हो सकता है।
- उद्यानों में रात्रि के समय वाहन चलाने तथा हैड लाइट जलाने की अनुमति नहीं है।
- राष्ट्रीय उद्यानों में डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रवेश निषिद्ध है।
- अधिकांश राष्ट्रीय उद्यानों में सडकें कच्ची, ऊबड-खाबड एवं धूल से भरी हैं, इसलिये अपने साथ गीले पेपर, नैपकिन अथवा हाथ के तौलिये अवश्य रखें।
- अपने पालतू जानवरों को घर पर ही रखें। राष्ट्रीय उद्यानों में इन्हें ले जाने की अनुमति नहीं है।
- जंगली जानवरों को किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ खिलाने का प्रयास न करें। ऐसा करना जुर्म है।
- रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेप अथवा संगीत वाद्य यंत्रों को उद्यान क्षेत्र में बजाने की अनुमति नहीं है। दरअसल इन्हें बजाने से जंगली जानवरों की शान्ति में खलल पडता है।
- अभयारण्यों में भ्रमण के दौरान जहां तक सम्भव हो सके, बीडी, सिगरेट अथवा सिगार आदि न पीएं। माचिस की जलती हुई तीली अथवा बीडी-सिगरेट के जलते हुए टुकडे से जंगल में आग लग सकती है।
- यदि आप राष्ट्रीय उद्यान में फोटोग्राफी अथवा फिल्मांकन करना चाहते हैं तो सम्बन्धित अधिकारी से लिखित अनुमति प्राप्त करें। याद रखिये, पार्क क्षेत्र में आप फ्लैश लाइट का प्रयोग नहीं कर सकते, इसलिये अपने साथ उच्च गति (हाई स्पीड) फिल्में ले जायें।
- उद्यान में किसी भी किस्म के भुगतान की रसीद अवश्य ले लें।
- राष्ट्रीय उद्यानों में भ्रमण के लिये सम्भवतः हाथी ही सबसे उपयुक्त सवारी है। देश के अनेक राष्ट्रीय उद्यानों में पर्यटकों को पार्क में घुमाने के लिये हाथियों की व्यवस्था है। इस सुविधा का उपयोग करें। खासतौर पर बच्चों को तो हाथियों से सैर जरूर करायें।
- जहां तक सम्भव हो सके, जंगल में तडक-भडक वाले रंगीन कपडे न पहनें। खाकी, भूरा, बादामी, सलेटी, कत्थई अथवा धानी रंग वन-भ्रमण के लिये उपयुक्त है। तेज रंग के कपडों को देखकर जानवर चौंक उठते हैं और दूर भाग जाते हैं।
- जूते और कपडे ऐसे हों, जिन्हें पहनकर दूर तक चला या दौडा जा सके।
- राष्ट्रीय उद्यानों की झील, नदी अथवा तालाब आदि में तैरने की चेष्टा न करें।
- अपने साथ दूरबीन भी ले चलें, जानवरों के निरीक्षण के लिये यह एक उपयोगी यंत्र है।
- वन्य-प्राणियों की अलार्म कॉल सुनें। उनकी आवाज से अंदाजा लगायें कि वे किस जगह पर मौजूद हैं और उनका मूड कैसा है। - जानवरों के पैर अथवा खुरों के निशान से भी पता लगाया जा सकता है कि जानवर उस क्षेत्र से कब गुजरे और अब वे कहां होंगे।
- वन-भ्रमण को जाते समय अपने साथ पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी रखना न भूलें।
- वन्य जन्तुओं को देखने का सबसे उपयुक्त समय प्रातः और सायंकाल है।
- जल-स्रोतों के इर्द-गिर्द बने मचानों से भी जंगली जानवरों को देखने का आनन्द लिया जा सकता है।
- अनेक राष्ट्रीय उद्यानों में पर्यटकों को वन्य जीवन से सम्बन्धित स्लाइड एवं फिल्में दिखाने की व्यवस्था रहती है। ऐसे शो अवश्य देखें।
- चिप्स, पान मसाला के रैपर या प्लास्टिक की थैलियों को जंगल में न फेंकें।
- राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य बस्ती से दूर स्थित होते हैं। हो सकता है कि जरुरत पडने पर आपको डाक्टर उपलब्ध न हो सके, इसलिये छोटी मोटी दवाईयां जैसे क्रोसीन, एस्पिरीन, इलैक्ट्रोल, पुदीन हरा, एंटीसेप्टिक क्रीम, बैंडेज, आयोडेक्स वगैरह अपने साथ रख लें।
- हाथी के हौदे से या अपने वाहनों से पार्क का चक्कर लगाकर वन्य प्राणियों को देखने वालों में अधिकांश की रुचि मात्र शेर या बाघ को देखने में ही होती है और यदि ये नजर न आयें तो पार्क बेकार! लेकिन यह धारणा ठीक नहीं है। याद रखिये अभयारण्य चिडियाघर नहीं है, जहां छोटे से बाडे में आपको शेर या अपना मनपसन्द जानवर चहलकदमी करता हुआ मिल जायेगा। भई, जंगल का शेर तो अपनी मर्जी का मालिक है। उसे आपके आने अथवा न आने से क्या! धैर्य रखिये और शेर की तलाश में घूमते हुए पेड-पौधों, नदी-नालों और दर्जनों किस्म के पंछियों के सौन्दर्य का अवलोकन करते रहिये।
- बडे राष्ट्रीय उद्यानों में भ्रमण के लिये कम से कम दो दिन का समय अवश्य रखें। अपनी यात्रा से बहुत अधिक अपेक्षा न रखें। यदि आप ऐसा समझते हैं कि उद्यान में मौजूद सभी प्रजातियों के पशु-पक्षी आपको एक ही दिन में नजर आ जायेंगे तो निराशा हाथ लगना निश्चित समझिये। अवश्य ही अधिक से अधिक जानवर देखने की आशा रखें, किन्तु यदि किसी वजह से यह उम्मीद पूरी न हो तो इसको सामान्य लें।
- जब कभी भी आप राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य की सैर से लौटें तो वहां से कुछ ज्ञान लेकर आयें। अपने मित्रों और परिचितों में अपना अनुभव बांटे। उन्हें वन्य जन्तुओं के संरक्षण के लिये प्रेरित करें।

लेख: अनिल डबराल (26 नवम्बर 1995 को हिन्दुस्तान में प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

शुक्रवार, मार्च 09, 2012

महावीर राष्ट्रीय उद्यान- बगैर इसके अधूरी है गोवा यात्रा

यदि किसी से यह पूछा जाये कि खूबसूरत समुद्री तट, मशहूर गिरजाघर, प्राचीन दुर्ग, मन्दिर और जल-प्रपातों के अतिरिक्त ऐसी कौन सी जगह है जिसे देखे बगैर गोवा की यात्रा पूरी नहीं होती तो यकीनन वह जगह भगवान महावीर नेशनल पार्क ही होगी। गोवा के पूर्वी छोर पर स्थित इस नन्हे से राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति की सुन्दरता को उसके सर्वोत्तम रूप में निहारने का जो सुख मिलता है उसे यहां की सैर से ही महसूस किया जा सकता है। 

घने पेडों की छतरी ओढे गोवा का यह इलाका सन 1961 में भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने से पूर्व पुर्तगाली उपनिवेशी शासकों का पसंदीदा शिकारगाह था। मनोरंजन के नाम पर यहां निरीह वन्य प्राणियों का जमकर शिकार किया गया। उपनिवेशी शासन से मुक्ति के बाद सन 1967 तक यहां एक अभयारण्य की स्थापना की गई, जिसे मोलम अभयारण्य का नाम दिया गया। सन 1978 में इसी के एक हिस्से में 107 वर्ग किलोमीटर भू-क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना की गई। मोलम अभयारण्य का क्षेत्रफल 255 वर्ग किलोमीटर है। इस अभयारण्य का नाम गोवा के प्रस्तावित राष्ट्रीय उद्यानों में दर्ज है। बहरहाल भगवान महावीर राष्ट्रीय उद्यान और मोलम अभयारण्य दोनों एक दूसरे की सीमा से लगे हुए हैं। 

कब जायें: पश्चिमी घाट की पहाडियों और अरब सागर के खूबसूरत समुद्री तटों से घिरे गोवा में वर्ष के हर मौसम का अपना आकर्षण है। फिर भी राष्ट्रीय उद्यान की सैर के लिये अक्टूबर से मार्च का मौसम सुखद और मनोरम होता है। 

कैसे जायें: गोवा का मुख्य हवाई अड्डा डेबोलिम है जो राष्ट्रीय उद्यान से 80 किलोमीटर की दूरी पर है। डेबोलिम भारत के विभिन्न शहरों से हवाई उडानों से जुडा हुआ है। महावीर राष्ट्रीय उद्यान निकटवर्ती रेलवे स्टेशन कोलम से सिर्फ 5 किलोमीटर के फासले पर है। बंगलौर, बेलगांव, मुम्बई, मिराज, मैसूर, पुणे आदि स्थानों से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। 

प्रमुख नगरों से दूरी: पोंडा 29 किलोमीटर, पणजी 58 किलोमीटर, पुणे 401 किलोमीटर, बंगलौर 534 किलोमीटर, मुम्बई 643 किलोमीटर, हैदराबाद 700 किलोमीटर, दिल्ली 1555 किलोमीटर। 

कहां रहें: महावीर राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के आवास के लिये वन विश्राम गृह और पर्यटक कुटीर की समुचित व्यवस्था है। राष्ट्रीय उद्यान के बाहर गोवा के विभिन्न उपनगरों में भी पर्यटकों के ठहरने के लिये पांच सितारा सुविधाओं से लैस होटलों से लेकर बजट में भी बिस्तर पा जाने की सुविधाएं उपलब्ध है। 

क्या देखें: पश्चिमी घाट की पहाडियों और हरे-भरे पेडों से परिपूर्ण भगवान महावीर राष्ट्रीय उद्यान के प्राकृतिक माहौल में जंगली जानवरों को देखना बेहद मनोरंजक है। पर्यटक उद्यान में तेंदुआ, हाथी, भालू और हिरण की कई प्रजातियां देख सकते हैं। जंगल में निर्भय विचरण करती जंगली बिल्लियां भी सुगमता पूर्वक नजर आ जाती हैं। ये घरेलु बिल्लियों से कुछ बडी तथा डरावनी शक्ल वाली होती हैं। उडने वाली गिलहरियां भी भगवान महावीर राष्ट्रीय उद्यान के आकर्षण में शामिल हैं। 

लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

गुरुवार, मार्च 08, 2012

घाना राष्ट्रीय पक्षी उद्यान- पंख-पखेरुओं का संसार

कुदरत ने हमें पंख-पखेरुओं का एक विचित्र और कौतुहल भरा संसार प्रदान किया है। आज दुनिया में पक्षियों की अनेक नस्लें समाप्त हो चुकी हैं। कुछ पक्षी प्रजातियां समाप्ति के कगार पर हैं और कुछ पंछी जीवन संघर्ष करते हुए इतनी कम तादाद में बचे हैं कि उनको देख पाना भी मुश्किल हो गया है। पक्षियों के संरक्षण के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास शुरू हो चुके हैं। भारत में इस समय कई पक्षी विहार हैं। राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय पक्षी उद्यान भी एक ऐसा ही प्रसिद्ध पक्षी विहार है जहां अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से लुप्तप्राय पक्षियों की वंशवृद्धि के प्रयास किये जा रहे हैं। 

रियासती दौर में भरतपुर के ये जंगल शाही शिकारगाह थे। भरतपुर नरेश स्वयं अपने और अपने खास मेहमानों के मनोरंजन के लिये यहां आते थे। उन दिनों पक्षियों के शिकार का शौक इस कदर बढ गया था कि सन 1927 में महाराज अलवर के आगमन पर आयोजित शिकार में यहां 1453 पक्षी गोलियों से भूने गये। सन 1936 में वायसराय लार्ड लिनालिथगो के हाथों 1415 पक्षी शहीद हुए और सन 1938 में इसी वायसराय के आगमन पर यहां सिर्फ एक ही दिन में 4273 परिंदों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। 

बहरहाल 13 मार्च 1965 से यहां पशु-पक्षियों के शिकार पर रोक लगाई गई और इसे राष्ट्रीय पक्षी विहार घोषित कर दिया गया। 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह उद्यान जल पक्षियों का स्वर्ग है। पार्क के 11 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में उथली झीलें हैं जिनमें जलीय परिंदों के लिये तरह तरह की मछलियां तथा ‘ट्यूबर्स’ व ‘सेसेज’ नामक घास पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहती है। 

कब जायें: अगस्त से मार्च के मध्य का समय घाना राष्ट्रीय उद्यान के भ्रमण के लिये सबसे उपयुक्त है। अगस्त से नवम्बर का समय अधिकांश पक्षियों का प्रजनन का समय होता है। अतः पक्षियों के नीड निर्माण और विभिन्न प्रजनन क्रियाओं के निरीक्षण के लिये यह समय उपयुक्त है। यदि आपकी रुचि प्रवासी पक्षियों में है तो आपको नवम्बर से मार्च के बीच यहां जाना चाहिये। 

कैसे जायें: भरतपुर स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान भारतीय पर्यटन के मशहूर गोल्डन ट्रैंगल यात्रापथ पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिये हवाई अड्डा है। दिल्ली से मुम्बई जाने वाली प्रायः सभी रेलगाडियां भरतपुर होकर जाती हैं और यहां ठहरती हैं। दिल्ली, आगरा, मथुरा और जयपुर से यहां पहुंचने के लिये हर प्रकार की सडक परिवहन सुविधाएं सुलभ हैं। 

प्रमुख नगरों से दूरी: दिल्ली 175 किलोमीटर, मुम्बई 1260 किलोमीटर, आगरा 56 किलोमीटर, जयपुर 176 किलोमीटर, लखनऊ 419 किलोमीटर।

कहां ठहरें: राजस्थान पर्यटन का विश्राम गृह सारस, शान्ति कुटीर और भारतीय पर्यटन विकास निगम के फॉरेस्ट लॉज के अतिरिक्त भरतपुर में ठहरने के लिये कई अच्छे होटल हैं। आप चाहें तो स्थानीय लोगों के बीच पेइंग गेस्ट के रूप में भी ठहर सकते हैं। 

क्या देखें: घाना पक्षी उद्यान में 352 प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं। इनमें 232 स्थानीय और 120 प्रवासी हैं। स्थानीय पक्षी पूरे वर्ष इस उद्यान अथवा इसके इर्द-गिर्द के इलाकों में निवास करते हैं जबकि प्रवासी पक्षी शीतकाल में यहां अपना डेरा जमा लेते हैं। 

सूर्योदय के समय झील के किनारे पहुंचकर पंछियों को निहारना अपने आप में एक सुखद अनुभव है। सरोवर के बीच में छोटे छोटे भूखण्ड, चट्टानों और पेडों पर सैकडों पंछी बैठे हुए नजर आते हैं। पक्षियों का कलरव, आकाश में उडान और नोंक-झोंक बहुत अच्छा लगता है। पार्क में जगह जगह वाच टावर भी हैं जहां से आप पक्षियों की विभिन्न गतिविधियों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। विहंगावलोकन का सर्वोत्तम समय प्रातः और सायंकाल है। सुबह होते ही पक्षी अपनी मधुर स्वरलहरियों के बीच भोजन की तलाश में जुट जाते हैं और सायंकाल को अपने नीडों में लौटते समय झुंड के झुंड आकाश में उडानें भरते रहते हैं। 

यहां पाये जाने वाले विशिष्ट पक्षियों में बुज्जा (आइविस), जांघिल (पेंटेड स्टार्क), कलहंस (गीज), चेती (टील), बगुले (इग्रेट), हेरन, कोमोरेट, टिकरी, पनकौवा, बुलबुल, राजहंस, सोन चिडिया, तीतर, बटेर, क्रोंच, बाज, सारस, रोजी पास्टर, स्नेक बर्ड, गोल्डन प्लोवर, सारिका, पपीहा, स्ट्रा, ओपनबिल, स्पूनबिल, परपल, कूटस, पिनटेल, पोचर्ड आदि प्रमुख हैं। गाइड की मदद से आप इन पक्षियों की पहचान कर सकते हैं। 

किन्तु घाना का मुख्य आकर्षण है साइबेरियाई क्रेन। सफेद रंग के ये सारस मध्य साइबेरिया से करीब छह हजार किलोमीटर की यात्रा के बाद यहां पहुंचते हैं। साइबेरियाई सारस एक दुर्लभ पक्षी है। पूरी दुनिया में इनकी गिनती घटकर 350 से भी कम हो चुकी है। एक अर्से पहले तक ये सैकडों की तादाद में घाना पहुंचते थे। सन 1967 में इनकी संख्या 200 दर्ज की गई थी किन्तु पिछले कुछ वर्षों से यह संख्या निरन्तर घटती जा रही है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवास के दौरान जब ये सारस अफगानिस्तान और पाकिस्तान की झीलों में रुकते हैं तो वहां शिकारी इन्हें मार डालते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्रेन फाउंडेशन इनके संरक्षण के लिये पूरी तन्मयता से जुडा हुआ है। इसके अन्तर्गत कृत्रिम रूप से सेह कर पैदा किये साइबेरियन सारस के बच्चों को घाना लाना और इनके पैरों पर ट्रांसमीटर लगाकर उपग्रह के जरिये इनकी निगरानी करना शामिल है। साइबेरियन क्रेन भारतीय बगुले से काफी मिलते-जुलते हैं। अन्तर इतना है कि इनकी चोंच और टांगें गुलाबी रंग की होती हैं। उडान के समय फैलाये पंखों के नीचे काले धब्बे दिखाई देते हैं। दरअसल उडान के समय इन्हें पहचानने का यही मुख्य लक्षण है। घाना का महत्व इसलिये भी बढ जाता है क्योंकि पूरे दक्षिण एशिया में साइबेरिया के सफेद सारसों का यही एकमात्र शीतकालीन बसेरा है। 

रंग बिरंगी चिडियों के साथ ही यहां चीतल, सांभर, नीलगाय, लोमडी, गीदड आदि वन्य जन्तुओं को भी विचरण करते हुए देखा जा सकता है। हिरणखुरी के पास अजगरों की गुफाएं हैं। यहां अजगरों को देखने के लिये पर्यटकों की खूब भीड जमा रहती है। अपनी किस्म के इस अनूठे पक्षी विहार में रंग-बिरंगी चिडियों की चहचाहट के साथ ही हर सुबह पर्यटकों की चहलकदमी भी शुरू हो जाती है। यहां आने वाले पक्षी प्रेमियों की संख्या हर वर्ष बढती जा रही है। 

लेख: अनिल डबराल 
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

बुधवार, मार्च 07, 2012

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान- वन फूलों से महकता हसीन उद्यान

हिमाच्छादित पहाडियों, हरी-भरी घाटियों, इठलाती-बलखाती नदियों, जंगली फूलों और ऊंचे दरख्तों के इर्द-गिर्द मंडराते वन्य प्राणियों की एक जीवन्त दुनिया का नाम है- कंचनजंगा (स्थानीय नाम: खंग-चंग जौंगा) नेशनल पार्क। 

सिक्किम के उत्तरी छोर पर स्थित इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना सन 1977 में की गई। यह 850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। प्रकृति की अपूर्व छटा से परिपूर्ण इस राष्ट्रीय उद्यान में 47 अत्यन्त संकटापन्न जातियों के पशु-पक्षी निवास करते हैं। कुदरत ने इस स्थल को बडी खूबसूरती से संवारा है। 

इस राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण हिमालय की तीसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी कंचनजंगा के नाम पर किया गया है, जो इसी क्षेत्र में है। प्रतिबन्धित क्षेत्र होने के कारण विदेशी पर्यटकों के लिये फिलहाल कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश की अनुमति नहीं है। 

कब जायें: उपयुक्त मौसम की दृष्टि से कंचनजंगा नेशनल पार्क की सैर के लिये अक्टूबर से दिसम्बर तथा फरवरी से मई का समय सबसे उपयुक्त है। यहां की जलवायु ठण्डी है। इसलिये यात्रा के लिये पर्याप्त गरम कपडे ले जाने चाहिये। 

कैसे जायें: निकटतम हवाई अड्डा बागडोगरा है जो दिल्ली, गुवाहाटी और कोलकाता से नियमित वायु सेवा से जुडा हुआ है। रेल से आने वाले यात्रियों के लिये न्यू जलपाईगुडी निकटतम रेलवे स्टेशन है। देश के प्रायः सभी मुख्य मार्गों से रेलें न्यू जलपाईगुडी आती हैं। यहां से थोडी ही दूरी पर स्थित सिलिगुडी से सिक्किम राज्य परिवहन की बसों, प्राइवेट टैक्सियों से गंगटोक आना चाहिये। वहां से कंचनजंगा पहुंचने के लिये राज्य पर्यटन विभाग की ओर से टूरिस्ट कार की व्यवस्था है। इसके अलावा प्राइवेट टैक्सियां भी हमेशा उपलब्ध रहती हैं। 

महत्वपूर्ण नगरों से दूरी: गंगटोक 98 किलोमीटर, न्यू जलपाईगुडी 221 किलोमीटर, बागडोगरा 222 किलोमीटर, गुवाहाटी 722 किलोमीटर, कोलकाता 818 किलोमीटर, दिल्ली 1724 किलोमीटर। 

कहां रहें: कंचनजंगा नेशनल पार्क में ठहरने के लिये छोटे-छोटे और खूबसूरत वन विश्राम गृह बने हुए हैं। इनमें अधिकतम 16 व्यक्तियों के लिये आवासीय सुविधाएं उपलब्ध है। इसके लिये सहायक वन्य जन्तु अधिकारी कार्यालय से आरक्षण करा लेना चाहिये। 

क्या देखें: प्रकृति प्रेमी पर्यटकों के लिये स्वर्ग के समान सुन्दर इस उद्यान में हिम तेंदुआ, बादली तेंदुआ, लाल पांडा, थार, कस्तूरी मृग, भरल, थाकिन, घूरल, सीरो और जंगली गधे जैसी अत्यन्त दुर्लभ वन्य प्रजातियां अपने प्राकृतिक रूप में देखी जा सकती हैं। पार्क की सैर के दौरान भालुओं से भी आपकी मुलाकात हो सकती है। 

कंचनजंगा नेशनल पार्क में ऊंचाई पर निवास करने वाली अत्यन्त खूबसूरत और दुर्लभ प्रजातियों के मोनाल, टूगोपान और हिममुर्गी जैसे बडे पंछी भी निवास करते हैं। इन रंग-बिरंगी पक्षियों की एक झलक मात्र से यहां की यात्रा सार्थक हो जाती है। 

लेख: अनिल डबराल 
सन्दीप पंवार के सौजन्य से