शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

पुष्कर- स्नान का लाभ और मेले का आनंद

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 अक्टूबर 2007 को छपा था।

लेख: उपेन्द्र स्वामी

भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आमतौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इनमें बडी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खासतौर पर पसन्द है। हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है।

देशभर के हिंदू तीर्थस्थानों में पुष्कर का अलग ही महत्व है। यह महत्व इसलिये बढ जाता है कि यह अपने आप में दुनिया में अकेली जगह है जहां ब्रह्मा की पूजा की जाती है। लेकिन इस धार्मिक महत्व के अलावा भी इस जगह में लोगों को आकर्षित करने वाली खूबसूरती है। अजमेर से नाग पर्वत पार करके पुष्कर पहुंचना होता है। इस पर्वत पर एक पंचकुण्ड है और अगस्त्य मुनि की गुफा भी बताई जाती है। यह भी माना जाता है कि महाकवि कालिदास ने इसी स्थान को अपने महाकाव्य अभिज्ञान शाकुंतलम के रचनास्थल के रूप में चुना था। पुष्कर में एक तरफ तो विशाल सरोवर से सटी पुष्कर नगरी है तो दूसरी तरफ रेगिस्तान का मुहाना। सैलानियों की इतनी बडी संख्या के बावजूद यहां के स्वरूप में खास तब्दीली नहीं आई है।

कार्तिक के महीने में यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह भारत के सबसे बडे पशु मेलों में से भी एक है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिये विदेशी सैलानी बडी संख्या में पहुंचते हैं तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिये ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिये लोग ऊंट के अलावा घोडे, हाथी और बाकी मवेशी भी बेचने के लिये आते हैं। सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्फ मिलता है सो अलग। लोक संस्कृति व लोग संगीत का शानदार नजारा देखने को मिलता है।

मेला स्थल से परे पुष्कर नगरी का माहौल एक तीर्थनगरी सरीखा होता है। कार्तिक में स्नान का महत्व हिंदू मान्यताओं में वैसे भी काफी ज्यादा है। इसलिये यहां साधु भी बडी संख्या में नजर आते हैं। पुष्कर मेला कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक चलता है। मेले के शुरूआती दिन जहां पशुओं की खरीद-फरोख्त का जोर रहता है, वही बाद के दिनों में पूर्णिमा पास आते-आते धार्मिक गतिविधियों का जोर हो जाता है। श्रद्धालुओं के सरोवर में स्नान करने का सिलसिला भी पूर्णिमा को अपने चरम पर होता है।

मेले के दिनों में ऊंटों व घोडों की दौड खूब पसन्द की जाती है। सबसे खूबसूरत ऊंट व ऊंटनियों को इनाम भी मिलते हैं। दिन में लोग जहां जानवरों के कारनामे देखते रहते हैं, तो वही शाम का समय राजस्थान के लोक नर्तकों व लोक संगीत का होता है। ऐसा समां बनता है कि लोग झूमने लगते हैं।

मन्दिरों की नगरी

पुष्कर को तीर्थनगरी का दर्जा हासिल है तो उसकी एक वजह यह भी है कि यहां कई मन्दिर हैं। इसीलिये इसे मन्दिरों की नगरी भी कहा जाता है। पुष्कर में छोटे बडे चार सौ से ज्यादा मन्दिर हैं।

ब्रह्मा मन्दिर: ब्रह्मा के नाम मौजूद यह एकमात्र मन्दिर है। इस समय जो मन्दिर है, वह 14वीं सदी में बनाया गया था। मन्दिर के लिये कई सीढियां चढनी होती हैं जो संगमरमर की बनी हैं। मन्दिर के गर्भगृह के ठीक सामने चांदी का कछुआ बना हुआ है। कछुए के चारों तरफ मार्बल के फर्श पर सैकडों सिक्के गढे हुए हैं जिनपर दानदाताओं के नाम खुदे हुए हैं।

रंगजी मन्दिर: रंगजी को विष्णु का ही रूप माना जाता है। इनके दो मन्दिर हैं- एक नया और दूसरा पुराना। नया मन्दिर हैदराबाद के सेठ पूरणमल गनेरीवाल ने 1823 में बनवाया था। इस मन्दिर की खूबसूरती द्रविड, राजपूत व मुगल शैली के अदभुत समागम की वजह से है।

सावित्री मन्दिर: ब्रह्मा की पहली पत्नी का यह मन्दिर ब्रह्मा मन्दिर के पीछे एक पहाडी पर स्थित है। मन्दिर पर पहुंचने के लिये कई सीढियां चढनी होती हैं। मन्दिर से नीचे पुष्कर सरोवर और आसपास के गांवों का मनमोहक नजारा देखने को मिलता है।

सरस्वती मन्दिर: विद्या की देवी सरस्वती भी ब्रह्मा की पत्नी हैं। वह नदी भी हैं और उन्हें उर्वरता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। यह जोरदार बात है कि पुष्कर को ज्ञान अर्जना का भी केन्द्र माना जाता है। सदियों से लेखक, कलाकार अपनी-अपनी कलाओं को निखारने के लिये पुष्कर आते हैं।

इनके अलावा पुष्कर में बालाजी मन्दिर, मन मन्दिर, वराह मन्दिर, आत्मेश्वर महादेव मन्दिर आदि भी श्रद्धा के प्रमुख केन्द्रों में से हैं। सरोवर के ही किनारे आमेर के राजा मानसिंह का पूर्व निवास मन महल भी है। हालांकि अब इसे राजस्थान पर्यटक विकास निगम के होटल के रूप में तब्दील किया जा चुका है।

यहां आने वाले लोग कहते हैं कि पुष्कर का अपने में अलग जादू है जो लोगों को खींचता है। खासतौर पर मेले के समय यहां आना एक यादगार अनुभव है। एक ऐसा अनुभव जो अगर मौका मिले तो किसी हाल में चूकना नहीं चाहिये।

पौराणिक महत्व

त्रिदेवों में विष्णु व शिव के साथ ब्रह्मा को गिना जाता है। ब्रह्मा जहां सृष्टि के रचयिया माने जाते हैं, वहीं विष्णु उसके पालक और शिव संहारक। पुष्कर का अर्थ एक ऐसे सरोवर से होता है जिसकी रचना एक पुष्प से हुई हो। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा ने अपने यज्ञ के लिये एक उचित स्थान चुनने के इरादे से एक कमल गिराया था। पुष्कर उसी से बना। ब्रह्मा एक खास मुहूर्त में यज्ञ करना चाहते थे। यज्ञ पूर्ण करने के लिये उनके साथ उनकी अर्धांगिनी सावित्री का होना जरूरी था। लेकिन सावित्री उन्हें इंतजार कराती रही। चिढकर ब्रह्मा ने एक ग्वालिन गायत्री से विवाह कर लिया और यज्ञ में उसे सावित्री के स्थान पर बैठा दिया। सावित्री ने वहां आकर अपनी जगह किसी और को बैठा देखा तो वह कुपित हो गई और उन्होनें ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि जिस सृष्टि की रचना उन्होंने की है, उसी सृष्टि के लोग उन्हें भुला देंगे और उनकी कहीं पूजा नहीं होगी। लेकिन बाद में देवों की विनती पर सावित्री पिघली और उन्होंने कहा कि पुष्कर में उनकी पूजा होगी। इसीलिये कहा यही जाता है कि दुनिया में ब्रह्मा का सिर्फ एक ही मन्दिर है और वह पुष्कर में है।

क्या खरीदें: यहां खरीदने के लिये हस्तशिल्प की कई सारी वस्तुएं मिल जायेंगी। स्थानीय लोग महिलाओं, मवेशियों व ऊंटों की सजावट का सामान काफी खरीदते हैं। यादगार के तौर पर कई पारम्परिक चीजें यहां से खरीदी जा सकती हैं। राजस्थान पर्यटन इस मौके पर एक शिल्पग्राम भी स्थापित करता है जहां राज्य के विभिन्न हिस्सों से शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। आप इस मौके पर न केवल उन्हें अपनी कला में रत देख सकते हैं बल्कि अपने संग्रह के लिये उनके शिल्प को खरीद भी सकते हैं। स्थानीय शिल्प को प्रोत्साहन देने का भी यह काफी कारगर तरीका है।

कहां ठहरें पुष्कर में ठहरने के लिये हर तरह के बजट लायक कई होटल व गेस्ट हाउस हैं। मेले के दौरान बडी संख्या में टेंट भी लगाये जाते हैं। इनमें लक्जरी टेंट भी होते हैं और कई सैलानी माहौल का पूरा आनन्द उठाने के लिये टेंट में ठहरना ज्यादा पसन्द करते हैं। लक्जरी टेंट आमतौर पर पर्यटन विभाग और निजी टूर ऑपरेटरों द्वारा लगाये जाते हैं। पुष्कर में न ठहरना चाहें तो अजमेर भी एक विकल्प है।

कब जायें: पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान के लिये साल में कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन स्नान के साथ-साथ पुष्कर के जगतप्रसिद्ध ऊंट मेले का भी मजा लेना हो तो कार्तिक माह में जायें। मेला कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। लेकिन ध्यान रखें कि वह समय सर्दियों की शुरूआत का है। पुष्कर के खुले रेतीले इलाके में उन दिनों रातें खासी ठण्डी हो सकती हैं। इसलिये जायें तो साथ में गरम कपडों का इंतजाम जरूर रखें।

और कैसे: सडक मार्ग से: पुष्कर अजमेर से केवल 12 किलोमीटर दूर है। वहीं अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 (दिल्ली-मुम्बई) पर स्थित है। अजमेर से जयपुर 138 किलोमीटर व दिल्ली 392 किलोमीटर है। जबकि दूसरी दिशा में उदयपुर 274 व मुम्बई 1071 किलोमीटर दूर है। अजमेर के लिये सभी बडे शहरों से सीधी सामान्य व डीलक्स बसें हैं। अजमेर से पुष्कर जाने के लिये भी कई साधन उपलब्ध हैं।

रेल मार्ग- पुष्कर जाने के लिये आपको ट्रेन से अजमेर ही आना होगा। अजमेर दिल्ली-अहमदाबाद मुख्य रेल लाइन पर है। अहमदाबाद जाने वाली ट्रेनों के अलावा दिल्ली से शताब्दी भी अजमेर तक है।

हवाई रास्ता- अजमेर में हवाई अड्डा नहीं है। इस लिहाज से जयपुर सबसे निकट का हवाई अड्डा है। हालांकि अजमेर के पास किशनगढ में एक हवाई पट्टी है जहां छोटे चार्टर विमान उतर सकते हैं। इसके अलावा अजमेर के निकट घूघरा में और पुष्कर के निकट देवनगर में हैलीपैड हैं जो हेलीकॉप्टर से आने वालों के लिये हैं।

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