यह लेख 29 नवम्बर 2006 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।
छत्तीसगढ का बस्तर इलाका आर्थिक लिहाज से काफी पिछडा हुआ है लेकिन प्राकृतिक व सांस्कृतिक दृष्टि से यह काफी सम्पन्न है। यहां के खूबसूरत फाल्स और गुफाएं पर्यटकों को मोहित कर देती हैं। यहां की बेमिसाल खूबसूरती का नजारा दिखा रहे हैं एल. मोहन कोठियाल:
छत्तीसगढ बनने के बाद पहले गुमनाम रहे बस्तर में भी पर्यटकों की बडी संख्या यहां के प्रपातों, गुफाओं, राष्ट्रीय उद्यानों व यहां की निराली दुनिया को देखने आने लगी है। बहुत ही कम लोगों को यह जानकारी है कि बस्तर में ही भारत के विशालतम जलप्रपात के अतिरिक्त अन्य दर्शनीय जलप्रपात हैं।
बस्तर आने के लिये पहले जगदलपुर आना होता है जोकि बस्तर का प्रमुख नगर है। उत्तर से अगर आप आ रहे हैं तो राजधानी रायपुर तक रेल से व उसके बाद सडक मार्ग से जगदलपुर की दूरी 300 किलोमीटर और यदि आप दक्षिण से आ रहे हों तो बरास्ता विशाखापट्टनम से रेल से जगदलपुर 320 किलोमीटर दूर है। हालांकि इस सफर में लगते हैं पूरे दस घण्टे किंतु इस मार्ग से यदि आप गुजरते हैं तो आपको आंध्र व उडीसा की पहाडियों के सौन्दर्य को देखने का एक अदभुत अनुभव होता है तो इस अनूठे रेलमार्ग की विविधता एक रोमांच पैदा करती है। बस्तर के जलप्रपातों को देखने का यदि सबसे अच्छा समय माना जाये तो वह है अक्टूबर से फरवरी के मध्य का। अक्टूबर के आते-आते बस्तर में मौसम सुहावना होने लगता है।
कई रंग हैं चित्रकोट के
गोदावरी की सहायक नदी इंद्रावती पर चित्रकोट नामक स्थान पर यह प्रपात भारत का विशालतम जलप्रपात है। अपनी गिरती विशाल जलराशि के कारण इसे भारत का नियाग्रा भी कहा जाता है। वर्षा ऋतु में इस प्रपात का विस्तार अधिकतम होता है। उस समय इसके पाट की चौडाई डेढ सौ मीटर तक पहुंच जाती है। हालांकि वर्षा ऋतु में होने वाली दिक्कतों व बाढ के कारण उस दौरान बहुत ही कम पर्यटक यहां आते हैं। किंतु जैसे ही वर्षा काल गुजर जाता है तो पानी की मात्रा कम होने से इसका रौद्र रूप घटने लगता है और जल निर्मल होने लगता है। शीत ऋतु आते-आते इसका सौंदर्य परवान चढने लगता है।
जगदलपुर से चित्रकोट प्रपात की दूरी 40 किलोमीटर है। इस स्थान पर इंद्रावती नदी की जलधारा 90 फीट की ऊंचाई से भारी गर्जना के साथ गिरती है। इस विशाल जलराशि के नीचे गिरने से पैदा होने वाली जल की सूक्ष्म बूंदें आस-पास कुहासा पैदा करती हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त के समय इसकी छटा और निराली लगती है क्योंकि तब इस पर पडने वाली सूर्य की रश्मियां इंद्रधनुषी प्रभाव पैदा करती हैं। इस प्रपात का रंग पहर के हिसाब से बदलता रहता है। नीचे गिरते ही नदी का प्रवाह शांत हो जाता है। प्रपात के समीप आप नौकायन का आनंद ले सकते हैं। कई पर्यटक नौका से उस स्थल के करीब तक जाते हैं जहां प्रपात का प्रवाह गिरता है। यह अपने आप में न भूलने वाला क्षण होता है जब डर और विस्मय से आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। स्थानीय मछुआरों को अपनी पारम्परिक डोंगियों में मछली पकडते देखा जा सकता है।
चित्रकोट के सौंदर्य को यदि आप चारों पहर निहारना चाहते हैं तो एक दिन कम से कम आपको चाहिये। तब आप इस प्रपात के हर रूप को देख सकते हैं। रुकने के लिये सबसे अच्छा है समीप में विश्रामगृह- जहां से आप इसे अपलक देख सकते हैं। यदि वहां स्थान न हो तो तट पर टेंट कालोनी भी अच्छा विकल्प है। वैसे जगदलपुर से यहां तक आने वाले मार्ग के मध्य अब कुछ रिसॉर्ट बन रहे हैं। चलने से पूर्व आप चाहें तो प्रपात के समीप ही आदिवासी शिल्पियों द्वारा बना हस्तशिल्प भी खरीद सकते हैं।
चित्रकोट में इस विशाल प्रपात को बनाने के बाद नदी एकदम शान्त हो जाती है जहां से आगे इंद्रावती अपनी बडी बहन गोदावरी से मिलने को चल देती है। पूर्व में उडीसा में कालाहांडी की पहाडियों से निकलने वाली इंद्रावती नदी बस्तर व दंतेवाडा जिलों का 265 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद पश्चिम में आंध्र व महाराष्ट्र की सीमा पर गोदावरी में मिल जाती है। दंतेवाडा में भी उसकी छटा देखने योग्य होती है। दंतेवाडा में राज्य के प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थान बारसूर के निकट माण्डर में यह नदी बोध घाटी से गिरने पर सात धाराओं में विभक्त होकर एक मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करती है जिन्हें सात अलग-अलग नामों बोधधारा, कपिलधारा, पांडवधारा, कृष्णधारा, शिवधारा, बाणधारा व शिवचित्रधारा नाम से जाना जाता है।
यह क्षेत्र घने वन्य क्षेत्र में होने के कारण यहां की छटा रमणीय है। किंतु यदि आप जगदलपुर से सातधारा जाना चाहते हैं तो अलग से योजना बनानी होती है। इसलिये यहां जाने से पहले तय कर लें कि आपको इस दिन क्या-क्या देखना है। अच्छा हो कि आप उस दिन जगदलपुर-भवानीपट्टनम राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित गीदम से 25 किलोमीटर दूर बारसूर नामक स्थान पर फैले नागगुगीन पुरातात्विक स्थलों को भी देख लें। बारसूर से 22 किलोमीटर की दूरी पर और दंतेवाडा स्थित शक्तिपीठ दंतेश्वरी मन्दिर का भी भ्रमण कर सकते हैं जोकि एक अनुपम मन्दिर है। यदि इस दिन बुधवार है तो आप यहां लगने वाले साप्ताहिक हाट को भी देख सकते हैं। चाहें तो उस दिन दंतेवाडा में भी रुक सकते हैं और अगले दिन बछेली व आकाश नगर जा सकते हैं। यही पर भारत में लौह-अयस्क का विशाल क्षेत्र बैलाडिला है।
एक अनूठा उद्यान
200 वर्ग किलोमीटर में फैला कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान सुकमा-कोंटा मार्ग पर जगदलपुर से 45 किलोमीटर दूर है। यह उद्यान प्रकृति के कई रूपों से परिपूर्ण है। यहां न केवल वन्य जन्तुओं को देखा जा सकता है बल्कि इसके अन्दर एक मनोरम जलप्रपात तीरथगढ व प्राचीन गुफाएं हैं। वन्य जन्तुओं में रुचि लेने वाले चाहें तो इस उद्यान में कई प्रकार के जानवरों को देख सकते हैं। पहाडी मैना भी इनमें एक है। इस उद्यान में सागौन के घने जंगल अपने अनछुए रूप में देखे जा सकते हैं। जैव-विविधता से परिपूर्ण यह उद्यान एक नायाब स्थान है। वृक्षों का घनापन इतना कि सूर्य की रश्मियों को भी नीचे पहुंचने के लिये संघर्ष करना होता है।
तीरथगढ प्रपात भी दर्शनीय
तीरथगढ जलप्रपात जलराशि की दृष्टि से तो बहुत विशाल नहीं है किन्तु दर्शनीय है। इस स्थान की भौगोलिक संरचना ऐसी है जहां से कांगेर नदी जब नीचे गिरती है तो गिरती जलराशि एक स्थान की बजाय विशाल चट्टान के ऊपर बिखर जाती है। यहां पर नदी का प्रवाह अलग-अलग खण्डों में गिरकर दो-तीन प्रपात बनाता है। गिरने पर पानी की धारा धवल चांदी की तरह चमकती हुई प्रतीत होती है। कई पर्यटक तो यहां पर नहाने का मोह नहीं छोड पाते हैं। तीन स्तरों पर प्रपात बनाने के बाद नदी की धारा अठखेलियां करते हुए संकरी घाटी में आगे बढ जाती है।
कोटुम्बसर गुफा
उद्यान के भीतर एक और चीज देखने योग्य है यह हैं यहां की गुफाएं। कोटुमसर (कोटुम्बसर) गुफा भी भूमिगत गुफा है। इस गुफा का प्रवेश मार्ग बेहद संकरा है। लगभग 320 मीटर लम्बी व 20 से 60 मीटर की गहराई पर बनी इस गुफा की गिनती विश्व की प्राकृतिक रूप से बनी विशालतम भूमिगत गुफाओं में होती है। इसे बगैर गाइड व उचित प्रकाश व्यवस्था के नहीं देखा जा सकता है। उद्यान के मुख्य द्वार से गाइड मिल जाता है जो आपको इस गुफा का मार्ग दिखलाने व प्रकाश व्यवस्था का कार्य करता है। गुफा के द्वार पर इस बात का कतई भी एहसास नहीं होता है कि यह गुफा इतनी बडी होगी। इसमें प्रवेश के लिये पहले भूमि के अन्दर संकरी सीढियों से बीस मीटर नीचे उतरना होता है। इसके बाद आप पहुंचते हैं गुफा में ही एक खुले स्थान में। आगे बढने पर आपको चूने की झूलती स्टेलेक्टाइट चट्टानें व स्टेलेग्माइट चट्टानें नजर आती हैं। गौर से देखने पर आपको इनमें कई रूप नजर आने लगते हैं मानों इनको किसी ने गढा हो। गुफाएं लम्बी हैं इसलिये थकावट हो सकती है। गुफा का वातावरण बेहद गर्म होने से जब आप बाहर निकलते हैं तो आपके माथे पर पसीना न आये ऐसा कम ही होता है। थोडी दूरी पर दो अन्य गुफाएं दंडक व कैलाश पडती हैं।
समय हो तो बस्तर व दंतेवाडा में कई प्रपात चित्रधारा, गुप्तेश्वर, मल्गेर, महादेव घूमर, हाथी दरहा, तामडा घूमर भी देखे जा सकते हैं।
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