शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011

रेत के समंदर पर शाही रेल का सफर

यह लेख 25 मार्च 2007 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।

जब आम पर्यटकों के लिये रेल पटरियों पर राजसी सुविधाओं की बात हो तो इस मामले में पैलेस ऑन व्हील्स यानी पहियों पर राजमहल पर इसकी शुरूआत का श्रेय बेहिचक दिया जा सकता है। वहां से शुरू हुआ सफर आगे जाकर बाकी तमाम जगहों पर फैला। इस समय अकेले राजस्थान में तीन ऐसी पर्यटन ट्रेनें चल रही हैं। महंगी ही सही, शाही अंदाज की इस यात्रा की जानकारी दे रहे हैं गोपेंद्र नाथ भट्ट:

‘रेल पर्यटन’ को बढावा देने का श्रेय सही अर्थों में यदि किसी प्रदेश को दिया जाना चाहिये तो वह है- राजस्थान, जिसके रेतीले समंदर पर पैलेस ऑन व्हील्स, हेरीटेज ऑन व्हील्स और फेयरी क्वीन जैसी शाही रेलगाडियों का सैलाब उमड रहा है। आज दुनिया की सबसे मशहूर, लोकप्रिय और लक्जरी दस ट्रेनों में शामिल "पैलेस ऑन व्हील्स- द्वितीय" का आगाज होने वाला है। भारतीय रेल के करीब 155 वर्षों के स्वर्णिम इतिहास में पर्यटक रेलगाडियों को ऐसी अभूतपूर्व सफलता किसी और प्रदेश में नहीं मिली। राजा-महाराजाओं के प्रदेश रहे राजस्थान की विभिन्न पूर्व रियासतों के शासकों और उनके परिवारजनों के लिये प्रयोग में आने वाले ‘रॉयल सैलून’ वर्षों तक रेलवे के लोको-शेड में धूल खा रहे थे, जिन्हें साज-संवार कर रेल की पटरियों पर "पहियों पर राजमहल" के रूप में दौडाने की कवायद राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) और भारतीय रेल मंत्रालय के साझा प्रयासों से सम्भव हो सकी।

25 जनवरी 1982 को "पैलेस ऑन व्हील्स" ने अपने शानदार सफर की शुरूआत उन्हीं रॉयल सैलून्स के साथ की। इस तरह उसने उसी शाही अंदाज को फिर से जिंदा कर दिया, जिस अंदाज में कभी राजा-महाराजा सफर किया करते थे। इसने दौडती रेलगाडी में पांच सितारा होटलों जैसी विलासिता और ऐशो-आराम वाले सफर को मूर्तरूप दिया। रॉयल सैलून्स की पुरानी विरासत को भी ज्यों का त्यों संजोये रखा गया। यह ट्रेन 1993 तक मीटरगेज पर चली। देश में बडी रेललाइनों के बढते जाल से राजस्थान भी अछूता भी नहीं रहा और 1994 में करीब 22 करोड रुपये की लागत से तैयार की गई पैलेस ऑन व्हील्स नई शान-शौकत और भव्यता के साथ ब्रॉडगेज पर दौडने लगी। यह रेलगाडी अब तक अपने लगभग 746 फेरों में करीब 50 हजार से भी अधिक सैलानियों को राजस्थान के ऐतिहासिक और पर्यटन स्थलों, वन और पक्षी अभ्यारण्यों के अलावा विश्व के आश्चर्यों में शुमार ताजमहल का भ्रमण करवाने के साथ ही 200 करोड से भी अधिक की कमाई कर चुकी है।

104 यात्रियों की क्षमता से युक्त इस ट्रेन में 14 डीलक्स सैलून हैं जिनके नाम पूर्व रियासतों अलवर, भरतपुर, बीकानेर, बूंदी, धौलपुर, डूंगरपुर, जैसलमेर, जयपुर, झालावाड, जोधपुर, किशनगढ, कोटा, सिरोही और उदयपुर के नाम पर रखे गये हैं। इसके अलावा ट्रेन में दो खूबसूरत रेस्तरां ‘महाराजा और महारानी’ और एक रिसेप्शन कम बार लॉज भी है। प्रत्येक सैलून के साथ एक छोटे लांज की सुविधा भी है जिसमें पर्यटक अपने हमराही सैलानियों से मित्रता बढाने के साथ ही पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन और विभिन्न आमोद-प्रमोद की सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। प्रत्येक सैलून के साथ टॉयलेट, गर्म पानी और अन्य सुविधाओं से युक्त बाथरूम और बच्चों की अलग शैयाएं आदि उपलब्ध हैं। सैलानियों की जरुरतों की देख-रेख के लिये एक राजस्थानी अंदाज का खिदमतगार भी मौजूद रहता है। ट्रेन के हर सैलून को राजस्थानी अंदाज से सजाया संवारा गया है। इनमें इंटरकॉम, टीवी, म्यूजिक, मिनरल वाटर की सुविधाएं भी हैं। रेस्तरां में कांटिनेंटल, चाइनीज, इंडियन, राजस्थानी व्यंजनों के स्वाद पर्यटकों के सफर का आनंद चौगुना करते हैं।

एक सप्ताह का स्वर्ग

पैलेस ऑन व्हील्स में एक सप्ताह के सफर के अनुभव को स्वर्ग सी यात्रा का विशेषण देना अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह गाडी सितम्बर से लेकर अप्रैल तक के आठ महीनों में हर बुधवार की शाम पौने छह बजे दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन से रवाना होती है। राजसी अगवानी के साथ सैलानियों की यात्रा शुरू होती है। पहले यह यात्रा दिल्ली कैंट से शुरू होती थी, लेकिन पर्यटकों की सुविधा की दृष्टि से इस वर्ष से इसका स्थान बदला गया है। एक बार ट्रेन में बैठने के बाद यात्रियों को न अपने सामान की देखरेख की चिंता सताती है न ही खाने-पीने, घूमने और ऐश-आराम की चिंता, क्योंकि हर प्रकार की सुख-सुविधाओं के लिये राजस्थानी वेशभूषाओं में सजे-धजे आरटीडीसी के अटेंडेंट (खिदमतगार) हर वक्त तैयार होते हैं। पहले दिन दिल्ली से प्रस्थान कर पर्यटक जयपुर पहुंचकर रात्रि विश्राम करते हैं और दूसरे दिन पिंक सिटी जयपुर का भ्रमण करने के बाद तीसरे दिन जैसलमेर के सोनार किले और पंखों की हवेली, सम के धोरों पर ऊंट सफारी सैलानियों को रोमांचित करती है।

चौथे दिन सूर्य नगरी जोधपुर भ्रमण के बाद पांचवें दिन रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के लिये प्रसिद्ध सवाई माधोपुर और चित्तौडगढ दुर्ग उनका पडाव होता है। छठे दिन झीलों की नगरी उदयपुर की सैर करने के बाद अंतिम दिन विश्व धरोहर में शामिल भरतपुर घना पक्षी अभ्यारण्य और आगरा में दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल का भ्रमण कर सैलानी फिर से नई दिल्ली पहुंचते हैं। हनीमून जोडों के लिये ही नहीं, हर उम्र के पर्यटकों के लिये दौडती रेलगाडी में पांच सितारा होटलों जैसी विलासिता के चरम आनंद की अनुभूति सैलानियों के लिये जीवन की एक अविस्मरणीय यात्रा बन जाती है।

और बात किराये की

ट्रेन में एक व्यक्ति का किराया 535 अमेरिकन डॉलर करीब प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से पूरी यात्रा का किराया करीब 1.70 लाख रुपये (भारतीय मूल्य में) है। यदि आप जोडे सहित हैं तो यह राशि 385 डॉलर प्रतिदिन (यानी एक सप्ताक का भारतीय करेंसी से लगभग 1.21 लाख रुपये) और तीन व्यक्तियों पर यह किराया 315 डॉलर प्रतिदिन की दर से एक सप्ताह का 99 हजार रुपये से कुछ अधिक होता है। 5 से 12 वर्ष के बच्चों के लिये आधा किराया है। देशी पर्यटकों की दृष्टि से बहुत महंगी ट्रेन होने के बावजूद इस ट्रेन की लोकप्रियता खासकर विदेशी पर्यटकों में इस कदर है कि अगले कई वर्षों के लिये यह शाही रेल एडवांस में बुक हो चुकी है। ट्रेन की इसी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए ‘पैलेस ऑन व्हील्स- द्वितीय’ लांच की जा रही है। दोनों ट्रेनों में इंटरनेट, सैटेलाइट फोन, एटीएम, ब्यूटी पार्लर, जिम आदि अनेकों नई सुविधाओं को शामिल करने का प्रस्ताव है। नई पैलेस ऑन व्हील्स में हर सैलून को लग्जरी सूट्स में बदलने का भी प्रस्ताव है ताकि सैलानियों को और अधिक ऐशो-आराम और सुविधाएं मिल सकें।

बहुत लम्बी चलती है बुकिंग

भले ही इन ट्रेनों की यात्रा काफी महंगी हो लेकिन हालत यह है कि इनकी बुकिंग काफी पहले करानी होती है क्योंकि खासतौर पर विदेशी पर्यटकों में ये ट्रेनें काफी लोकप्रिय हैं। फिर जो देशी पर्यटक साल में दो-ढाई लाख रुपये किसी विदेश यात्रा पर खर्च कर सकते हैं, उनके लिये साल में एक यात्रा इन राजसी ट्रेनों की करना मुनासिब हो सकता है। आलम यह है कि पैलेस ऑन व्हील्स में तो 2010 तक के लिये बुकिंग कराई जा चुकी है।

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