गुरुवार, अप्रैल 07, 2011

मीनाक्षी मन्दिर- आस्था और कलात्मक सौंदर्य का संगम

यह लेख 29 अक्टूबर 2006 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।

भारत में कदम-कदम पर मन्दिर देखने को मिल जाते हैं परंतु ऐसे बहुत कम मंदिर हैं जो धार्मिक महत्व के साथ ही पौराणिक, ऐतिहासिक और स्थापत्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों। ऐसा ही एक मंदिर है- मदुरै स्थित मीनाक्षी मन्दिर। कामाक्षी शर्मा का आलेख:

दक्षिण भारत की द्रविड स्थापत्य कला और मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण मीनाक्षी मन्दिर आज विश्व भर में प्रसिद्ध है। आज जब संसार के आधुनिक आश्चर्यों को पहचानने के प्रयास किये जा रहे हैं, तब इस मन्दिर के कलात्मक सौंदर्य से प्रभावित लोग मीनाक्षी मन्दिर का नाम भी इन आश्चर्यों की गिनती में लाना चहते हैं। इस बात से सहज ही इस मन्दिर की भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है।

मीनाक्षी मन्दिर के उदभव के बारे में कुछ दंतकथाएं प्रचलित हैं\ एक कथा के अनुसार मन्दिर का महत्व मदुरै नगरी से ही जुडा है। किसी समय देवराज इंद्र ब्रह्महत्या के पाप के बोझ से दुखी होकर भटक रहे थे। इन्हें कहीं शान्ति नहीं मिली। तभी वह वैगई नदी के तट पर कदम्ब वृक्षों के वन में पहुंचे। वहां एक स्वयंभू लिंग दिखाई दिया। समीप के तालाब से कमल पुष्प लाकर उन्होंने पूजा की तो मन में असीम शान्ति मिली। वह देवलोक को लौट गये। पर इन्द्र द्वारा पूजा की बात विदित होने पर स्थानीय लोगों ने पूजा करना आरम्भ कर दिया। कालांतर में मणवूर के राजा कुलशेखर पांड्य को उस पूजनीय लिंग के महत्व का पता चला तब उन्होंने भी वैगई नदी के तट पर आकर लिंग की पूजा की और वहां एक मन्दिर का निर्माण कराया। वहीं उन्होंने मधुरै नगर बसाया जो कालांतर में मदुरै के नाम से जाना जाने लगा। कुलशेखर के बाद मलयध्वज राजा बजे। किंतु उनके यहां कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिये उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसकी पवित्र अग्नि से देवी भगवती ने स्वयं उनकी कन्या के रूप में अवतार लिया। विशाल मीन जैसे नयनों वाली उस कन्या का नाम उन्होंने मीनाक्षी रखा। देवी का विवाह तो भगवान शिव से ही होना था। भगवान शिव सुंदरेश्वर के रूप में कैलाश पर्वत से मदुरै पधारे और मीनाक्षी देवी से उनका विवाह हुआ। जिस स्थान पर विवाह सम्पन्न हुआ था, यह मंदिर उसी स्थान पर है।

मीनाक्षी मंदिर का पूरा नाम मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर है। दरअसल एक ही परिसर में मीनाक्षी अम्मन मंदिर के साथ ही विशाल सुंदरेश्वर मंदिर भी है। इस मंदिर का सबसे बडा आकर्षण इसके ऊंचे-ऊंचे गोपुरम हैं। मंदिर में कुल बारह गोपुरम हैं। चारों दिशाओं में स्थित द्वारों के गोपुरम काफी बडे हैं। अंदर के द्वारों पर स्थित गोपुरम आकार में छोटे हैं। सभी कलात्मक रंगीन मूर्तियों से अलंकृत है। इनमें दक्षिण का गोपुरम सबसे ऊंचा है, जिसकी ऊंचाई 160 फुट है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने पर सामने एक छोटा सा बाजार है। यहां पूजा-पाठ की सामग्री मिलती है। यहीं दायी ओर सहस्त्र स्तम्भ मंडप है, हालांकि इसमें 905 स्तम्भ हैं। इनकी कलात्मकता दर्शनीय है। सभी स्तम्भों पर मनमोहक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मंडप के ठीक सामने नटराज प्रतिमा स्थापित है। यहां एक संग्रहालय है जो दिन भर खुला रहता है। यह संग्रहालय तमिलनाडु की प्राचीन कला का समृद्ध भंडार है। यहां कुछ संगीतमय स्तम्भ भी हैं। पूर्वी दिशा में स्थित एक अन्य द्वार से प्रवेश करने पर अष्टशक्ति मंडप है। यहां पर देवी के अष्टरूप उत्कीर्ण हैं। यहां मीनाक्षी विवाह के कुछ दृश्य अंकित हैं। समीप ही मीनाक्षी मंडप है जिसमें एक सौ दस स्तम्भ हैं। यहां पीतल के 1008 दीपों की श्रंखला देखने योग्य है।

दक्षिणी गोपुरम से प्रवेश करें तो दायी ओर एक सरोवर है। इसे स्वर्णकाल सरोवर कहते हैं। सरोवर के मध्य में एक स्वर्णकमल बना है। कहते हैं कि इंद्र ने स्वयंभू लिंग पूजन के लिये जिस सरोवर से कमल लिये थे वह इसी स्थान पर था। सरोवर के सामने किलिक्कूडू मंडप है। यहां से दर्शनार्थी मीनाक्षी देवी के मंदिर में प्रवेश करते हैं। गर्भ गृह में देवी की अत्यंत मनोहारी श्यामवर्णी प्रतिमा विराजमान है। गर्भगृह के बाहर भी अनेक महत्वपूर्ण मूर्तियां अवस्थित हैं। मीनाक्षी मंदिर के उत्तर दिशा में सुंदरेश्वर मंदिर है। उस ओर आगे बढने पर पहले विनायक प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यह प्रतिमा आठ फुट ऊंची है। सुंदरेश्वर मंदिर में कम्बत्तडि मंडप में विष्णु भगवान के दशावतार रूपों का और मीनाक्षी विवाह का मोहक अंकन है। मंदिर के सामने नवग्रह प्रतिमा भी अवस्थित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव सुंदरेश्वर रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह के बाहर दुर्गा, लक्ष्मी, सिद्धि, सरस्वती, काशी विश्वनाथ और नयनार मूर्तियां भी हैं। दोनों ही मंदिरों में गर्भगृह के सामने स्वर्णध्वज भी स्वर्णमंडित है। उत्तर दिशा के प्रवेश द्वार पर बने गोपुरम में मूर्तियों की संख्या कम है, फिर भी उसकी भव्यता में जरा भी कमी नहीं। इस गोपुरम के निकट पांच संगीतमय स्तम्भ हैं जिनमें ग्रेनाइट के एक ही शिलाखण्ड से बाइस पतले स्तम्भ इस तरह तराश कर बनाये गये हैं कि प्रत्येक से अलग ही ध्वनि सुनाई पडती है। इस प्रकार की अनेकों विशेषताओं के कारण ही मीनाक्षी मंदिर धर्मावलम्बियों के साथ ही विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।

लगभग 65000 वर्गमीटर के दायरे में बने इस मंदिर का निर्माण सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ था। इसको बनने में 120 वर्ष लगे थे। विभिन्न त्यौहारों व उत्सवों के अवसर पर तो मीनाक्षी मन्दिर में भक्तों का तांता ही लग जाता है। इनमें सबसे प्रमुख उत्सव चैत्र उत्सव है। इस दिन ‘मीनाक्षी-सुंदरेश्वर’ विवाह को एक महोत्सव के रूप में मनाने की परम्परा है। मीनाक्षी मन्दिर के कारण ही मदुरै शहर को पूर्व का एथेंस भी कहा जाता है। मन्दिर का नाम संसार के सात आश्चर्यों में शामिल हो या न हो, किन्तु यह हमारे देश के आश्चर्यों में तो अवश्य गिना जायेगा। चेन्नई से लगभग 460 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मदुरै आसपास के अनेक शहरों से बस मार्ग द्वारा जुडा है। देश के अनेक शहरों से मदुरै के लिये सीधी रेल सेवा भी है। ठहरने के लिये यहां पर अनेक होटल व धर्मशालाएं हैं।

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