शुक्रवार, अप्रैल 01, 2011

कश्मीर- बहारें फिर से आयेंगी

जब भारत में प्रकृति की बेइंतहा खूबसूरती की बात हो तो कश्मीर का नाम सबसे पहले आता है। आतंकवाद के साये में कई साल गुजारने के बाद पिछले कुछ समय से फिर घाटी की वादियां सैलानियों से गुलजार होने लगी हैं। अविनाश शर्मा का सफरनामा:

कश्मीर भारत के मुकुट में जडा वो नगीना है जिसकी चमक देश-विदेश के सैलानियों को बरबस आकर्षित करती है। पिछले दो दशकों का आतंकवाद का दौर लोगों को यहां आने के बारे में डराता जरूर है लेकिन यहां के प्रति लोगों का आकर्षण कम नहीं कर पाया है। यही वजह है कि मौका मिलते ही लोग सोचते जरूर हैं कि चलो, एक बार कश्मीर हो आयें। यकीनन कश्मीर इस जोखिम को मोल लेने लायक है। इस खूबसूरत घाटी में चारों ओर छाई प्राकृतिक खूबसूरती यहां आने वाले हर व्यक्ति को चमत्कृत कर देती है। शायद कश्मीर की इसी खूबसूरती से प्रभावित होकर मुगल सम्राट जहांगीर ने इसे ‘धरती पर जन्नत’ जैसी उपमा से नवाजा था। वास्तव में आज भी यह कथन सत्य प्रतीत होता है। यह प्रकृति की उदारता ही कही जायेगी कि क्रूर ताकतों के बारूदी प्रहारों को झेलते हुए भी उसने कश्मीर के प्राकृतिक वैभव को किसी भी मायने में कम नहीं होने दिया। आज कश्मीर घाटी में हर ओर सुरक्षा बलों की मौजूदगी जरूर नजर आती है किन्तु पर्यटकों के लिये वो किसी तरह असुविधाजनक नहीं है।

हिमालय और पीर पंजाल की बर्फ से ढकी चोटियों के बीच फैली यह घाटी हर मौसम में सैलानियों के लिये एक अनुकूल सैरगाह है क्योंकि हर मौसम में इसका बदला स्वरूप इसे एक अलग सौन्दर्य प्रदान करता है। राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर कश्मीर घाटी का सबसे प्रमुख शहर है। इस शहर को ‘लेक सिटी’ भी कहा जाता है क्योंकि यहां डल झील, नगीन झील और शहर के बाहर वूलर झील जैसी समृद्ध झीलें हैं। वैसे डल झील यहां का सबसे पहला आकर्षण है। झील के सामने तख्त-ए-सुलेमान नामक पहाडी है जिस पर प्रसिद्ध शंकराचार्य मन्दिर स्थित है। यह प्राचीन मन्दिर भगवान शंकर को समर्पित है। मन्दिर का महत्व इसलिये भी है क्योंकि यहां आदि शंकराचार्य ने दसवीं सदी में अपने कदम रखे थे। यहां से डल झील और पूरे श्रीनगर का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। झील की दूसरी दिशा में हरिपर्वत नामक पहाडी है। वहां एक किला स्थित है जिसका निर्माण 18वीं शताब्दी में अफगान गवर्नर अता मुहम्मद खान ने कराया था।

मुगलों द्वारा वादी-ए-कश्मीर में बनवाये गये उद्यान भी पर्यटकों के लिये विशेष आकर्षण हैं। इन उद्यानों की विशेषता है विभिन्न सोपानों पर बने मनमोहक बगीचे, उनके मध्य बहते सुन्दर झरने और आकर्षक फव्वारे। इन बगीचों में खिले रंगबिरंगे फूल और ऊंचे घने चिनार के पेड इनकी खूबसूरती और बढाते हैं। मुगल उद्यानों की पृष्ठभूमि में जाबराम पहाडियां हैं तो सामने डल झील का झिलमिलाता विस्तार है। इनमें शालीमार बाग सबसे भव्य है जिसे बादशाह जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के लिये बनवाया था। निशात बाग 1633 में नूरजहां के भाई ने बनवाया था। शाहजहां द्वारा बनवाया गया उद्यान चश्म-ए-शाही है। इस उद्यान में एक चश्में के आसपास हरा-भरा बगीचा है। इस चश्मे का पानी भी काफी चमत्कारिक और रोगनाशक माना जाता है। लोग दूर-दूर से इसका पानी भरकर ले जाते हैं। यहां से कुछ दूर पहाडी पर दाराशिकोह द्वारा बनवाया गया परी महल स्थित है।

श्रीनगर में अनेक ऐतिहासिक मस्जिद और दरगाह भी देखने योग्य हैं। इनमें ‘हजरतबल’ सबसे महत्त्वपूर्ण धर्मस्थल है। कहते हैं यहां पैगंबर हजरत मुह्म्मद का बाल संग्रहित है। कुछ धार्मिक दिवसों पर यह श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ प्रदर्शित किया जाता है। डलझील के पश्चिमी किनारे पर स्थित इस मस्जिद का संगमरमर का सफेद गुम्बद और मीनार दूर से ही इसकी भव्यता का अहसास कराते हैं। ‘शाह-ए-हमदान’ कश्मीर में बनी प्रथम मस्जिद होने के कारण दर्शनीय है। इसका निर्माण 1395 में किया गया था। बाद में कई बार इसका जीर्णोद्धार किया गया। इनके अलावा जामा मस्जिद, दस्तगीर साहिब, मख्दूय साहिब भी दर्शनीय हैं। श्रीनगर शहर झेलम नदी के दोनों ओर बसा है। इस नदी पर कई स्थानों पर लकडी के पुराने पुल आज भी मौजूद हैं। नदी के आसपास नजर आते टीन की ढलवा छत वाले मकान एक अलग ही मंजर प्रस्तुत करते हैं। श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर हिंदुओं का पवित्र तीर्थ ‘खीर भवानी मन्दिर’ स्थित है। इस मन्दिर में देवी को खीर समर्पित करने की परम्परा है। नवरात्रों में इस मन्दिर में भीड रहती है।

श्रीनगर के अतिरिक्त कश्मीर घाटी में ऐसे अनेक स्थल हैं, जहां प्रकृति अपने अलग-अलग रूपों में विद्यमान है। समुद्र तल से 2130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पहलगाम भी ऐसा ही एक स्थान है। किसी जमाने में पहलगाम चरवाहों का छोटा सा गांव मात्र था। किन्तु यहां की अदभुत नैसर्गिक छटा ने इसे कालान्तर में खुशनुमा सैरगाह बना दिया। लिद्दर नदी और शेषनाग झील से आती धारा के संगम के निकट बसे पहलगाम में पहुंच पर्यटकों का साक्षात्कार प्रकृति के एक अद्वितीय रूप से होता है। बैसरन में सुन्दर बुग्याल, और हरे-भरे जंगल, आरू व चन्दनवाडी नामक स्थानों की खूबसूरती पर्यटकों को अवश्य प्रभावित करती है। पहलगाम से हर वर्ष होने वाली अमरनाथ यात्रा भी शुरू होती है। श्रीनगर से पहलगाम जाते हुए मार्ग में केसर की खेती के लिये विख्यात पाम्पोर, नौवीं शताब्दी के शहर अवंतिपुर के कुछ भग्नावशेष और भगवान सूर्य का मार्तंड मन्दिर भी देखे जा सकते हैं।

गुलमर्ग देश का प्रसिद्ध स्कीइंग केन्द्र है। 2650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान का सबसे बडा आकर्षण बर्फ से ढके ढलान हैं। इसलिये यह विंटर स्पोर्ट्स यानी बर्फ के खेलों का आदर्श स्थल है। यही गंडोला यानी केबलकार द्वारा बर्फीली ऊंचाइयों को छूकर आना सैलानियों के लिये एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। शौकीया तौर पर थोडी बहुत स्कीइंग कर उन्हें एक नये रोमांच का अनुभव भी मिलता है। गर्मियों में जब निचले स्थानों की बर्फ पिघलती है तो यहां मखमली घास के मैदान उन्हें प्रभावित करते हैं।

सोनमर्ग भी कश्मीर की एक निराली सैरगाह है। सुन्दर पहाडों और देवदार के वृक्षों से घिरा सोनमर्ग एक रमणीक स्थान है। यहां से कुछ दूर थाजीवास ग्लेशियर देखना हो तो घोडों पर आसानी से जा सकते हैं। यहां बर्फ पर घूमने का आनन्द भी लिया जा सकता है। अमरनाथ यात्रा का एक मार्ग सोनमर्ग से भी जाता है। समुद्र तल से 2012 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कोकरनाग औषधीय गुणों से युक्त चश्मों की वजह से पर्यटकों को पसन्द आता है। इस स्थान को पाप शोधन नाग भी कहते हैं। नाग का अर्थ यहां चश्मा भी होता है। बेरीनाग झेलम नदी का उदगम स्थल है। यहां स्थित चश्मों को बादशाह जहांगीर ने एक मोहक सरोवर में एकत्र कर एक अलग ही रूप प्रदान किया था। अस्सी मीटर दायरे में फैले इस सरोवर के आसपास सुन्दर बगीचे हैं।

क्या खरीदें: कश्मीर की यादें साथ ले जानी हों तो यहां से अनेक यादगार वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। श्रीनगर में कई अच्छे बाजार व एंपोरियम हैं जहां से अखरोट की लकडी और पेपरमेशी के बने हस्तशिल्प, कश्मीरी कढाई के वस्त्र, पश्मीना शॉल, संगमरमर के बने ज्वेलरी बॉक्स आदि खरीदे जा सकते हैं। अखरोट, बादाम व केसर भी सैलानी यहां से अवश्य खरीदते हैं।

अन्य जानकारी: कश्मीर का सुहाना सफर श्रीनगर से आरम्भ किया जा सकता है। यहां पहुंचने के लिये पहले रेलगाडी द्वारा जम्मू या ऊधमपुर पहुंच सकते हैं। आगे का सफर बस या टैक्सी से करना होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 1-ए जम्मू को श्रीनगर से जोडता है। यह दूरी करीब 300 किलोमीटर है। लेकिन इस रास्ते को पूरा करने में दस से बारह घण्टे लग जाते हैं। पूरा रास्ता खूबसूरत नजारों से भरा है। बनिहाल में जवाहर सुरंग भी इस मार्ग का एक आकर्षण है। यह सुरंग कश्मीर को देश के बाकी हिस्से से जोडती है। इस मार्ग पर जम्मू कश्मीर राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से चलती हैं। इनके अलावा टैक्सी आदि भी आसानी से मिलती हैं।

श्रीनगर वायु मार्ग द्वारा चंडीगढ, अमृतसर, दिल्ली व जम्मू से जुडा है। एयरपोर्ट शहर से 14 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी व बसें उपलब्ध होती हैं। टीआरसी यानी पर्यटक स्वागत केन्द्र, श्रीनगर में पर्यटन गतिविधियों का मुख्य केन्द्र है। इसके निकट ही राज्य परिवहन निगम का बस स्टैंड है। यहां से विभिन्न दिशाओं के साइटसीन टूर भी बुक किये जा सकते हैं। स्थानीय भ्रमण टैक्सी या ऑटोरिक्शा द्वारा भी संभव है। श्रीनगर में ठहरने के लिये डलझील के सामने बुलवर्ड रोड पर और राजबाग व लालचौक पर हर बजट के होटल हैं। पर्यटकों को यहां भाषा की वजह से कोई असुविधा नहीं होती क्योंकि यहां हिन्दी भाषा भी समझी व बोली जाती है। वैसे यहां कश्मीरी, उर्दू व डोगरी भाषा बोली जाती हैं। आम कश्मीरी मिलनसार व मददगार होते हैं। गर्मियों में भी कश्मीर की यात्रा पर ऊनी वस्त्र अवश्य ले जाने चाहिये।

लेख: अविनाश शर्मा (दैनिक जागरण यात्रा, 25 जून 2006)

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