यह लेख 24 जून 2007 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।
राजस्थान की बंजर और रेगिस्तानी कही जाने वाली सरजमीं पर हिल स्टेशन की बात शायद ही किसी के जेहन में उतरेगी, लेकिन राजस्थान को सिर्फ रेगिस्तान समझने की भूल न करें। यह सही है कि राजस्थान का एक हिस्सा सैकडों मील लम्बे मरुस्थल के रेतीले टीलों से अटा पडा है, लेकिन राजस्थान की बहुरंगी छटा का दूसरा पहलू भी है। बता रहे हैं गोपेन्द्र नाथ भट्ट:
पश्चिमी राजस्थान जहां रेगिस्तान की खान है तो शेष राजस्थान विशेषकर पूर्वी और दक्षिणी राजस्थान की छटा अलग और निराली ही है। वहां सुन्दर झीलें और प्रकृति के वरदान से भरपूर नजारे, हरी-भरी वादियों से सजी-धजी पहाडियां और वन्य जीवों से भरपूर अभ्यारण्य भी हैं।
‘माउण्ट आबू’ ऐसा ही एक अनुपम दर्शनीय स्थल है जोकि न केवल ‘डेजर्ट स्टेट’ कहे जाने वाले राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है बल्कि गुजरात के लिये भी हिल स्टेशन की कमी को पूरा करने वाला "सांझा पर्वतीय स्थल" है। दक्षिणी राजस्थान के सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटा यह हिल स्टेशन चार हजार फीट की ऊंचाई पर बसा है। माउण्ट आबू कभी राजस्थान की जबरदस्त गर्मी से बदहाल पूर्व राजघरानों के सदस्यों का ‘समर रिसॉर्ट’ हुआ करता था। कालांतर में इसे ‘हिल ऑफ विजडम’ भी कहा जाने लगा क्योंकि इससे जुडी हुई धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं ने इसे एक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में भी विख्यात कर दिया है।
अरावली पर्वत श्रंखलाओं के दक्षिणी किनारे पर पसरा यह हिल स्टेशन अपने ठण्डे मौसम और वानस्पतिक समृद्धि की वजह से देशभर के पर्यटकों का पसंदीदा सैरगाह बन गया है और मरुस्थल में हरे नखलिस्तान का आभास देता है। तीर्थयात्रियों का पसंदीदा पहाडी पर्यटक स्थल माउंट आबू की जो सडक यात्रियों को माउंट आबू तक पहुंचाती है, वह बडी-बडी चट्टानों और तेज हवाओं के बीच से होकर गुजरती है। माउंट आबू तक पहुंचने का मार्ग अत्यन्त खासा सुन्दर है। माउंट आबू न केवल गर्मियों में सैलानियों का स्वर्ग है वरन यहां मौजूद ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी की अनूठी और बेजोड स्थापत्य कला के श्रेष्ठतम नमूने दिलवाडा के मन्दिरों में देखे जा सकते हैं। इन मन्दिरों ने इसे जैनियों का प्रमुख तीर्थ बना दिया है। वही प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय साधना केन्द्र की बदौलत माउंट आबू की शोहरत सारी दुनिया में फैल गई है। निकट ही गुजरात सीमा में अम्बाजी का भी प्रसिद्ध मन्दिर है।
सिरोही जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर और झीलों की नगरी उदयपुर से करीब 185 किलोमीटर दूर हरी-भरी पहाडियों के मध्य स्थित इस पर्वतीय स्थल के ठण्डे और सुहाने मौसम से मोहित होकर पर्यटक दूर-दूर से यहां खिंचे चले आते हैं। 1219 मीटर ऊंची पहाडी पर स्थित यहां की प्रसिद्ध नक्की झील 800 मीटर लम्बी और चार सौ मीटर चौडी है। ऐसी मान्यता है कि इस झील को देवताओं ने अपने नाखूनों से खोदा था। माउंट आबू का नाम यहां स्थित प्राचीन मन्दिर अर्बूदा देवी के नाम पर ही पडा है। 450 सीढियों वाले इस मन्दिर में स्थापित अर्बूदा देवी को आबू की रक्षक देवी माना जाता है।
माउंट आबू की उत्पत्ति के सन्दर्भ में अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार ‘आबू’- ‘हिमालय पुत्र’ के प्रतीक रूप में जाना जाता है जिसकी उत्पत्ति अर्बद से हुई थी, जिसने भगवान शिव के पवित्र बैल नन्दी को बलिष्ठ सांप के चंगुल से बचाया था। माउंट आबू अनेक साधु संतों की स्थली भी रही है। वशिष्ठ ऋषि भी उन प्रमुख संतों में से एक थे जिन्होंने पृथ्वी को दैत्यों से बचाने के लिये पवित्र मन्त्रों से यज्ञ करते हुए अग्नि से चार अग्निकुल राजपूत वंशों परमार, परिहार, सोलंकी और चौहान का सृजन किया था। यह यज्ञ उन्होंने आबू की पहाडी के नीचे स्थित प्राकृतिक झरने के पास किया था। झरना गाय के सिर की आकृति वाली पहाडी से निकलता है अतः इसे गौमुख भी कहते हैं। इसी तरह यहां ऋषि बाल्मीकि से जुडे कथा प्रसंग भी हैं। अरावली पर्वत श्रंखलाओं की सबसे ऊंची चोटी कहे जाने वाला गुरु शिखर नामक पर्वत भी माउंट आबू में ही है जिसकी ऊंचाई 1722 मीटर है।
दर्शनीय स्थल
नक्की झील: माउंट आबू में 3937 फुट की ऊंचाई पर स्थित नक्की झील लगभग ढाई किलोमीटर के दायरे में पसरी है, जहां बोटिंग करने का लुत्फ अलग ही है। हरीभरी वादियां, खजूर के वृक्षों की कतारें, पहाडियों से घिरी झील और झील के बीच आइलैंड, कुल मिलाकर देखें तो सारा दृश्य मनमोहक है। इस झील में नौका विहार की व्यवस्था है। इसके कारण माउंट आबू की सुन्दरता में चार चांद लग गये हैं।
सनसेट प्वाइंट: यहां से देखिये सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा, ढलते सूर्य की सुनहरी रंगत कुछ पलों के लिये पर्वत श्रंखलाओं को कैसे स्वर्ण मुकुट पहना देती है। यहां डूबता सूरज ‘बॉल’ की तरह लटकते हुए दिखता है। हजारों लोग प्रतिदिन शाम ढलते इस मनोहारी दृश्य का आनन्द लेते हैं। ऐसा लगता है कि मानों सूर्य आसमान से नीचे गिर रहा है और पाताल में चला गया हो।
हनीमून प्वाइंट: सनसेट प्वाइंट से दो किलोमीटर दूर नवविवाहित जोडों के लिये यहां हनीमून प्वाइंट बना हुआ है। शाम के वक्त यहां लोगों का हुजूम उमड पडता है। यह आंद्रा प्वाइंट के नाम से भी जाना जाता है। हनीमून प्वाइंट से हरेभरे मैदान और घाटियों के विहंगम दृश्य लोगों को मन्त्रमुग्ध कर देते हैं। घाटी से सुरम्य दृश्य देखकर लोग यहां से हिलना भी पसन्द नहीं करते।
टॉड रॉक: नक्की झील से कुछ दूरी पर ही स्थित टॉड रॉक चट्टान है जिसकी आकृति मेंढक की है जो सैलानियों का ध्यान बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
दिलवाडा जैन मन्दिर: 11वीं से 13वीं सदी के बीच बने मार्बल के ये नक्काशीदार जैन मन्दिर स्थापत्य कला की बेहतरीन मिसाल हैं। इनमें विमल वासाही और लूणवासाही मन्दिर सबसे पुराने हैं। यहां वास्तुकला की अदभुत कारीगरी देखने योग्य है। आबू की विशेष ख्याति दिलवाडा के जैन मन्दिरों के कारण हैं। इस समूह में पांच मन्दिर हैं जिन पर संगमरमर की बारीक नक्काशी देखने लायक है।
म्यूजियम और आर्ट गैलरी: राजभवन परिसर में 1962 में गवर्नमेंट म्यूजियम स्थापित किया गया है, ताकि इस इलाके की पुरातात्विक सम्पदा को संरक्षित किया जा सके। यहां कांसे और पीतल पर नक्काशी का काम देखने लायक है।
गुरू-शिखर: यह अरावली पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है। गुरू शिखर समुद्र तल से करीब 1722 मीटर ऊंचा है। इस शिखर के नीचे और आसपास का नजारा देखना सैलानियों को एक अलग ही जहां में पहुंचा देता है।
अचलगढ: दिलवाडा से करीब आठ किलोमीटर दूर स्थित इस प्राचीन स्थल में आबू के अधिष्ठाता देव अचलेश्वर महादेव का मन्दिर है। इसमें शिव के पैर के अंगूठे का चिन्ह है, जिसकी पूजा होती है। मन्दिर के सामने पीतल का विशाल नन्दी है। नन्दी से कुछ आगे लोहे का विशाल त्रिशूल है।
ग्रीष्म व शरद उत्सव: माउंट आबू में प्रतिवर्ष बुद्धपूर्णिमा पर ग्रीष्मकालीन उत्सव और दिसम्बर माह में शरद उत्सव का आयोजन किया जाता है। राज्य सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित होने वाले इन उत्सवों में यहां की जनजातीय लोक-कथाओं और लोक-नृत्यों आदि विविधताओं से भरपूर लोक-लुभावन कार्यक्रमों का प्रदर्शन देखने लायक होता है।
गोमुख (वशिष्ठ): आबू के बाजार से करीब ढाई किलोमीटर दक्षिण में जाने पर हनुमान जी का मन्दिर आता है। इस मन्दिर से करीब 700 सीढियां नीचे उतरने पर वशिष्ठ जी का आश्रम आता है। यहां पत्थर के बने गोमुख से सदा जल बहता रहता है, इसीलिये इस स्थान को गोमुख कहते हैं।
वन्यजीव अभयारण्य: राज्य सरकार द्वारा 228 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य वर्ष 1960 में घोषित किया गया था। इस अभयारण्य में वानस्पतिक विविधता, वन्य जीव, स्थानीय व प्रवासी पक्षी आदि देखे जा सकते हैं। दिलवाडा के पास ऊंचाई पर स्थित बेलनाकार निरीक्षण स्थल से माउंट आबू का दृश्य और सालगांव निर्मित वाच टावर से वन्यप्राणी देखे जा सकते हैं।
राजभवन: माउंट आबू राजस्थान के महामहिम राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय भी है। प्रतिवर्ष गर्मियां शुरू होने के बाद कुछ समय के लिये (एक-दो माह) माउंट आबू राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन कैम्प बन जाता है। राजभवन में स्थित ‘कला दीर्घा’ दर्शनीय है।
माउंट आबू में राजस्थान के साथ ही गुजरात सरकार का गेस्ट हाउस भी है। इसके अलावा यहां विभिन्न पूर्व रियासतों के नाम से बने हुए ‘गेस्ट हाउस’ सुन्दर वादियों के मध्य स्वर्ग के समान अनुभूति करवाने वाले हैं। माउंट आबू पर भारतीय सेना का बेस कैम्प भी है। यहां हर समय होने वाले सैनिक अभ्यास और घुडसवारी के करतब सैलानियों के लिये अतिरिक्त आकर्षण का केन्द्र बनते हैं।
कैसे पहुंचें
वायु मार्ग: माउंट आबू का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है जो 185 किलोमीटर दूर है। इसी प्रकार अहमदाबाद हवाई अड्डा 235 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जबकि जोधपुर हवाई अड्डा 267 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग: माउंट आबू का निकटतम रेलवे स्टेशन आबू रोड है जोकि मात्र 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह रेलवे स्टेशन दिल्ली-अहमदाबाद बडी (ब्रॉडगेज) लाइन पर है जहां सभी प्रमुख रेलगाडियां रुकती हैं। माउंट आबू पर्वतीय स्थल के लिये यहां से टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं।
सडक मार्ग: देश के सभी प्रमुख शहरों से सडक मार्ग द्वारा माउंट आबू पहुंचा जा सकता है। निकटतम शहर उदयपुर मात्र 185 किलोमीटर की दूरी पर है और उदयपुर से ईसवाल, गोगुंदा, जसवंतगढ, पिंडवाडा होते हुए माउंट आबू पहुंचा जा सकता है। इसी प्रकार अहमदाबाद से वाया पालनपुर इसकी दूरी 222 किलोमीटर और वाया अम्बाजी 250 किलोमीटर है। जोधपुर से माउंट आबू की दूरी 267 किलोमीटर, अजमेर से 360 किलोमीटर, जयपुर से 490 किलोमीटर, दिल्ली से 752 किलोमीटर, आगरा से 732 किलोमीटर और मुम्बई से 751 किलोमीटर है।
कब: मैदानों में जब गर्मियां सताएं तो माउंट आबू चले आयें। वैसे यहां पूरे सालभर जाया जा सकता है। सर्दियों में ऊंचाई की वजह से ठण्ड आसपास के बाकी मैदानी इलाकों से काफी ज्यादा रहती है। कडाके की सर्दी पडी तो नक्की झील का पानी जम जाता है। सर्दियों के अलावा जायें तो मोटे सूती कपडे में काम चल सकता है। हालांकि शाम व रात तो पूरे सालभर ठण्डक देगी।
ठहरने के स्थान: माउंट आबू में ठहरने के लिये सरकारी व निजी होटल काफी तादाद में उपलब्ध हैं। इसके अलावा यहां गुजराती, राजस्थानी और भारतीय व्यंजनों के रेस्तरां भी बहुतायत में मौजूद हैं।
जीते रहो, लगे रहो, चैन से मत बैठना,
जवाब देंहटाएंभाई मेरी भी इच्छा है यहाँ जाने की,
साथ में अजमेर भी जाना है, तुम्हारा क्या ख्याल है।
लगे हाथ जैसलमेर भी करना है।
है हिम्मत तो रहो तैयार।
घूम चुके हैं, बहुत आनन्द आया।
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