शुक्रवार, अप्रैल 01, 2011

गुफाओं का मायासंसार

प्रकृति को लेकर इंसान की जो जिज्ञासाएं होती हैं, गुफाएं उनमें से एक हैं। भारत में इसी तरह की गुफाएं बडी संख्या में हैं। आंध्र प्रदेश में कुछ गुफाओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में बता रहे हैं उपेन्द्र स्वामी:

यह धरती अपने में जो अनगिनत रहस्य समाये हुए है, उन्हीं में से एक हैं गुफाएं। यह गुफाओं की अनोखी संरचना ही है जो वे हमेशा तिलिस्म या मायावी कथासंसार का प्रमुख पात्र रही हैं। जाहिर है कि गुफा से हमारा आशय यहां जंगल में किसी शेर-गीदड की मांद से नहीं है। बल्कि उन गुफाओं से है जो अपने आकार व संरचना के लिहाज से अदभुत हैं। भले ही भूवैज्ञानिक उनकी संरचना की ठीक-ठीक वजह खोज पाने में सक्षम हो गये हों लेकिन आज भी ये गुफाएं आम लोगों के लिये उतने ही कौतुहल का विषय हैं। भारत की भौगोलिक विविधता की ही करामात है कि देश के कई हिस्सों में ऐसी कई गुफाएं हैं जो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। इन्हीं में ऐलीफेंटा जैसी गुफाएं जहां मानवशिल्प की बेमिसाल कहानी पेश करती हैं तो कई गुफाएं ऐसी भी हैं जो खुद प्रकृति की बनाई बेइंतहा खूबसूरत तस्वीर हैं। आने वाली गर्मियों की छुट्टियों में ऐसी कुछ गुफाओं की सैर आपको एक अनूठी चीज तो दिखलाएगी ही, आपके बच्चों को नया ज्ञान भी उपलब्ध कराएगी।

दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में ऐसी कई गुफाएं हैं। इनमें बेलम व बोरा गुफाएं प्रमुख हैं। बोरा गुफाएं विशाखापत्तनम से 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं। ये ईस्टर्न घाट में दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं। दस लाख साल पुरानी ये गुफाएं समुद्र तल से 1400 फुट ऊंचाई पर स्थित हैं।

भूवैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्लाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं। हालांकि अब नदी की मुख्य धारा गुफाओं से कुछ दूरी पर स्थित है लेकिन माना यही जाता है कि कुछ समय पहले यह नदी गुफाओं में से होकर और उससे भी पहले इनके ऊपर से होकर गुजरती थी। स्टैलक्लाइट व स्टैलग्माइट उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें कोई खनिज पानी के साथ मिलकर प्राकृतिक रूप से जम जाता है। नदी के पानी के प्रवाह से कालान्तर में लाइमस्टोन घुलता गया और गुफाएं बन गयीं। अब ये गुफाएं अराकू घाटी का प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।

गुफाएं अन्दर से काफी विराट हैं। उनके भीतर घूमना एक अदभुत अनुभव है। अंदर घुसकर वहां एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानों किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खडे होते हैं। सबसे रोमांचक तो यह है कि गुफाओं में पानी के प्रवाह ने जमीन के भीतर ऐसी-ऐसी कलाकृतियां गढ दी हैं कि वे किसी उच्च कोटि के शिल्पकार की सदियों की मेहनत प्रतीत होती हैं। कहीं चट्टानों में मस्जिद बनी नजर आती है तो कहीं गिरजाघर। कहीं मंदिर तो कहीं मशरूम। और भी न जाने क्या-क्या। इतने शिल्प कि उन्हें नाम देते-देते आपकी कल्पनाशक्ति भी थक जाये। एक जगह तो चट्टानों में थोडी ऊंचाई पर प्राकृतिक शिवलिंग इस तरह से बन गया है कि उसे बाकायदा लोहे की सीढियां लगाकर मंदिर का रूप दे दिया गया है। कहीं आपको जमीन को बांटती एक दरार भी नजर आ जायेगी तो कहीं आपको बडे-बडे खम्भे या फिर लम्बी लटकती जटाओं सरीखी चट्टानें मिल जायेंगी। गुफाओं से नदी की ओर जाने वाली धार में आपको अनगिनत चमगादड बैठी मिलेंगी। बताया जाता है कि गुफाओं के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां की पूरी पडताल नहीं हो पाई है और लिहाजा उनमें अभी लोगों को जाने की इजाजत नहीं है।

इन गुफाओं को खोजने की कहानी भी काफी रोचक है। किंवदंती है कि उन्नीसवीं सदी के आखिरी सालों में निकट के गांव से एक गाय खो गयी। लोग उसे ढूंढने निकले और खोजते-खोजते पहाडियों में गुफाओं तक पहुंच गये। बताया जाता है कि गाय गुफा के ऊपर बने छेद से भीतर गिर गयी थी और फिर भीतर-भीतर होती हुई नदी के रास्ते बाहर निकल गई। गाय मिलने से ही नदी को भी गोस्थनी नाम दे दिया गया। बाद में किसी अंग्रेज भूशास्त्री ने गुफाओं का अध्ययन किया। इन्हें मौजूदा पहचान आजादी के बहुत बाद में मिली। अब ये देश की प्रमुख गुफाओं में से एक हैं।

बोरा गुफाएं छत्तीसगढ में कोटमसर गुफाओं जैसी गर्म और दमघोंटू नहीं हैं। इसकी वजह इनकी भीतर से विशालता भी है। कोटमसर की तरह यहां भीतर जाने वाले लोगों की संख्या पर कोई नियन्त्रण लगाने की जरुरत नहीं पडती। गुफा का प्रवेश द्वार काफी विशाल है। अंदर प्रकाश की व्यवस्था है और गाइड भी उपलब्ध हैं जो अन्दर की सैर कराते हैं। गुफा का प्रबन्धन आन्ध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के हाथों में है। आसपास खाने-पीने की पर्याप्त व्यवस्था है। अराकू होते हुए पहाडियों में यहां आने का रास्ता भी बडा मनोरम है। गुफा के निकट तो रुकने की जगह नहीं लेकिन लगभग बीस किलोमीटर पहले अराकू घाटी में रुकने के लिये पर्याप्त संख्या में अच्छे होटल हैं। गुफा तो आप दिनभर में देख सकते हैं लेकिन अराकू घाटी में कुछ और स्थान हैं जो आपको कुछ दिन रोक सकते हैं। विशाखापत्तनम में रुककर भी गुफाएं देखी जा सकती हैं। विशाखापत्तनम प्रमुख बंदरगाह है और देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल, सडक व वायु मार्ग से जुडा हुआ है।

बेलम गुफाएं:

आन्ध्र में ही कुर्नूल से 106 किलोमीटर दूर बेलम गुफाएं स्थित हैं। मेघालय की गुफाओं के बाद ये भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी सबसे बडी प्राकृतिक गुफाएं हैं। इन्हें मूल रूप से तो 1854 में एच. बी. फुटे ने खोजा था लेकिन दुनिया के सामने 1982 में यूरोपीय गुफाविज्ञानियों की एक टीम ने इन्हें मौजूदा स्वरूप में पेश किया। हालांकि इनका रास्ता पुरातत्व विभाग ने खोज निकाला था। पहाडियों में स्थित बोरा गुफाओं के विपरीत बेलम गुफाएं एक बडे से सपाट खेत के नीचे स्थित हैं। जमीन से गुफाओं तक तीन कुएं जैसे छेद हैं। इन्हीं में से बीच का छेद गुफा के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल होता है। लगभग बीस मीटर तक सीधे नीचे उतरने के बाद गुफा जमीन के नीचे फैल जाती है। इनकी लम्बाई 3229 मीटर है। इनके भीतर की जगह भी बोरा गुफाओं से ज्यादा विशाल है। अन्दर ताजे पानी के कई सोते बहते हैं। इनकी संरचना इन्हें दुनियाभर के भूवैज्ञानिकों के आकर्षण का केन्द्र बनाती हैं। ये गुफाएं सडक व रेल मार्ग से कुर्नूल से जुडी हैं जबकि सबसे नजदीकी हवाई अड्डा हैदराबाद है।

कुर्नूल से ही 100 किलोमीटर दूर यांगती में, नरासाराओपट से 38 किलोमीटर दूर करमपुडी के निकट गुठिकोंडा में, विजयवाडा में मोगलराजपुरम और विजयवाडा से 8 किलोमीटर दूर उंडावल्ली में भी गुफाएं हैं। लेकिन बेलम व बोरा गुफाएं ही ऐसी हैं जो आकार में काफी बडी हैं और इस वजह से उनमें प्रकृति की करामात बेहद अनूठे स्वरूप में देखने में आती हैं।

लेख: उपेन्द्र स्वामी (दैनिक जागरण यात्रा, 26 मार्च 2006)


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