बुधवार, अप्रैल 20, 2011

हिमालय का खूबसूरत नजारा- संदकफू

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 26 अगस्त 2007 को प्रकाशित हुआ था।

लेख: उपेन्द्र स्वामी कश्मीर से अरुणाचल तक फैली हिमालय श्रंखलाओं की सबसे बडी खूबसूरती यह है कि इन्हें आप जहां से देखो, वहां से उनका नया रूप नजर आता है। हर जगह अपने आप में बेमिसाल, जिसे कुदरत ने ढेरों नियामतें बख्शी हों।

कुदरत जब अपनी खूबसूरती बिखेरती है तो सीमाएं नहीं देखती। यही बात उन निगाहों के लिये भी कही जा सकती है जो उस खूबसूरती का नजारा लेती हैं। हम यहां बात केवल देशों की सीमाओं की नहीं कर रहे, बल्कि धरती व आकाश की सीमाओं की भी कर रहे हैं। हिमालय ऐसी खूबसूरती से भरा पडा है। इस बार हम जिक्र कर रहे हैं संदकफू का जो पश्चिम बंगाल से सिक्किम तक फैली सिंगालिला श्रंखलाओं की सबसे ऊंची चोटी है।

संदकफू की ऊंचाई समुद्र तल से 3611 मीटर है। यहां जाने का रोमांच जितना इतनी ऊंचाई पर जाने से है, वही इस बात से भी है कि यह वो जगह है जहां से आप दुनिया की पांच सबसे ऊंची चोटियों में से चार को एक साथ देख सकते हैं। ये हैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउण्ट एवरेस्ट (8848 मीटर), तीसरे नम्बर की और भारत में सबसे ऊंची कंचनजंघा (8585 मीटर), चौथे नम्बर की लाहोत्से (8516 मीटर) और पांचवे नम्बर की मकालू (8463 मीटर)।खासतौर पर कंचनजंघा व पण्डिम चोटियों का नजारा तो बेहद आकर्षक होता है। यही हर साल देश-विदेश से रोमांच प्रेमियों को यहां खींच लाता है। यही आकर्षण है कि खुले मौसम में सूरज की पहली लाल किरण इन बर्फीली चोटियों पर पडते देखने के लिये सवेरे चार बजे से सैलानी हाड जमाती ठण्ड में भी मुस्तैद नजर आते हैं।

कुछ-कुछ ऐसा ही आकर्षण मनयभंजन से संदकफू पहुंचने के रास्ते का भी है। पूरा रास्ता ठीक भारत-नेपाल सीमा के साथ-साथ है, या यूं कहें कि ये रास्ता ही सीमा है। आपके पांव कब नेपाल में हैं और कब भारत में, यह आपको पता ही नहीं चलेगा। दिन में चलेंगे तो भारत में, रात में रुकेंगे तो नेपाल में। थोडी-थोडी दूर पर लगे पत्थरों के अलावा न सीमा के कोई निशान हैं और न कोई पहरुए। काश! सारी सीमाएं ऐसी हो जायें।

इस रास्ते की हर बात में कुछ खास है, चाहे वो संदकफू तक ले जाने वाली लैण्डरोवर हो जो देखने में किसी संग्रहालय से लाई लगती है, या यहां के सीधे-सादे मेहमाननवाज लोग हों जो ज्यादातर नेपाल से हैं लेकिन आर्थिक-सामाजिक तौर पर भारत से भी गहरे जुडे हैं, या फिर यहां की संस्कृति हो जो बौद्ध धर्म की अनुयायी है। पूरे इलाके में फैले गोम्पा व मठ इसके गवाह हैं।

खास बात यहां के बादलों में है जो पूरे रास्ते आपके साथ आंख-मिचौनी खेलते रहते हैं- इस कदर कि इन मेघों के चलते गांवों के नाम मेघमा पड जाते हैं। खास बात इस बात में है कि मनयभंजन से निकलकर चित्रे, तुंबलिंग (टोंगलू), कालापोखरी, संदकफू, फालुत, गुरदुम व रिंबिक हर जगह पर आपको शेरपाओं के लॉज मिल जायेंगे जहां आपको बेहद किफायती दामों पर (दाम तय करवाना आपके गाइड पर भी निर्भर करता है) ठहरने की साफ-सुथरी, गरम जगह और घर जैसा खाना मिल जायेगा।

खास चीज तुम्बा भी है जो सीधे लफ्जों में कहा जाये तो इस इलाके की देसी बीयर है। इसे बनाने और पीने, दोनों का तरीका इतना अनूठा है कि आप इसका स्वाद लेने से खुद को रोक नहीं पायेंगे। खानपान की बात करें तो खास चीज यहां की चाय है जो पहाडों पर तमाम बागानों में उगाई जाती है और वह सुखाया गया पनीर भी जो याक के दूध से बनाया जाता है। यहां जायें तो थुप्पा व मोमो का स्वाद भी लेना न भूलें क्योंकि वह स्वाद आपको अपने शहर में नहीं मिलेगा।

कैसे पहुंचें

-संदकफू जाने का असली सफर मनयभंजन से शुरू होता है। -मनयभंजन जाने के दो सडक मार्ग हैं- पहला सीधा जलपाईगुडी से जो मिरिक होते हुए जाता है। इस रास्ते पर न्यू जलपाईगुडी से मनयभंजन की दूरी नब्बे किलोमीटर है। लेकिन, चूंकि इस रास्ते पर आने-जाने के साधन बहुत सीमित हैं इसलिये लोग दूसरे रास्ते का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं जो घूम होते हुए है। -न्यू जलपाईगुडी से दार्जीलिंग के रास्ते पर घूम शहर दार्जीलिंग से नौ किलोमीटर पहले है। इस रास्ते पर छोटी लाइन की ट्रेन सडक के साथ-साथ चलती है, इसलिये घूम सडक व ट्रेन दोनों से पहुंचा जा सकता है। -घूम से मनयभंजन का सफर लगभग एक घण्टे का है। इन रास्तों पर बसें कम ही मिलेंगी। आने-जाने का ज्यादा सुलभ व किफायती साधन जीप है। न्यू जलपाईगुडी या दार्जीलिंग से पूरी जीप भी बुक कराई जा सकती है या फिर प्रति सवारी सीट भी इस रास्ते की जीपों में आप ले सकते हैं। -न्यू जलपाईगुडी रेलमार्ग से दिल्ली, हावडा व गुवाहाटी से सीधा जुडा है। सबसे निकटवर्ती हवाई अड्डा सिलीगुडी के पास बागडोगरा है।

खास बातें

-संदकफू सिंगालिला राष्ट्रीय पार्क के दायरे में है। बारिश के तीन महीनों में यानी 15 जून से 15 सितम्बर तक यह पार्क सैलानियों के लिये बन्द रहता है। -बारिश से पहले यानी मई-जून में जाने वालों को रास्ते में गर्मी का एहसास हो सकता है। लेकिन सितम्बर के बाद से मौसम में ठण्डक बढती जायेगी। संदकफू में ऊंचाई की वजह से मौसम हमेशा ठण्डा मिलेगा। सर्दियों में यहां खासी बर्फ भी गिरती है। वैसे भी पहाडों पर मौसम पलभर में बदलता है। एक पल में धूप में आपको गर्मी लगेगी तो दूसरे ही पल बादल छाते ही आप ठिठुरने लगेंगे। इसलिये अपने साथ कपडों का पूरा इंतजाम रखें। -रास्ते में अपने साथ एक गाइड जरूर रखें। यह न केवल रास्ता दिखाने व रुकने की जगह बताने के लिये बल्कि राष्ट्रीय पार्क होने की वजह से भी नियमानुसार जरूरी है। मनयभंजन से ये गाइड मिल जायेंगे। इनकी दरें भी तय हैं- 250 से 300 रुपये प्रतिदिन। सामान ज्यादा हो तो पोर्टर भी करना होगा। थोडा सामान तो गाइड भी उसी फीस में अपने साथ उठा लेता है। स्थानीय गाइड तमाम अनजान मुश्किलों में भी मददगार रहते हैं।

रास्ता व रोमांच -मनयभंजन से संदकफू 31 किलोमीटर का रास्ता बेहद खूबसूरत है। रास्ते की खूबसूरती प्राकृतिक तो है ही, उसे तय करने के तरीके में भी है। -मनयभंजन से संदकफू होते हुए फालुत तक का रास्ता सडकनुमा है। लेकिन यह सीधी साधी सडक नहीं बल्कि ज्यादातर जगहों पर खडी चढाई वाली और पूरे रास्ते पथरीली है। -माना जा सकता है कि सडक है तो कोई वाहन भी चलाता होगा। सही है, और यह वाहन भी संदकफू जाने के अनुभवों में से सबसे खास है। यह वाहन यानी जीप है- लैंडरोवर, पचास साल से भी पुराना ब्रिटिश मॉडल। इसे इस रास्ते पर चलते देखना हैरतअंगेज है तो इस पर बैठकर सफर करना साहस का काम। इसीलिये जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं, वे केवल एक दिन या कुछ दूरी का सफर इस लैंडरोवर में करते हैं ताकि इसका अनुभव ले सकें। -इस रास्ते पर ट्रेकिंग ज्यादा कष्टदायक नहीं क्योंकि फालुत तक का सफर लैंडरोवर के रास्ते पर ही होता है। लेकिन वापसी का सफर जंगल के रास्ते होता है। संदकफू या फालुत से वापसी करने वाले जंगल के रास्ते रिम्बिक तक उतरते हैं।

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