यह लेख 25 जून 2006 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।
रोज की आपाधापी और व्यस्त जिन्दगी से कुछ दिन दूर रहकर फिर से तरोताजा होकर काम में जुटने की इच्छा हो तो शिलांग से अच्छी कोई जगह नहीं। यहां पर घूमने के साथ-साथ लम्बे समय की थकान दूर करने के लिये भी आया जा सकता है। पूर्वोत्तर की इस सैर पर ले जा रही हैं नीरा कुमार:
शिलांग अब मेघालय की राजधानी है। एक समय था जब पूर्वोत्तर के सातों राज्यों की राजधानी शिलांग हुआ करती थी। तब इसे नेफा प्रांत के नाम से जाना जाता था। पर 1972 में नेफा सात राज्यों में विभाजित हो गया और शिलांग सिर्फ मेघालय की राजधानी बना।
भौगोलिक रूप से मेघालय सात जिलों में बंटा हुआ है और यहां तीन जनजाति के लोग पाये जाते हैं- खासी, गारो और जयंतिया। मेघालय में ईस्ट, वेस्ट और साउथ गारो हिल्स की पहाडियां तुरा के आसपास हैं जो गारो जनजाति के रूप में पहचानी जाती है। जयंतिया लोग जयंतिया हिल्स में पाये जाते हैं। ईस्ट खासी हिल्स शिलांग का हिस्सा है और यहां पर खासी जनजाति के लोग बहुतायत में पाये जाते हैं। इन तीनों ही जनजातियों की एक प्रमुख विशेषता है कि ये मातृसत्तात्मक हैं। यानी वंश लडकियों से चलता है और विरासत का हस्तांतरण भी मां से बेटी को ही होता है। यहां के पुरुष शादी के बाद पत्नी के घर रहते हैं। यहां के लोग अपनी भाषा बोलते हैं और अंग्रेजी भी जानते हैं। इन जनजातियों में ईसाई धर्म का काफी प्रभाव देखने को मिलता है।
प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर 5000 फुट की ऊंचाई वाला पहाडी स्थल शिलांग मेघालय के अन्य स्थानों से बिल्कुल अलग है। शिलांग में स्कॉटलैण्ड की पहाडियों से काफी समानता पाई जाती है इसीलिये इस शहर को ‘पूर्व का स्कॉटलैण्ड’ भी कहा जाता है। यह जगह, यहां के लोग, यहां के फूल-पौधे, यहां की वनस्पतियां, यहां की जलवायु सारी चीजें मिलाकर शिलांग को एक आदर्श विश्राम व पर्यटक स्थल बनाती हैं। शिलांग में पर्यटकों के लिये अच्छे होटल, खेल सुविधाएं, पछली पकडने, पहाडों पर पैदल चलने व हाइकिंग की भी सुविधाएं हैं। शिलांग शहर में और आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं। कुछ प्रमुख पर्यटक स्थल इस प्रकार हैं जिन्हे शिलांग जाने पर अवश्य देखना चाहिये:
वाडर्स लेक
शिलांग में एक खूबसूरत सी झील है जिसे वाडर्स लेक के नाम से जाना जाता है। यह शहर के बीचोंबीच है। इस झील का पानी इतना साफ है कि अन्दर से तैरती मछलियां नजर आती हैं। यहां पर नौका विहार कर सकते हैं। इसके साथ ही जुडा बोटैनिकल गार्डन भी अवश्य देखें। यहां पर रंग-बिरंगी चिडियां मन मोह लेती हैं।
लेडी हैदरी पार्क व मिनी जू
यह पार्क भी शिलांग शहर में ही है। इस पार्क का नाम अकबर हैदरी की पत्नी के नाम पर रखा गया है। बच्चों के लिये यहां पर एक मिनी जू भी है। साथ ही एक खूबसूरत झरना और स्विमिंग पूल भी है। साथ ही एक रेस्तरां भी है जहां पर्यटकों के लिये शाम को कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
पोलो ग्राउण्ड
शिलांग में पोलो ग्राउण्ड अपनी एक विशिष्टता के लिये प्रसिद्ध है। यहां पर तीर का खेल खेला जाता है। इस खेल के जरिये खासी जनजाति के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुडे प्रतीत होते हैं। इस खेल के लिये लाटरी की तरह टिकट खरीदे जाते हैं और खासी आरचरी एसोशियेशन के तीरंदाज एक बांस के टारगेट पर चार मिनट में 1500 तीर छोडते हैं जिसके तीर निशाने पर लगते हैं वे गिने जाते हैं और वही नम्बर सट्टेबाजी में खोला जाता है। इसका जन्म प्राचीन जनजातीय खेलों से हुआ है।
शिलांग गोल्फ कोर्स
यह भी शिलांग शहर में है और भारत का तीसरा सबसे बडा और सबसे पुराना 18 होल का गोल्फ कोर्स है। इसको पूर्व का ‘ग्लैनईगल’ कहा जाता है।
मेघालय स्टेट म्यूजियम
शिलांग जाने पर स्टेट म्यूजियम अवश्य देखना चाहिये क्योंकि यहां पर मेघालय राज्य के लोगों के सांस्कृतिक जीवन और मानवजातीय अध्ययन से जुडी वस्तुएं रखी हुई हैं। इस संग्रहालय के ठीक सामने सबसे पुराना सेंट कैथोलिक चर्च भी है।
शिलांग से कुछ दूरी वाले दर्शनीय स्थल
स्वीट फाल: शिलांग से आठ किलोमीटर दूर हैप्पी वैली के पास यह स्थित है। इसको देख कर ऐसा आभास होता है कि पेंसिल के आकार के एक मोटे वाटर पाइप से 200 फुट नीचे पानी गिर रहा है। यह दिनभर की आउटिंग और पिकनिक के लिये अच्छी जगह है।
शिलांग पीक: अपने नाम के अनुकूल यह पीक शिलांग से दस किलोमीटर दूर है और 1960 मीटर ऊंची है। यह चोटी एक पर्यटन स्थल भी है और हर साल बसन्त के समय यहां के निवासी शिलांग के देवता की पूजा करते हैं। शाम के समय शहर की रोशनी यहां से देखने पर ऐसी लगती है मानो जमीन पर ही ‘तारा मण्डल’ आ गया है। साफ मौसम में इस चोटी से हिमालय की श्रंखलाएं और बांग्लादेश के मैदानी इलाके भी साफ दिखाई देते हैं।
चेरापूंजी और एलीफेंटा फाल: शिलांग जाकर अगर चेरापूंजी नहीं गये तो आपने कुछ नहीं देखा। पूरी दुनिया में सबसे अधिक बारिश यही पर होती है। यह शिलांग से 56 किलोमीटर दूर है। यहां जाने के लिये शिलांग से सवेरे निकलकर शाम तक लौटा जा सकता है। चेरापूंजी जाने वाले रास्ते में ही एलीफेण्टा फाल पडता है। इस तरह एक दिन में यह दोनों जगह देखी जा सकती हैं। एलीफेण्टा फाल शिलांग से बारह किलोमीटर दूर है। इस झरने को पास से देखने के लिये एक लकडी के पुल से होकर सीढियों से नीचे तक जाना होता है।
चेरापूंजी में जब आप पहुंचेंगे तो आपको वहां झरनों का शोर सुनाई देगा। इस झरने को सेवन सिस्टर फाल के नाम से जाना जाता है। चेरापूंजी में ही एक व्यू प्वाइण्ट है जहां से खुले मौसम में बांग्लादेश का हरा-भरा मैदानी इलाका दूर-दूर तक साफ दिखाई देता है। एक तरफ मेघालय राज्य का पहाडी इलाका और दूसरी तरफ बांग्लादेश का मैदानी भाग दोनों मिलकर एक मनोरम दृश्य उत्पन्न करते हैं। लेकिन यह दृश्य बेहद दुर्लभ है क्योंकि ज्यादातर यह बादलों से इतना घिरा रहता है कि आप अपने पास खडे व्यक्ति को भी नहीं देख पायेंगे। यहां पर संतरे के बाग हैं और शुद्ध शहद भी मिलता है।
रानीकोर: यदि आप मछली पकडने की इच्छा रखते हैं तो रानीकोर जायें। यह दर्शनीय स्थल शिलांग से 140 किलोमीटर दूर है।
डावकी: बोटिंग का शौक हो और प्रकृति को बिल्कुल नये अंदाज में देखना चाहते हैं तो शिलांग से 56 किलोमीटर दूर डावकी जायें। यह उमगोट नदी के पास स्थित है। यहां पर एक झूले वाला पुल है जिसके नीचे से डावकी नदी बहती है। यहां पर हर साल बोटिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।
जाकरेम के गर्म पानी के सोते: शिलांग से 64 किलोमीटर दूर जाकरेम एक ऐसी जगह है जो ‘हेल्थ रिसॉर्ट’ के तौर पर भी लोकप्रिय है। यहां पर गंधक के पानी का सोता है जो कई बीमारियों को दूर करने वाला माना जाता है। यह चट्टानों से घिरा एक सुन्दर स्थान है।
उनियाम (बारापानी): शिलांग से 17 किलोमीटर दूर बहुत विशाल पानी का भण्डार है जो एक वाटर स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स व पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित किया गया है। यहां पर सुन्दर लेक और नेहरू पार्क है। बोटिंग की भी सुविधा है। यहां पर तैरता हुआ एक रेस्तरां भी है। यहां पर वाटर स्पोर्ट्स जैसे रोइंग बोट, पैडल बोट, पानी का स्कूटर, स्पीट बोट जैसी विशेष सुविधाएं पर्यटकों का मन लुभाती हैं।
उपरोक्त स्थानों के अलावा घूमने के और भी कई स्थान हैं जैसे मावाफ्लांग सेक्रेड ग्रोव, मैरंग आदि। शिलांग शहर में आप पोलिस बाजार, बडा बाजार आदि घूम सकते हैं और यही खरीदारी करना भी उपयुक्त होगा। बडा बाजार में आपको शुद्ध शहद, हाथ के बुने शाल, तीर कमान, कुछ स्थानीय मसाले, बांस से बनी वस्तुएं आदि मिल जायेंगे।
एक नजर में
कैसे पहुंचे: कोलकाता से सप्ताह में छह दिन एलायंस एयर की उडान उमरोई एयरपोर्ट जाती है जो शिलांग से 35 किलोमीटर दूर है। देश के अन्य क्षेत्रों से गुवाहाटी एयरपोर्ट आया जा सकता है। यहां से शिलांग सौ किलोमीटर दूर है।
रेलमार्ग द्वारा: गुवाहाटी तक रेलमार्ग द्वारा देश के मुख्य शहरों से यहां आया जा सकता है। गुवाहाटी से शिलांग जाने के लिये बस, टैक्सी और हेलीकॉप्टर की सुविधा उपलब्ध है।
मौसम: यहां का मौसम साल के बारह महीनों खुशनुमा रहता है। अधिकतम तापमान अप्रैल-मई के महीने में 28 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम दिसम्बर महीने में 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
त्यौहार: यहां के काफी लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया है इसलिये क्रिसमस बडे जोर-शोर से मनाया जाता है। इसके अलावा दो प्रमुख जनजातीय त्यौहार हैं- एक ‘शाद सुक माइनसीम’ यानी खुशी का डांस जो अप्रैल महीने में बाइकिंग ग्राउण्ड शिलांग में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस त्यौहार में कोई धार्मिक रस्म नहीं होती और न ही कोई बलि चढाई जाती है। दूसरा है ‘नोंगक्रेम डांस’ जो खासी जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। पांच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में बकरे की बलि चढाई जाती है। यह शिलांग से पन्द्रह किलोमीटर दूर मनाया जाता है। इसके अलावा मेघालय टूरिज्म की ओर से पर्यटकों के लिये ‘शिलांग ऑटम फेस्टिवल’ नवम्बर माह में हर साल आयोजित किया जाता है।
शिलांग व उसके आसपास की जगहों को देखने के लिये टैक्सी, पैकेज टूर आदि उपलब्ध हैं।
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