यह लेख 24 जून 2007 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।
ऊंचाई से गिरती हुई अपनी उद्दाम शक्ति का प्रदर्शन करते हुए होगेनक्कल के जल प्रपात को तमिलनाडु का नियाग्रा फॉल कहा जा सकता है। होगेनक्कल का अर्थ है धुआं देते हुए पत्थर। जल प्रवाह जब तेजी से पत्थरों से टकराता है तो उन पर पत्थरों के ऊपर पानी की छोटी-छोटी बूंदों से निर्मित प्रबल राशि धुएं के समान प्रतीत होती है। होगेनक्कल के झरने का दृश्य दूर से जितना मनोरम है पास से उतना ही मायावी और विस्मयकारी। डॉ. जयश्री का यात्रा वृत्तांत:
होगेनक्कल तमिलनाडु का एक स्तब्ध कर देने वाला सौंदर्यबिंदु है। दूर से ही इसकी गर्जना हमें अपनी ओर बुलाती है। पथरीले तटों के मध्य बहती हुई कावेरी नदी की यह गर्जना होगेनक्कल में व्याप्त है। यद्यपि यह क्षेत्र सामान्यतया सूखा और पथरीला है पर जब से कर्नाटक सरकार ने कावेरी नदी के द्वार तमिलनाडु के लिये खोले हैं और वर्षा का वरदहस्त इस क्षेत्र पर आया है, कावेरी नदी और होगेनक्कल झरने के विहंगम रूप ने इसे प्रमुख पर्यटन केंद्र बना दिया है। नदी बिलिगुंडुला से होकर तमिलनाडु में प्रवेश करती है और होगेनक्कल में जलप्रपात का रूप ले लेती है।
पत्थरों से टकराकर बहते हुए नदी का दृश्य रोमांचक है। यहां नदी एक जंगल से पूर्ण घाटी से होकर बहती है। कहीं पर यह गहरी है तो कहीं पर उथली। नदी का प्रवाह अत्यंत तीव्र है जो कई जगह छोटे झरने का रूप भी ले लेता है और होगेनक्कल में विशाल जलप्रपात का रूप। कहा जाता है कि होगेनक्कल के पानी में औषधीय गुण हैं। लोग मानते हैं कि होगेनक्कल कावेरी नदी के किनारे बसा हुआ एक ऐसा स्थल है जहां अच्छे स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना की जा सकती है। यहां पर दो घाट और नदी के टापुनुमा पत्थरों को जोडते हुए पक्के रास्ते बने हैं जहां मालिश करने वाले बैठे रहते हैं। वे मानव शरीर में मालिश के चौदह बिंदुओं के बारे में भी बताते हैं। मालिश के बाद उन्हें कावेरी नदी के स्वास्थ्यवर्द्धक जलधारा में स्नान करना होता है। यहां पर हरे-भरे पहाड, कावेरी नदी का विशाल रूप और अट्टहास करते हुए झरने का विहंगम दृश्य पर्यटकों को बरबस आकर्षित करते हैं। बारिश से पहले पानी का प्रवाह कम होता है लेकिन मानसून शुरू हो जाने के बाद नदी उफनने लगती है और झरने विशाल हो जाते हैं। जुलाई-अगस्त में यह स्थान आकर्षक हो जाता है।
हम लोग ऐसे ही मौसम में जुलाई के महीने में होगेनक्कल गये। पहले ही हमने तमिलनाडु पर्यटन केन्द्र के यात्री निवास में तीन दिन के लिये कमरा बुक करा लिया था। सामान्यतया बंगलौर से लोग यहां सवेरे आते हैं और दिन भर घूमकर शाम को वापस चले जाते हैं। धर्मपुरी से हम लोग शाम को होगेनक्कल पहुंचे। बसस्टैण्ट से थोडी दूर पर तमिलनाडु यात्री निवास है। बस से उतरते ही गर्जना की ध्वनि ने आकर्षित किया तो पता चला कि यह नदी की ही गर्जना है। हम लोगों ने थोडी देर विश्राम किया और फिर तैयार होकर नदी की ओर चल दिये। सडक के दूसरी ओर ही नदी उन्मुक्त होकर बह रही थी। आगे बढते हुए हम उस स्थान पर पहुंचे जहां नदी ने विस्तृत रूप धारण कर लिया था।
दाईं ओर सामने एक पुल दिखा जिसके ऊपर से होकर नदी का जल स्त्रोत तेजी से बह रहा था। लोग नदी के उस ओर से पुल पर पैदल चलकर आ रहे थे। परंतु पुल के सिरे पर खडे पुलिस वाले इधर के लोगों को पुल पर जाने से रोक रहे थे। कुछ देर बाद जब पुलिस के लोग चले गये तो इधर के सभी पर्यटक पुल पर जाने के लिये स्वतन्त्र हो गये। तेज जल प्रवाह पर से नंगे पैर ही चलना पडा। कुछ भय के कारण हम लोग हाथ पकडे रहे। इस पुल को पार करने के बाद हैंगिंग ब्रिज के नाम से विख्यात पुल था- दोनों को पार करके ही नदी के उस पार पहुंचा जा सकता था। हैंगिंग ब्रिज के लिये सीढियां थीं पर उसके मेन गेट पर ताला लगा था और पुलिस की ड्यूटी थी। नदी के उफान के कारण पुल बन्द कर दिया गया था। पुल के नीचे गहरी नदी खतरनाक थी। अतः हम लोग दूर से ही उसे देखकर खिन्न मन से वापस हो लिये।
आगे बढने पर सामने दो घाट दिखाई दिये। घाट से एक ओर नदी समतल पर होने के कारण वहां गांव के लोगों की भीड थी। खाना-पीना, बर्तन धोना आदि काम चल रहे थे पर सामने के घाट से उतरने पर नदी बिल्कुल सूख चुकी थी। एक पतली सी धारा बह रही थी जिसे पैदल पार करने में आनन्द आया। सामने विशाल और ऊंचे पर्वत इस क्षेत्र को एक घाटी का एहसास दिला रहे थे जहां पहले कभी कावेरी नदी उन्मुक्त बहती होगी। अंधेरा घिरने लगा था। हम लोग होटल वापस आ गये। आते-जाते में हम लोगों ने एक विशेष बात देखी। सडक के दोनों ओर मछली की दुकानें। विभिन्न प्रकार की मछलियों की तली हुई डिश और सम्पूर्ण वातावरण में मछलियों की गन्ध। यहां के लोगों का मुख्य भोजन है मछली और भात या इडली। यहां के निवासियों का मुख्य व्यवसाय है मछलियां पकडना और बेचना। मछलियां 50-100 ग्राम वजन से लेकर 10-20 किलो वजन तक की होती हैं। बंगलौर से आये एक परिवार ने दस किलो वजन की एक बडी मछली खरीदी जिसे दोनों हाथों से पकडकर सब फोटो खिंचवाते रहे।
वापसी में हम लोगों ने कुछ लोगों को विशाल कटोरानुमा नाव कंधे पर लादकर ले जाते देखा। हमें उन लोगों पर दया आयी कि इतनी बडी नाव इन्हें लादनी पड रही है। पूछने पर पता चला कि ये ताड की पत्तियों से बने और हल्के नाव हैं जिन्हें ‘परिसल’ कहते हैं। ये बासकेट की तरह बुने हुए होते हैं जो हल्के परन्तु मजबूत होते हैं। हजारों वर्षों से यहां पर इस प्रकार की नावों का प्रचलन है। आजकल इन पर प्लास्टिक का कवर भी लगा दिया जाता है जिस पर तारकोल की परत लगी होती है। अगले दिन हम लोगों ने नाव से भ्रमण की योजना बना ली। होगेनक्कल घूमने का मुख्य अंग है कावेरी नदी पर नाव से भ्रमण। नाव शान्त नदी से यात्रा प्रारम्भ कर अशान्त जलधारा की ओर जाती है और फिर गरजते हुए जलप्रपात की ओर। हम लोगों ने सवेरे घाट से उतरकर शान्त जलधारा को पैदल ही पार किया। फिर उस बालुका भय तट पर पहुंचे जहां मांझी लोग नाव लेकर प्रतीक्षा कर रहे थे। प्रति यात्री साठ रुपये पर भाडा तय हुआ। एक नाव में पांच से अधिक लोग नहीं बैठते हैं। नाव तेजी से गम्भीरतम जलधारा की ओर बह चली।
यहां सबसे पहले हमें हैंगिंग ब्रिज का सुन्दर दृश्य दिखाई पडा, गहरी परन्तु संकरी नदी के दोनों ओर बडे-बडे शिलाखण्ड और जंगल हैं। नाव हमें दूसरी ही दिशा में ले चली। वहां नदी की लम्बाई-चौडाई का कोई अन्दाजा ही नहीं लग पा रहा था। थोडी देर बाद मांझी ने हमें किनारे पर लाकर छोड दिया। अब बारी थी पथरीले जंगल पर पैदल चलने की। नाव को कन्धे पर लाद मांझी भी तेजी से हमारे साथ हो लिये। नदी के किनारे-किनारे चलते हुए हमें छोटे-छोटे झरने भी मिले जहां हमने बिना किसी भय के नहाने का आनन्द लिया। यहां भी जल प्रवाह शान्त था। लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद मांझी ने नाव को फिर पानी में डाल दिया। अब हम लोग नाव पर बैठ गये और इस बार हमें लगा कि हम किसी नदी में नहीं वरन एक विशाल झील में बोटिंग कर रहे हैं।
चारों ओर ऊंचे हरियाली से लदे पहाड। जंगलों से घिरे पहाडों के ऊपर चटक नीला आसमान, तैरते बादल और नीचे अथाह जलराशि पर तैरती हमारी नाव। हम मानों किसी स्वप्नलोक में पहुंच गये थे। अब फिर वही प्रक्रिया दोहराई गई। हम लोगों को फिर से कुछ देर पथरीली जंगली झाडियों के बीच से पैदल चलना पडा। इसके बाद फिर जब हम लोग नाव पर बैठे तो नदी में तेज प्रवाह था। नाव तेजी से आगे बढी। बोटिंग का आनन्द बेजोड था। पर थोडी दूर पर छोटे-बडे पत्थर थे और नाव का आगे बढना मुश्किल था। एक बडे पत्थर पर नाव को रोक दिया गया जहां कई और नावें थीं। सभी सवारियां पत्थरों पर इधर-उधर खडी थीं। यहां नाव पर चलती-फिरती दुकानें भी थीं जहां से कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, फ्राइड फिश कुछ भी खरीदा जा सकता था। यहां काफी चहल-पहल थी और सामने अपने अट्ठहास से हमारे बौनेपन का मजाक उडाता प्रचण्ड व विस्मयकारी जलप्रपात होगेनक्कल था। उन्मादी जलवेग को और पास से देखने का आनन्द लेने के लिये माझी हमें सहारा देकर दूसरे पार के पत्थरों पर ले गया। यह ऐसा आश्चर्यजनक अनुभव था जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
काफी देर तक हम इस अदभुत आनन्द में डूबे रहे जब तक कि माझी ने हमें नहीं बुलाया। हमारी वापसी का मार्ग दूसरा था। जलप्रपात के दूसरी ओर गोलाकार मार्ग में घूमते हुए जब हम फिर से नदी की जलधारा को पार करने लगे तो कावेरी नदी का चंचल रूप दिखाई पडा। अशान्त लहरों के कारण नाव हिचकोले ले रही थी, पानी की बौछारें डगमगाती नाव के भीतर तक बार-बार आ रही थीं। नाव के पलटने और जलमग्न होने की आशंका से हम डर भी रहे थे। हम जलप्रपात के दूसरी ओर पहुंच चुके थे पर पानी का प्रवाह प्रपात की ओर था। कुशल माझी अपनी पूरी ताकत से नाव को विपरीत प्रवाह की ओर ले जा रहा था। बीच-बीच में वह अपने हाथ ढीले छोडकर हमें डरा भी देता था। पर थोडी ही देर में हमें पता चला कि अब हम तट की ओर जा रहे हैं। अचानक माझी ने नाव को चक्राकार घुमाना शुरू कर दिया। यह एक रोमांचकारी अनुभव था। धीरे-धीरे उसने हमें तट पर लाकर उतार दिया।
भोजन और विश्राम के बाद हम फिर से चल दिये कि शायद हैंगिंग ब्रिज खुला हो। इस बार भाग्य से मुख्य द्वार से हमें सीढियां चढने की अनुमति दे दी गई। काफी लोग ऊपर खडे थे और आसपास का नजारा ले रहे थे परन्तु ब्रिज दोनों ओर से बन्द था। लोहे के चैनल पर ताला लगा हुआ था। फिर भी ऊपर खडे होकर दोनों ओर नदी के दृश्य को निहारना भी आनंददायक था। बडी-बडी शिलाओं से टकराकर जल प्रवाह तेजी से बह रहा था। यहां कुछ देर रुकने के बाद हम फिर उस घाट पर गये जहां नदी सूख चुकी थी। यहां ऊंचे पहाडों को देख रोमांच हो आता था।
अगले दिन दोपहर बारह बजे वापसी की बस थी। हम लोग सवेरे फिर चल दिये कावेरी नदी की सुन्दरता को निहारने के लिये जिसे चाहे जितनी बार देखो इच्छा पूरी नहीं होती थी। कुछ फोटो लेकर वापसी की राह पकडी। बस में बैठकर खेत, गांव, जंगल निहारते रहे। ड्राइवर के पास बहुत सारे छोटे-छोटे केले रखे थे। अचानक ड्राइवर ने बस रोकी तो झुण्ड के झुण्ड बन्दर आ गये। ड्राइवर ने सारे केले उन्हें बांट दिये। यहां बन्दरों को केले खिलाने की परम्परा है। हम प्रकृति की सुरम्यता और संस्कृति की विविधता पर मुग्ध थे। बस बंगलौर की ओर बढ रही थी और दिल-दिमाग में होगेनक्कल की याद अविस्मरणीय बन चुकी थी।
खास बातें
· होगेनक्कल बंगलौर से लगभग 150 किलोमीटर, सलेम से 114 और धर्मपुरी से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वैसे यह जगह कर्नाटक व तमिलनाडु की सीमा पर है। होगेनक्कल जाने के लिये बंगलौर, सलेम व धर्मपुरी से बसें व टैक्सियां आसानी से उपलब्ध हैं। · आप होगेनक्कल या धर्मपुरी दोनों स्थानों पर रुक सकते हैं। होगेनक्कल में तमिलनाडु टूरिज्म के होटल के अलावा कुछ अन्य होटल व लॉज हैं। बंगलौर व धर्मपुरी में कई ट्रैवल ऑपरेटर हैं जो होगेनक्कल की यात्रा आयोजित करते हैं। · यहां पूरे साल जाया जा सकता है। बस यह ध्यान रखें कि मानसून के महीनों में पानी का प्रवाह ज्यादा होता है। थोडी मुश्किल भी हो सकती है लेकिन फिर उसका रोमांच भी ज्यादा है। · मौसम यहां हमेशा या तो गर्म होता है या खुशनुमा। सामान्य सूती कपडे यहां के लिये पर्याप्त हैं। लेकिन ध्यान रखें कि जब आप गोलाकार नाव में बैठकर प्रपात के नजदीक जायेंगे तो पानी के छींटों से आप भीग जायेंगे। इसलिये अपने पास की सारी चीजें- मोबाइल, पर्स, पैसे बचाकर रखें। · उत्तर भारत से जाने वालों को स्थानीय भाषा समझने में थोडी-बहुत दिक्कत आ सकती है लेकिन इससे आपके घूमने के आनन्द में कोई फर्क नहीं पडेगा। हां, नाववालों से दरों को लेकर थोडी सौदेबाजी जरूर करें।
जा चुके हैं और उस पर पोस्ट भी छाप चुके हैं।
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