गुरुवार, अप्रैल 07, 2011

केरल- भीगे मौसम का मजा

यह लेख 30 जुलाई 2006 को दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में छपा था।

जब मानसून के बरसते दिनों में लोग घरों में दुबकना पसन्द करते हैं तब केरल में सांस्कृतिक व प्राकृतिक छटा पूरे यौवन पर होती है। औरों से अलग अगर छुट्टियां बितानी हों तो केरल के खूबसूरत सफर पर जाने की सलाह दे रहे हैं पी. के. आर्य:


वर्षा ऋतु में सैर-सपाटा? तौबा-तौबा! दिन बारिश के हों तो घर में बैठकर चाय-पकौडे खाना सबसे ज्यादा सुहाता है। लेकिन नहीं जनाब। घूमने वाले कहते हैं कि बारिश में पर्यटन का भी अपना मजा है और बात अगर केरल की हो तो फिर कहना ही क्या। वास्तव में केरल की खूबसूरती का सबसे ज्यादा आनन्द मानसून के दौरान ही उठाया जा सकता है। यह बात यहां इन दिनों आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों की संख्या को देखकर साबित भी होती है। शानदार सघन वन, नयनाभिराम पर्वत शिखर, वेगवती नदियां, विशाल समुद्री झीलें और ताल-तलैया, दुग्ध धवल झरनें और सुरम्य सागरतट। चारों ओर जबरदस्त हरियाली। बस यूं समझ लीजिये कि प्रकृति के उपहारों का भरपूर वरदान है- केरल।


तभी तो इसे ‘गॉड्स ऑन कंट्री’ अर्थात ‘ईश्वर की अपनी भूमि’ कहा गया है। भारत भर में भ्रमण करने के पश्चात केरल आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक यहां की प्राकृतिक छटा को देखकर मंत्रमुग्ध हो उठते हैं।


एलप्पी (अल्पुज्जा) से कोल्लम तक के बैकवाटर्स का स्वप्निल सौन्दर्य, बेहद खूबसूरत कोवलम बीच, कायाकल्प कर देने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और समृद्ध कला-संस्कृति के कारण भी केरल विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बना रहा है। केरल के पर्वतीय भूभाग में चाय, कॉफी, रबर, इलायची, सन्तरा और काली मिर्च आदि के विशाल बाग-बगीचे हैं, जबकि निचले हिस्से में चावल, तिल, नारियल, कटहल, आम, सुपारी, इमली, केला और काजू सहित विभिन्न प्रकार के मसालों व गिरीदार फलों के पेड-पौधे सर्वत्र अंतहीन हरियाली के हस्ताक्षर हैं। किंवदंतियां, पौराणिक आख्यान और पुरातात्विक जानकारियां केरल के प्रारम्भिक जीवन की दिलचस्प कडी हैं। सर्वमान्य जनश्रुति है कि केरल समुद्र की गहराई से निकला है। केरल के लिपिबद्ध इतिहास पर नजर डालें तो उसकी जडें भी प्राचीन उद्धरणों से होती हुई ईसा पूर्व तीसरी सदी तक जाती हैं। सम्राट अशोक के स्तम्भ इस इतिहास के प्रमुख प्रमाण हैं।


ईसा पूर्व 1200 में केरल के साथ समुद्री व्यापार के अगुवा फिनीशिया (सीरिया) के लोग थे। वे बन्दर, मोर, हाथीदांत और चन्दन की लकडी के व्यापार के सिलसिले में यहां पहुंचे थे। केरल के मसालों की ख्याति ईस्वीं 30 में रोमनों को यहां लाई, उनके पीछे-पीछे ग्रीक लोग भी यहां आये। मसालों के लिये 1498 में वास्को-डि-गामा भी कोझीकोड आया। उसके आने से यूरोपीय देशों के साथ केरल के व्यापार का एक नया अध्याय शुरू हुआ। मलय प्रायद्वीप, फिलीपीन, जावा और सुमात्रा के व्यापारी भी केरल बन्दरगाहों पर व्यापार के लिये पहुंचते रहे। इन देशों द्वारा सोने का व्यापार होता था और पश्चिम के देश चन्दन की लकडी, मसालों और हाथीदांत का व्यापार करते थे। केरल के शासकों और कोझीकोड के जामेरिनों ने इन व्यापारियों को तमाम सुविधाएं और केरल में बसने की इजाजत दी। सन 1516 में पुर्तगालियों को और उसके बाद डच व्यापारियों को यहां व्यापार का अधिकार मिला। सन 1663 में पुर्तगालियों को यहां से बलपूर्वक निकाल दिया गया। 1795 में डचों को भी बाहर जाना पडा, क्योंकि तब तक ब्रिटिश व्यापारी भारत में सबसे ताकतवर हो चुके थे और उनका ही प्रभुत्व फैल रहा था। आधुनिक केरल का जन्म 1956 में तब हुआ, जब दक्षिण भारत के मलयालम भाषी हिस्सों को जोडकर इस नये राज्य का गठन किया गया।


केरल की राजधानी तिरुअनन्तपुरम है। यह शहर तटों, पर्वतों, वन्य जीव अभ्यारण्यों और द्वीपों के एक सुन्दर संसार में प्रवेश के लिये द्वार खोलता है। सात पहाडियों पर बसे इस शहर का नाम सौ मुखों वाले पवित्र सर्प ‘अनन्त’ के नाम पर है।


तिरुअनन्तपुरम से 9 किलोमीटर की दूरी पर वेली टूरिस्ट विलेज एक सुन्दर झील है। मानसूनी पर्यटकों के लिये यह स्थान स्वर्ग सरीखा है। समुद्र के किनारे स्थित इस झील के मध्य में एक बांध बनाया गया है। समीप ही स्थित सुन्दर बागों की श्रंखला इस स्थान को और भी अधिक रमणीय बनाती है। वेडिंग पुल, तैरता हुआ ब्रिज और रेस्तरां यहां के सौन्दर्य में चार चांद लगाते हैं। जल क्रीडा के लिये यह एक बेहतरीन स्थान है। चप्पुओं और पेडल वाली नावों पर नौका विहार, वाटर स्कूटरों और हॉवर क्राफ्ट की सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। यहां से थोडी ही दूरी पर आम्कुलम झील है, जहां केरल का सबसे बडा बाल उद्यान है। वेली से यहां नौकाओं द्वारा पहुंचा जा सकता है।


तिरुअनन्तपुरम से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोवलम भारत के सबसे सुन्दर समुद्र तटों में से एक है। डिस्कवरी चैनल द्वारा इसकी गणना दुनिया के सुन्दरतम समुद्र तटों में की गई है। यह अपूर्व प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा पूरा सुरक्षित ठहरने का स्थल है। यहां सुरक्षित स्नान, योग और आयुर्वेदिक उपचार और मालिश की सुविधाओं के साथ पानी के खेलों का भी इंतजाम है। कोवलम के तट के किनारे ठहरने की विभिन्न सुविधाएं हैं। केरल के कीलोन से एलप्पी के बीच बैकवाटर्स में तैरते असंख्य हाउसबोट, मानसूनी पर्यटन को और अधिक रोमांचक बनाते हैं। उत्तर भारत की गर्मी में जो नवयुगल वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हैं, वर्षा ऋतु में यह स्थान उनके लिये आकर्षक हनीमून स्थल के रूप में भी विकसित हो रहा है।


कुछ समय पहले तक नारियल और बांस के घने जंगलों के मध्य जल-क्रीडा करते हुए बीच पानी में केटुवेलन नाव से सवारी करना अपने आप में एक सुखद अनुभव था। लेकिन जो लोग इसका लुत्फ उठा चुके हैं अगर अब वे केरल आते हैं तो वो देखकर चौंक जायेंगे कि पर्यटन एजेंसियों ने इन पारम्परिक नावों को हाउसबोट में परिवर्तित करके समूचे क्षेत्र को अविस्मरणीय बना दिया है। आने वाले पर्यटक यहां न सिर्फ जल क्रीडा व शान्त जंगलों के बीच अपनी छुट्टियां बिता सकते हैं बल्कि इस अनुभव को यादगार स्वरूप भी प्रदान कर सकते हैं। तिरुअनन्तपुरम से उत्तर में लगभग 50 किलोमीटर दूर वरकाला में अति सुन्दर समुद्री तट वरकाला बीच और जनार्दन स्वामी का प्रसिद्ध मन्दिर है, यह प्राचीन मन्दिर 2000 वर्ष पूर्व बनाया गया था। जनार्दन मन्दिर के तीन किलोमीटर पूर्व में पहाडी पर स्थित शिवगिरी मठ हिंदू धर्मावलम्बियों का पवित्र स्थल है। इसे प्रसिद्ध हिंदू सुधारक नारायण गुरू ने 1904 में बनवाया था। वरकाला समुद्र किनारे का एक सुन्दर स्थल भी है, जहां खनिज जल के झरने हैं। यह समुद्र तट ‘पापनाशय’ के नाम से जाना जाता है और मलयालम के कारकिदकम महीने की पूर्णिमा को यहां सैंकडों हिंदुभक्त ‘बाबुबली’ का विधिपूर्वक पालन करते हैं। वरकाला बीच एक बहुत ही खूबसूरत सैरगाह है। यहां से दूर-दूर तक फैले समुद्री तट पर नारियल और काजू के घने कुंज नजर आते हैं। यहां धातु मिश्रित जल के कई झरने भी हैं।


वरकाला से 37 किलोमीटर दूर अष्टमुडी झील के किनारे बसे कोल्लम शहर का पुराने समय से ही व्यापारिक महत्व रहा है। अति प्राचीन काल में कोल्लम के बन्दरगाह यूरोप, मिस्र, एशिया माइनर व चीन आदि देशों के जहाज व्यापार करने आते थे। कोल्लम केरल के सुप्रसिद्ध बैकवाटर्स का प्रवेश द्वार कहलाता है। कोल्लम व एलेप्पी के बीच की झीलें और जलमार्ग ऐसे हैं, जिन पर नौका विहार का आनन्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। कोल्लम से एलेप्पी के बीच लगभग आठ घण्टे की आनन्ददायी यात्रा के दौरान पूरे जलमार्ग के दोनों ओर लहलहाते असंख्य नारियल के वृक्ष मानों आगंतुकों का स्वागत कर रहे हों।


कला और संस्कृति की दृष्टि से भी केरल अत्यन्त समृद्ध है। प्राचीनकाल से ही यह प्रदेश कलाओं की लीलास्थली रहा है। केरल का कत्थकली नृत्य तो देश-विदेश में प्रसिद्ध है। कुल मिलाकर मानसूनी पर्यटन के लिये केरल एक ऐसा आदर्श स्थल है, जहां व्यक्ति एक बार आने पर बार-बार आना चाहता है।


सर्प नौका रेस


जुलाई से सितम्बर के दौरान यह केरल के बैकवाटर्स का सबसे बडा आकर्षण होता है। यह आयोजन ओणम के पर्व से जुडे होते हैं। इसे केरल की संस्कृति की सबसे शानदार तस्वीर भी कहा जा सकता है। सजे-धजे हाथी और वाटर परेड से इसकी रंगत कुछ और ही हो जाती है। खेलों के नजरिये से देखें तो यह दुनिया में सबसे बडी भागीदारी टीम स्पर्धा है। एक सर्प नौका में एक मुख्य नाविक, 25 गायक और सौ से सवा सौ खेवैये होते हैं। इन रेसों में सबसे पुरानी अम्बलापुज्जा के श्रीकृष्ण मन्दिर की चंपाकुलम मूलम बोटरेस, दो दिन की अर्णामुला बोटरेस, अल्पुज्जा से 35 किलोमीटर दूर पय्यीपड झील में तीन दिन का जलोत्सवम, नेहरू ट्रॉफी बोटरेस व और भी न जाने कितनी रेस शामिल हैं। अब तो इन रेसों में अंतर्राष्ट्रीय टीमें भी आने लगी हैं। इन नौका दौडों के पीछे सबकी अपनी एक कहानी है।


कैसे और कहां


केरल भारत के दक्षिण सिरे पर है और देश के सभी भागों से रेल, सडक व वायु मार्ग से भली-भांति जुडा है। मानसून इस समय जोरों पर है और सितम्बर तक इसका भरपूर आनन्द वहां उठाया जा सकता है। ठहरने के लिये ज्यादातर शहरों में हर किस्म के होटल हैं लेकिन बैकवाटर्स के इलाके में किसी हाउसबोट पर ठहरने का अनुभव यादगार रहेगा। यह खास महंगा भी नहीं है। कई होटलों की ऑनलाइन बुकिंग सुविधा उपलब्ध है और अलग-अलग अवधि के पैकेज टूर भी ट्रैवल ऑपरेटर आयोजित करते हैं।

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