यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 जनवरी 2007 को छपा था।
सूरज, रेत व समुद्र, एक हजार द्वीप, अलग-अलग गहराई वाले विशालकाय लैगून, हर कदम बदलता पानी का रंग, समुद्र के नीचे की अदभुत दुनिया और कोरल गार्डन- प्रकृति का यह मेल छुट्टियां मनाने का बेमिसाल माहौल बनाता है। मालदीव में इसके अलावा भी बहुत कुछ है। खासतौर पर जब उत्तर भारत में कडाके की ठण्ड परेशान कर रही हो तो कुछ सुकून भरे दिन बिताने की यह शानदार जगह है।
मालदीव का भारत से खासा अपनापा है। एक तो यह भारत के बेहद नजदीक है- श्रीलंका से महज 700 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में। यहां की आबादी में ज्यादातर लोग सदियों पहले दक्षिण भारतीय इलाकों (मुख्य रूप से केरल) से गये हुए हैं। कहा जाता है कि सीलोन (श्रीलंका) के प्रभाव में पहले यहां के लोग बौद्ध थे। बाद में 12वीं सदी में यह एक सुन्नी मुसलमान देश हो गया, जो वह आज भी है। वैसे इतिहास बताता है कि यहां पर आबादी तीन हजार साल पहले भी मौजूद थी।
यहां के नाम को लेकर भी कई सारे दावे किये जाते रहे हैं। इसके नाम का एक अर्थ पहाडी द्वीप से लगाया जाता है और कहा जाता है कि यह मलयालम में मलय अथवा तमिल में माला (दोनों का अर्थ पर्वत से है) और दीवु (यानी द्वीप) से बना हुआ है। कुछ विद्वान यह दावा करते हैं कि इसका नाम संस्कृत के मालाद्वीप यानी द्वीपों की माला से बना है। वहीं कुछ लोग यह मानने वाले भी हैं कि इसका नाम अरबी के महल शब्द का अपभ्रंश है। अतीत व इतिहास हो भी हो, यह सुकून भरी छुट्टियों के लिये दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।
सोलहवीं सदी से पहले पुर्तगालियों, फिर डच और अंत में अंग्रेजों का उपनिवेश रहने के बाद यह देश 1965 में आजाद हुआ। बमुश्किल सवा तीन लाख की आबादी वाले इस देश की एक तिहाई जनसंख्या माले में रहती है। इस देश के कुल क्षेत्रफल में केवल एक फीसदी हिस्सा जमीन का है। बाकी निन्यानवे फीसदी पानी ही पानी। यहां 26 द्वीपसमूहों में 1192 छोटे-छोटे द्वीप हैं जिनमें से केवल दो सौ पर ही लोग रहते हैं। इसके अलावा 87 द्वीप खासतौर पर टूरिस्ट रिसॉर्ट के लिये हैं। जाहिर है, ये रिसॉर्ट आपके जैसे पर्यटकों की ही प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मौसम और माहौल, दोनों ही लिहाज से यह बेहद शानदार जगह है। इस धरती पर प्रकृति के जो अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं, उनमें से एक समुद्र का जो नजारा यहां मिलता है, वह दुनिया में कहीं और भी मिलना दुर्लभ है। समुद्र और उससे जुडी चीजों के अलावा यहां देखने वाली जगहों में कला का शानदार नमूना इस्लामिक सेंटर, 17वीं सदी की बनी हुस्कुरू मिस्किली (जामा मस्जिद), 1906 में बना महल मुल्ली-आगी, जहां अब राष्ट्रपति का दफ्तर है और राष्ट्रीय संग्रहालय प्रमुख हैं।
आनंद के कई रूप
स्कूबा डाइविंग: मालदीव में चूंकि चारों तरफ नजर घुमाने पर पानी ही नजर आता है, इसलिये यहां की सारी गतिविधियां इसी से जुडी हैं। या तो आप इनका लुत्फ उठायें या फिर आराम से अपनी कॉटेज में पसरे रहें। मालदीव का लगभग हर रिसॉर्ट अपने पास स्कूबा डाइविंग के इंतजाम रखता है। सीखने वालों के लिये यहां डाइविंग स्कूल और कोर्स भी हैं। सालभर डाइविंग बिना नागा चलती है। हर रिसॉर्ट के पास द्वीप के नीचे अपनी एक समुद्री दीवार (रीफ) होती है जिसके चलते तेज लहरों या हवाओं के दौरान भी डाइविंग में कोई बाधा नहीं आती।
अंडरवाटर फोटोग्राफी: डाइविंग करें तो इसमें भी हाथ जरूर अजमाएं। जानकारों का कहना है कि अंडरवाटर फोटोग्राफी के लिये यह दुनिया की बेहतरीन जगहों में से एक है। कोरल रीफ और मछलियों की इतनी किस्में शायद ही कहीं और हों। रही बात कैमरे की तो यहां के डाइविंग स्कूलों में अंडरवाटर कैमरे भी किराये पर मिल जाते हैं।
स्नोर्कलिंग: यह डाइविंग का मास्क और तैरने वाले पंजे लगाकर पानी की सतह के थोडा ही नीचे तैरना है। इसका मुख्य मकसद पानी की जिंदगी से रूबरू होना है, खासतौर पर उन लोगों के लिये जिन्हें गहरे उतरने की इच्छा नहीं होती। इसके उपकरण भी ज्यादातर रिसॉर्ट में उपलब्ध होते हैं। यह अनुभव इसलिये भी बेहद शानदार है क्योंकि यहां के साफ पानी में आप पचास मीटर दूर तक अच्छे से देख सकते हैं।
सबमैरिन (पनडुब्बी): समुद्र की गहराई का मजा लेने का हक केवल डाइविंग व स्नोर्कलिंग करने वालों को ही नहीं है। मालदीव के रोमांच में हाल का इजाफा जर्मन पनडुब्बी का है जो हर किसी को पानी के नीचे की दुनिया दिखा सकती है- वह भी यार-दोस्तों के साथ एयरकंडीशंड माहौल में। यह दुनिया की सबसे गहरी उतरने वाली और सबसे बडी यात्री पनडुब्बी है जो समुद्र में सौ फुट नीचे उतरकर उस दुनिया से आपका परिचय करा सकती है जो अब तक केवल स्कूबा डाइवरों के लिये ही खुली थी। सौ फीसदी सुरक्षा वाला यह रोमांच दुनिया में केवल गिने-चुने स्थानों पर ही उपलब्ध है और मालदीव जाने पर इसका मौका चूकना ठीक न होगा।
सर्फिंग: यह अनुभव मालदीव के लिये थोडा नया लेकिन तेजी से पांव जमाता हुआ है। अब तो यहां सर्फिंग मुकाबले तक होने लगे हैं।
व्हेल व डॉल्फिन: अब यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि मालदीव की गिनती व्हेल व डॉल्फिन के नजारे लेने के लिये दुनिया की पांच सर्वश्रेष्ठ जगहों में होती है। इन दोनों मछलियों की बीस किस्मों का ठिकाना मालदीव के समुद्र में है (यह संख्या इनकी कुल किस्मों की चौथाई है)। इनमें विशालकार ब्लू व्हेल (दुनिया का सबसे बडा प्राणी) से लेकर बेहद छोटी लेकिन उतनी की कलाबाज स्पिनर डॉल्फिन तक सब शामिल हैं।
स्पिनर डॉल्फिन यहां कई हजारों की संख्या में है। इन्हें देखना और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को समझना भी अपने आप में बेहद रोमांचक है। उनका रूटीन इतना तय है कि उन्हें एक जगह पर रोजाना निर्धारित समय पर देखा जा सकता है। इन डॉल्फिनों को इनके प्राकृतिक वातावरण में देखने का मालदीव से बेहतर से बेहतर स्थान नहीं हो सकता। ज्यादा करीब से देखना हो तो सफारी बोट पर क्रूज का भी इंतजाम यहां हर जगह है। यह भी एक यादगार अनुभव होगा।
पर्यटन के अलावा मछली पालन यहां के सबसे प्रमुख धंधों में से है। कई निर्जन द्वीपों का इस्तेमाल तो केवल मछलियां सुखाने के लिये किया जाता है। मालदीव की डिब्बाबन्द मछलियां काफी पसन्द की जाती हैं। आप मांसाहारी हैं तो इसे मालदीव की याद या दोस्तों के लिये तोहफे के तौर पर भी ले जा सकते हैं। हालांकि तोहफे के लिये मालदीव के प्राकृतिक फाइबर से बने मैट, जिन्हें यहां थुडुकुना कहा जाता है, भी उपयुक्त हैं। इसके अलावा लकडी की बनी छोटी पारम्परिक नावें- धोनियां भी बेहद आकर्षक होती हैं।
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एक नजर
- राजधानी माले का हवाई अड्डा शहर से परे एक अलग द्वीप पर है। यात्रियों को राजधानी ले जाने के लिये हवाई अड्डा द्वीप से दिन के समय हर पन्द्रह मिनट में और आधी रात के बाद हर आधे घण्टे पर एक नौका राजधानी जाती है। जाने का इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं। इसका किराया तय है जो इस समय (2007 में) लगभग एक डॉलर प्रति व्यक्ति है।
- पर्यटकों के लिये रिसॉर्ट राजधानी माले के अलावा कई अन्य द्वीपों पर हैं। इनमें से कई पर हवाई पट्टियां हैं जहां के लिये एयर टैक्सी उपलब्ध हो जाती है।
- मालदीव आने के लिये पहले से वीजा की जरुरत नहीं होती। यहां आने के बाद सभी स्थानों पर पहुंचते ही पर्यटकों को तीस दिन का फ्री वीजा दे दिया जाता है।
- यहां का मौसम आमतौर पर गरम और उमसभरा होता है। सूरज देवता रोज चमकते हैं और औसत तापमान पूरे सालभर 32 से 29 डिग्री सेल्शियस के बीच रहता है। यहां का मौसम मुख्य रूप से मानसून पर ही निर्भर करता है। लेकिन फरवरी साल का सबसे सूखा महीना होता है। अप्रैल के बाद से फिर बारिश का दौर शुरू हो जाता है। लेकिन भूमध्य रेखा के निकट होने के कारण यहां तूफान व चक्रवात शायद ही कभी आते हैं। यहां का समय भारतीय समय से आधा घण्टा पीछे है।
- भौगोलिक दृष्टि से यहां कई और भी अचम्भे हैं। समुद्रतल से ऊंचाई के मामले में यह दुनिया के सबसे निचले इलाकों में से है और यहां जमीन की समुद्रतल से अधिकतम ऊंचाई महज 2.3 मीटर है (एवरेस्ट से 8845 मीटर कम)। यही वजह है कि दिसम्बर 2004 में जब यहां सुनामी की लहरें पहुंचीं तो उनकी ऊंचाई मात्र 1.2 से 1.5 मीटर थी (बाकी दक्षिण एशिया में उठी 8-10 मीटर ऊंची लहरों के मुकाबले)। लेकिन इतनी छोटी लहरों में ही मालदीव का काफी हिस्सा पानी में समा गया और भारी नुकसान भी हुआ।
- सामान्य सूती कपडे यहां के लिये पर्याप्त हैं। लेकिन माले और बाकी आबादी वाले द्वीपों पर महिलाओं के लिये थोडे शालीन कपडे पहनना ठीक रहेगा।
- वैसे तो पर्यटन से जुडे लोग कई यूरोपीय भाषाएं जानते हैं लेकिन आमतौर पर अंग्रेजी यहां लोग समझ-बोल लेते हैं क्योंकि यहां साक्षरता की दर बहुत ज्यादा लगभग 98 फीसदी है।
- रुफिया व लारी यहां की मुद्रा है। जैसे हमारे यहां एक रुपये में सौ पैसे होते हैं, उसी तरह यहां एक रुफिया (उच्चारण में रुपिया का अपभ्रंश प्रतीत होता है न?) में सौ लारी होते हैं। एक डॉलर इस समय लगभग बारह रुफिया के बराबर है। डॉलर ही यहां सबसे ज्यादा प्रचलित विदेशी मुद्रा है।
कैसे जायें
राजधानी माले के लिये केरल में तिरुअनन्तपुरम से सीधी उडान है। दिल्ली से कोलम्बो होते हुए भी कुछ उडानें माले के लिये शुरू हुई हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय उडानें मुम्बई होते हुए भी माले जाती हैं। किराया भी बहुत ज्यादा नहीं। तिरुवनन्तपुरम से माले का एक व्यक्ति का इकोनॉमी क्लास का वापसी किराया लगभग साढे आठ हजार रुपये है। यह उडान महज 40 मिनट लेती है।
राजधानी माले के लिये केरल में तिरुअनन्तपुरम से सीधी उडान है। दिल्ली से कोलम्बो होते हुए भी कुछ उडानें माले के लिये शुरू हुई हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय उडानें मुम्बई होते हुए भी माले जाती हैं। किराया भी बहुत ज्यादा नहीं। तिरुवनन्तपुरम से माले का एक व्यक्ति का इकोनॉमी क्लास का वापसी किराया लगभग साढे आठ हजार रुपये है। यह उडान महज 40 मिनट लेती है।
सागर की मदमाती लहरें।
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