सोमवार, जुलाई 11, 2011

फिर चलें लद्दाख

कई रोमांचप्रेमी ऐसे हैं जो हर साल जून-जुलाई-अगस्त में लद्दाख जाने को सालाना तीर्थयात्रा की तर्ज पर लेते हैं। लेकिन आप रोमांचप्रेमी न हों तो भी लद्दाख की खूबसूरती देखने लायक है। मौसम और माहौल तैयार है, बस आपके आने की देरी है। लद्दाख हिमालयी दर्रों की धरती है। अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिये लद्दाख दुनिया में बेमिसाल है। यहां बौद्ध संस्कृति की स्थापना दूसरी सदी में ही हो गई थी। इसी के चलते इसे मिनी तिब्बत भी कहा जाता है। लद्दाख की ऊंचाई कारगिल में 9000 फुट से कराकोरम में 25000 फुट तक है।

मेले व त्यौहार

लद्दाख क्षेत्र में मूलतः बौद्ध धर्म की मान्यता है। पूरे इलाके में हर तरफ आपको बौद्ध मठ देखने को मिल जायेंगे। ज्यादातर बडे मठों में हर साल अपने-अपने आयोजन होते हैं। तिब्बती उत्सव आमतौर पर काफी जोश व उल्लास के साथ मनाये जाते हैं। मुखौटे और अलग-अलग भेष बनाकर किये जाने वाले नृत्य-नाटक, लोकगीत व लोकनृत्य यहां की संस्कृति का प्रमुख अंग हैं। यहां की बौद्ध परम्परा का सबसे बडा आयोजन हेमिस का होता है। गुरू पदमसम्भव के सम्मान में होने वाला यह आयोजन तिथि के अनुसार होता है। इसी तरह ज्यादातर मठ सर्दियों व गर्मियों में अपने-अपने जलसे करते हैं। हेमिस समेत आठ बौद्ध उत्सव तो जुलाई व अगस्त में ही होते हैं। पर्यटन विभाग भी अपने स्तर पर हर साल सितम्बर में पंद्रह दिन का लद्दाख उत्सव आयोजित करता है।

कैसे जायें

वायु मार्ग से: लेह के लिये दिल्ली, जम्मू व श्रीनगर से सीधी उडानें हैं। ये उडानें लगभग प्रतिदिन हैं।

सडक मार्ग से: लेह जाने के दो रास्ते हैं। एक श्रीनगर से (434 किलोमीटर) और दूसरा मनाली से (473 किलोमीटर)। दोनों रास्ते जून से नवम्बर तक ही खुले रहते हैं। साल के बाकी समय में वायु मार्ग ही एकमात्र रास्ता है। दोनों ही रास्ते देश के कुछ सबसे ऊंचे दर्रों से गुजरते हैं। लेकिन जहां मनाली से लेह का रास्ता बर्फीले रेगिस्तान से होता हुआ जाता है, वहीं श्रीनगर का रास्ता अपेक्षाकृत हरा-भरा है। दोनों ही रास्तों पर राज्य परिवहन निगमों की बसें चलती हैं जो दो-दो दिन में सफर पूरा करती हैं। वैसे श्रीनगर व मनाली, दोनों ही जगहों से टैक्सी भी ली जा सकती है।

कहां ठहरें:

लेह में ठहरने के लिये हर तरह की सुविधा है। ज्यादातर होटल चूंकि स्थानीय लोगों द्वारा चलाये जाते हैं इसलिये उनकी सेवाओं में पारिवारिक लुत्फ ज्यादा होता है। यहां गेस्ट हाउसों में तीन सौ रुपये दैनिक किराये के डबल बेडरूम से लेकर बडी होटल में 2600 रुपये रोजाना तक के कमरे मिल जायेंगे। लेकिन यहां घरों से जुडे गेस्ट हाउसों में रहना न केवल किफायती है बल्कि लद्दाखी संस्कृति व रहन-सहन से परिचित भी कराता है। जून से सितम्बर के टूरिस्ट सीजन में होटल बुकिंग पहले से करा लेना सुरक्षित रहता है।

कपडे व बाकी सामान

सुबह व शाम के समय तो यहां पूरे सालभर गरम कपडे पहनने होते हैं। जून से सितम्बर तक दिन में थोडी गरमी होती है। हालांकि अगस्त से ही दिन के तापमान में भी गिरावट आने लगती है। गरमियों में भी दिन का तापमान यहां कभी 27-28 डिग्री से ऊपर नहीं जाता। सर्दियों में तो लेह तक में न्यूनतम तापमान शून्य से बीस डिग्री तक नीचे चला जाता है। इतनी ऊंचाई वाले इलाके होने से वहां हवा हल्की होती है। लिहाजा उसके लिये शरीर को तैयार करना होता है। अगर वहां आप रोमांचक पर्यटन के इरादे से जा रहे हों तो जरूरी सामान साथ रखें।

रोमांचक पर्यटन

यह इलाका ट्रैकिंग, पर्वतारोहण और राफ्टिंग के लिये काफी लोकप्रिय है। यूं तो यहां पहुंचना ही किसी रोमांच से कम नहीं, लेकिन यहां आने वालों के लिये उससे भी आगे बेइंतहा रोमांच उपलब्ध है। दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित सडकों (मारस्मिक ला व खारदूंग ला) के अलावा इस इलाके में सात हजार मीटर से ऊंची कई चोटियां हैं जिन पर चढने पर्वतारोही आते हैं। स्थानीय भ्रमण व खारदूंग ला जाने के लिये आपको यहां मोटरसाइकिल भी किराये पर मिल सकती है।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 जून 2009 को प्रकाशित हुआ था।

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