शनिवार, जुलाई 09, 2011

डलहौजी

प्रस्तुति: कविता

संदीप पंवार के सौजन्य से

डलहौजी एक ऐसा पर्वतीय स्थल है, जिसकी स्थापना अंग्रेजों के जमाने में लार्ड डलहौजी ने की थी। हिमाचल प्रदेश में स्थित यह शहर अपनी खूबसूरती के कारण देशभर के प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इनके साथ ही चले आते हैं वे लोग जो गर्मी से बचने के लिये या फिर अपने व्यस्त समय में से थोडा समय निकालकर शान्ति से आराम करना चाहते हैं।

हिमालय की पीर पंजाल श्रंखला के सामने पांच पर्वतों पर फैले इस शहर के कई कोनों से आप रावी, ब्यास और चेनाब नदियों को बहते देख सकते हैं। पर्वतों की एक के बाद बढती श्रंखला, बर्फ से ढकी चोटियां, हरे-भरे पेड ही तो यहां के मुख्य आकर्षण हैं और ये सभी भव्य दृश्य आप पांगी वैली से देख सकते हैं। पांगी वैली ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिये खास जगह है।

तो चलो, चलते हैं डलहौजी। पर आइये, पहले यहां के बारे में थोडा और जान लें:

डलहौजी हिमाचल प्रदेश की धौलाधार श्रंखला में पठानकोट से 80 किलोमीटर दूर स्थित है, जिसकी ऊंचाई लगभग 5000 फीट से 7800 फीट है।

यहां का मौसम अक्सर सुहाना रहता है। गर्मियों में यहां का तापमान 12 डिग्री से 25 डिग्री तक तथा सर्दियों में 2 डिग्री से 10 डिग्री तक रहता है। सर्दियों में तो यहां बर्फ भी पडती है। तो क्या आप डलहौजी घूमने के लिये तैयार हैं? आओ चलें।

डलहौजी पहुंचने के संसाधन

डलहौजी जाने के लिये आप रेल या सडक यातायात से जा सकते हैं।

रेल यात्रा

रेल यात्री पठानकोट तक के लिये झेलम एक्सप्रेस, दिल्ली जम्मू एक्सप्रेस या हिमाचल एक्सप्रेस से जा सकते हैं। फिर वहां से टैक्सी, कार या बस द्वारा दो घण्टों में आप डलहौजी पहुंच जायेंगे।

सडक यातायात

हिमाचल प्रदेश टूरिज्म द्वारा शिमला और धर्मशाला से डलहौजी के लिये डीलक्स बसें चलती हैं। हालांकि यहां की सडकें चौडी नहीं हैं फिर भी ड्राइव कंफर्टेबल है।

अब जब हम डलहौजी पहुंच ही गये हैं तो पहले होटल में थोडा आराम कर लें और रिफ्रेश हो जायें।

रहने योग्य स्थल: डलहौजी में रहने के लिये आप निम्न होटलों में रह सकते हैं- एलप्स हालिडे रिसार्ट, ग्राण्ड व्यू होटल, होटल माउण्ट व्यू आदि।

आराम बहुत हो गया, अब आइये शहर घूमने निकलते हैं।

शहर कैसे घूमें: शहर घूमने के लिये टैक्सी ही सबसे सही साधन है।

रोचक स्थल

गर्म सडक: ओक, सिडार और पाइन के पेडों की कतारों से सजी यह सडक डलहौजी में सैर करने के लिये सबसे सही है। इसके रास्ते में आपको पत्थरों पर बने तिब्बती देवी-देवताओं के रंगीन चित्र दिखाई देंगे। इस रास्ते पर कार आदि चलाना मना है।

पंच पुला: गांधी चौके से थोडी दूरी पर पंच पुला वह जगह है, जहां बहती धारा पर पांच पुल मिलकर बने हैं। यहां पर विख्यात आजादी के मतवाले सुभाष चंद्र बोस और अजीत सिंह की याद में एक मैमोरियल भी बना है।

कालाटोप वन्यजीव सेंचुरी: गांधी चौक से 8.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस सेंचुरी में बार्किंग डियर, काले भालू आदि जैसे जानवरों का संरक्षण किया जाता है। यहां पर कई तरह के पक्षी भी पाये जाते हैं।

देनकुण्ड चोटी: गांधी चौक से 9 किलोमीटर दूर का दृश्य तो सच में मनभावन है। यहां से आप उत्तरी भारत की प्रमुख नदियां- चेनाब, रावी और ब्यास आसानी से देख सकते हैं।

सतधारा: इस स्थान पर सात विभिन्न धाराएं बहती हैं। इस पानी में अभ्रक धातु के तत्व भी मौजूद हैं।

सुभाष बावली: जीपीओ स्क्वायर स्प्रिंग से 1.6 किलोमीटर दूर इस बावली से आप बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं। घूमते-घूमते आप थक गये होंगे। तो आओ, थोडी पेट-पूजा हो जाये।

खाना कहां से खायें

-मुस्लिम सदर बाजार में शुद्ध हिमाचली खाना उपलब्ध है।

-सुभाष चौक के प्रीत पैलेस में मुगलई, कश्मीरी तथा चीनी व्यंजन उपलब्ध हैं।

-गांधी चौक के क्वालिटी रेस्तरां में भी अनेक व्यंजन उपलब्ध हैं।

-सुभाष चौक के मोती महल में बार सहित दक्षिण भारतीय व्यंजन परोसे जाते हैं।

अब घूमने निकले ही हैं तो थोडी शापिंग भी कर लें।

शापिंग कहां से करें

गर्म शालें खरीदने के लिये ठण्डी सडक पर स्थित हिमाचल हैण्डलूम एम्पोरियम एक अच्छी जगह है। तिब्बती चटाइयों को गांधी चौक से 3 किलोमीटर दूर खजियार रोड पर तिब्बत हैण्डीक्राफ्ट सेंटर से आर्डर पर भी बनवाया जा सकता है। गांधी चौक की सडकों पर बहुत सी छोटी दुकानें हैं जहां पारम्परिक वस्तुएं तथा अन्य सजावटी सामान मिलता है।

चलिये अब डलहौजी के आसपास भी घूम आयें।

शहर के आसपास के दर्शनीय स्थल

खजियार: यह डलहौजी से 24 किलोमीटर दूर एक पिकनिक स्थल है। जंगलों से घिरा, हरे मैदानों के बीच एक छोटा सा तालाब है, जिसके चारों ओर लकडी के मकान हैं। इस शहर को अपना नाम प्राचीन गुम्बद वाला मन्दिर ‘खजिनाग’ से मिला। यहां आप घुडसवारी कर सकते हैं। यहां बस व टैक्सी हर समय मौजूद होती हैं। रात बिताने के लिये मिनी स्विस होटल है।

तो लो, हमने आपको पूरा डलहौजी शहर घुमा दिया।


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