शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

श्रीखण्ड महादेव- मनोहारी सुषमा से सराबोर

लेख: गिरधारी लाल चोपडा

संदीप पंवार के सौजन्य से

हिमाचल प्रदेश के कुछ शिखर भगवान शिव के लिये अर्पित हैं। इनमें से कई शिखरों पर शिवालय हैं तो कुछ केवल शिव सूचक रूप में विराजमान शिलाखण्ड एवं भू-भाग उपासना के पर्याय हैं। ऐसा ही एक तिलिस्मी छटा एवं सुषमा से सराबोर स्थल है- श्रीखण्ड, जहां महादेव विशाल शिलाखण्ड के रूप में श्रद्धालुओं को जीवन मुक्ति एवं आत्मिक सुख देते प्रतीत होते हैं। वास्तव में श्रीखण्ड चोटी जो महादेव की शिला से अलंकृत है, श्रीखण्ड के नाम से सुविख्यात है। श्रीखण्ड महादेव के पावन दर्शन प्राप्त करने के निमित्त प्रतिवर्ष असंख्य शिवभक्त दुर्गम रास्ते के जोखिम को भुलाकर श्रीखण्ड महादेव आते हैं।

एक जनश्रुति के अनुसार भगवान शिव ने भस्मासुर को वरदान दिया कि वह जिस किसी के सर पर हाथ रख देगा, वह भस्म हो जायेगा। वरदान प्राप्ति के बाद दानव में दुर्भावना पैदा हो गई और उसने शिव अर्धांगिनी को पाने की कुचेष्टा से शिव को ही भस्म करने की ठानी। भगवान शिव भस्मासुर से बचते हुए सुरक्षित स्थान की तलाश में भागने लगे। अंततः निरमंड के समीप देवढांक में एक गुफा में छिप गये। वहां भगवान शिव के चरणों को भस्मासुर ने पकड लिया जबकि कंदरा मार्ग से भगवान शिव का सिर श्रीखण्ड में प्रकट हुआ। सिर अर्थात शिरी (श्री) खण्ड अंश ही कालान्तर में श्रीखण्ड नाम से प्रचलित हुआ।

श्रीखण्ड पहुंचने के लिये दो मार्ग हैं- एक मार्ग जिला शिमला के उपमण्डल रामपुर के ज्यूरी नामक स्थान से गौनवी व फांचा होते हुए है और दूसरा मार्ग जिला कुल्लू के निरमंड-अरसू-जांव होते हुए है। अरसू-डीम-जांव या बागीपुल से जांव होते हुए श्रीखण्ड महादेव की यात्रा अधिक रोमांचक और कल्याणकारी है। इस मार्ग से दशमेश अखाडा निरमंड से छडी यात्रा का आयोजन भी होता है। जिला कुल्लू की ओर से श्रीखण्ड महादेव की यात्रा करने हेतु रामपुर बुशहर से बस द्वारा अरसू अथवा बागीपुल तक सहज ही पहुंचा जा सकता है। डीम अथवा बागीपुल से श्रीखण्ड यात्रा का रोमांच पैदल यात्रा से आरम्भ होता है। सिंहगाड श्रीखण्ड यात्रा का प्रथम पडाव है। यहां रात्रि ठहराव के लिये वन विभाग की कुटीर हैं, इसके अतिरिक्त यहां शिव सेवा में तन्मयता से रत श्रीखण्ड परिवार के सदस्यों द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु एक सराय का निर्माण किया गया है।

इसी सेवा दल द्वारा यहां श्रद्धालुओं के लिये निःशुल्क भोजन व जलपान प्रदान किया जाता है। अगले दिन प्रातः दूसरे पडाव भीम द्वार (भीम गुफा) की यात्रा प्रारम्भ होती है। भीम द्वार तक का मार्ग लम्बा और दुर्गम है।

भीम द्वार का सम्बन्ध महाभारत के पात्र महाबली भीम से बताया जाता है। लोक मान्यता के अनुसार बकासुर की नरभक्षी वृत्ति से ब्राह्मणों के गांव जांव में आतंक फैल गया था। इसी बीच पाण्डव अज्ञातवास काल में हिमालय के दुर्गम स्थलों की ओर प्रवृत्त हुए। इसी यात्रा के दौरान भीम द्वार के समीप महाबली भीम ने बकासुर का वध करके हिमालयवासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। यहां अभी भी बिल्कुल रक्तवर्ण का एक नाला बहता है जो इस पौराणिक घटना का साक्षी है। भीम द्वार ही श्रीखण्ड यात्रा का अंतिम पडाव है। अतः श्रद्धालु यहां से प्रातः जाकर दर्शन करके वापस भीम द्वार लौट आते हैं। भीम द्वार में भी श्रीखण्ड परिवार की ओर से लंगर का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त हिमाचल सरकार की ओर से रात्रि ठहराव हेतु यहां पर टेंट लगाये जाते हैं।

अगले दिन प्रातः तीर्थ यात्री भीम द्वार से चार किलोमीटर दूर नयन सरोवर पहुंचते हैं। नयन सरोवर एक सौम्य झील है। यहां पहुंचकर श्रद्धालु स्नान करके पुण्य अर्जित करने के साथ-साथ थकान भी मिटाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पाण्डव अपने अज्ञातवास काल में यहां रुके और उन्होंने तराशे पत्थरों से यहां की धरा को और सुन्दर बनाया। एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार यहां की सुन्दर झील का अस्तित्व माता पार्वती के अश्रुओं से हुआ माना जाता है।

नयन सरोवर के पश्चात श्रीखण्ड महादेव की यात्रा का अंतिम चरण आरम्भ होता है। नयन सरोवर से आगे चलकर लगभग दो किलोमीटर दूरी पर भीम बई स्थान आता है। यहां तराशे गये भीमकाय पत्थरों का पुंज जिसे भीमसेन द्वारा उठाये गये भार (बोझा अथवा बई) कहा जाता है, आकर्षण का केन्द्र हैं। कहा जाता है कि पाण्डव यहां भगवान शिव का भव्य मन्दिर बनाना चाहते थे पर किसी कारणवश मनोरथ पूर्ण न हो सका। भीम बई से आगे एक किलोमीटर के करीब चढाई युक्त रास्ता श्रीखण्ड महादेव की ओर जाता है। श्रीखण्ड महादेव में महादेव विशाल लिंग के रूप में विराजमान हैं। श्रीखण्ड से जुडी एक अन्य जनश्रुति यह भी है कि शिव भक्त रावण ने भगवान को प्रसन्न करने के निमित्त अपने दस सिर भगवान के चरणों में यही चढाये थे।

पिछले कुछ वर्षों से श्रीखण्ड महादेव यात्रा की ओर श्रद्धालुओं तथा प्रकृति प्रेमियों का रुझान बढा है। वास्तव में इस यात्रा की लोकप्रियता में शिव समर्पित लोगों का योगदान सराहनीय रहा है। वर्ष 1996 से श्रद्धालु व मानव सेवी लोगों का एक समूह ‘श्रीखण्ड परिवार’ आगंतुकों को सुविधा प्रदान करवाने में निष्काम भावना से जुडा है।

हालांकि 1999 से हिमाचल प्रदेश सरकार ने श्रीखण्ड यात्रा को मेले का स्वरूप प्रदान किया है लेकिन अभी तक सरकारी स्तर पर किये गये प्रयास पर्याप्त प्रतीत नहीं होते।

हिमालय के अंचल में स्थित हिमाचल में शैवमत का प्राधान्य इस बात का प्रमाण है कि भगवान शिव हिमालय में वास करने वाले हैं। वास्तव में हिमालय क्षेत्र भगवान शिव की ससुराल है, अतः यहां का जनमानस श्रद्धाभाव से शिव के प्रति समर्पित है। फिर शिव तो आशुतोष हैं, इन्हें रिझाना अत्यन्त सरल है। वास्तव में शिव ही सर्वस्व और सम्पूर्ण हैं।


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