शुक्रवार, जुलाई 15, 2011

श्रीखण्ड- अप्सरा पर मोहित होना भस्मासुर को महंगा पडा

लेख: राजेश शर्मा

संदीप पंवार के सौजन्य से

देवी-देवताओं की भूमि हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक धार्मिक स्थल का पौराणिक महत्व है। ऐसा ही एक धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व का स्थान है- श्रीखण्ड कैलाश। श्रीखण्ड कैलाश यात्रा बहुत ही कठिन व जोखिमपूर्ण होने के साथ-साथ बेहद रोमांचकारी तथा तन-मन को पुलकित करने वाली है। श्रीखण्ड कैलाश समुद्र तल से लगभग 18500 फुट की ऊंचाई पर जिला शिमला व कुल्लू की सीमाओं पर स्थित है। श्रीखण्ड कैलाश के दर्शनार्थ पहुंचने के दो मार्ग हैं- एक मार्ग जिला शिमला के उपमण्डल रामपुर बुशहर से करीब 25 किलोमीटर दूर ज्योरी नामक स्थान से व दूसरा मार्ग निरमंड तहसील के बागी पुल से होकर जाता है। श्रीखण्ड कैलाश यात्रा निरन्तर ख्याति प्राप्त करती जा रही है।

कहते हैं कि भगवान शिव ने भस्मासुर को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि वह जिस किसी के भी सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जायेगा। यह वरदान मिलने के बाद दुर्भावना से प्रेरित भस्मासुर ने शिव पत्नी मां पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शिव को ही भस्म करना चाहा तथा वह भगवान शिव के पीछे दौडा। भगवान शिव भस्मासुर से बचते हुए निरमंड (जिला कुल्लू) के समीप ‘देओं’ गुफा में छिप गये। तत्क्षण गुफा के द्वार पर एक मकडी ने जाला डाल दिया।

जब भस्मासुर वहां पहुंचा तो मकडी का जाला देखकर उसने यह सोचा कि इस गुफा में भगवान शिव नहीं हो सकते तथा यहीं कहीं अदृश्य हुए हैं। उधर. जब भगवान शिव को जब गुफा के अन्दर काफी समय हो गया तो तीनों लोकों में उनके बिना सभी कार्य अवरुद्ध हो गये। ऐसी स्थिति में भगवान श्री विष्णु व प्रजापति ब्रह्मा चिंतित हो उठे। जब दिव्य दृष्टि द्वारा प्रजापति ब्रह्मा को भगवान शिव की स्थिति का पता चला तो उन्होंने श्री विष्णु को भगवान शिव की सहायता के लिये भेजा।

भगवान विष्णु एक सुन्दर अप्सरा का रूप धारण कर, जहां भस्मासुर भगवान शिव की प्रतीक्षा कर रहा था, पहुंचे। उस अप्सरा के रूप-यौवन को देखकर भस्मासुर उस पर मोहित हो गया व उसे पाने की इच्छा से उसके साथ गन्धर्व विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे अप्सरा ने सशर्त स्वीकार कर लिया और तय हुआ कि भस्मासुर यदि उसे गन्धर्व नृत्य में परास्त कर दे, तभी वह भस्मासुर से विवाह करेगी। भस्मासुर ने बिना सोचे-विचारे यह शर्त स्वीकार कर ली। जब दोनों नृत्य करते हुए वर्तमान में भीम द्वार (श्रीखण्ड कैलाश) के समीप पहुंचे तो एक ऐसी ही मुद्रा में जब भस्मासुर ने अपना हाथ अपने ही सिर पर रखा तो वह उसी समय भस्म हो गया।

उसके उपरान्त श्री विष्णु अपने मूल रूप में आ गये तथा प्रजापति ब्रह्मा भी अन्य देवताओं के साथ वहां पहुंच गये। उन्होंने भगवान शिव को गुफा से बाहर आने के लिये पुकारा, तब भगवान शिव ने कहा कि मैं गुफा द्वार से बाहर नहीं आ सकता, क्योंकि गुफा द्वार पर मकडी ने अपना जाला बुनकर अपना घर बना लिया है। तब प्रजापति ब्रह्मा ने भगवान शिव को गुफा में स्थित ऊपरी दरार से बाहर आने को कहा। भगवान शिव जिस दरार से बाहर आये, उसे ही श्रीखण्ड कैलाश कहा जाता है।

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार, श्रीखण्ड कैलाश में मां पार्वती ने तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त किया था, जो शिला रूप में स्थापित हो गये। बताते हैं कि भगवान शिव की प्रतीक इस पत्थर की शिला (श्रीखण्ड) पर बर्फ नहीं टिकती है, जबकि वर्ष भर चारों ओर बर्फ ही बर्फ रहती है। श्रीखण्ड कैलाश की यात्रा जुलाई महीने से लेकर पंद्रह अगस्त तक की जा सकती है। श्रीखण्ड कैलाश की पवित्र छडी यात्रा महन्त दशनामी पंचजूना अखाडा निरमण्ड के नेतृत्व में एकादशी के दिन, जोकि आमतौर पर जुलाई का महीना होता है, से शुरू होकर विभिन्न पडावों से होते हुए गुरू पूर्णिमा के दिन श्रीखण्ड कैलाश के दर्शन करती है। इस यात्रा के रास्ते के दौरान स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा यात्रियों के लिये लंगर व ठहरने के लिये तम्बुओं का प्रबन्ध भी किया जाता है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस यात्रा को मान्यता प्रदान की हुई है।

इस यात्रा के दौरान अनेक नयनाभिराम व दर्शनीय स्थल आते हैं जिनमें जौ, सिंह गार्ड, कुन्स, काली घाटी, काली मन्दिर, भीम द्वार, खूनी नाला व नयन सरोवर आदि हैं। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों में महाबली भीम ने यहां बकासुर का वध किया था। यहां लाल रंग के बहते पानी को इस घटना का साक्षी माना जाता है। श्रीखण्ड कैलाश के समीप पडे बडे-बडे ईंटनुमा पत्थरों के बारे में बताते हैं कि इनसे पांडवों ने स्वर्ग के लिये सीढियों का निर्माण शुरू किया था परन्तु सुबह होने पर इसे बन्द कर दिया था। भीम द्वार, श्रीखण्ड कैलाश यात्रा का अन्तिम पडाव है। यहां से लगभग चार किलोमीटर दूरी पर नयन सरोवर है, जहां यात्री स्नान करने के पश्चात श्रीखण्ड कैलाश के दर्शनों के लिये आगे बढते हैं। श्रद्धालुगण भगवान शिव की धूप-दीप, बिल्व पत्र आदि से पूजा अर्चना करते हैं। नारियल तथा सूखे मेवे चढाते हैं तथा भगवान शिव से अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। श्रीखण्ड कैलाश की शिला में स्थित दरार में कई लोग सिक्के भी डालते हैं। श्रीखण्ड कैलाश के आसपास का पूरा पर्वतीय क्षेत्र बिल्कुल सुनसान व वनस्पति विहीन है।


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