शनिवार, जुलाई 16, 2011

जादुई नजारे सोलंग के

परमजीत कौर बेदी

बहुत कम ऐसे पर्वतीय स्थल होते हैं जो न केवल हर मौसम में सैलानियों को लुभाते हैं बल्कि रोमांच प्रेमी भी सालभर वहां खिंचे चले आते हैं। हिमाचल प्रदेश की मनाली घाटी में स्थित सोलंग नाला भी ऐसा ही एक स्थल है जो सैलानियों, साहसिक पर्यटन के शौकीनों, रोमांचक क्रीडा प्रेमियों और फिल्मी हस्तियों को बार-बार यहां आने का न्योता देता दिखता है। हर मौसम में सोलंग का मिजाज देखते ही बनता है। गर्मियों में जहां सोलंग में बिछी हरियाली सहसा ही मन मोह लेती है, वही सर्दियों में यहां पहुंचकर ऐसा लगता है जैसे हम बर्फ के साम्राज्य में आ गये हों।

सोलंग नाले के इर्द-गिर्द बसी है सोलंग घाटी। यह नाला ब्यास नदी का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। नाले के शीर्ष पर ब्यास कुण्ड स्थित है। कुल्लू-मनाली घाटियों की ढलानें और उफनती नदियां वैसे भी रोमांच प्रेमियों के लिये स्वर्ग से कम नहीं है। लेकिन सोलंग घाटी ने सर्वाधिक ख्याति अर्जित करके देश-विदेश के पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम अंकित करवाया है। गर्मियों में जहां सोलंग में आकाश में उडने के साहसिक खेलों का आयोजन होता है, वहीं सर्दियों में यहां की बर्फानी ढलानों पर फिसलता रोमांच देखते ही बनता है।

हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे स्थल हैं जहां विभिन्न साहसिक खेलों का आयोजन किया जाता है लेकिन सोलंग एकमात्र ऐसा स्थल है जहां आकाश में उडने के रोमांचक खेलों से लेकर हिमानी क्रीडाओं तक का आयोजन होता है। यहां कई बार राष्ट्रीय शीतकालीन खेल आयोजित हो चुके हैं। फ्रांस या जापान की तरह सोलंग की ढलानों को विशेष रूप से स्कीइंग के लिये तैयार नहीं किया गया बल्कि यहां की ढलानें स्कीइंग के लिये दुनिया की बेहतरीन प्राकृतिक ढलानों में शुमार की जाती हैं। मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान तो 1961 से यहां स्कीइंग का प्रशिक्षण दे रहा है और यहां के कई युवक-युवतियों ने इस संस्थान से स्कीइंग का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है। डिक्की डोलमा और राधा देवी जैसी एवरेस्ट विजेता युवतियों ने भी सोलंग की बर्फीली ढलानों पर ही प्राथमिक प्रशिक्षण लिया था।

हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत मनाली नगर से सोलंग की दूरी महज 13 किलोमीटर है। समुद्र तल से 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सोलंग में प्रकृति की अनुपम छटा देखते ही बनती है। रई, तोच्च और खनोर के फरफराते पेड वातावरण में संगीत घोलते प्रतीत होते हैं। पृष्ठभूमि में चांदी से चमकते खूबसूरत पहाड हैं, जिनका सौन्दर्य शाम की लालिमा में और भी निखर जाता है। मनाली से सोलंग टैक्सी, कार या दुपहिया वाहन द्वारा भी पहुंचा जा सकता है और सोलंग के सौन्दर्य को आत्मसात करके शाम को आप बडे आराम से मनाली पहुंच सकते हैं। रुकना चाहें तो यहां कुछ रिजॉर्ट भी हैं।

सर्दियों में जब यहां की पर्वत श्रंखलाएं बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाती हैं तो यहां का नजारा ही बदल जाता है। जिधर निगाह दौडायें, बर्फ ही बर्फ। जमीन पर जमी बर्फ, दरख्तों पर लदी बर्फ, नदी-नालों पर तैरती बर्फ और पहाडों के सीने से लिपटी बर्फ- बडा अदभुत मोहक दृश्य होता है। आप इस बर्फ को कैमरे में भी कैद कर सकते हैं, इसे मुट्ठियों में भरकर हवा में भी उछाल सकते हैं और बर्फ में दूर तक फिसलते चले जाने का रोमांच भी ले सकते हैं। सोलंग घाटी जब बर्फ से श्रंगार करती है तो इसका नैसर्गिक रूप देखते ही बनता है और इसी रूप के मोहपाश में बंधकर सैलानी यहां से जाने का नाम नहीं लेते। नवविवाहित जोडे यही मधुमास की स्मृतियां संजोते हैं और रोमांच प्रेमी यहां के ढलानों से फिसलकर गुदगुदाती बर्फ का स्पर्श पाते हैं।

गर्मियों में तो सोलंग का रूप ही बदला होता है... सर्दियों से एकदम अलग। सोलंग में बिछी हरियाली सहसा ही मन मोह लेती है। दूर-दूर तक हरियावल जंगल, पेड-पौधे और वनस्पति धरती पर हरा गलीचा बिछा होने का भ्रम पैदा करती हैं। घाटी में जब रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं तो एक मादक सुगंध चहुं ओर बिखर जाती है। प्रकृति कितने रूप बदलती है, यह सोलंग आकर पता चलता है। मस्त हवा के झोंके, पंछियों का कलरव और दूर कहीं झरने का कोलाहल समूचे परिवेश को जादुई बना देता है। गर्मियों में भी यहां सैलानियों की खूब रेल-पेल रहती है और लाहौल घाटी जाने वाले सैलानी यहां जरूर पडाव डालते हैं। सिर्फ सैलानी ही नहीं, फिल्मी दुनिया के लोग भी सोलंग के सम्मोहन में बंधे हैं और शूटिंग के लिये उन्होंने सोलंग को कश्मीर का पर्याय माना है। कई चर्चित फिल्मों की शूटिंग सोलंग की खूबसूरत वादियों में हो चुकी है। स्थानीय निवासियों के लिये सोलंग ‘फिल्म नगरी’ बनता जा रहा है।

यूनेस्को ने 1977 में सोलंग नाला को सम्भावित यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में प्रस्तावित किया था। लेकिन उस समय उस पर आगे कुछ नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि आज मानवीय दखल से इस समूचे इलाके की पारिस्थितिकी संकट में है।

सोलंग में पर्यटकों की आमद को देखते हुए कई दुकानें व स्टाल लगने शुरू हो गये हैं। हिमाचली वेशभूषा में आप यहां फोटो भी खिंचवा सकते हैं। सोलंग में एक बार की गई यात्रा की मोहक स्मृतियां ताउम्र के लिये मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 2 जून 2009 को प्रकाशित हुआ था।


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