लेख: प्रकाश पुरोहित ‘जयदीप’
संदीप पंवार के सौजन्य से
हिमाचल प्रदेश हमेशा से ही अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां पर पर्यटकों को अपनी ओर खींचते ऐसे अनेक स्थान हैं। इन्हीं में से एक है- नाहन से मात्र 37 किलोमीटर दूर रेणुका झील। मखमली घास, लताओं के कुंज, मन्दिर, नदी और एक खूबसूरत ताल- यही है रेणुका झील।
हिमाचल प्रदेश के पूर्वी छोर में स्थित है सिरमौर जनपद के मुख्यालय नाहन से 37 किलोमीटर दूर स्थित एक स्वर्गिक सौन्दर्य स्थली रेणुका झील। तीन किलोमीटर लम्बी व आधा किलोमीटर चौडी ताजे मीठे जल व झिलमिलाती मछलियों से लबालब भरी। चारों ओर घने हरे-भरे जंगल, मखमली घास, लताओं के कुंज, फूलों की बहार, मन्दिर, आश्रम, बंगले और दिलकश चिडियाघर... पास ही बहती गिरी नदी और एक खूबसूरत ताल। यानी जहां निगाह डालिये वहां एक अनाम जादुई आकर्षण व सौन्दर्य। पूरे दिन चिडियों की चहचाहट से भरी यह शान्त मनोरम खूबसूरत जगह मानव को आत्मविभोर कर देती है। यहां खाने रहने की सभी आधुनिक सुविधाएं हैं और देश के किसी भी हिस्से से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
नाहन और पौण्टा साहिब दो ऐसे नगर हैं जहां से एक घण्टे में मोटर मार्ग द्वारा रेणुका झील पहुंचा जाता है। नाहन शहर दिल्ली, चण्डीगढ, अमृतसर, यमुनानगर, सहारनपुर, पटियाला व शिमला आदि शहरों से मोटर मार्ग से सीधा जुडा है। नाहन से आठ किलोमीटर आगे एक मार्ग उत्तर की ओर निकलता है। यही से रेणुका के लिये रास्ता जाता है। यह मार्ग उतार-चढाव से भरपूर पर सुन्दर दृश्यों से भरा हुआ है। सडक पक्की है।
पौण्टा साहिब से जो सडक रेणुका को जाती है वह खस्ताहाल है। बरसात के दिनों में यह सडक यातायात के लिये बन्द हो जाती है। देहरादून से पौण्टा साहिब की दूरी 45 किलोमीटर है। नाहन से प्रतिदिन चार-पांच स्थानीय बसें रेणुका के लिये जाती हैं।
समुद्र तल से 2200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है रेणुका झील। न ज्यादा गर्मी न ज्यादा ठण्ड। थोडा सा दिसम्बर से फरवरी तक का समय कष्टकारी है क्योंकि इस दौरान शीत प्रकोप जारी रहता है।
रेणुका झील का अपना विशिष्ट धार्मिक महत्व है। स्थानीय बाशिंदों की असाधारण श्रद्धास्थली भी है यह। परशुराम की माता रेणुका देवी के नाम पर ही झील का नामकरण हुआ है। प्राचीन धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि माता रेणुका ने यही निवास व तप किया था। इस स्थान के बारे में कई धार्मिक किंवदंतियां व कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस क्षेत्र में बहुत समय पहले सहस्त्रबाहु राजा का आतंक व्याप्त था। अहंकारी, अत्याचारी व सत्तालोलुप सहस्त्रबाहु ने एक दिन चुपके से रेणुका माता के पति जमदग्नि की हत्या कर दी। रेणुका माता की ओर बढने पर रेणुका भागी भागी नीचे तलहटी में पहुंची। देखते ही देखते धरती फट गई और रेणुका उसमें समा गई। चारों तरफ पानी ही पानी भर गया और बन गई रेणुका झील।
रेणुका झील की परिक्रमा रोचक, आनन्दकारी व याद रखने लायक है। झील के किनारे जामुन, खजूर, वट, पीपल, कचनार, गूलर, पापुलस के पेडों की छटा अदभुत है। बडी बडी असंख्य मछलियां झील में अठखेलियां करती रहती हैं। झील के सीने पर लहरों के लय-सुर के साथ साथ फिसलना है तो यहां आधुनिक नावें भी उपलब्ध हैं। झील के किनारे-किनारे चलते हुए नाना भांति के पक्षियों का शोर मंत्रमुग्ध कर देता है।
झील की परिक्रमा का एक और अनूठा निराला आकर्षण है- विस्तृत चिडियाघर। हिमाचल सरकार ने यहां अलग-अलग बाडों में बारहसिंघे, हिरण, कद्दावर भालू, बाघ, शेर आदि जानवर रखे हैं। पर्यटक जंगल के इन अनमोल प्राणियों को बहुत नजदीक और कभी कभी तो सामने देखकर अपनी जिज्ञासाओं को शान्त करता है। एक अलग प्रकोष्ठ में मोर, बत्तख व अनेक किस्म के पक्षियों को रखा गया है। यह चिडियाघर वन, खेती व संरक्षण विभाग, हिमाचल प्रदेश द्वारा संचालित है।
झील के किनारे हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम का एक आकर्षक कैफे हाउस व टूरिस्ट विश्राम गृह है। चार सेट का खूब सजा-धजा एक डाक बंगला भी यहां है। रेणुका विकास बोर्ड द्वारा निर्मित कुब्जा पैवेलियन भी आवास हेतु उपलब्ध है। पैवेलियन में एक बहुत ही बडा हाल, डारमेट्री व कमरे हैं। गोष्ठियों, सेमीनार व रंगारंग कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिये कुब्जा कला मंच भी बनाया गया है। कुछ यात्री झील किनारे बने महात्माओं के आश्रम में रहते हैं। इन्हीं आश्रमों के निकट महिला व पुरुष स्नान घाट बने हुए हैं।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने विशेष रुचि लेकर 1984 में इस स्थली के विकास हेतु रेणुका विकास बोर्ड की स्थापना की थी। बोर्ड ने यहां मन्दिर जीर्णोद्धार व सौन्दर्यीकरण के लिये कई कार्य किये हैं।
दीपावली के ठीक दस दिन बाद में यहां एक वृहद मेला जुटता है। दूर-दराज के इलाकों की भव्य रथयात्राएं व पालकियां पहुंचती हैं। लोग झील में स्नान व परिक्रमा करते हैं। पर्यटक मेले से अखरोट, शहद, अदरक व काष्ठ निर्मित खिलौने ले जाते हैं।
झील के पास ही एक और सुरम्य लघु झील है- परशुराम ताल। ताल के किनारे परशुराम का मन्दिर व आसपास कई देवालय हैं। झील से 10 किलोमीटर दूर तपे का टीला है। कुछ पास में ही एक झरना है। झील के किनारे एक जगह माता रेणुका की भव्य प्रतिमा दर्शनीय है।
पढ़ कर बहुत ही मनोहारी लगा ! कभी आया तो जरुर कुच करूंगा
जवाब देंहटाएंaanand aaya padh kar.
जवाब देंहटाएंbhai 1 photo bhi hoti to maja aa jata
जवाब देंहटाएंWaah biraj
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