यात्रा वृत्तान्त: बालकृष्ण गुप्त
संदीप पंवार के सौजन्य से
हिमालय को भारत माता का मुकुट कहा जाता है। इस उपाधि की सत्यता का अनुभव तब होता है जब कोई हिमालय की गोद में विचरण करे। यूं तो हिमालय घाटी में दर्जनों स्थान अदभुत और अप्रतिम हैं, पर चैल की बात ही दूसरी है। शिमला की पहाडियों में स्थित चैल आज एक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है। चैल के लिये मेरी यात्रा दिल्ली से शुरू होती है। सडक मार्ग पर पानीपत, करनाल, अम्बाला और कालका की लगभग पांच घण्टे में 300 किलोमीटर की दूरी तय करता है। कालका से शिमला रोड पर यात्रा प्रारम्भ होती है। और तब हम 87 किलोमीटर सोलन, कण्डाघाट होकर चैल पहुंचते हैं। कण्डाघाट से दो रास्ते हैं- एक शिमला जाता है दूसरा चैल। यहां से चैल 29 किलोमीटर है।
कण्डाघाट से चलते ही हम जब लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर होते हैं, तब ऐसा लगता है कि हमारा चैल का चुनाव गलत हो गया। यह क्षेत्र जंगल की आग का शिकार था। चीड के वृक्ष जिनमें एक बैरोजा जैसा पदार्थ निकलता है जो जंगल में लगी सूखी घास की आग को पकडता है। उससे बडे बडे वृक्ष नीचे के हिस्से में या तो जले हुए नजर आ रहे थे या उनकी पत्तियां सूख रही थीं। हम आगे बढ रहे थे। चैल जब 10 किलोमीटर रह गया तब हम 6000 फीट से ऊपर थे। अब चारों ओर देवदार, ओक के वृक्षों का घना जंगल शुरू हो गया। सडक के किनारे सेब, खुमानी, चैरी आदि के हरे भरे वृक्ष, थकान दूर करने वाली ठण्डी हवा का संगीत जैसा स्वर आनन्द विभोर करने लगा।
अब हम चैल में थे। छोटा सा बाजार, यात्रियों के ठहरने के लिये छोटे-बडे होटल और रेस्टोरेण्ट दिखाई दिये। यहां शिमला, कुफरी, सोलन से आने वाली बसों के ठहरने का एक चौक है। चैल का अपना एक इतिहास है। महाराजा पटियाला भूपेंद्र सिंह पर यह प्रतिबन्ध लगा कि वह (समर कैपिटल ऑफ ब्रिटिश इन इण्डिया) भारतवर्ष में ब्रिटिश शासकों के लिये गर्मियों की राजधानी शिमला में प्रवेश नहीं कर सकते। तब उन्होंने अपने लिये गर्मियों की राजधानी बनाने के लिये चैल को चुना। महाराजा पटियाला का शिमला में प्रवेश निषेध का कारण आज भी शिमला में स्कैण्डल प्वाइण्ट है। कहा जाता है कि इस स्थान से महाराजा पटियाला ने उस समय के तत्कालीन वायसराय के परिवार की लडकी को किडनैप किया था।
चैल से शिमला 45 किलोमीटर है। किन्तु रास्ते से शिमला की बत्तियां दीवाली जैसी नजर आती हैं। चैल की ऊंचाई 7000 फीट थी जो ब्रिटिश शासन के अधिकार में शिमला से अधिक थी। महाराजा पटियाला द्वारा यहां रहने के लिये एक भव्य भवन का निर्माण किया गया। महाराजा को क्रिकेट एवं पोलो का शौक था। महाराजा द्वारा पहाडों की सबसे ऊंची चोटी पर जिसकी ऊंचाई लगभग 8000 फीट है, एक विशाल क्रिकेट मैदान का निर्माण सन 1892 में किया गया था। यह मैदान दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर है। विशाल मैदान के चारों ओर ऊंची बाउण्ड्री है। मैदान के नीचे सैनिक स्कूल है। सैनिक स्कूल में 70 प्रतिशत मिलिट्री में कार्यरत व्यक्तियों के बच्चे, 20 प्रतिशत मिलिट्री अधिकारी एवं 10 प्रतिशत बाहर के बच्चों के लिये स्थान है। मिलिट्री स्कूल में भारतवर्ष के सभी प्रान्तों के बच्चे पढते हैं। इनके खेलने का मैदान क्रिकेट ग्राउण्ड ही है।
महाराजा पटियाला द्वारा 1891 में निर्मित महाराजा पैलेस व इसके साथ 75 एकड में फैली पहाडियां हिमाचल टूरिज्म विभाग ने सन 1972 में खरीद ली थीं। महाराजा पैलेस होटल में बदल गया। पैलेस होटल की सुन्दर साज सज्जा की गई। होटल में महाराजा सूट, महारानी सूट, प्रिंस सूट, प्रिंसेस सूट, सुपर डीलक्स सूट, डीलक्स रूम, सेमी डीलक्स रूम एवं रेगुलर रूम यात्रियों के निवास के लिये हैं। साथ ही लग्जरी राजगढ काटेज है जिसमें चार आलीशान पृथक पृथक सूट हैं। राजगढ काटेज कभी महाराजा के उन अतिथियों के ठहरने के लिये बनी थी जो महाराजा से मिलने आते थे। चैल पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या इतनी अधिक है कि बिना आरक्षण प्राप्त किये यात्री को भारी कठिनाई का सामना करना पडता है।
आरक्षण न होने के कारण मुझे चैल पहुंचकर भारी कठिनाई का सामना करना पडा। पैलेस होटल में कोई रूम नहीं था, सभी आने जाने वाले यात्रियों की लम्बे समय तक बुकिंग थी। मुझे चैल मार्केट में बने मोनाल होटल में एक सूट मिला- सूट में दो डबल बेडरूम व एक ड्राइंग रूम था। मैं व मेरे साथी सुरेश चंद्र जिन्दल सपत्नीक थे। हम लोग मोनाल होटल में एक सप्ताह रहे। मोनाल होटल के मालिक श्री दलजीत सिंह मिलिट्री स्कूल से अवकाश प्राप्त हैं। वह तीन विषयों में एम. ए. हैं। उनकी विनम्रता की सराहना करने के लिये शब्द छोटे पडेंगे। इसके पश्चात हमें होटल पैलेस में दो लॉज हटकर मिल गईं।
इस पहाड पर पांच साधारण लॉज हट्स व एक हनीमून डेन है। हनीमून हट अस्पताल आकर्षक है। हनीमून डेन के दरवाजे पर लिखा है ‘लव इज दा हैप्पीएस्ट फीलिंग दौर कुड एवर हैप्पन टू एनी वन, लव इज एटरनल।’ हनीमून डेन के सामने खाली घुमावदार चौक है जहां गाडियां खडी होती हैं। सामने एक झूला है, इस पर बैठकर जहां दो हजार फीट नीचे कुछ छोटे-छोटे गांव, खेत नजर आते हैं। वही सामने पहाडों की चोटियां एक के पीछे एक काफी दूर तक हैं। उनके पश्चात बर्फ से ढकी पहाडियां नजर आती हैं। हनीमून हट आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न है। हट में बाथरूम, किचिन, साथ में एक बडा हॉल है। हॉल में पर्शियन कालीन दर्शनीय पलंग, आदमकद छह बडे शीशे, छत में दो बडे झाड व ब्रिटिश महिलाओं के आकर्षक चित्र हनीमून डेन के नाम को धन्य करते हैं।
शाम को अंधेरा होते ही हनीमून हट के सामने शिमला की दीवाली जैसी रोशनी अत्यन्त आकर्षक लगती है। कहा जाता है कि शिमला में प्रवेश निषेध के पश्चात महाराजा पटियाला इसी स्थान पर अपनी महफिल शिमला के ठीक सामने जमाते थे। महाराजा का चैल में आज भी लॉसम पैलेस है जिसमें राजमाता महेंद्र कौर रहती हैं। मैंने उनसे भेंट करने का सौभाग्य भी प्राप्त किया। राजमाता का सम्बन्ध यूपी से उस समय रहा था जब श्री सम्पूर्णानंद मुख्यमन्त्री थे। राजमाता पण्डित जवाहरलाल के समय में राज्य सभा की मेम्बर भी रही हैं। राजमाता जहां आकर्षक व्यक्तित्व की धनी हैं, वही अतिथि के प्रति उनका व्यवहार अत्यन्त सराहनीय है। मैंने उन्हें एक पुस्तक बाबा पृथ्वीसिंह आजाद की जीवनी जब भेंट की तो वह बहुत प्रसन्न हुईं।
ब्लॉसम पैलेस से आगे चैल का एक सबसे ऊंचा नंगा पहाड है। वहां तक गाडी जाने का रास्ता है। इसकी ऊंचाई से एक तरफ उत्तराखण्ड के देहरादून, मसूरी की पहाडियां, दूसरी ओर चीन की सरहद, पीछे बर्फ से ढके पहाड एवं चारों ओर तीन-चार हजार फुट तक की नीचाई में पगडण्डियों वाले छोटे-छोटे गांव, हरे भरे खेत इतने आकर्षक लगते हैं कि लगातार देखने पर भी तृप्ति नहीं होती।
ये अब तक नैनीताल, मसूरी, शिमला, कुल्लू, मनाली एवं पहाडों पर बसे अनेक तीर्थ स्थलों में गया है। चैल में रहने के पश्चात मैंने यह अनुभव किया कि इतनी घनी देवदार और ओक के वृक्षों की हरियाली एवं शान्तिपूर्ण वातावरण जो धूल, धुआं, कोलाहल एवं भीड से मुक्त है, मैंने कहीं नहीं पाया। चैल की दूरी भी दिल्ली से उतनी ही है जितनी मसूरी की है। चैल में आध्यात्मिक वातावरण से ओतप्रोत स्वामी प्रकाशानन्द का एक आश्रम, चैल से एक किलोमीटर दूर सिकोडी ग्राम में है। इस आश्रम की शान्ति, ठहरने की उत्तम व्यवस्था एवं स्वामी जी के स्नेहिल व्यवहार को किसी भी एकान्त एवं शान्ति प्रेमी के लिये आदर्श कहा जा सकता है।
पहाडों में स्केटिंग के लिये प्रसिद्ध कुफरी चैल से 30 किलोमीटर है। यह रास्ता अत्यन्त रमणीक है। चैल से डेढ किलोमीटर दूर सबसे ऊंचे पहाड पर सिद्ध बाबा का मन्दिर है। आसपास के निवासियों की इस मन्दिर के प्रति अपार श्रद्धा है। चैल एक ऐसा पर्यटक स्थल है जहां बार-बार जाने को जी चाहे- इतना ही कह सकता हूं।
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