मंगलवार, जुलाई 12, 2011

नीमराना फोर्ट- आज मैं ऊपर, आसमां नीचे...

यात्रा वृत्तान्त: उपेंद्र स्वामी

रोमांच की तलाश इंसान को कहां कहां नहीं ले जाती, फिर नीमराना फोर्ट तो दिल्ली से महज सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल जनवरी में जब से फ्लाइंग फोक्स के बारे में सुना था, तब से उसमें हाथ आजमाने का बहुत मन था क्योंकि वह न केवल भारत का अपनी तरह का अकेला जिप टूर है बल्कि इसकी एक जिप लाइन दक्षिण एशिया में सबसे लम्बी और समूचे एशिया में दूसरी सबसे बडी है।

जैसी शुरू में मेरे मन में थी, वैसी ही आपके मन में सामान्य जिज्ञासा हो सकती है कि आखिर यह जिप टूर है क्या बला? जिप टूर दरअसल वह सफर है जो लोहे के तारों पर हुक से बंधे होकर (लटककर) किया जाता है। आपने तस्वीरों, फिल्मों या हकीकत में लोगों को नदियां पार करते देखा होगा। ठीक उसी तरह अब यह जिपलाइन किसी जगह को नये अंदाज व नई निगाह से देखने का रोमांच है। पहाड पर आप एक जगह से दूसरी जगह तक का सफर इसी तार के जरिये करते हैं।

दिल्ली से सटी अरावली की पहाडियों में राजस्थान की सीमा में घुसते ही स्थित नीमराना फोर्ट भारत के इस अकेले जिपलाइन टूर का मेजबान है। फ्लाइंग फोक्स इसे संचालित करने वाली कम्पनी है। फ्लाइंग फोक्स के मेहमान के तौर पर जब मैं नीमराना फोर्ट में ही फ्लाइंग फोक्स के दफ्तर पहुंचा तो वहां मौजूद इंस्ट्रक्टरों ने बडी गर्मजोशी से स्वागत किया। कपडों, उपकरण व सामान की आरम्भिक तैयारी के बाद हम पहाडी की चोटी की तरफ चले। हमें पहले ही सीट हारनेस पहना दिया गया था। सीट हारनेस मजबूत बेल्टों का वह जाल होता है जो कमर पर पहन लिया जाता है। शरीर का वजन उठाने में सक्षम यह हारनेस कमरपेटी व जांघ पर कस जाती है, उसमें हुक (जिन्हें कैराबिनर्स कहा जाता है) लगे होते हैं जो शरीर को किसी तार या रस्सी से लटका देते हैं। रॉक क्लाइंबिंग, रैपलिंग, रिवर क्रासिंग और पर्वतारोहण में भी इसी तरह के उपकरण काम आते हैं।

तो ये कमरपेटियां बांधे हुए हमने पहाडी पर चढना शुरू किया। हमारे साथ दो कुशल व काबिल अंग्रेज इंस्ट्रक्टर थे। (आप चाहें तो आपको हिन्दीभाषी इंस्ट्रक्टर भी मिल सकते हैं) लगभग बीस मिनट की चढाई के बाद हम चोटी पर आ पहुंचे। वहां से नीमराना फोर्ट पैलेस, जो खुद पहाडी काटकर बनाया गया था, छोटा सा नजर आता है। चोटी पर एक प्लेटफार्म बना हुआ था, यह पहली जिपलाइन की शुरूआत थी। यही पर एक छोटा सा हिस्सा अभ्यास और सफर की पूरी प्रक्रिया समझाने के लिये भी है। जिपिंग (इसे यही कहा जाता है) को समझने, सारे एहतियात जानने, खुद को तैयार करने में 15-20 मिनट का वक्त लग गया। इंस्ट्रक्टर उस इलाके के इतिहास की भी जानकारी देते हैं। बहरहाल, इसके बाद शुरू हुआ असली रोमांच।

दो इंस्ट्रक्टरों में से एक पहले आया, वह दूसरे प्वाइण्ट पर पहुंचने के बाद वॉकी-टॉकी से पीछे वाले इंस्ट्रक्टर को सब ठीक-ठाक होने की सूचना देता है, तभी बाकी लोग जाना शुरू करते हैं। चूंकि सफर पहाडी की चोटियों पर होता है, इसलिये मौसम का भी ध्यान रखा जाता है। तेज बारिश, हवा या बिजली में जिप टूर को रोकना पडता है। आगे जाने वाला इंस्ट्रक्टर हवा के असर को भी भांप लेता है। हालांकि पहले प्वाइंट पर अभ्यास के दौरान हमें यह बताया गया था कि हवा पीछे से या सामने से आये तो कैसे अपनी गति को नियन्त्रित रखना है, कैसे गति बढायें या ब्रेक लगायें, हवा तिरछी बह रही हो तो कैसे अपना सन्तुलन बनाये रखना है, इंस्ट्रक्टर के इशारे दूर से कैसे समझे जाते हैं, वगैरह वगैरह।

जिपिंग की पूरी प्रक्रिया मैकेनिकल है यानी लोहे के तार के झोल से शरीर को मिलने वाली गति से हम एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक पहुंचते हैं। खींचने की कोई मशीनी प्रक्रिया नहीं है। ऐसे में यदि हम किसी बिन्दु से थोडा पीछे रह जाते हैं तो सेना के जवानों की तरह अपने हाथों से खींच-खींचकर खुद को प्लेतफार्म तक पहुंचाते हैं। तो इंस्ट्रक्टर के ओके कहने के बाद मैं आगे बढा। हारनेस से दो बेल्ट बंधी होती हैं- एक में पुली लगी होती है, जिसके जरिये हम रस्सी पर बढते हैं और दूसरे में अतिरिक्त सुरक्षा के लिये कैराबिनर। हाथों में मजबूत दस्ताने होते हैं। जितनी भी घबराहट होती है वह पहले जिप के लिये शुरू करते वक्त होती है, क्योंकि अनुभव नया होता है। उसके बाद सिर्फ मजेदार रोमांच है। पहली जिप में थोडी हवा मिली क्योंकि वह पहाडी की चोटी पर ही एक सिरे से दूसरे सिरे तक है। उसकी लम्बाई खासी है (350 मीटर) लेकिन सतह से ऊंचाई ज्यादा नहीं है। इसलिये जिपिंग के पहले अनुभव के लिये बिल्कुल दुरुस्त है। फ्लाइंग फोक्स ने इन जिप लाइनों के नाम भी बडे रोचक रखे हैं, जैसे कि पहली जिपलाइन का नाम है- टू किला स्लैमर।

पहली जिप जहां उतारती है, वहां से दूसरे प्लेटफार्म तक थोडा नीचे पहाडी पर पैदल उतरना होता है। दूसरी जिप (वेयर ईगल्स डेयर) सबसे लम्बी है, लगभग चार सौ मीटर। नीचे अरावली पहाडियों के बीच नीमराना फोर्ट और कस्बे के विहंगम और खूबसूरत नजारे के लिये सबसे उपयुक्त। पहली जिप के बाद मन से डर तो भाग चुका था। मजा आने लगा था। मैं अपने भीतर के फोटोग्राफर को रोक न पाया और बीच में रुककर अपने कैमरे से नीचे नीमराना फोर्ट की तस्वीरें खींचने लगा। यह यकीन हो चला था कि बेल्ट मुझे तार से लटकाये रखने में खासी सक्षम है। इसलिये एक हाथ से बेल्ट को पकडकर अपना सन्तुलन बनाये रखा तो दूसरे हाथ से कैमरे को थामकर क्लिक करने लगा।

एक परिंदे की नजर से नीचे का वह हवाई नजारा अदभुत था। हालांकि उसका खामियाजा मैंने यह भुगता कि तीसरे प्लेटफार्म तक मुझे अपनी सारी ताकत लगाकर खुद को खींचकर ले जाना पडा। तीसरी जिप (गुडबॉय मिस्टर बॉण्ड) छोटी सी है, महज नब्बे मीटर, बाकी जिपलाइनों की चमक में आप इसे भूल ही जायेंगे। चौथी जिपलाइन (हाई एज अ काइट) भी पहली और दूसरी की तुलना में छोटी, ढाई सौ मीटर ही है लेकिन यह जिपलाइन सतह से सबसे ऊपर (बीच में लगभग सौ फुट से ज्यादा) है। पांचवी जिपलाइन (बिग बी) 175 मीटर ही लम्बी है लेकिन यह पांचों में सबसे तेज है, इतनी कि आखिरी प्लेटफार्म तक पहुंचते-पहुंचते हो सकता है कि आपको सामने इंस्ट्रक्टर यह इशारा करता नजर आये कि अपनी गति धीमी करें और आपको दस्ताने पहने हाथ से तार को रगडकर ब्रेक लगाना पडे। आखिरी प्लेटफार्म महल की ऊपरी चहारदीवारी पर ही है। इस तरह पांचवी जिप हमें फिर से महल में पहुंचा गई। सफर जहां से शुरू हुआ था, लगभग दो घण्टे में वहीं खत्म हुआ। दिल में रोमांच, नीचे जमीन और सैंकडों फुट ऊपर परिंदों की तरह हवा में तार से लटका मैं। आजमाइये, मेरी ही तरह आपके लिये भी यह यादगार अनुभव रहेगा।

पूरी हिफाजत

यह तो अफसोस की बात है ही कि भारत में रोमांचक खेलों के नियमन में कोई नियम-कायदे बने हुए नहीं हैं। लेकिन फ्लाइंग फोक्स की जिपिंग इस तरह के रोमांच के लिये नवीनतम यूरोपीय मानकों पर खरी उतरती है। पूरे टूर की डिजाइन व निर्माण स्विस इंजीनियरों ने किया है। सभी उपकरण भी स्विट्जरलैण्ड व फ्रांस से आयातित हैं। संचालन का काम इस क्षेत्र में 15 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले ब्रिटिश विशेषज्ञों के हाथ में है। रोज हर उपकरण की बारीकी से जांच होती है। फ्लाइंग फोक्स का कहना है कि तार तो इतना मजबूत है कि अगर इतनी बडी हारनेस मिल जाये तो हम हाथी तक को जिप करा सकते हैं। नीमराना में डेढ हजार से ज्यादा लोग अब तक इस रोमांच का मजा ले चुके हैं। फ्लाइंग फोक्स का लक्ष्य इस साल के लिये पांच हजार का है। अपनी जमी-जमाई नौकरियां छोडकर नीमराना में इस रोमांच की नींव रखने वाले ब्रिटेन के रिचर्ड मैककेलम और जोनाथन वाल्टर अब इस अनुभव को भारत के बाकी हिस्सों में भी ले जाने की योजना बना रहे हैं।

जिप, जैप, जू......

इसके लिये नीमराना फोर्ट पैलेस पहुंचना होता है। फ्लाइंग फोक्स का बेस यहीं है। नीमराना कस्बा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर जयपुर जाते हुए दिल्ली से 125 किलोमीटर दूर है। फोर्ट हाइवे से अन्दर लगभग तीन किलोमीटर जाकर है।

14वीं सदी का नीमराना फोर्ट पैलेस एक हैरीटेज होटल है और हैरीटेज होटल के रूप में संचालित हो रही देश की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। दिल्ली व आसपास के लोगों के लिये यह एक वीकएण्ड डेस्टिनेशन के रूप में या महज दिनभर की सैर व पिकनिक के लिये भी लोकप्रिय है।

दस साल से ज्यादा उम्र, 4 फुट 7 इंच से ज्यादा लम्बाई, 43 इंच से ऊपर कमर और 127 किलो से कम वजन वाला कोई भी व्यक्ति यहां जिपिंग कर सकता है।

किराया है वयस्क के लिये 1495 रुपये और बच्चों के लिये 1195 रुपये। लेकिन एडवांस बुकिंग कराने पर इसमें 15 फीसदी तक छूट मिल जाती है। इसके अलावा समूह और परिवारों के लिये टिकटों में अलग से रियायत है। एक खास बात यह भी है कि फ्लाइंग फोक्स का टिकट लेने पर नीमराना फोर्ट पैलेस में प्रवेश का शुल्क नहीं लगता, जो आमतौर पर 12 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिये 500 रुपये है (केवल होटल में नहीं ठहरने वालों के लिये)। आप सीधे नीमराना जाकर भी टिकट ले सकते हैं लेकिन तब सीट मिलने की गारण्टी नहीं रहती।

फोर्ट से रवाना होने के बाद पांचों जिपलाइन करके वापस पहुंचने में लगभग दो से ढाई घण्टे का समय लगता है। बहुत कुछ हवा, ग्रुप की संख्या और हिम्मत पर भी निर्भर करता है। एक ग्रुप में अधिकतम दस लोग होते हैं।
सामान्य दिनों में जिपिंग टूर सवेरे 9, 10 व 11 बजे और दोपहर बाद 1, 2 व 3 बजे शुरू होते हैं।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 2 जून 2009 को प्रकाशित हुआ था।


आप भी अपने यात्रा वृत्तान्त और पत्र-पत्रिकाओं से यात्रा लेख भेज सकते हैं। भेजने के लिये neerajjaatji@gmail.com का इस्तेमाल करें। नियम व शर्तों के लिये यहां क्लिक करें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें