शनिवार, जून 11, 2011

सामोद पैलेस

लेख: उपेन्द्र स्वामी

सामोद का साढे चार सौ साल पुराना इतिहास जयपुर के आमेर राजघराने से जुडा है। इसे आमेर की सबसे सम्पन्न रियासतों में माना जाता था। देवीगढ की ही तरह सामोद पैलेस भी अरावली की पहाडियों में एक शानदार इतिहास का प्रतीक बना खडा है। शुरू के कई साल तो यह राजपूतों का मजबूत दुर्ग रहा, लेकिन 19वीं सदी की शुरूआत में इसे वो वैभव मिलना शुरू हुआ जिसके लिये वो जाना जाता है। राजपूत-मुगल शैली के शिल्प का यह अनुपम उदाहरण है और देवीगढ की तुलना में भीतर से यह महल का एहसास ज्यादा देता है। इसकी एक वजह यह भी है कि इसका मूल ढांचा ज्यादा सलामत रहा। पैलेस के भीतर की दीवारों की कलाकारी कुछ नई है कुछ पुरानी लेकिन इतनी खूबसूरत है कि चमत्कृत कर देने वाली है। शिल्प व चित्रकारी की विविधता यहां मंत्रमुग्ध कर देने वाली है। यह बात सामोद पैलेस पर भी लागू होती है कि यहां आप महज ठहरने नहीं बल्कि इतिहास के एक दौर की विलासिता का हिस्सा बनने के लिये जाते हैं। यह 1987 में हैरीटेज रिसॉर्ट के रूप में लोगों के लिये खुल गया।

किसी हैरीटेज रिसॉर्ट की तमाम खूबियां तो खैर यहां हैं ही- स्वीमिंग पूल, बच्चों के लिये अलग पूल, जैक्वॉजी, फिटनेस सेंटर, स्टीम-सौना, आयुर्वेदिक मसाज सेंटर, वगैरह वगैरह। घुडसवारी, ऊंट सवारी, जीप सफारी के भी यहां इंतजाम हैं। हर शाम होने वाला सांस्कृतिक कार्यक्रम आपको राजस्थान की लोककलाओं, संगीत व संस्कृति से रू-ब-रू कराता है। महज खालिस राजपूत शैली में अलग-अलग मंजिलों पर अलग-अलग दालानों में बना हुआ है। कडाके की गर्मी में ये दालान ठण्डी हवा के झोंके देते हैं तो सर्दियों की दोपहरी में गुनगुनी धूप से ये नहाये रहते हैं। हर मंजिल का हर दालान हरियाली से भरपूर है। सुल्तान महल की दीवारें भारतीय मिथकों की तस्वीरों से सजी हैं। शीशमहल के शीशे आपको चमत्कृत कर देंगे। पहाडियों से घिरा स्वीमिंग पूल दरबार हॉल के सामने है और संगमरमर से बना है।

मुख्य रेस्तरां के अलावा ये सारे इलाके कमरों के बाहर फुरसत के पल बिताने का बेहद रंगीन माहौल तैयार करते हैं। शाम की मद्धिम रोशनी में जाम के दो घूंट हलक से नीचे उतारते हुए या लजीज राजस्थानी पकवानों का स्वाद चखते हुए आप खुद को एक दूसरी ही दुनिया में महसूस करने लगेंगे। सामोद पैलेस में 42 आलीशान कमरे हैं। इनमें 15 डीलक्स स्यूट और तीन रॉयल स्यूट शामिल हैं। हर कमरा अपनी सजावट व आकार में खास है। स्थानीय ब्लॉक पेंटिंग की छवि हर चीज में मिल जायेगी जो राजसी आभास को और बढाती है। यहां के कमरों में आपको सुन्दर नक्काशीदार लकडी का काम मिलेगा।

सामोद जयपुर से 42 किलोमीटर दूर और दिल्ली से 264 किलोमीटर दूर है। दिल्ली से चलकर राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर शाहपुरा से थोडा आगे चंदवाजी नाम का कस्बा है। यहीं से सामोद के लिये रास्ता अलग होता है। जयपुर से चौमूं होते हुए सामोद आया जा सकता है। जयपुर तो हर तरह से देश के सभी प्रमुख शहरों से जुडा हुआ है ही।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 31 अगस्त 2008 को प्रकाशित हुआ था।

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