लेख: प्रेम नाथ नाग
मध्य प्रदेश में पचमढी बडे सहज से पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां बेहद शान्त माहौल में भीड-भाड से दूर आप सुकून के कुछ पल बिता सकते हैं। उत्तर भारत के बाकी पर्यटन स्थलों की तुलना में यहां लोग कम दिखेंगे, शोर-शराबा भी कम रहेगा, लूट-खसोट भी नहीं होगी और घूमना-फिरना आपकी जेब के अनुकूल ही रहेगा। करने को बहुत कुछ न भी हो तो भी यहां का मौसम और माहौल दिल को ताजगी से भर देने के लिये काफी है।
मध्य प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में पचमढी सर्वाधिक लोकप्रिय है। राज्य की राजधानी भोपाल से 200 किलोमीटर दूर और विभिन्न हिल स्टेशनों से अलहदा इस स्थान पर प्राकृतिक खूबसूरती तो कदम-कदम पर बिखरी हुई है ही, बाकी जगहों की तुलना में यह है भी शान्त और साफ-सुथरा। पूरे सालभर यहां मौसम सुहावना रहता है, केवल वर्षा ऋतु में घूमने में कुछ अडचने आने की सम्भावनाएं रहती हैं। अनेक दर्शनीय स्थल, वनस्पतियां और वन्य प्राणी यहां की धरोहर हैं। गर्मियों में यहां का न्यूनतम तापमान 24 डिग्री सेल्शियस और सर्दियों में 8.3 डिग्री सेल्शियस तक पहुंच जाता है। समुद्र तल से पचमढी की ऊंचाई 3500 फीट है।
पचमढी इसलिये भी एक महत्वपूर्ण पहाडी स्थल है कि आज भी यहां व्यावसायिक गतिविधियां नगण्य हैं। न कोई शहरी ताना-बाना और न ही कोई तनाव। इस इलाके के मूल निवासी आदिवासी हैं। अत्यधिक कम जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में कभी-कभी दूर-दूर कोई मानवीय हलचल दिखाई नहीं देती। केवल शहर में गतिविधियां होती नजर आ रही हैं। चूंकि सारा क्षेत्र सैनिक छावनी के अन्तर्गत आता है, इसलिये यहां जमीन-जायदाद की खरीद-फरोख्त नहीं होती। थलसेना की शिक्षा शाखा आर्मी एजुकेशन कोर का मुख्यालय यहां है।
पचमढी में पर्यटकों का वर्ष भर आना-जाना लगा रहता है। दर्शनीय स्थानों को घूमने के अलावा पर्यटक यहां आदिवासियों द्वारा अपने कुटीर उद्योगों में बनाई गई वस्तुएं और जंगलों से लाई गई शिलाजीत और जडी-बूटियां और शहद आदि भी खरीदते हैं। आदिवासियों का कहना है कि उन्हें बीहड पहाडी क्षेत्रों में शिलाजीत ढूंढने में अपनी कोशिशों के अतिरिक्त बंदरों से भी काफी मदद मिलती है। आदिवासी जब इन बंदरों को शिलाजीत ढूंढते और खाते देखते हैं तो खुद भी वहां पहुंच जाते हैं। देश के विभिन्न भागों से स्कूली छात्र-छात्राएं भी पचमढी में बहुत आते हैं।
पचमढी पहुंचने से लगभग 15 किलोमीटर पहले हल्की-हल्की चढाई शुरू हो जाती है। खूबसूरत परिन्दे और जंगली जानवर यदा-कदा दिखाई दे जाते हैं क्योंकि चारों ओर जंगल ही जंगल है। घने जंगलों से लकदक सतपुडा पहाडियों की इस श्रंखला में राष्ट्रीय वन्यप्राणी उद्यान भी है जहां भारतीय बाघ के संरक्षण की योजनाओं पर कार्य चल रहा है। पचमढी के जंगल, पर्वत, झरने, गहरी खाईयां आदि हर सैलानी को आकर्षित करते हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद यहां विश्राम के लिये आते थे। उनकी वह विश्राम स्थली राजेंद्र गिरी के नाम से आज जानी जाती है।
क्या घूमें
पर्यटन की दृष्टि से घूमने लायक इलाका लगभग 1500 वर्ग किलोमीटर है।
पांडव गुफा: बताया जाता है कि पचमढी से दो किलोमीटर दूर इस स्थान पर पांडवों द्वारा निर्मित पांच गुफाएं हैं। पत्थरों को काटकर बनाई गई इन पांच गुफाओं के आधार पर ही आज पचमढी ने अपना नाम पाया है। गुफाएं ऊंचाई पर होने के कारण वहां से समूचे पचमढी और पर्वत श्रंखलाओं के विहंगम और सुन्दर दृश्यों को देखने का अवसर मिलता है। जटाशंकर के लिये विशाल चट्टानों और पहाडी रास्ते के बीच-बीच चलकर बहुत नीचे एक गुफा तक जाना पडता है। यहां के पहाड रोमांच पैदा करते हैं। गुफा में एक प्राकृतिक शिवलिंग और शेषनाग की आकृतियां हैं। यहां लगातार पानी बहता रहता है। पचमढी और महाराष्ट्र के लोगों की आस्था के इस स्थान को शिवजी की आश्रय स्थली भी कहा जाता है। ट्रेकिंग का शौक रखने वाले इस गुफा से ऊपर की ओर बढकर और एक-डेढ घण्टा चलने के उपरान्त आदिवासियों के गांव बडकाक्षार ‘स्थानीय भाषा में बदकाक्षार’ में पहुंचकर वहां के जीवन का अनुभव कर सकते हैं।
महादेव गुफा: विशालकाय और भयावह चट्टानों के बीच बनी एक बावडी के अन्त में शिवलिंग के अतिरिक्त ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतिमाएं हैं। चट्टानों से बारह मास पानी रिसता रहता है जिससे गुफा में एक बडा शीतल जलकुण्ड बन गया है। नागपंचमी और शिवरात्रि पर यहां बडा मेला लगता है और भक्तगण बडी संख्या में महाराष्ट्र से आते हैं।
गुप्त महादेव: महादेव गुफा से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर 25-30 फुट लम्बी और संकरी एक गुफा है जिसमें एक समय पर एक ही व्यक्ति आ-जा सकता है। गुफा के अन्त में कुछ खुला स्थान है जहां एक शिवलिंग और गणेश की मूर्ति है।
पौरागढ: यहां पर्वत शिखर पर बना शिव मन्दिर है। ऊपर तक पहुंचने के लिये लगभग बारह सौ सीढियां चढनी पडती हैं। मन्नत पूरी होने पर यहां भक्तगण त्रिशूल चढाते हैं। इस ऊंचाई से चारों ओर का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है।
नागद्वार: नागोपासक आदिवासियों की श्रद्धा का प्रतीक यह स्थान अत्यन्त रमणीक है। यहां भी शिवलिंग है। इस स्थान के लिये काफी पैदल चलना पडता है। गाइड लेना उचित रहता है। प्रकृति प्रेमियों की हर इच्छा यहां पूर्ण होती है। हरियाली, झरने और वन्य क्षेत्र के अन्य आकर्षण- सभी कुछ देखने को मिलता है।
हांडी खोह: यहां पहाडों के बीच बेहद गहरी खाई है जिसका अंतिम छोर जंगल के ऊंचे-ऊंचे पेडों के कारण दिखाई नहीं देता। इसे देखकर शरीर में रोमांच भरी सिहरन पैदा होती है।
प्रियदर्शनी-सुषमासार-प्रतिध्वनि: नाम से ही साफ हो जाता है कि प्राकृतिक सौंदर्य निहारने के लिये प्रियदर्शनी और सुषमासार स्थल और पहाडों में शब्दों की गूंज सुनने के लिये प्रतिध्वनि नामक स्थान प्रसिद्ध हैं।
राजेंद्र गिरी: भारत के प्रथम राष्ट्रपति विश्राम के लिये समय निकालकर पचमढी आते थे। उन्हीं की याद में इस स्थान को एक उद्यान के रूप में विकसित किया गया है।
धूपगढ: सूर्यास्त के मनोरम दृश्य को देखने के लिये पर्यटक धूपगढ जाते हैं।
रीछगढ: यहां तीन मुंह की एक रहस्यमयी गुफा है जो सुरंगनुमा है। इसमें रोशनी लेकर जाना उचित रहता है। सुरंग के अन्त में गुफा का मुंह खुला है। मान्यता है कि यहां कभी जंगली जानवर, विशेषकर रीछ रहा करते थे।
फांसी खोह: पिपरिया-पचमढी मार्ग पर जब हम पचमढी की ओर चलते हैं तो पचमढी से कुछ पहले यह स्थान आता है। कहते हैं कि विदेशी शासक ऐसी बडी गहरी खाइयों को फांसी देने के लिये प्रयोग करते थे। इसी से इनका यह नाम पडा।
कल-कल झरने: बी फाल, उचेस फाल, अप्सरा विहार, रजत प्रपात, रम्य कुण्ड, संगम आदि अत्यन्त रमणीक स्थल हैं जहां पर्यटक घण्टों अपना समय व्यतीत करते हैं, फिर भी मन नहीं भरता। एक सुन्दर झील भी है जिसमें नौका भ्रमण किया जाता है।
वानिकी संग्रहालय: अंग्रेज शासकों ने पचमढी में उपलब्ध जडी-बूटियों, वनस्पतियों और वनों के महत्व को बडी गहराई से समझा था। इसके अतिरिक्त सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन जे फोरसीथ नामक सैनिक अधिकारी को भेजा था। उसने यहां वनों, वन्य जीवन व वनस्पतियों को बखूबी समझा। उसके ठहरने के स्थान बायसन लॉज में ही आज वानिकी संग्रहालय है।
शैल चित्र: भ्रांति मीर और द्रोपदी खड्ड में आदि मानवों द्वारा प्राकृतिक गुफाओं में बनाये गये शैल चित्र हैं जो ईसा से कोई पांच से आठ सौ वर्ष पूर्व के बने हैं। हालांकि यहां के शुरूआती भित्तिचित्र दस हजार साल पुराने बताये जाते हैं। इनसे इस इलाके में भी प्राचीन सभ्यता के अस्तित्व के चिह्न मिलते हैं।
राष्ट्रीय उद्यान: पचपमढी मार्ग पर सतपुडा राष्ट्रीय उद्यान का प्रथम द्वार आता है। प्राकृतिक निधि और वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिये इस पार्क की स्थापना 1981 में हुई थी। इस उद्यान में अनेक आदिवासी गांव हैं। प्रथम द्वार से नीमद्यान नामक गांव लगभग 20 किलोमीटर दूर है। अधिकतर आदिवासी गांव विकासशील गतिविधियों और सभ्यता से दूर वन्य प्राणी अभयारण्य क्षेत्र में हैं। उद्यान में जाने के लिये संचालक के कार्यालय से अनुमति लेनी पडती है। अभयारण्य में घूमने के लिये वाहन भी उपलब्ध हो जाते हैं।
बाघ, तेंदुआ, रीछ, नीलगाय, जंगली भैंसा, सांभर, हिरण, खरगोश, उडने वाली गिलहरी आदि उद्यान के मुख्य प्राणी हैं। पक्षी भी कई भांति के दिखाई देते हैं। कई बार कुछ कारणों से उद्यान बन्द कर दिया जाता है। लिहाजा जाने से पहले पूरी जानकारी जुटा लेना ठीक रहेगा। मार्च 1999 में पचमढी क्षेत्र में सतपुडा पर्वत श्रंखला को जैवरक्षित क्षेत्र ‘बायोस्फीयर रिजर्व’ घोषित किया गया ताकि यहां पर उपलब्ध दुर्लभ वनस्पतियों को सुरक्षित रखा जा सके। महादेव पहाडियों के नाम से भी जानी जाने वाली पचमढी की पहाडियों में बसे आदिवासियों को संगठित कर तांत्या टोपे ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला भडकाई थी। तो ऐसी है हमारी पचमढी।
एक नजर में
1. हवाई या रेल मार्ग से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचें। भोपाल से पचमढी सडक द्वारा 200 किलोमीटर दूर है। पचमढी के लिये सबसे समीप रेलवे स्टेशन मुम्बई-हावडा मुख्य रेलमार्ग (बरास्ता इलाहाबाद) पर पिपरिया है। पिपरिया से पचमढी लगभग 53 किलोमीटर है। पिपरिया से पचमढी के लिये जीपें चलती हैं। कारें भी किराये पर उपलब्ध हैं। सीधे भोपाल से बसें और अन्य वाहन उपलब्ध हैं। आसपास घूमने के लिये भी जीपें मिल जाती हैं।
2. ठहरने के लिये सस्ते और अच्छे होटल उपलब्ध हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन के ही सात होटल यहां हैं जिनमें 890 रुपये से लेकर 4190 रुपये तक के कमरे आपको मिल जायेंगे। हर होटल एक से बढकर एक खूबसूरत लोकेशन पर है। न्यूनतम तापमान ग्रीष्मकाल में 24 डिग्री सेल्शियस और शीतकाल में 8 डिग्री सेल्शियस रहता है।
यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 दिसम्बर 2008 को प्रकाशित हुआ था।
neeraji ji aapko desh bhar ke vibhinn parytan sthalon se parichit karvane ke liye dhanyvad.......
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जवाब देंहटाएंमठारदेव महादेव भोपाली_छोटा महादेव
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जवाब देंहटाएंमहाकाल भक्त-RAVINDRA MANKAR
हटाएंमक्का मे जो काबा है वो हि मक्केश्वर शिवलिंग है ।जो राजा रावण ने रामजी से युध्र्द मे विजयी होने के लिए भगवान शिव जी से लेकर गये था।आज वो शिवलिंग हज के रूप मे है।
हटाएंमक्केश्वर शिवलिंक सऊदी अरब मक्का मे है जो जहाँ हिन्दुओ का प्राचिन तीर्थ था और आज इस्लाम उसे हजे अस्वद के रूप मे पुजन करवा रहा है|
हटाएंहजे अस्वद ही मक्केश्वर शिवलिंग है|
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जवाब देंहटाएंsawangi athner -शिव धाम सावँगी_भवानी मन्दिर सावँगी_हनुमान मन्दिर सावँगी_शिव धाम सावँगी
जवाब देंहटाएंभवानी माँ शक्तिपीठ सावँगी आठनेर-बजरंग दल सावँगी आठनेर _जय महाकाल
हटाएंravindra mankar_सभी शिव भक्तो से निवेदन है कि आप भगवान शिव भक्त परशुराम जी की जन्मस्थली जानापाव जरुर जाये|...इन्दौर से महू और इससे 30कि.मी दुर_जय भोलेबाबा
जवाब देंहटाएंशिव मन्दिर सावँगी आठनेर_जय महाकाल_यहाँ प्रतिवर्ष शिव महापुराण का पाठयकिया जाता है|
जवाब देंहटाएंमाँ भवानी शक्तिपीठ सावँगी आठनेर-JAI MAA BHAVANI SHAKTIPEETH
जवाब देंहटाएंजय माँ भवानी_सताक्षी जी माँ भगवती के भारतीय उपमहाद्वीप पर 52 शक्तिपीठ है| पाकिस्तान मे हिंगलाज देवी और लंका मे माँ शंकरी शक्तिपीठ है|
हटाएंमाँ भवानी शक्तिपीठ सावँगी आठनेर-JAI MAA BHAVANI SHAKTIPEETH
जवाब देंहटाएंजय महाकाल
जवाब देंहटाएंजय भोलेनाथ_जय शिव शंकर_जय महाकाल
हटाएंभवानी मन्दिर बगोली बैतूल
जवाब देंहटाएंभवानी मन्दिर सावँगी आठनेर_जय माँ शेरोवाली
हटाएंmahavir mandal sawangi-गुप्तेश्वर शिव धाम आठनेर
हटाएंsawangi
जवाब देंहटाएंBajrang dal sawangi-चमत्कारी हनुमान मन्दिर जामसावँरी
जवाब देंहटाएंcool
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