लेख: सन्तोष उत्सुक
हिमालय के बेटे हिमाचल प्रदेश की गोद में बसे मणिकर्ण की सुन्दरता देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को बार-बार बुलाती है। खासतौर पर ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों, यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। हर बरस अनेक युवा स्कूटरों व मोटरसाइकिलों पर ही मणिकर्ण की यात्रा का रोमांचक अनुभव लेते हैं।
मणिकर्ण मण्डी-कुल्लू मार्ग पर कुल्लू से 10 किलोमीटर पहले बसे खूबसूरत कस्बे भुन्तर से 35 किलोमीटर है। भुन्तर में छोटे विमानों के लिये हवाई अड्डा भी है। भुन्तर में ही व्यास व पार्वती नदियों का संगम भी है। मनाली व आगे जाने वाले हवाई पर्यटक भुन्तर उतरकर सडक मार्ग से आगे जाते हैं। भुन्तर-मणिकर्ण सडक सिंगल रूट है मगर है हरा-भरा व बेहद सुन्दर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं। इसी राह पर शॉट नाम का गांव भी है, जहां कई बरस पहले बादल फटा था और पानी ने गांव को नाले में बदल दिया था।
समुद्र तल से छह हजार फुट ऊंचाई पर बसे मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ ‘कान का बाला’ (रिंग) है। यहां मन्दिर व गुरुद्वारे की विशाल इमारत से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करता है। नदी का पानी बरफ की तरह ठण्डा है। नदी की दाहिनी तरफ गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठण्डे-उबलते प्राकृतिक सन्तुलन ने वैज्ञानिकों को लम्बे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी में रेडियम है।
मणिकर्ण में बरफ खूब पडती है, मगर ठण्ड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर के अन्दर बनाये विशाल स्नानास्थल में गर्म पानी में आराम से नहा सकते हैं, जितनी देर चाहें, मगर ध्यान रहे, ज्यादा देर नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं। पुरुषों व महिलाओं के लिये अलग-अलग प्रबन्ध हैं। दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की सप्लाई की जाती है, जिसके लिये बाकायदा पाइप बिछाये गये हैं। अनेक रेस्तराओं और होटलों में यही गर्म पानी उपलब्ध है। बाजार में तिब्बती व्यवसायी छाये हुए हैं, जो तिब्बती कला व संस्कृति से जुडा सामान और विदेशी वस्तुएं खूब उपलब्ध कराते हैं। साथ-साथ विदेशी स्नैक्स व भोजन भी।
इन्हीं गर्म चश्मों में गुरुद्वारे के लंगर के लिये बडे-बडे गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिये सफेद कपडे की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदम्पत्ति इकट्ठे धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं। उन्हें लगता है कि यह उनकी जिन्दगी की पहली ओपन किचन है और सचमुच रोमांचक भी। यहां पानी इतना खौलता है कि जमीन पर पांव नहीं टिकते। यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक समान 94 डिग्री रहता है। कहते हैं कि इस पानी की चाय बनाई जाये तो आम पानी की चाय से आधी चीनी डालकर भी दो गुना मीठी हो जाती है। गुरुद्वारे की विशाल किलेनुमा इमारत में ठहरने के लिये खासी जगह है। छोटे-बडे होटल व कई निजी गेस्ट हाउस भी हैं। ठहरने के लिये तीन किलोमीटर पहले कसोल भी एक शानदार विकल्प है। मणिकर्ण में बेहतर सम्पर्क सूत्र 01902-273720 (गुरुद्वारा) है।
धार्मिक महत्व
मणिकर्ण सिखों के धार्मिक स्थलों में खास अहमियत रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरू नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरू खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरू नानक ने भाई मरदाना और पंज प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिये पंजाब से बडी संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे साल यहां दोनों वक्त लंगर चलता रहता है।
लेकिन हिन्दू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं बाढ से हुए विनाश के बाद मानव की रचना की। यहां रघुनाथ मन्दिर है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से राम की मूर्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिव का भी एक पुराना मन्दिर है। इस जगह की अहमियत का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के ज्यादातर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।
ट्रैकर्स का स्वर्ग
मणिकर्ण अन्य कई दिलकश पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है। यहां से आधा किलोमीटर दूर ब्रह्म गंगा है जहां पार्वती नदी व ब्रह्म गंगा मिलती हैं। यहां थोडी देर रुकना कुदरत से जी भर मिलना है। डेढ किलोमीटर दूर नारायणपुरी है, पांच किलोमीटर दूर राकसट है जहां रूप गंगा बहती है। यहां रूप का आशय चांदी से है। पार्वती नदी के बायीं तरफ 16 किलोमीटर दूर और 1600 मीटर की कठिन चढाई के बाद आने वाला खूबसूरत स्थल पुलगा जीवन अनुभवों में शानदार बढोतरी करता है। इसी तरह 22 किलोमीटर दूर रुद्रनाथ लगभग 8000 फुट की ऊंचाई पर बसा है और पवित्र स्थल माना जाता रहा है। यहां खुलकर बहता पानी हर पर्यटक को नया अनुभव देता है। मणिकर्ण से लगभग 25 किलोमीटर दूर दस हजार फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल सोतों के लिये जानी जाती है। यहां के पानी में भी औषधीय तत्व हैं। एक स्थल पाण्डव पुल 45 किलोमीटर दूर है। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांचप्रेमी लगभग 115 किलोमीटर दूर मानतलाई तक जा पहुंचते हैं। मानतलाई तक मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं वगैरह साथ ले जाना बेहद जरूरी है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति का साथ होना बेहद जरूरी है।
संसार की विरली, अपने किस्म की अनूठी संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाले अदभुत गांव मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15 किलोमीटर पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है। मलाणा के लिये नग्गर से होकर भी लगभग 15 किलोमीटर पैदल रास्ता है। इस तरह यह समूची पार्वती घाटी ट्रैकिंग के शौकीनों के लिये स्वर्ग के समान है।
कितने ही पर्यटकों से छूट जाता है कसोल, जोकि मणिकर्ण से तीन किलोमीटर पहले आता है। यहां पार्वती नदी के किनारे, दरख्तों के बीच बसे खुलेपन में पसरी सफेद रेत, जोकि पानी को हरी घास से जुदा करती है, यहां के नजारों को खास अलग बना देती है। यहां ठहरने के लिये हिमाचल टूरिज्म की हट्स भी हैं।
मणिकर्ण की घुमक्कडी के दौरान आकर्षक पेड-पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के मेल से रची लुभावनी पर्वत श्रंखलाओं के दृश्य मन में बस जाते हैं। प्रकृति के यहां और भी कई अनूठे रंग हैं। कहीं खूबसूरत पत्थर, पारदर्शी क्रिस्टल जिनका लुक टोपाज जैसा होता है, मिल जाते हैं तो कहीं चट्टानें अपना अलग ही आकार ले लेती हैं जैसे कि बीच सडक पर टंगी ईगल्स नोज जो दूर से हू-ब-हू किसी बाज के सिर जैसी लगती है। प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को सुन्दर ड्रिफ्टवुड्स या फिर जंगली फूल-पत्ते मिल जाते हैं, जो उनके अतिथि कक्ष का यादगार हिस्सा बन जाते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक यादों के स्थायी गवाह बने रहते हैं। हमारी जिन्दगी में ऐसी आवारगियों के कारण रोमांच व रोमांस हमेशा जीवंत रहता है क्योंकि पहाड बुलाते हैं और हम जाते रहते हैं।
एक नजर
1. समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मणिकर्ण कुल्लू से 45 किलोमीटर दूर है। भुन्तर तक राष्ट्रीय राजमार्ग है जो आगे संकरे पहाडी रास्ते में तब्दील हो जाता है।
2. 1905 में आये विनाशकारी भूकम्प के बाद इस इलाके का भूगोल काफी कुछ बदल गया है।
3. पठानकोट (285 किलोमीटर) और चण्डीगढ (258 किलोमीटर) सबसे निकट के रेल स्टेशन हैं। दिल्ली से भुन्तर के लिये रोजाना उडान भी हैं।
4. मणिकर्ण आप किसी भी मौसम में जा सकते हैं। लेकिन जनवरी में यहां बर्फ गिर सकती है। तब ठण्ड कडाके की रहती है। मार्च के बाद से मौसम थोडा अनुकूल होने लगता है। बारिश में इस इलाके का सफर जोखिमभरा हो सकता है। जाने से पहले मौसम की जानकारी जरूर कर लें।
5. पार्वती नदी में नहाने का जोखिम न उठायें। न केवल इस नदी का पानी बेतरह ठण्डा है, बल्कि वेग इतना तेज है कि माहिर से माहिर तैराक भी अपना सन्तुलन नहीं बना पाते। बहुत लोग हादसे का शिकार हो चुके हैं क्योंकि एक पल की भी असावधानी और बचा पाने की कोई गुंजाइश नहीं।
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