मंगलवार, जून 21, 2011

लाचुंग- सबसे खूबसूरत गांव

लेख: उपेन्द्र स्वामी

जो लोग बर्फीले इलाकों में नहीं रहते उनके लिये रुई के फाहों सी गिरती बर्फ में बडा रूमानी आकर्षण होता है। उत्तर सिक्किम में लाचुंग ऐसी ही जगह है, जहां जब बर्फ गिरती है तो उसका नजारा मन्त्रमुग्ध करने वाला होता है। ऊपर से युमथांग घाटी के उस समूचे इलाके की प्राकृतिक खूबसूरती मजे को कई गुना कर देती है।

सिक्किम की खूबसूरती के चर्चे तो आम हैं। लेकिन यहां हम जिक्र कर रहे हैं उस जगह का जिसे सिक्किम में सबसे खूबसूरत गांव के रूप में ख्याति हासिल है। इस गांव का नाम है लाचुंग। इसे यह दर्जा दिया था ब्रिटिश घुमक्कड जोसेफ डॉल्टन हुकर ने 1855 में प्रकाशित हुए द हिमालयन जर्नल में। लेकिन जोसेफ डाल्टन के उस तमगे के बिना भी यह गांव दिलकश है।

यह उत्तर सिक्किम में चीन की सीमा के बहुत नजदीक है। लाचुंग 9600 फुट की ऊंचाई पर लाचेन व लाचुंग नदियों के संगम पर स्थित है। ये नदियां ही आगे जाकर तीस्ता नदी में मिल जाती हैं। इतनी ऊंचाई पर ठण्ड तो बारहमासी होती है। लेकिन बर्फ गिरी हो तो यहां की खूबसूरती को नया ही आयाम मिल जाता है... जिसकी फोटो उतारकर आप अपने ड्राइंगरूम में सजा सकते हैं। इसीलिये लोग यहां सर्दी के मौसम में भी खूब आते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा सिक्किम की खास बात यह भी है कि बर्फ गिरने पर भी उत्तर का यह इलाका उतना ही सुगम रहता है। पहुंच आसान हो तो घूमने का मजा ही मजा। बर्फ से ढकी चोटियां, झरने और चांदी सी झिलमिलाती नदियां यहां आने वाले सैलानियों को स्तब्ध कर देती हैं।

लाचुंग ऐसी ही जगह है। आमतौर पर लाचुंग को युमथांग घाटी के लिये बेस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। युमथांग घाटी को पूरब का स्विट्जरलैण्ड भी कहा जाता है।

क्या करें

युमथांग जाने के अलावा भी लाचुंग में बहुत कुछ किया जा सकता है। एक अलग पहाडी की चोटी पर लाचुंग मोनेस्ट्री है। अदभुत वादी में यहां ध्यान लगाने बैठें तो मानों खुद को ही भूल जायें। लगभग 12000 फुट की ऊंचाई पर स्थित न्यिंगमापा बौद्धों की इस मोनेस्ट्री की स्थापना 1806 में हुई थी। इसके अलावा लाचुंग में हथकरघा केन्द्र है जहां स्थानीय हस्तशिल्प का जायजा लिया जा सकता है। पास ही शिंगबा रोडोडेंड्रन (बुरांश) अभयारण्य है। सात-आठ हजार फुट से अधिक की ऊंचाई वाले हिमालयी पेडों को रंग देने वाले बुरांश के पेडों को यहां बेहद नजदीक से महसूस किया जा सकता है। यहां रोडोडेंड्रन की लगभग 25 तरह की किस्में हैं।

नेपाली, लेपचा और भूटिया यहां के मूल निवासी हैं। उनकी संस्कृति से मेल-मिलाप का भी खूबसूरत मौका यहां मिलता है। कंचनजंघा नेशनल पार्क भी इसी इलाके में है। युमथांग से आगे युमे-सेमदोंग तक जाया जा सकता है। वह सडक का आखिरी सिरा है। वहां जीरो पॉइण्ट 15700 फुट से ऊपर है। उस ऊंचाई पर खडे होकर, जहां हवा भी थोडी झीनी हो जाती है, आगे का नजारा देखना एक दुर्लभ अवसर है।

कब-कैसे-कहां

लाचुंग जाने का सर्वश्रेष्ठ समय अक्टूबर से मई तक है। अप्रैल-मई में यह घाटी फूलों से लकदक दिखाई देगी तो जनवरी-फरवरी में बर्फ से आच्छादित। हर वक्त की अलग खूबसूरती है। लाचुंग सिक्किम की राजधानी गंगटोक से 117 किलोमीटर दूर है। गंगटोक से यह रास्ता जीप में पांच घण्टे में तय किया जा सकता है। लाचुंग से युमथांग घाटी 24 किलोमीटर आगे है। युमथांग तक जीपें जाती हैं। रास्ता फोदोंग, मंगन, सिंघिक व चुंगथांग होते हुए जाता है। जीपें गंगटोक से मिल जाती हैं।

ध्यान रहे कि सिक्किम से बाहर से आने वाले जीप-कार आगे का सफर तय नहीं कर सकते। इसलिये वाहन का जुगाड स्थानीय स्तर पर ही करना होगा। भारत-चीन के बीच सीमा व्यापार शुरू होने के बाद से इस इलाके में सैलानियों की आवाजाही भी बढी है। इससे पहले 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे से पहले भी लाचुंग सिक्किम व तिब्बत के बीच व्यापारिक चौकी का काम करता था। बाद में यह इलाका लम्बे समय तक आम लोगों के लिये बन्द रहा। अब सीमा पर हालात सामान्य होने के साथ ही सैलानी यहां फिर से आने लगे हैं। लिहाजा यहां कई होटल भी बने हैं। सस्ते व महंगे, दोनों तरह के होटल मिल जायेंगे। होटलों की बुकिंग गंगटोक से ही करा लें तो बेहतर होगा।

सर्दियों में सिक्किम

सिक्किम बाकी हिमालयी राज्यों की तुलना में ज्यादा शान्त है। हर साल गंगटोक में दिसम्बर में फूड एंड कल्चर फेस्टिवल होता है। जनवरी में मकर संक्रान्ति को यहां माघे संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है। तीस्ता व रिंगित नदियों के संगम पर यहां बडा मेला लगता है जिसमें बडी संख्या में स्थानीय लोग व सैलानी शामिल होते हैं। इसके अलावा अलग-अलग बौद्ध मठों के भी अपने आकर्षक धार्मिक आयोजन होते हैं।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 दिसम्बर 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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