लेख: संतोष उत्सुक
पहाडों की गोद में पसरे ठण्डे स्वच्छ निर्मल जल ने मानवीय मन व शरीर को हमेशा आमन्त्रित किया है और पनीली आगोश में टहलता जमीन का गोलमटोल हिस्सा भी हो तो अचरज भरे अदभुत अनुभव होने स्वाभाविक हैं। कुछ ऐसी ही जादुगरनी है पराशर झील। खूबसूरत ख्वाब के दो हिस्से जैसे हैं पराशर स्थल और झील। मण्डी की उत्तर दिशा में लगभग 50 किलोमीटर दूर हिमाचल की प्राकृतिक झीलों में से एक, स्वप्निल मनोरम व नयनाभिराम। किसी भी मौसम में खिंचे चित्र इतने दिलकश लगते हैं कि पराशर जाने के लिये सैलानी मन को मानो पंख लग जाते हैं। एक बार झील का सानिध्य प्राप्त हो जाये तो समझ में आता है कि हमेशा कंकरीट के जंगल में घूमने से बेहतर है कुदरत के घर भी आया जाये। हिमाचल आकर अतिरिक्त निर्मल आनन्द की चाह रखने वालों को मां प्रकृति की पराशर जैसी सौम्य गोद में अवश्य जाना चाहिये।
आप मनाली जा रहे हैं या लौट रहे हैं तो रास्ते में मण्डी रुक जाइये। यहां बिंद्राबन स्थित महाप्रसिद्ध फोटो गैलरी ‘हिमाचल दर्शन’ में कुछ देर रुककर शेष हिमाचल का दीदार भी कर लीजिये जहां आप जा नहीं सके या जा नहीं सकेंगे। समय हो तो इस विराट अनूठे प्रयास के कर्मठ रचयिता बीरबल शर्मा से मुलाकात कीजिये। मण्डी स्थित लगभग सात दर्जन पूजा स्थलों की पुरातत्वता में रमिये। स्थानीय स्वादों का लुत्फ उठाइये। जेब में समय हो तो मण्डी के पर्यटक स्थल भी घूमे जा सकते हैं।
हम बात कर रहे थे पराशर की। मण्डी से निजी वाहन में दो घण्टे से ज्यादा लग जाते हैं। भला कहां 2660 फुट (800 मीटर) पर बसा मण्डी और कहां 9100 फुट (2730 मीटर) पर पसरी पराशर झील तक की रोमांचक, मजेदार चढाई। पराशर की ओर ज्यादा पर्यटक नहीं मुडते, क्योंकि यह स्थल ज्यादा प्रचलित नहीं है। मगर एक बार वहां आवारगी कर आयें तो इस अलग दुनिया में बार-बार टहलने को मन करता है। कभी अपने साथ तो कभी मित्रों-परिचितों के साथ। पराशर की सुन्दरता हर मौसम में नये अंदाज में प्रभावित करती है। किसी भी मौसम में जा सकते हैं पराशर।
मण्डी से जोगिन्द्रनगर की सडक पर लगभग डेढ किलोमीटर दूर एक सडक दायें तरफ चढती है। यह सडक कटौला कांढी होकर बागी पहुंचती है। यहां से पैदल ट्रैक करना हो तो झील मात्र आठ किलोमीटर रह जाती है। बागी से आगे गाडी से भी जा सकते हैं। दूसरा रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग पर मण्डी से आगे बसे सुन्दर पनीले स्थल पंडोह से नोरबदार होकर पहुंचता है। तीसरा रास्ता माता हणोगी मन्दिर से बान्दही होकर है, और चौथी राह कुल्लू से लौटते समय बजौरा नामक स्थान के सैगली से बागी होकर है। मण्डी से द्रंग होकर भी कटौला कांढी बागी जा सकते हैं। पराशर पहुंचने के सभी रास्ते हरे-भरे जंगली पेड-पौधों, फल-फूल व जडी-बूटियों से भरपूर हैं और ज्यों ज्यों पराशर के नजदीक पहुंचते हैं प्रकृति का रंग-ढंग भी बदलता जाता है।
एक खूबसूरत ख्वाब सी हसीन झील पराशर और उसमें तैरता विशाल भूखण्ड। झील में तैर रही पृथ्वी के इस बेडे को स्थानीय भाषा में टाहला कहते हैं। बच्चों से बुजुर्गों तक के लिये यह अचरज है क्योंकि यह झील में इधर से उधर टहलता है। झील के किनारे आकर्षक पैगोडा शैली में निर्मित मन्दिर जिसे 14वीं शताब्दी में मण्डी रियासत के राजा बाणसेन ने बनवाया था। कला संस्कृति प्रेमी पर्यटक मन्दिर प्रांगण में बार-बार जाते हैं। कहा जाता है कि जिस स्थान पर मन्दिर है वहां ऋषि पराशर ने तपस्या की थी। पिरामिडाकार पैगोडा शैली के गिने-चुने मन्दिरों में से एक काठ निर्मित, 92 बरसों में बने, तिमंजिले मन्दिर की भव्यता अपने आप में मिसाल है। पारम्परिक निर्माण शैली में दीवारें चिनने में पत्थरों के साथ लकडी की कडियों के प्रयोग ने पूरे प्रांगण को अनूठी व नायाब कलात्मकता बख्शी है। मन्दिर के बाहरी तरफ व स्तम्भों पर की गई नक्काशी अदभुत है। इनमें उकेरे देवी-देवता, सांप, पेड-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व पशु-पक्षियों के चित्र क्षेत्रीय कारीगरी के नमूने हैं। झील के आसपास घूम रहे स्थानीय श्रद्धालु मन्दिर जाने की तैयारी में हैं। वे झील से हरी-हरी लम्बे फर्ननुमा घास की पत्तियां निकाल रहे हैं। इन्हें बर्रे कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को जर्रे। इन्हें देवता का शेष (फूल) माना जाता है। अपने पास श्रद्धा के साथ संभालकर रखा जाता है। मंदिर के अन्दर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है। मंदिर प्रांगण में श्रद्धा और परम्परा का आलम है।
पूजा कक्ष में ऋषि पराशर की पिण्डी, विष्णु-शिव व महिषासुर मर्दिनी की पाषाण प्रतिमाएं हैं। पराशर ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और मुनि शक्ति के पुत्र थे। पराशर ऋषि की पाषाण प्रतिमा में गजब का आकर्षण है। इसी प्राचीन प्रतिमा के समक्ष पुजारी आपके हाथ में चावल के कुछ दाने देता है। आप श्रद्धा से आंखें मूंदकर मनोकामना करते हैं। फिर आंखें खोलकर दाने गिनते हैं। यदि दाने तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह हैं तो मनोकामना पूरी होगी और यदि दो, चार, छह, आठ या दस हैं तो नहीं। मन्नत पूरी कर अनेक श्रद्धालु बकरु (बकरी या बकरा) की बलि मन्दिर परिसर के बाहर देते देखे जा सकते हैं। इलाके में बारिश नहीं होती तो एक पुरातन परम्परा के अनुसार पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते हैं। गणेश जी भटवाडी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर है। यह वन्दना राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज सैंकडों वर्ष बाद भी हो रही है।
झील में मछलियां भी हैं जो नन्हें पर्यटकों को खूब लुभाती हैं। पराशर झील के निकट हर बरस आषाढ की संक्रांति व भाद्रपद की कृष्णपक्ष की पंचमी को विशाल मेले लगते हैं। भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पराशर स्थल से कई किलोमीटर दूर कमांदपुरी में पराशर ऋषि का भंडार है जहां उनके पांच मोहरे हैं। यहां भी अनेक श्रद्धालु दर्शन के लिये पहुंचते हैं।
पराशर आने वाली गाडियों को झील से थोडा पहले रुकना होता है, फिर पैदल ही झील तक पहुंचा जाता है। इसी कारण झील की प्राकृतिकता बची हुई है। झील क्षेत्र एक अविस्मरणीय पिकनिक स्थल है। इस स्थल का सौंदर्य अभी एकाकी व अछूता है। याद रहे पराशर के अडोस-पडोस में चर्चित फिल्मकार विधु विनोद चोपडा ने ‘करीब’ फिल्म की काफी शूटिंग की थी। फिल्म हिट हो जाती तो ढेर से पर्यटक पराशर के करीब अवश्य पहुंचते। पराशर में कैमरा अपनी भूमिका बेहद उपयोगी तरीके से निभाता है। यहां ठहरने के लिये रेस्ट हाउस हैं। हां, खाने-पीने के लिये वांछित सामग्री, मिनरल वाटर, दवाइयां व अन्य सामान अपने साथ ले जाना बेहतर और जरूरी है।
चाहें तो रात को पराशर स्थित फारेस्ट हाउस में ठहर सकते हैं, या शाम को आराम से मण्डी लौट सकते हैं। थोडी खराब सडक या अन्य छोटी-मोटी दिक्कतों से परेशान न हों तो जीवन में थोडा रोमांच भी मजेदार है। फारेस्ट हाउस की बुकिंग के लिये (डीएफओ, मण्डी 01905- 235360 पर सम्पर्क करें) चौकीदार से अनुरोध करें तो रात को सादा खाना मिल सकता है। चौकीदार ही बावर्ची का काम भी कर देता है।
यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 27 जुलाई 2008 को प्रकाशित हुआ था।
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रोचक।
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