बुधवार, जून 15, 2011

रोहतांग में जीने का मजा

लेख: संतोष उत्सुक

आइये, इस रोमांचक यात्रा के हमसफर बनें।

मनाली से पचास किलोमीटर दूर तेरह हजार दो सौ छियासठ फुट ऊंचाई की ओर एक 52 सीटर बस जा रही है। यात्रियों से भरी बस में कुछ यात्री खडे भी हैं। दुर्गम पहाडियों को अथक मेहनत से काटकर बनाई सडक के दोनों तरफ बर्फ बिछी ही नहीं, दीवारों के रूप में खडी भी है। बर्फ को स्नोकटर की मदद से हटाया गया है ताकि आवागमन बहाल रहे। लगभग आसमान की ओर जा रहे राष्ट्रीय राजमार्ग 21 यानी इस संकरी होती सडक से यात्रा करते हुए पौराणिक व धार्मिक संदर्भ भूल जाते हैं क्योंकि प्रकृति की विराट व उन्मुक्त गोद के बीच जो होते हैं हम। बस एक मोड काटती है, पहिया खाई के मुहाने पर पहुंच जाता है। बंगाल, मद्रास, गुजरात, मुम्बई से आये लोगों और अन्य पर्यटकों की भी लगभग चीख निकल पडती है- ‘मर गये’।

‘नीचे कितना खाई है बाबा,’ ‘ओ माई गॉड, क्या रास्ता है,’ ‘दस हजार फुट से गहरा है यह खड्ड’। इन सब रोमांचक क्षणों के बीच चौकन्ना, अनुभवी बस चालक मुस्कराते हुए बस को सुरक्षित चलाता रहता है। स्थानीय यात्री मौन हैं जिनमें पर्यटकों को बर्फ पर स्कीइंग कराने व सिखाने वाले, स्नो स्कूटर पायलट, सामान ले जाने वाले- सब शामिल हैं।

बस रुकती है। लीजिये, दुनिया की सबसे ऊंची सडक पर बसा रोहतांग दर्रा आ गया। अधिकतर पर्यटक छलांग मारते बस से उतरने लगे, उन्हें लगा जैसे वह किसी और दुनिया में आ गये हैं। यह दुनिया उनके बरसों से देखे ख्वाबों का सच होता संसार है। कितनों के कानों में ‘यह इश्क हाय... बैठे बैठाये... जन्नत दिखाये... ओ रामा’ बजना शुरू हो गया है। लगभग सभी को पता चल चुका है कि इस गीत की दिलकश लोकेशन आसपास ही है। जो लोग पहली बार यहां आये हैं उन्हें रोहतांग की नयनाभिराम खूबसूरती व चहुंओर बिखरी दिलकश बर्फ ही दीवाना बना देती है।

आनन्द की उन्मुक्तता के मौसम में रोहतांग में रोमांच के साथ-साथ रोमांस को भी नये अर्थ मिलते हैं। उम्रदराज हो रहे दम्पत्ति भी खुद को युवाओं जैसा महसूस करते हैं तो युवाओं का तो क्या कहना। वे एक दूसरे को बाहों में भरते हैं, चूमते हैं, एक दूसरे को छेडते हैं, हवा भरी ट्यूब में साथ-साथ बैठकर बर्फीली ढलान पर फिसलते हुए मजा लेते हैं। एक-दूसरे के साथ अन्य पर भी गोले दागते हैं, गिरकर सम्भल कर, लिपट कर बर्फ के आगोश को जन्नत समझ लेते हैं। किसी से भी पूछ बैठते हैं कि ‘यह इश्क...’ वाली जगह कहां है। बस यही है पास में। वह लगभग दौडकर रोहतांग दर्रे के उस हिस्से में जाते हैं जहां बर्फ की कई-कई फुट ऊंची दीवारें हैं। यहां इस जन्नत में पहुंचकर इश्क फिर से परवान चढने लगता है। उम्र की गुफा में करेक्टर एक्टर होते जा रहे प्रौढ भी इस स्थल पर युवा नायक-नायिका हो जाते हैं।

रोमांस-रोमांच और निर्मल आनन्द हमेशा ही रोहतांग के वातावरण का हिस्सा रहे हैं। जिन्दगी के इन नायाब व यादगार लम्हों को कैद करने के लिये हर किस्म का कैमरा यहां बेहद सक्रिय भूमिका निभाता है। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कैमरे यानी हमारी आंखों से हमारे मन पर प्रतिबिम्बित हुई स्मृतियां जीवन का स्थायी एनर्जी बैंक हो जाया करती हैं। रोहतांग में भूख मिटाने के लिये चाय, कॉफी, चाऊमीन, ब्रैड, अण्डा, बिस्कुट, कोल्ड ड्रिंक वगैरह उपलब्ध हैं। रोहतांग में चटपटे छोले भी उपलब्ध हैं। यह सबकुछ थोडा महंगा है लेकिन इतनी ऊंचाई पर मिल रहा है यही क्या कम है। हमें उन विक्रेताओं का शुक्रगुजार होना चाहिये जो मनाली से यह सब लाते हैं, टैंट में रात काटते हैं और कितनी बार यहां आये अप्रत्याशित तूफान में फंस जाते हैं। जी हां, संसार के सबसे ऊंचे ‘मनाली-लेह मार्ग’ पर स्थित रोहतांग जोत व आसपास का मौसम कब खराब हो जाये, पता नहीं चलता। यहां मई के महीने में बर्फ गिरती देखी गई है। यहां चलने वाली बर्फीली हवाएं और तूफान कई बार कहर बरपा चुके हैं, शायद तभी इस दर्रे को तिब्बती भाषा में ‘शवों का ढेर’, संस्कृत में ‘भृगु-तुंग’ व हिन्दी में ‘मौत का मैदान’ कहते हैं। इस सडक के कठिन रख-रखाव का जिम्मा ग्रिफ (जी आर ई एफ) यानी जनरल रिजर्व इंजीनियर्स फोर्स का है जिसे बरसों से बखूबी निभाया जा रहा है।

रोहतांग में मजा लूटने के लिये स्लैज हैं जिसपर बैठकर आराम से बर्फ पर फिसलते हुए आनन्द मिलता है। स्लैज के नाम ‘मुगल ए आजम’ से लेकर लेटेस्ट हिट ‘ओम शान्ति ओम’ पर रखे जाते हैं। स्नो स्कूटर पर बैठकर फिसलना सचमुच रोंगटे खडे कर देने वाला महा रोमांचक अनुभव है। आप को आता है तो इसे आप स्वयं ही ड्राइव कर सकते हैं। स्कीइंग सिखाने वाले भी खूब हैं यहां, जिन्हें स्कीइंग का सामान उठाये ग्राहकों को पटाते, मोल-भाव करते देखा जा सकता है।

रोहतांग से आगे लाहौल-स्पीति का अनोखे रीति-रिवाजों वाला बेहद खूबसूरत क्षेत्र शुरू होता है। इस इलाके में घुमक्कडी के लिये ज्यादा समय चाहिये। दोपहर बाद जब रोहतांग से बस सडक पर उतरती है तो कई पर्यटकों के ब्लड प्रेशर की गाडी भी सरकती है। वही मोड लौटते हैं जो अब कभी कम तो कभी ज्यादा खतरनाक लगते हैं। कुछ महिला पर्यटक हथेलियों से आंखें मीचे बैठी हैं। जी भरकर मजा लेने के बाद हाथ में हाथ थामे या एक दूसरे से चिपटे बैठे नवविवाहितों को हजारों फुट गहरी खाइयों की गहराइयां मोहब्बत की गहराइयों से कम लगने लगती हैं। बच्चों को दूर खडी गाडियां खिलौना सी दिखती हैं, वे उसे गिनना शुरू कर देते हैं।

रोहतांग से मनाली के बीच मढी, गुलाबा, राहला फॉल व नेहरू कुण्ड जैसी मनमोहक जगहें भी आती हैं। इन स्थलों के आसपास अनेक टीवी सीरियलों व फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। गुलाबा से हेलीकॉप्टर में बर्फीली पहाडियों की कुछ देर की सैर के मजे लिये जा सकते हैं। रोहतांग से मनाली जाते समय रास्ते में छोटे-बडे झरने, नदी, आकर्षक पुल, गोल मटोल सफेद रंगीन पत्थर, चश्मों से बहता ठण्डा पानी, आकृतियां बदलते बादल, चहचहाते पक्षी, भीनी-भीनी खुशबू बिखेरते जंगली फूल व वृक्ष प्रकृति प्रेमियों का तन मन पुलकित कर देते हैं।

सफेद रोमांच से भरपूर रोहतांग यात्रा कर सुख से सराबोर पर्यटक मनाली पहुंचकर शॉपिंग, आवारगी, रोमांस या थकावट उतारने में व्यस्त हैं। उधर रोहतांग पर रात उदास है मगर सुबह फिर होगी और नये पर्यटक आयेंगे और कुछ पुराने भी क्योंकि रोहतांग बार-बार बुलाता है। आप कब आ रहे हैं?

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 27 अप्रैल 2008 को प्रकाशित हुआ था।

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