लेख: प्रेम नाथ नाग
प्राचीन मानव जीवन के विकास की ज्यादातर जानकारियां गुफाओं व पत्थरों पर लिखी इबारत से मिलती रही है। वे बताती रही हैं कि किस दौर में लोग क्या सोचते रहे और कैसा जीवन जीते रहे। विज्ञान ने इन इबारतों का कालखण्ड तय करने में मदद दी है। कौतूहल होता है कि कैसे प्रकृति के तमाम थपेडों के बावजूद हजारों, लाखों सालों पहले के ये चिन्ह हमें हमारे पूर्वजों के बारे में बताते हैं। भोपाल के पास भीम बैठका इसी तरह के शैल चित्रों का खजाना है जो हमें गहरे अतीत में ले जाते हैं।
मध्य प्रदेश के दर्शनीय स्थलों में भीम बैठका महत्वपूर्ण स्थान है। प्रदेश की राजधानी भोपाल से यह स्थान लगभग 55 किलोमीटर दूर है। भीम बैठका अपने शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिये प्रसिद्ध है। इनकी खोज वर्ष 1957-58 में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी। यहां 750 शैलाश्रय हैं जिनमें 500 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सुसज्जित हैं। पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। यह बहुमूल्य धरोहर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। भीम बैठका क्षेत्र में प्रवेश करते हुए हमें शिलाओं पर लिखी कई जानकारियां मिलती हैं।
यहां के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुडे हैं। चित्रों में प्रयोग किये गये खनिज रंगों में मुख्य रूप से हरा, गेरुआ, लाल और सफेद हैं। शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान एक लाख वर्ष पुराने हैं। इस प्रकार भीम बैठका के प्राचीन मानव के संज्ञानात्मक विकास का कालक्रम विश्व के अन्य प्राचीन समानांतर स्थलों से हजारों वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार से यह स्थल मानव विकास का आरम्भिक स्थान भी माना जाता है।
अन्य पुरावशेषों में प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मन्दिर के अवशेष भी यहां विद्यमान हैं। भीम बैठका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व संरक्षण भोपाल मण्डल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्वदाय स्थल घोषित किया है।
ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल भीम बैठका स्थानीय लोगों के लिये एक अच्छा-खासा पिकनिक स्पॉट बन चुका है। और हो भी क्यों न... यहां का शान्तिपूर्ण वातावरण और नैसर्गिक सौन्दर्य सभी को भाते हैं। भोपाल से चलकर औबेदुल्लागंज पहुंचने पर भीम बैठका की दूरी केवल आठ किलोमीटर रह जाती है। राष्ट्रीय राजमार्ग छोडते ही जब हम इस ओर बढते हैं तो आरम्भ में एक रेलवे लाइन लांघकर यह रास्ता पथरीली और कच्ची मिश्रित भूमि से होकर जाता है। कुछ ही देर में हरी-भरी वादियों में भीम बैठका क्षेत्र दिखाई देने लगता है। इस स्थान पर न कोई होटल है और न कोई दुकान यद्यपि पेयजल की व्यवस्था है।
एक नजर में
1. भोपाल से भीम बैठका की दूरी कुल 55 किलोमीटर है।
2. रेलगाडी द्वारा पहले देश के किसी भी स्थान से भोपाल पहुंचे। वहां से भीम बैठका के लिये समीप का रेलवे स्टेशन औबेदुल्लागंज है।
3. भोपाल से निजी वाहन, टैक्सी आदि से आना जाना सबसे उपयुक्त रहता है।
4. हवाई रास्ते से भी पहले भोपाल पहुंचे और फिर आगे का सफर तय करें।
5. जलवायु: यहां सभी ऋतुओं में जाया जा सकता है।
यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 31 अगस्त 2008 को प्रकाशित हुआ था।
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दर्शनीय स्थल।
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