बुधवार, दिसंबर 21, 2011

कलिम्पोंग- नॉर्थ-ईस्ट का फ्लॉवर ऑफ वैली

गर्मियों में घूमने का प्लान है और शिमला, मनाली, कुल्लू, दार्जीलिंग, नैनीताल जैसे हिल स्टेशनों के अलावा कहीं और पहाडी जगहों की सैर करना चाहते हैं तो कलिम्पोंग आपके लिये बेहतर विकल्प हो सकता है। हिल स्टेशन होने के अलावा कलिम्पोंग का सबसे बडा आकर्षण वहां का शान्त, साफ-सुथरा वातावरण है जो दूसरे हिल स्टेशनों में सैलानियों की भीड के बीच आपको नहीं मिलेगा। शहर की गलियों में हर तरफ मौजूद मोनेस्ट्री और चर्च कलिम्पोंग को पवित्र और आध्यात्मिक माहौल देते हैं। नायाब फूलों की खेती कलिम्पोंग की खूबसूरती में चार चांद लगाती ही है। इनके अलावा, हिमालय की तराई इसे दूसरे हिल स्टेशनों का मौसम, मिजाज और खूबियां देता है। तिब्बत के साथ व्यापार का मुख्य द्वार भी यहीं से खुलता है। तो फिर चलें, कलिम्पोंग के सुहाने सफर पर:
कलिम्पोंग पश्चिमी बंगाल के उत्तर में स्थित है। यह सिक्किम और तीस्ता जैसी नदियों को स्पर्श करता है। देश के प्रमुख हिल स्टेशन दार्जीलिंग से 50 किलोमीटर और गंगटोक से महज 80 किलोमीटर की दूरी भी इसके आकर्षण का केन्द्र है। फिर भी दूसरे पर्वतीय शहरों की तुलना में यहां सैलानियों का तांता कम ही लगा रहता है। यहां जबरदस्त ठण्ड पडती है जबकि गर्मियों का मौसम सबसे सुहाना होता है।
कलिम्पोंग शब्द की उत्पत्ति के हिसाब से देखें तो इसके कई मतलब निकलते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कलिम्पोंग का मतलब होता है, जहां जनजातीय लोग मिलते हैं और अपने खेलों को खेलते हैं। किसी का मानना है कि भूटान की एक जगह के नाम पर इसका नाम कलिम्पोंग पडा। कुछ लोगों के हिसाब से यहां पाये जाने वाले एक पेड कॉलिम के नाम से इसे कलिम्पोंग कहा गया। 18वीं सदी तक कलिम्पोंग सिक्किम के राजघराने का हिस्सा था, इसके बाद इस पर भूटानियों का कब्जा हो गया और फिर 19वीं सदी में ब्रिटिश राज का हिस्सा बन गया यह शहर।
कलिम्पोंग की खासियत
कलिम्पोंग में कई ऐसी जगहें हैं जो इसे दूसरे हिल स्टेशनों से अलग और बेहतर बनाती हैं।
मोनेस्ट्री कलिम्पोंग की खासियत हैं। यहां तीन मोनेस्ट्री मौजूद हैं- थरपा मोनेस्ट्री, तोंग्सा मोनेस्ट्री और ब्रंग गोम्पा। इनमें थरपा मोनेस्ट्री तिब्बतियों के बौद्ध मोनेस्ट्री का ही हिस्सा है, जहां से धर्मगुरू दलाई लामा जुडे हैं। तोंग्सा मोनेस्ट्री यहां का सबसे पुराना है, जिसकी स्थापना 1692 में की गई थी। ब्रंग गोम्पा की स्थापना स्वयं दलाई लामा ने 70 के दशक में की थी। यह मोनेस्ट्री तिब्बतियों की चित्रकारी के लिये मशहूर है।
कलिम्पोंग में एक से बढकर एक नायाब फूलों की खेती होती है। इनमें ग्लैडीओलस सबसे खास है। ग्लैडीओलस की खेती शहर को और भी ज्यादा खूबसूरत बनाती है। देश भर में ग्लैडीओलस फूल की खेती का 80 प्रतिशत अकेले कलिम्पोंग में ही होता है। इतना ही नहीं, यहां फूलों की कई नर्सरियां हैं जहां सैलानी चुनिन्दा और विरले फूलों का पूरा का पूरा कलेक्शन देख सकते हैं।
इनके अलावा, यहां का तीस्ता बाजार व्हाइट वाटर राफ्टिंग के लिये मशहूर है। सेरीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट, डॉक्टर ग्राहम होम और नेचर इंटरप्रिटेशन सेंटर भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र हैं।
कलिम्पोंग में और क्या?
कलिम्पोंग के आसपास कई ऐसे गांव हैं जो प्राकृतिक सौन्दर्य और अपनी अनूठी वास्तुकला से भरे हुए हैं। इनमें लावा, कैफर दर्शनीय हैं। यहां से कंचनजंघा की खूबसूरत चोटियों को काफी करीब से देख सकते हैं।
दो से तीन दिन के सफर में आप कलिम्पोंग में बेहतर तरीके से घूम सकते हैं। इसके अलावा अगर आपके पास समय है तो आसपास के इलाकों का भी नजारा जरूर लें, जैसे सिलीगुडी, गंगटोक आदि। इस रास्ते पर आप रोप-वे का भी मजा ले सकते हैं। कुछ और दिन का समय है तो भूटान बॉर्डर भी यहां से कम समय में पार किया जा सकता है, वो भी बिना वीजा के।
कैसे पहुंचें?
हवाई, ट्रेन और सडक सभी रास्तों से यहां पहुंचा जा सकता है। हवाई रास्ते से अगर आ रहे हैं तो आपका नजदीकी एयरपोर्ट सिलीगुडी पडेगा। गंगटोक और बागडोगरा से सडक के रास्ते भी कलिम्पोंग पहुंचा जा सकता है। कलिम्पोंग पहुंचने के लिये करीबी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुडी है। यह स्टेशन हावडा और दिल्ली से आने वाली कई ट्रेनों से जुडा है।
लेख: शिल्पी रंजन (राष्ट्रीय सहारा, संडे उमंग, 13 मार्च 2011)

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