चांदी सी चमचम करती बर्फ से ढकी बुलन्द पहाडों की गोदी में रचता-बसता हो एक छोटा सा दिलकश गांव, ठीक बगल में बहती हो इठलाती इक नदिया, नदिया के किसी एक किनारे पर बना हो कुदरती गर्म पानी का छोटा सा कुण्ड, आजू-बाजू हो हरा भरा उद्यान, उस उद्यान में झूलते हों एक से बढकर एक मौसमी फूल और पत्ते, आसपास ही बनी हो सैलानियों की रिहाइशी ‘हट्स’, वहीं सुबह शाम अक्सर दिखाई दे जाये भेड-बकरियों का लम्बा काफिला और न जाने कब पहाडों को नीचे तक छूने चले आयें गोरे, काले, सलेटी बादल....
नाम है कसोल जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले से महज 35 किलोमीटर के फासले पर है। ऊंचाई है करीब पांच हजार फीट। यहां न दिल्ली या मुम्बई जैसी उमस है, न कुल्लू शहर जैसी रेलमपेल। कुछ है तो बस सादगी।
कहने को तो कसोल 30-35 घरों का छोटा सा गांव है लेकिन प्रकृति ने खुले दिल से उस पर खूबसूरती की बरखा की है। चारों तरफ जिधर भी नजर जाती है, प्रकृति एक नये रंग, रूप और साज-सिंगार के साथ हर सैलानी की अगवानी करती प्रतीत होती है। नदियां, पहाड, कद्दावर पेड, फल-फूल, नर्म मुलायम घास, वन्य जीवन और मिलनसार लोग- क्या कुछ नहीं है शहरी तनातनी से सुकून चाहने वाले इंसान को अपनी ओर खींचने वाले कसोल में।
कसोल कुल्लू और मणिकर्ण के बीच स्थित है। कुल्लू या मनाली से मणिकर्ण जाने वाली हर बस कसोल रुकती है, सो बहुत आसान है कसोल पहुंचना। सीधे सडक सम्पर्क के कारण यह गांव तेजी से पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होता जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि सर्दियों में मनाली वगैरह में बर्फ के कारण सडकें भले ही कई-कई दिनों के लिये बन्द पडी रहें लेकिन कसोल का रास्ता हमेशा खुला रहता है। अतः सालभर यहां सैलानियों की आवाहाजी लगी ही रहती है।
बस से उतर कर बायीं ओर प्रस्थान करें तो भागमभाग की जिन्दगी से दूर एक शान्त वातावरण में पहुंचने का रोमांचक एहसास होता है। सामने ही एक ओर ‘कसोल फारेस्ट हाउस’ की तरतीब से बनी हुई टूरिस्ट हट्स हैं और बगल में ही दिखाई दे जाते हैं कुछ उद्यमी सैलानियों या ट्रेकरों द्वारा गाडे हुए रंग-बिरंगे टेंट जो बरबस ही नजर खींच लेते हैं। आगे चलें तो इस क्षेत्र की आत्मा समझी जाने वाली पार्वती नदी अपने पूरे उफान के साथ बहती नजर आती है। कद्दावर, घने देवदार के पेड और ऊपर आसमान से बातें करतीं बुलन्द चोटियां दिखाई देती हैं, जो सुबह की पहली किरण पडते ही स्वर्णिम रंग बिखेरती प्रतीत होती हैं।
हर रुचि के सैलानी के लिये कसोल के झोले में सामान मौजूद है। खासकर वन्य जीवन में रुचि रखने वालों के लिये कसोल तो जैसे खजाना है। राज्य के वन्य विभाग द्वारा जहां ‘कनवार वन्य जीवन अभयारण्य’ (सेंचुरी) विकसित किया गया है। कसोल से ग्राहण की ओर पैदल चलिये तो रास्ते में आपको लम्बी पूंछ वाली कई रंग बिरंगी पहाडी चिडियाएं मिलेंगीं। यहीं जंगल की खामोशी को तोडता नजर आ जायेगा हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी मोनाल। हिम्मत और साहस करके और आगे घने जंगल की छानबीन करें तो वहां काले भालू, भूरे भालू, कस्तूरी मृग वगैरह के दर्शन का भी सौभाग्य प्राप्त हो सकता है। जंगल में वन्य जीवन की खोज व अध्ययन के इच्छुक लोगों की रिहाइश के लिये वन विभाग ने सज्जित इंस्पेक्शन हट्स भी बना रखी हैं जिनका किराया बहुत ही नाममात्र का है।
अगर आपकी रुचि धार्मिक पर्यटन में है तो पहुंचिये मणिकर्ण जो कसोल से महज चार किलोमीटर दूर है। पैदल या वाहन से कैसे भी जा सकते हैं। यहां पार्वती नदी के ठीक किनारे पर स्थित है वह पवित्र ऐतिहासिक गुरुद्वारा जहां एक ही छत के नीचे मन्दिर भी है। अतीत में किसी समय श्री गुरुनानक देव जी और उनसे पूर्व शिव पार्वती यहां पधारे थे। सो उनकी याद में निर्मित है यह गुरुद्वारा जो सर्वधर्म समभाव की अदभुत मिसाल है।
पर्वतारोहण या ट्रेकिंग के शौकीन व्यक्तियों के लिये बेस कैम्प यानी आधार शिविर का काम करता है कसोल। यहां से शुरू होकर भी आप चन्द्रखनी दर्रे (13000 फीट) या सरपास दर्रे (14000 फीट) तक जाकर उन्हें छूने या फतह करने का रोमांचक अनुभव हासिल कर सकते हैं।
यूं तो कसोल घूमने के लिये साल का कोई भी महीना उपयुक्त है। लेकिन खासकर वन्य जीवन के अध्ययन में रुचि रखने वालों के लिये अक्टूबर से मार्च का समय बेहतरीन माना जाता है, क्योंकि इस दौरान उन्हें अधिकांश वन्य जीव एक साथ देखने को मिल जाते हैं। इस क्षेत्र में ट्रेकिंग के लिये गर्मियों का मौसम ज्यादा उपयुक्त है।
लेख: जगजीत सिंह
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
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