प्रकृति ने न केवल हिमाचल में दिल खोलकर अपना नैसर्गिक सौन्दर्य लुटाया है बल्कि इसे खूबसूरत झीलों, नदियों, झरनों व गर्म जल के चश्मों से संवारने में भी कोई कसर नहीं छोडी है। हिमाचल आया सैलानी अगर यहां के दिलकश, लुभावने दृश्यों से अभिभूत हो उठता है तो यहां के प्राकृतिक स्रोत उसे नई स्फूर्ति से भर देते हैं। ये प्राकृतिक स्रोत सैलानी के लिये कौतूहल का विषय भी हैं और श्रद्धा के प्रतीक भी। ऐसे ही प्राकृतिक स्रोतों में हिमाचल के गर्म जल के चश्मों को गिना जा सकता है।
हिमाचल में दस के करीब गर्म जल के चश्में हैं, जिनमें मणिकर्ण, वशिष्ठ, तत्तापानी, ततवाणी, कसोल और ज्यूरी के चश्में मशहूर हैं। इन चश्मों का जल न केवल स्वास्थ्यवर्धक है, बल्कि इन चश्मों के साथ कई धार्मिक कथाएं भी जुडी हैं। श्रद्धालु इन चश्मों में स्नान करने भी आते हैं और श्रद्धा से नतमस्तक होने भी। ये सभी चश्में अत्यन्त खूबसूरत स्थलों पर स्थित हैं।
शिमला व मण्डी जिले की सीमाओं को जोडती सतलुज नदी के किनारे गर्म पानी के चश्मों का सुरम्य स्थल तत्तापानी नाम से है, जो समुद्र तल से 656 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सतलुज नदी में एक तरफ बहता हिमानी जल और नदी के किनारे दो सौ मीटर लम्बे क्षेत्र में भूगर्भ से फूटते गर्म जल के स्रोत सैलानी को आश्चर्य में डाल देते हैं। सतलुज नदी में पानी की मात्रा बढने के साथ साथ ये चश्में भी ऊपर की ओर आ जाते हैं।
यहां गर्म जल के चश्में फूटने के बारे में एक रोचक किंवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि यह क्षेत्र महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि रहा है। एक बार ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने तपस्या के लिये हिमालय पर जाते समय अपने पिता से आग्रह किया था कि अगर उन्हें कोई संकट आये तो वह उसे (परशुराम को) याद कर लें। कहा जाता है कि परशुराम के जाने के बाद महर्षि जमदग्नि को अकेला पाकर सुन्नी रियासत के राजा ने परेशान करना शुरू कर दिया। हारकर ऋषि जमदग्नि ने अपने बेटे परशुराम का स्मरण करना पडा। परशुराम उस समय कुल्लू घाटी स्थित मणिकर्ण के चश्में मंम स्नान कर रहे थे। जैसे ही उन्हें अपने पिता पर आई विपत्ति का आभास हुआ, वह स्नान अवस्था में ही तत्तापानी पहुंच गये। वहां जैसे ही उन्होंने अधोवस्त्र निचोडे, पानी की बूंदें नीचे टपकने से यहां गर्म पानी के चश्में फूट पडे। इस स्थल के बारे में श्रद्धालुओं में बहुत मान्यता है और प्रथम माघ को यहां भारी मेला भी लगता है। यात्रियों के ठहरने के लिये राज्य के पर्यटन विभाग ने यहां सरायों का निर्माण भी कराया है।
कुल्लू की पार्वती घाटी में स्थित मणिकर्ण के गर्म जल के चश्मों को देखने के लिये शायद सर्वाधिक पर्यटक उमडते हैं। यहां गर्म जल फव्वारों के रूप में फूटता है। ये चश्में पार्वती नदी के दाहिने छोर पर स्थित हैं। वैज्ञानिक आज तक इस बात पर आश्चर्यचकित हैं कि पार्वती नदी में बहता जल जहां बर्फ की तरह ठण्डा है, वहीं इस नदी से ही उबलता जल कैसे फूट रहा है? इस जल का तापमान 95 डिग्री के करीब है। कहा जाता है कि शरीर के चर्म रोग, यहां तक कि गठिया भी यहां के पानी में कुछ दिन स्नान करने से ठीक हो जाता है। यहां गर्म जल के स्रोत कैसे फूटे, इस बारे में एक रोचक किंवदंती प्रचलित है।
कहा जाता है कि कालान्तर में भगवान शिव, पार्वती के साथ टहलते हुए इन पहाडियों में पहुंचे। यहां का वातावरण उन्हें इतना पसन्द आया कि वे यहीं तपस्या में लीन हो गये। उधर एकाकीपन से उकताकर पार्वती एक दिन पास ही बह रही नदी में उतर गई और जलक्रीडा करते हुए अपना दिल बहलाने की कोशिश करने लगी। तभी उनके कान की एक दुर्लभ मणि पानी में गिर गई और सीधे पाताल में शेषनाग के पास जा पहुंची। पार्वती ने मणि को ढूंढने की बहुत कोशिश की और अंत में थककर उदास सी एक चट्टान पर जा बैठी। शाम जो जब भगवान शिव की समाधि टूटी और उन्हें पार्वती के दुखी होने का कारण मालूम हुआ तो उन्होंने अपने गणों को तुरन्त मणि ढूंढ निकालने का आदेश दिया। गणों ने नदी का चप्पा चप्पा छान मारा लेकिन उन्हें मणि नहीं मिली।
भगवान शिव को गणों की असफलता का पता चला तो वे क्रोधित हो उठे। उनके नेत्रों से ऐसी चिंगारियां निकलने लगी कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कम्पायमान हो उठा। यही आंच जब पाताल में शेषनाग ने महसूस की तो वह तुरन्त भगवान शिव की नाराजगी का कारण समझ गये। उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिये फुंकार मारी, जिसकी आंच से यहां का पानी गर्म हो गया और पृथ्वी के गर्भ से फव्वारे फूटने लगे। उन फव्वारों के साथ ही पार्वती की मणि भी बाहर आ गई। इस प्रकार इस स्थल का नाम मणिकर्ण पडा और यहां बहने वाली नदी को पार्वती के नाम से जाना जाने लगा। उस दिन से यहां गर्म जल के फव्वारे फूट रहे हैं। पार्वती नदी के साथ ही एक भव्य गुरूद्वारा और भगवान राम का प्राचीन मन्दिर भी है। गुरुद्वारे के भूतल और मन्दिर के प्रांगण में स्नानगृह बने हुए हैं, जहां गर्म पानी के कुण्ड हमेशा भरे रहते हैं। इन दोनों धर्मस्थलों में श्रद्धालुओं के आवास व लंगर की सुविधा है।
कुल्लू घाटी में गर्म जल का एक और चश्मा मनाली से 6 किलोमीटर दूर वशिष्ठ में है। इस जल का तापमान 53 डिग्री के करीब है और यह जल अत्यन्त स्वास्थ्यवर्द्धक भी है। वशिष्ठ गांव में कई जगह गर्म जल के चश्में हैं। हिमाचल पर्यटन निगम ने गर्म पानी को पाइप द्वारा नीचे लाकर पर्यटकों के लिये स्नान करने की व्यवस्था भी कर रखी है। महर्षि वशिष्ठ के मन्दिर के अन्दर भी चश्में का गर्म पानी रोककर महिलाओं व पुरुषों के लिये अलग-अलग स्नान कुण्ड बनाये गये हैं। कहा जाता है कि महर्षि वशिष्ठ यहां गर्म जल मणिकर्ण से लाये थे। यहां के चश्मों में स्नान करने के लिये वर्ष भर पर्यटक उमडते हैं।
मनाली से केवल सात किलोमीटर दूर क्लाथ में भी गर्म जल के चश्में हैं। यहां के जल का तापमान 25 से 45 डिग्री के आसपास है। यहां का जल अत्यन्त स्वास्थ्यवर्द्धक है। कहा जाता है कि इस जल के सेवन से कई असाध्य बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।
जिला कांगडा में बैजनाथ से करीब बीस किलोमीटर दूर तत्तापानी के नाम से मिलता-जुलता ततवाणी नामक गर्म जल का चश्मा है। चारों ओर से बर्फीली पहाडियों से घिरा यह स्थल लूणी नदी के किनारे पर है। इस स्थल पर पहुंचने के लिये कुछ पैदल भी चलना पडता है। यहां का पानी इतना गर्म है कि अगर चावल पोटली में बांधकर कुछ मिनट पानी में रखे जायें तो वे पूरी तरह पक जायेंगे। यह जल गंधकयुक्त भी है। लोगों में मान्यता है कि इस जल से स्नान करने पर शरीर की अनेक व्याधियां दूर हो जाती हैं। निर्जला एकादशी के दिन यहां बहुत बडा मेला लगता है और दूर दराज से सैंकडों श्रद्धालु यहां स्नान करने उमडते हैं।
शिमला जिले में रामपुर बुशैहर से आगे ज्यूरी के पास भी गर्म जल के चश्में हैं।
लेख: गुरमीत बेदीसन्दीप पंवार के सौजन्य से
सुन्दर और उपयोगी जानकारी ! कभी काम आ सकती है ! बधाई
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