प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण हिमाचल प्रदेश भारत में ही नहीं अपितु विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपना स्थायी स्थान बना चुका है। इसकी नदी घाटियों में बसे नगर अथवा गांव अलौकिक अनुभूति प्रदान करते हैं। घाटियों की चर्चा आते ही कुल्लू घाटी बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। इस घाटी को देव घाटी के रूप में भी जाना जाता है। 46 किलोमीटर लम्बाई और डेढ किलोमीटर चौडाई की इस घाटी का मुख्य नगर है कुल्लू। समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर ब्यास नदी के किनारे बसा कुल्लू नगर किस आगंतुक का मन नहीं मोह लेता। कुल्लू का पौराणिक ग्रंथों में कुलूत नाम से वर्णन हुआ है। यही कुलूत बाद में कुलूता या कुलान्त नाम से भी जाना गया। कुल्लू कुलूत का ही अपभ्रंश है।
खुशनुमा पहाडी ढलानों पर बसे घाटी के गांवों में सीढीनुमा फलों के बगीचों का दृश्य तो देखते ही बनता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के अतिरिक्त कुल्लू के सेब और शालें पर्यटकों के मुख्य आकर्षणों में से एक हैं। इस क्षेत्र में जून-जुलाई के महीनों में हल्की सी गर्मी होती है। परन्तु वर्ष के शेष समय मौसम सुहावना रहता है। सर्दियों में ठण्ड बढ जाती है पर घाटी के निचले हिस्सों में बरफ नहीं पडती। परन्तु दोनों ओर की पहाडियों की चोटियां श्वेत बर्फ से ढककर गजब का आकर्षण पैदा करती हैं।
कुल्लू घाटी की अन्य विशेषताओं के अतिरिक्त यहां मनाया जाने वाला दशहरा उत्सव भारत में ही नहीं अपितु विश्व भर में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। विजयदशमी को जब अन्य स्थानों पर दशहरा सम्पन्न होता है तो कुल्लू में आरम्भ होता है। कुल्लू के दर्शनीय रघुनाथ जी के मन्दिर के साथ जुडी किंवदंती ही इस उत्सव के आरम्भ का आधार मानी जाती है। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक उत्सव में घाटी के दूर-दराज के क्षेत्रों में बसने वाले गांवों के देवी देवता हिस्सा लेते हैं। रंग-बिरंगी पालकियों में सज-धजकर ये देवी देवता ग्रामवासियों के कंधों पर झूमते नाचते हुए जब आते हैं तो चिरस्मरणीय आनन्द प्रदान करते हैं। लगता है जैसे स्वर्ग ही इस धरा पर उतर आया हो।
कुल्लू घाटी में ठहरने के लिये आवास की कोई समस्या नहीं है। पर्यटन निगम के होटलों के अतिरिक्त निजी होटल भी अच्छी खासी गिनती में हैं। होटलों के अतिरिक्त पेइंग गेस्ट हाउस भी उपलब्ध रहते हैं। यों तो इन सभी स्थानों के किराये सरकार द्वारा ही निश्चित किये रहते हैं, यदि फिर भी कोई समस्या आये तो स्थानीय पर्यटन कार्यालय से सम्पर्क साध कर इसका निदान हो सकता है। जहां तक भोजन सम्बन्धी आवश्यकता का प्रश्न है, तो पंजाबी खाने से लेकर कांटीनेंटल तथा चाईनीज खाना तक आसानी से उपलब्ध हो जाता है। सडकों के किनारे चलंतु ढाबों से लेकर स्तरीय जलपान गृह भी स्थान-स्थान पर मिल जायेंगे।
इस घाटी में भ्रमण के दौरान उचित होगा कि अपने साथ हल्के कपडे ही रखे जायें। पहाडों में यदा-कदा वर्षा होने के कारण तापमान में गिरावट आने की सम्भावना बनी रहती है। एहतियात के तौर पर साथ में एकाध स्वेटर अथवा हल्की-फुल्की सी जैकेट रख ली जाये तो उचित रहेगा।
कुल्लू घाटी में प्रवेश के लिये यातायात की कोई समस्या नहीं। सडक के अतिरिक्त वायु अथवा रेल मार्ग की सहायता से भी यहां पहुंचा जा सकता है। सडक मार्ग चण्डीगढ, दिल्ली एवं देश के अन्य महत्वपूर्ण स्थानों से सीधा जुडा है। सडक मार्ग पर हिमाचल के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सरकारें नियमित तौर पर बस सुविधा उपलब्ध करवाती हैं। वायु मार्ग से दिल्ली अथवा चण्डीगढ से भुन्तर नामक स्थान तक आने में परेशानी नहीं होती। रेल सुविधा मात्र चण्डीगढ अथवा पठानकोट के पश्चात जोगिन्द्रनगर तक ही उपलब्ध होती है। यात्रा चाहें किसी भी मार्ग से करें परन्तु इसे सुखद बनाने के लिये उपलब्ध आरक्षण सुविधाओं का लाभ लेने में संकोच न करें।
कुल्लू घाटी में कुल्लू नगर के अतिरिक्त अन्य पर्यटन स्थल भी हैं। अपने यात्रा कार्यक्रम में इन स्थानों के भ्रमण के लिये भी समय निश्चित कर लें। कुल्लू से 40 किलोमीटर की दूरी पर मनाली नामक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। ब्यास नदी के दायें किनारे बसा यह छोटा सा नगर अति रमणीय है। ठहरने और खाने पीने की लगभग सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस नगर से 2-3 किलोमीटर की दूरी पर पुराना मनाली गांव है। कहा जाता है कि ‘मनु-स्मृति’ से विख्यात मनु ऋषि के अलौकिक नौका प्रलय के बाद इसी स्थान पर आकर रुकी थी। मनु से ही यह गांव मनु-आलय से मनु-आली तक का सफर तय करने के बाद मनाली बन कर प्रसिद्ध हुआ। इस गांव के साथ लगते देवदार के घने जंगल में हिडिम्बा का मन्दिर है। यह वही हिडिम्बा है जिसका वर्णन महाभारत में भी आता है। पांडवों ने अपना अज्ञातवास इन पहाडों के आश्रय में ही बिताया था।
मनाली से थोडा ऊपर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर ब्यास नदी के दायें किनारे प्रसिद्ध वशिष्ठ गांव है। कहा जाता है कि वशिष्ठ ऋषि ने यहां तप किया था। इसकी याद दिलवाता एक पुरातन मन्दिर भी है यहां। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक गर्म पानी के चश्मे इस गांव की विशेषता हैं। यदि कुछ अधिक रोमांच लेने की इच्छा हो तब इसी रास्ते रोहतांग दर्रे तक का सफर भी किया जा सकता है।
3978 मीटर की ऊंचाई पर लगभग एक किलोमीटर लम्बे इस दर्रे की एक खासियत तो यह है कि यहां पहुंचना आसान है। दूसरे यह गर्मियों में भी पर्यटकों को बर्फ पर खेलने का अवसर प्रदान करता है। स्कीइंग के शौकीन पर्यटकों को गर्मियों में भी सोलांग नाला नामक स्थान पर स्कीइंग करने का मौका मिल जाता है। मनाली से 51 किलोमीटर दूर रोहतांग दर्रे के दूसरी ओर लाहौल का क्षेत्र आरम्भ हो जाता है। यह दर्रा ब्यास नदी का उदगम स्थल भी है। यहीं पर स्थित ब्यास कुण्ड से पतली सी धारा के रूप में ब्यास नदी प्रवाहित होना आरम्भ करती है।
इन स्थानों का भ्रमण करने के पश्चात यदि समय हो तो वापसी ब्यास नदी के बायें किनारे से होकर करनी चाहिये। एक पक्की सडक है जो इस रास्ते मनाली को कुल्लू से जोडती है। कुल्लू पहुंचने पर बायें किनारे से नदी के उस पार जाने के लिये पुल पर से पैदल ही गुजरना पडता है। निजी वाहन से यदि सफर किया जा रहा हो तो नगर नामक स्थान से पतली-कुहल नामक स्थान पर मुख्य राजमार्ग पर मिलना पडता है।
ब्यास के बाईं ओर मनाली से छह किलोमीटर दूर एक स्थान है जगतसुख। सुरम्य पहाडियों में बसा बहुत ही लुभावना गांव। ठहरने के लिये यहां लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह भी है। वास्तव में यह गांव कभी कुल्लू रियासत की राजधानी भी रहा है। कुल्लू के राजवंशजों ने बारह पुश्तों तक यहां रहकर राज किया था। इसके पश्चात राजधानी नगर नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दी गई। जगतसुख में प्राकृतिक सौन्दर्य के अतिरिक्त शिखर शैली में निर्मित पुराना शिव मन्दिर भी है। इस मन्दिर के साथ ही गायत्री देवी का मन्दिर भी है। इसके पुजारी के मुताबिक, देश भर में शायद यह अपनी किस्म का एक अलग ही मन्दिर है।
जगतसुख से 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा है नगर, एक ऐतिहासिक गांव। कुल्लू से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर। जगतसुख के बाद नगर भी कुल्लू राजवंश की राजधानी रहा है। इस कारण यहां एक पहाडी किला भी है। आजकल इस किले को पर्यटन विकास निगम एक होटल के रूप में चला रहा है। विश्व प्रसिद्ध रौरिक आर्ट गैलरी भी नगर में ही है। यह आर्ट गैलरी किले से लगभग एक किलोमीटर दूर है। इसी रास्ते में आने वाला त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर भी दर्शनीय स्थलों में से एक है। निजी वाहनों में सफर करने वालों को नगर से ही अपने वाहन पतली कुहल की ओर मोड लेने चाहिये वरना उन्हें कुल्लू जाने के लिये इसी स्थान पर वापिस आना होगा।
मुख्य मार्गों के आसपास बसे होने के कारण इन स्थानों का भ्रमण बिना किसी कठिनाई के किया जा सकता है। परन्तु साहसिक एवं रोमांचक पर्यटन के लिये अलग से तैयारी करके आना होगा। ऊंचे क्षेत्रों की यात्रा से पूर्व मनाली स्थित पर्वतीय प्रशिक्षण संस्थान से सम्पर्क करना अपनी रोमांचक यात्रा को और अधिक रोमांचक करने में सहायक होगा।
कुल्लू घाटी की ओर आती एक अन्य घाटी भी है। इस घाटी का नाम है पार्वती। इस घाटी में प्रवेश के लिये भुन्तर नामक स्थान से होकर जाना पडता है। इस स्थान पर ही विमानपत्तन भी है। इस घाटी में यदि मणिकर्ण का भ्रमण न किया जाये तो सफर अधूरा ही रहता है। यहां पर गर्म पानी के बहुत से चश्मे हैं। धरती से खौलता हुआ पानी इन चश्मों से बाहर आता है। शिव पार्वती से जुडी किंवदंती को अगर इस स्थान पर आकर ही सुना जाये तो उसका अपना ही मजा है।
मणिकर्ण में रघुनाथ जी के मन्दिर के अलावा एक भव्य गुरुद्वारा भी है। लंगर के साथ साथ रात्रि विश्राम की सुविधा भी उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त पर्यटन विभाग भी खाने पीने और आवास की सुविधाएं उपलब्ध करवाता है।
लेख: रमेश शर्मा
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
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