सोमवार, दिसंबर 19, 2011

सिक्किम- पर्यटन का चरमसुख

सुखिम यानी ‘चरम सुख’ से बना सिक्किम उन पर्यटकों के लिये कौतुक जैसा ही है, जो भीड-भाड से हटकर कुछ नये की तलाश में रहते हैं। मार्च-अप्रैल का महीना वहां के लिये बहार का महीना है। इन महीनों में हर वर्ष वहां पुष्प प्रदर्शनी लगती है। पहाड की वादियों में प्रकृति की लीला देखने वाले देशी-विदेशी पर्यटक इस मौसम में गंगटोक आना नहीं भूलते। पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवाद ने भी पर्यटकों को कंचनजंघा पर्वतमाला से घिरे इस शान्त प्रदेश की ओर मुखातिब किया है।

सुखिम के पीछे किंवदन्ती है कि 15 वीं सदी में एक लेप्चा सरदार गोंचू ने लिंबू जाति की युवती से शादी की। लेप्चा सरदार अपनी नई-नवेली दुल्हन को बांस तथा फूलों से सजे घर में लिवा लाया। युवती चकित थी और उसके मुंह से सहसा निकला ‘सुखिम’। श्रंगार रस के कवियों और इसी लीक के लेखकों ने इस सन्दर्भ को उद्धृत कर सिक्किम शब्द की सार्थकता पर अनगिनत रचनाएं तैयार कर डालीं। कवियों की रचनाओं से अलहदा 1641 का इतिहास बताता है कि सिक्किम जैसे सौन्दर्य प्रदेश को तीन भोटिया लामाओं ने खोजा था। पर तीनों में शासन के सवाल पर मतभेद नहीं सुलझ सका। अंततः उन्होंने फुंत्सो थोंदूप नामग्याल नामक एक कुलीन सरदार को सिक्किम की सत्ता के लिये आमन्त्रित किया। यह राजा चोग्याल नाम से भी मशहूर हुआ जिसका अर्थ धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार शासन करने वाला बताया गया। इस वंश के अन्तिम शासक पाल्देन थोंदूप नामग्याल 1975 में सिक्किम के भारत में विलय तक अन्तिम शासक रहे। खैर भोटिया, लेप्चा, लिंबू, राई, मगर और गोरखालियों की अन्य जातियों के इस प्रदेश पर प्रकृति की बडी कृपा रही है।

चीन स्वशासित तिब्बत, भूटान और नेपाल से सटे सिक्किम की राजधानी गंगटोक अभी वायुमार्ग और रेल से जुडा नहीं है। पाक्योम के पास हवाई अड्डा बनना अब शुरू हुआ है। पिछले दिनों रेल से इस सूबे को जोडने के लिये सर्वेक्षण हुआ है। कुछ समय पहले तक सिक्किम में सामान्य तौर पर सभी इलाकों के लिये पर्यटकों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

तकरीबन 7100 वर्ग किलोमीटर और 5800 फीट की ऊंचाई पर बसे सिक्किम में आबादी का भार अब भी ज्यादा नहीं है। कम जनसंख्या के कारण पर्यावरण भी नियन्त्रित है। गर्मियों में अधिकतम 28 डिग्री और न्यूनतम 13 डिग्री तापमान के कारण हल्के ऊनी वस्त्र यहां सैर-सपाटे के लिये काफी हैं। अलबत्ता जाडे में मोटे ऊनी वस्त्रों की जरुरत पड सकती है। तब 18 डिग्री से लेकर 7.7 डिग्री सेल्सियस तापक्रम में पहाडी सर्दी का एहसास बना रहता है। मार्च से मई और अक्टूबर से दिसम्बर घूमने के लिये सबसे अच्छा मौसम माना गया है।

जैसा कि जाहिर हो चुका है कि सिक्किम में अभी वायु सेवा के लिये हवाई पट्टी नहीं बन पाई है। हवाई यात्रा का शौक रखने वाले पर्यटकों को गंगटोक से मात्र 124 किलोमीटर दूर हवाई अड्डे पर उतरना पडता है। उत्तरी बंगाल का यह हवाई अड्डा कोलकाता, दिल्ली और पूर्वोत्तर की नियमित हवाई सेवाओं से जुडा है। जिन्हें रेल यात्रा भाती है, उनके लिये गंगटोक से सिर्फ 114 किलोमीटर दूर सिलीगुडी और 125 किलोमीटर के फासले पर न्यूजलपाईगुडी रेलवे स्टेशन हैं। इन स्टेशनों पर उतरने के बाद गंगटोक के लिये दुनिया भर की बस-टैक्सी सेवाएं हैं।

जिन पर्यटकों को सडक मार्ग से सफर का शौक है, वे दार्जीलिंग, कलिम्पोंग और सिलीगुडी से पहाडी रास्तों से तीस्ता नदी के किनारे-किनारे तफरीह करते चार से पांच घण्टे में गंगटोक का रास्ता तय कर सकते हैं। गंगटोक के लिये बागडोगरा, सिलीगुडी, कलिम्पोंग और दार्जीलिंग से सिक्किम नेशनलाइज्ड ट्रांसपोर्ट सर्विस के अलावा प्राइवेट बसें व टैक्सियां काफी हैं। अपना वाहन हो और यदि सिलीगुडी से गंगटोक जाना हो तो 74 किलोमीटर पर रांगपो, 85 किलोमीटर पर सिंगटैम, सौ किलोमीटर पर थादोंग और 113 किलोमीटर पर देवराली में पेट्रोल पम्प हैं, जहां ईंधन मिल जाता है। दार्जीलिंग कलिम्पोंग मार्ग में भी बहुत से पेट्रोल पम्प हैं, इसलिये ईंधन की दिक्कतें पेश नहीं आतीं।

सिक्किम में यदि विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के लिये नहीं हैं तो उच्च वर्ग के लिये फाइव स्टार होटल भी नहीं हैं, लेकिन साफ-सुथरे मध्यम श्रेणी के होटल जरूर हैं। पूर्वी सिक्किम में पालजोर स्टेडियम रोड पर होटल मयूर, इंचेनी मठ के पास सिनिलयू लॉज, महात्मा गांधी मार्ग पर होटल ताशी देलक, होटल कर्मा, होटल ग्रीन, होटल वुडलैण्ड्स, होटल दीखी, होटल डोमा, कंचनजंघा होटल के अलावा नेशनल हाइवे पर होटल शेर-ए-पंजाब, होटल हंगरी जैक, पैराडाइज लॉज, एंगपू में टूरिस्ट लॉज, पश्चिमी सिक्किम में पेमायांग्से के पास होटल माउण्ट पैडिम है। इसी रोड पर ट्रेकर्स हट है। दक्षिणी सिक्किम में नामची में यूथ हॉस्टल है।

114 मठों के प्रदेश सिक्किम को यदि मिनी तिब्बत कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इनमें महत्वपूर्ण पश्चिमी सिक्किम में पेमायांग्त्से, ताशीदिंग, दक्षिण में रेलांग और फेदोंग और उत्तरी सिक्किम में तोलुंग मठ गंगटोक से 15 से 38 किलोमीटर दूरी पर हैं। इन्ये मठ गंगटोक से सिर्फ तीन किलोमीटर दूरी पर है जो तन्त्र मंत्र और मुखौटा नृत्य के लिये विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण खदटेक मठ है जो बहुसंख्यक तिब्बती काग्यूत सम्प्रदाय से जुडा है। अन्तर्राष्ट्रीय जासूसी के कारण यह मठ विवाद के घेरे में रहा है। रूमटेक, बौद्ध मठ की चार शाखाओं में से एक काग्यूत शाखा का मुख्यालय है। विश्व भर में इस मठ की 200 शाखाएं हैं। काग्यूत शाखा के 16वें ग्यालवा कर्सपा ने 1966 में तिब्बत से पलायन कर इस ऐतिहासिक मठ की स्थापना की थी।

रूमटेक धर्मचक्र सेंटर के पास ही नेहरू बोटैनिकल गार्डन भी एक दर्शनीय स्थल है। आर्केड सेंचुरी के पास तिब्बतोलोजी एक अहम केन्द्र है जहां तिब्बती साहित्य, कला दर्शन से जुडी सामग्री देखी जा सकती है। थंक पेंटिंग के वृद्धाकार रूप यहां के संग्रहालय की अदभुत पूंजी में से है। उत्तरी सिक्किम में ताशी प्यूखांड से सूर्योदय और कंचनजंघा, जोंगा और माउण्ट जिनिलचू पर्वतमालाओं की लीलाओं का दृश्य रोमांचित करता है। यहां बाइपास से गुजरिये तो पाइन सेंचुरी, गणेश टोक, हनुमान टोंक, विलंगा तिब्बत रोड से गुजरते हुए रिज और व्हाइट हाल के बीच का पार्क फ्लावर शो के लिये महत्वपूर्ण जगह है, जहां देशी-विदेशी पर्यटक पुष्प प्रदर्शनी देखने के लिये जुटते हैं। पास में ही पुल पार नामग्याल शासकों का महल है। तीस्ता और रंगीत नदियों की तूफानी लहरों में कयाकिंग और राफ्टिंग का रोमांचक आनन्द पर्यटकों को खींचते हैं।

गंगटोक से 40 किलोमीटर दूर 12210 फीट की ऊंचाई पर त्सोगू लेक है जहां मई से अगस्त के बीच ब्लू और पीले रंग के पोस्ता पौधों के फूलों को अन्य दुर्लभ किस्मों के साथ देख सकते हैं।

लाल पांडा के इर्द गिर्द याक की सवारी और चारों ओर बर्फ हो, बीच में झील हो, ऐसे मंजर को बिसारना आसान नहीं। गंगटोक से 16 किलोमीटर दक्षिण में मार्तक खोला में वाटर गार्डन का दृश्यावलोकन भी प्रकृति प्रेमियों के लिये अदभुत संस्मरण है। गंगटोक से 25 किलोमीटर दूर फामबोंग अभयारण्य में हिमाल भालू जैसे दुर्लभ जीव जन्तु हैं। शहर में हैण्डीक्राफ्ट इम्पोरियल, सांगोर छोपोंग सेण्टर से खरीदारी कर सिक्किम की स्मृतियों को संजोया जा सकता है।

लेख: पुष्परंजन (हिन्दुस्तान रविवासरीय, नई दिल्ली, 18 मई 1997)

सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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