गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

नारकंडा- प्रकृति से साक्षात्कार

नारकंडा समुद्र तल से लगभग नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां की गगनचुम्बी पर्वत चोटियों की सुन्दरता एवं शीतल, शान्त वातावरण पर्यटकों को हमेशा मन्त्रमुग्ध किये रहता है। गत कुछ वर्षों से गर्मी व सर्दी के मौसम में देशभर के सैलानियों का जो भारी सैलाब शिमला में जमा हो रहा है, वह कुफरी, फागू, नालदेहरा व मशोबरा जैसे सुन्दर पर्यटक स्थलों को देखने के अलावा नारकंडा की प्राकृतिक छटा को निहारने के लिये भी बेताब रहता है।

कुदरत की रंगीन फिजाओं में बसा यह छोटा सा उपनगर आकाश को चूमती तथा पाताल तक गहरी पहाडियों के बीच घिरा हुआ है। ऊंचे रई, कैल व तोश के पेडों की ठण्डी हवा यहां के शान्त वातावरण में रस घोलती रहती है।

यह शान्त तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्यटन स्थल मुख्य तौर पर स्कीइंग के लिये प्रसिद्ध है। स्थानीय बाजार से दो किलोमीटर दूर धमडी नामक स्थल पर स्कीइंग केन्द्र स्थित है। इस केन्द्र में प्रतिवर्ष जनवरी से मार्च महीने तक स्कीइंग के प्रशिक्षण शिविर लगाये जाते हैं।

नारकंडा छोटा सा पर्यटन केन्द्र है। फिर भी बाहर से आने वाले सैलानियों के रात्रि ठहराव हेतु यहां पर लोकनिर्माण विभाग तथा राज्य पर्यटन विभाग का गेस्ट हाउस व होटल हैं। यूं तो शिमला से नारकंडा को सवेरे जाकर शाम को आसानी से लौटा भी जा सकता है। शिमला से नारकंडा का तीन घण्टे का सफर बडा ही मजेदार व जोखिमभरा है। सांप जैसी बलखाती तंग सडक के दोनों तरफ कहीं गहरी खाईयां तो कहीं आकाश को छूती चोटियां हैं, जिनको देखकर एक बार तो दिल सहम जाता है। आजकल इस मार्ग को चौडा करने का कार्य चल रहा है।

नारकंडा नगर के बीच से गुजरते उच्च मार्ग के दोनों तरफ बने छोटे से बाजार में खरीद-फरोख्त तथा काम-धन्धा करने आये ग्रामीणों का अक्सर जमघट लगा रहता है। बाजार के मध्य में स्थित काली मन्दिर के आसपास रंग बिरंगे वस्त्र पहने गांवों की महिलाएं अपने-अपने गंतव्य जाने के लिये आमतौर पर बसों का इंतजार करती हुई नजर आती हैं। काली मन्दिर के ठीक पीछे छोटी पहाडी पर कुछ तिब्बती परिवार भी रहते हैं जो कि यहां पर दुकानदारी तथा अन्य धन्धों में लगे हुए हैं। स्थानीय सडकों के किनारे आते-जाते छोटे-छोटे बच्चों के कन्धों पर लटके बस्ते तथा हाथ में लहराती लकडी की तख्तियां उनके विद्यार्थी होने का आभास कराती हैं। यह भोले-भाले बच्चे बाहर से आने वाले सैलानियों को यूं निहारते रहते हैं मानों उनके चेहरों पर छाई मासूमियत सदैव उनका अभिनन्दन करती रहती हो।

जहां इस शान्त वादी की सुन्दरता पर्यटकों को यहां ठहरने पर मजबूर करती है वहीं यह जगह उन्हें अपनी रंगीनियों की मोहताज भी बना लेती है।

लेख: हेमन्त चौहान (हिन्दुस्तान रविवासरीय, नई दिल्ली, 18 मई 1997)

सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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