प्राकृतिक छटा के लिये प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, संसार की दृष्टि से सदियों से अब तक बची हुई, जो कि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक कुछ सीमित लोगों द्वारा देखी जा सकती थी, हिमालय पर्वत की श्रंखला में आदिवासियों की सभ्यता संजोये हुए यही किन्नौर घाटी अब जन साधारण के लिये खोल दी गई है। यह घाटी पूर्व में तिब्बत, पश्चिम में कुल्लू घाटी, उत्तर में स्पीति घाटी एवं दक्षिण में गढवाल से घिरी हुई है। बहुत ऊंचाई पर होने के कारण यहां ठण्ड रहती है अर्थात ग्रीष्म ऋतु का समय बहुत ही कम रहता है। अधिक सर्दी होने पर यहां के निवासी कुछ निचले स्थानों पर आ जाते हैं। लगभग सारा क्षेत्र ऊंचा नीचा होने के कारण उपजाऊ नहीं है। लद्दाख की भांति यहां भी बहुत कम वर्षा होती है।
किन्नौर घाटी तिब्बत के पास होने के कारण यहां के लोगों की जीवन शैली पर बौद्ध धर्म का काफी प्रभाव देखने को मिलता है। यद्यपि मूलतः लोग हिन्दू ही हैं। यहां घाटी में लगभग हर गांव में मन्दिर या गोम्पा (बौद्ध स्थल) हैं। किन्नौरी लोग स्वभाव से भोले, धार्मिक एवं ईमानदार हैं। यहां बहु-पति प्रथा आज भी कायम हैं। शायद इसी वजह से यहां की आबादी नियन्त्रण में है। सतलुज नदी जोकि तिब्बत में मानसरोवर क्षेत्र से निकलती है, इसी घाटी से अपना सफर तय करती हुई मैदानी इलाकों में पहुंचती है। किन्नौर में इस नदी के साथ दो संगम, प्रथम खाबो में स्पीति नदी से, दूसरा कडछम में बस्पा नदी से, प्रसिद्ध हैं। भारत-तिब्बत मार्ग किन्नौर घाटी से ही होकर निकलता है।
प्रकृति की इस खूबसूरत घाटी को देखने का शुभारम्भ पुरातन ‘रामपुर बुशहर’ रियासत की राजधानी रामपुर से होता है। यह ट्रैकिंग करने वालों का भी प्रथम पडाव है। यहां का लवी मेला बहुत प्रसिद्ध है, जो 11 से 14 नवम्बर तक लगता है। यहां से श्रीखण्ड महादेव चोटी (5155 मीटर) के दर्शन किये जा सकते हैं। पूरी चोटी की परिक्रमा भी 7-8 दिन में की जा सकती है। इससे आगे सराहन का भीमाकाली मन्दिर पहाडी कला की मुंह बोलती तस्वीर है। किसी समय यहां पर भगवान को प्रसन्न करने के लिये नर बलि दी जाती थी, आजकल बकरे की बलि दी जाती है। पुजारियों के अनुसार अब यह बलि मन्दिर के बाहर ही दी जाती है।
यहां श्री रघुनाथ जी, श्री नरसिंह जी और श्री लांकडा वीर जी की तीन मूर्तियां स्थापित हैं। इस मन्दिर का निर्माण राजशाही द्वारा 200 वर्ष पूर्व किया गया था। मन्दिर में ठहरने के लिये बहुत ही बढिया सराय बनी हुई है तथा एक अन्य का निर्माण कार्य चल रहा है। यहां हिमाचल पर्यटन का होटल श्रीखण्ड बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
वापस ज्यूरी आने पर तीन किलोमीटर की दूरी पर किन्नौर घाटी का आरम्भ चौरा (1638 मीटर) गांव से होता है। यहां पर श्री तरगडा देवी जी का मन्दिर है, जिसका निर्माण भारत-तिब्बत मार्ग निर्माण के समय हुआ था।
भाभा नगर: रामपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर पूरी तरह पहाडों के अन्दर बना भाभा विद्युत केन्द्र 120 मेगावाट विद्युत पैदा करता है। इसमें 40 मेगावाट की तीन चक्कियां लगी हुई हैं। यह 8 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और पूरी तरह स्वचालित है।
सांगला/ बस्पा घाटी: राष्ट्रीय राजमार्ग पर कडछम से 18 किलोमीटर की दूरी पर किन्नौर की सबसे सुन्दर घाटी है। यह रास्ता बहुत छोटा है और डरावना भी है क्योंकि यहां बहुत ही गहरी खाईयां हैं। पूरी किन्नौर घाटी में सांगला क्षेत्र हरा-भरा है। यह घाटी देखने के बाद यही रहने को मन करता है। यहां का सेब बहुत प्रसिद्ध है। यहां बादाम एवं केसर की भी खेती होती है। इसी रास्ते में कामरू गांव बहु-पति प्रथा के लिये आज भी प्रसिद्ध है। छितकुल (3435 मीटर) इस मनोहर घाटी का अन्तिम गांव है। यह स्थान तो परीलोक लगता है। यहां से कुछ किलोमीटर पर भारत-तिब्बत सीमा आरम्भ हो जाती है।
कल्पा/ रिकांगपियो: किन्नौर जिले के प्रशासनिक कार्यालय रिकांगपियो (2290 मीटर) में हैं। यह स्थान राजमार्ग पर स्थित पवारी से 7 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से कल्पा (2960 मीटर) सात किलोमीटर पर है। देवदार के वृक्षों से ढका यह रास्ता बहुत सुन्दर है। कल्पा भी इस घाटी के सुन्दरतम स्थानों में से एक है। इस मनोरम स्थान से किन्नौर कैलाश (6000 मीटर) के साफ दर्शन किये जा सकते हैं। इस चोटी के बार-बार रंग बदलते दिखाई देते हैं, ऐसा मौसम बदलते ही होता रहता है। यहां परिधि गृह से ये दृश्य सहज ही देखे जा सकते हैं। यहां से कुछ दूरी पर पांगी, मूरंग और केनम आदिवासी गांव हैं जिनमें पूर्णतः उनकी प्राचीन सभ्यता देखी जा सकती है।
पवारी से 16 किलोमीटर की दूरी पर टिब्बा अंगूरों के लिये प्रसिद्ध स्थान है। यहां अंगूरों के बडे बाग हैं। यहीं से दस किलोमीटर दूरी पर मूरांग क्षेत्र है, जहां खुरमानी की खेती होती है। मूरांग से 32 किलोमीटर पर पूह नगर है। यह नगर पूरी तरह आधुनिक सुविधाओं से युक्त है।
खाबो/ नाको/ समदू: खाबो (2831 मीटर) में सतलुज एवं स्पीति नदियों का सुरम्य स्थल है। यहां से सतलुज तिब्बत की ओर हो जाती है जबकि स्पीति नदी आगे साथ-साथ चलती है। नाको (2950 मीटर) एक अलग ही किस्म का गांव है, जहां एक बहुत ही सुन्दर झील है। यहां टेण्ट लगाकर रहने में बहुत आनन्द मिलता है। समदू किन्नौर घाटी का अन्तिम गांव है, जहां स्पीति और परी-धू नदी का संगम होता है। यहां से स्पीति घाटी आरम्भ हो जाती है।
लेख: सुनील जैन
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
वर्णन तो लाजवाब रहा, फोटो की कमी खली।
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