भारत के राजस्थान स्थित सिरोही जिले में अरावली की पहाडियों में सबसे ऊंची चोटी पर धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है माउण्ट आबू। धार्मिक और प्राकृतिक सौन्दर्य के चलते यह एक पर्वतीय पर्यटन क्षेत्र के रूप में भी विख्यात हुआ है। आबू शब्द अर्बुदा का अपभ्रंश है। इस सम्बन्ध में एक जनश्रुति के अनुसार किसी समय यहां वशिष्ठ ऋषि तपस्या करते थे। उनके आश्रम के निकट एक बडा सा गड्ढा था। एक दिन ऋषि की कामधेनु गाय उसी गड्ढे में गिर पडी। ऋषि वशिष्ठ ने मां सरस्वती की आराधना की जिससे प्रसन्न होकर माता सरस्वती ने उस गड्ढे को जल से भर दिया जिससे गाय तैरते हुए उससे बाहर निकल आई। इसके बाद ऋषि वशिष्ठ ने उस गड्ढे को पाटने के लिये भगवान शिव की स्तुति की। शिवजी ने नन्दी को भेजकर यहां अरावली पर्वतमाला को स्थापित किया।
सैकडों किलोमीटर लम्बी अरावली पर्वत श्रंखला राजस्थान को दो भागों में विभक्त करती हुई प्रतीत होती है। हरियाणा में गुडगांव के पास से लेकर माउण्ट आबू तक फैली इस पर्वत श्रंखला का विशिष्ट धार्मिक महत्व भी है। कहा जाता है कि किसी समय नन्दी को कैलाश से अर्बुद नाम का एक सांप अपनी पीठ पर बिठाकर वशिष्ठ ऋषि के पास लाया था, इसलिये इसका नाम अर्बुदा पड गया। ऋषि वशिष्ठ ने अर्बुदा को वरदान दिया था कि तुम 35 करोड देवी देवताओं के साथ यहां निवास करोगे। कुछ लोगों का मानना है कि माता दुर्गा यहां अर्बुदा देवी के रूप में प्रकट हुई, इसलिये इसका नाम अर्बुदा पड गया। यहां पर अर्बुदा देवी का प्राचीन मन्दिर भी मौजूद है जिसमें जाने के लिये सैकडों सीढियां चढनी पडती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबूआदा के नाम पर पडा। यह मन्दिर एक गुफानुमा स्थान में स्थित है। इसके पास ही सन्त सरोवर भी था जो वर्तमान समय में सूखा पडा है। मन्दिर में नीलकण्ठ महादेव और हनुमानजी के मन्दिर भी हैं। आबू में हिन्दु धर्म के साथ-साथ जैन धर्म का तीर्थ स्थान भी है। यहीं पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय नामक संस्था का मुख्यालय भी है। ऐसी मान्यता है कि जब कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर और मथुरा छोडकर द्वारका गये तो आबू के मार्ग से ही होकर गये थे। इस दौरान उन्होंने यहां पर कुछ दिन विश्राम किया था।
माउण्ट आबू दिलवाडा के जैन मन्दिरों के लिये भी विख्यात है। यहां एक ही स्थान पर पांच मन्दिर बनाये गये हैं जिनमें उच्च कोटि के संगमरमर का प्रयोग किया गया है। इनमें से एक मुख्य मन्दिर विमल शाह का मन्दिर है। मन्दिर का निर्माण 1031 ई में गुजरात के सेनापति विमल शाह ने करवाया था। यहां पर स्तम्भों, दीवारों और छतों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। मन्दिर के भीतर जैन तीर्थंकर आदिनाथ की पचास से भी अधिक प्रतिमाएं स्थित हैं। इसके प्रवेश द्वार पर घोडे पर सवार विमल शाह की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। उसके पीछे संगमरमर से बने दस हाथी दिखाई देते हैं। दिलवाडा के मन्दिरों में एक अन्य मुख्य मन्दिर है- लुणावासी मन्दिर। इसे गुजरात के दो मन्त्रियों वस्त्रपाल और तेजपाल ने बनवाया था। ये दोनों सगे भाई थे। इस मन्दिर में 23वें जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठापना भी की गई है। दोनों भाईयों ने इस मन्दिर को अपने तीसरे भाई लुणावासी की याद में बनवाया था।
जैन मन्दिरों की श्रंखला का तीसरा मन्दिर पीतलक्षर मन्दिर है। इसमें भगवान ऋषभदेव की 108 मन की पंचधातु की मूर्ति स्थापित है। यह मन्दिर भीमशाह ने बनवाया था। एक अन्य मुख्य जैन मन्दिर है खतरवासी मन्दिर जो तीन मंजिल ऊंचा है। इसमें भगवान चिन्तामणि पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान है। पांचवां मन्दिर कुमारी कन्या का है। इसी के साथ रसिक बालक का मन्दिर भी है। आबू की सबसे ऊंची चोटी गुरू शिखर के नाम से जानी जाती है। यहां एक गुफा में गुरू दत्तात्रेय का मन्दिर है। इसके निकट ही माता अनुसुइया और ऋषि अत्रेय की तपोस्थली गुफाएं भी स्थित हैं। एक गुफा में भगवान शंकर का भी मन्दिर है। जब वशिष्ठ ऋषि ने यहां भगवान शिव की आराधना की तो उन्होंने ऋषि को अचलेश्वर महादेव के रूप में दर्शन दिये। जब भगवान शिव ने ऋषि को दर्शन दिये तो पृथ्वी डगमगाने लगी। इस पर परम शिव ने अपने पैर के अंगूठे से दबाकर पृथ्वी को स्थिर कर दिया। इसलिये यहां शिवलिंग की नहीं बल्कि उनके पैर के अंगूठे की पूजा होती है।
इसके अतिरिक्त अन्य पौराणिक जनश्रुतियों के अनुसार हिन्दु धर्म के 33 करोड देवी देवता इन्हीं पवित्र पहाडियों पर विचरण करते थे। महान ऋषि वशिष्ठ ने असुरों के विनाश के लिये यहां यज्ञ का आयोजन किया था। जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर भी यहां आये थे। अचलेश्वर महादेव के निकट अचलगढ का किला भी स्थित है। भगवान शिव की याद में राजा परमार ने सन 1900 में इस किले का निर्माण करवाया था। यहां एक जैन मन्दिर भी स्थित है। मन्दिर में आदीश्वर की 1444 मन की पंचधातु की विशालकाय मूर्ति भी स्थापित है। आबू पर्वत पर इनके अलावा भी देखने के लिये बहुत कुछ है। मंदाकिनी कुण्ड, ऋषि भृगु आश्रम, आचार्य भर्तृहरि की गुफा, राजा मानसिंह की समाधि, नक्की झील, रघुनाथ मन्दिर, रामगुफा कुण्ड, दुलेश्वर महादेव मन्दिर, हनुमान मन्दिर, महावीर स्तम्भ, गांधी स्तम्भ, चम्पा गुफा, व्यास तीर्थ, नाव तीर्थ, गौतम ऋषि का आश्रम, ऋषि जमदग्नि आश्रम, गणेश मन्दिर, अम्बिका मन्दिर, शान्ति शिखर, अवतार चिह्न जैसे अनेक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल यहां मौजूद हैं।
आज समाज, 23 अप्रैल 2008 को प्रकाशित
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