पुराणों में उल्लेख आता है कि अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन, जगन्नाथ पुरी ये सात नगर मोक्ष प्रदान करते हैं। इस सम्बन्ध में एक श्लोक मिलता है। कहा भी गया है-
अयोध्या मथुरा माया काशी काची अवन्तिका,
पुरी द्वारावती चैव सप्तयन्ते मोक्षदायिनी।
कांची नामक जिस नगर का वर्णन किया गया है वह दक्षिण भारत की नगरी कांची कामकोटि के नाम से जानी जाती है। कांची प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठा पाती रही। यहां समय समय पर भारतीय दर्शन, धर्म, कर्मकाण्ड और योग साधनाओं का प्रचार-प्रसार होता रहा।
यह नगरी भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का दर्पण बनकर यह नगरी हमेशा से प्रचारित और प्रसारित होती रही है। यहां प्राचीन कला और संस्कृति के विकास के विभिन्न आयाम समय-समय पर दिखाई देते हैं। प्राचीन काल से ही इसकी प्रतिष्ठा मोक्षदायिनी नगरी के रूप में होने के कारण यहां अध्यात्म, धर्म-दर्शन और मुक्ति की इच्छा रखने वाले भक्त और तीर्थ यात्री हमेशा से ही आते रहे हैं। आठवीं शताब्दी में जब आदि गुरू भगवान शंकराचार्य ने यहां मठ की स्थापना की तो इसकी महत्ता पुनः बढ गई।
जीवन का परम लक्ष्य क्या है? इसकी खोज यहां हमेशा से होती रही, लेकिन मठ की स्थापना के बाद उसका क्रम और परम्परा में एक नया आयाम जुड गया। कांची का अर्थ पुराणों के अनुसार गुप्त स्थान के रूप में लिया जाता है। जहां तीर्थ यात्रियों का हमेशा तांता लगा रहता है। यहां की यात्रा करने वालों में वेदों के रचयिता वेद व्यास का नाम भी शामिल है। यहां प्राचीन काल से ही सन्त, महात्माओं का आना-जाना भी सतत रूप से होता रहा। तमिल सभ्यता और इतिहास के अनुसार संगम काल में इस नगर को दुनिया के प्राचीनतम नगरों में गिना जाता था। यहां हिन्दु, जैन, बौद्ध और इस्लाम मतों का समय-समय पर विकास होता रहा है। यह नगर विजयनगर रियासत का हिस्सा रहा। यहां एक विशाल पुस्तकालय चौथी शताब्दी से ही बना रहा है जिसमें वेद, शास्त्र और दूसरी कलाओं के विषयों की पुस्तकों का संग्रह देखने को मिलता था। धर्म, संस्कृति, सभ्यता और अध्यात्म के विभिन्न आयामों के बारे में विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान इन पुस्तकों में देखा जा सकता था। इस भूमि को आदि शंकर जैसे धर्म गुरूओं और तपस्वियों की सेवा करने का अवसर मिला है। उन्होंने समूचे भारत वर्ष का भ्रमण कर धर्म, वेद और अद्वैतवाद की स्थापना कर उस समय डूबती हुई हिन्दु संस्कृति और सभ्यता की पुनर्स्थापना की। उन्होंने यहां रहकर कामकोटि पीठ की स्थापना कर इसे सर्वजन पीठ के रूप में विकसित किया। यह मठ कभी श्रंगेरी शारदा मठ का उप पीठ माना जाता था मगर अब इसका प्रचार-प्रसार स्वतन्त्र रूप से होने लगा। यहां वेद और मुक्ति के विभिन्न आयामों का ज्ञान दिया और सिखाया जाता है।
कांची कामकोटि नगर की अधिष्ठात्री देवी कामाक्षी को माना जाता है। उत्तर भारत के लोग इस देवी के विषय में बहुत थोडा जानते हैं। कांची कामकोटि के शंकराचार्य ने यहां घटिका स्थान की स्थापना की। उनका लक्ष्य यहां वेद विश्वविद्यालय की स्थापना करने का था जिससे कांची कामकोटि को शिक्षा और शोधकार्यों के क्षेत्र में प्रतिष्ठित किया जा सके। यहीं सरस्वती भण्डार के रूप में एक विशाल पुस्तकालय भी स्थापित करने की योजना थी जिसमें भारतीय और विदेशी भाषाओं के धर्मग्रन्थ संग्रहीत किये जायें। शंकराचार्य का उद्देश्य इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय पुस्तकालय के रूप में प्रतिष्ठित करने का ही रहा। इस पुस्तकालय में वेद, शास्त्र, धर्म, संस्कृति, सभ्यता, संगीत, कला, वास्तु-शास्त्र, शिल्पकला, आयुर्वेद, सिद्ध चिकित्सा, ज्योतिष, विज्ञान तकनीकी और अन्तरिक्ष विज्ञान सहित सभी विषयों पर साहित्य का संग्रह होगा।
कांची कामकोटि की मुख्य देवी कामाक्षी का यहां विशाल मन्दिर है। यहीं एक पवित्र तालाब है। यहां मेला भी लगता है जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं। इस मन्दिर से कुछ दूरी पर कैलाश नाथ मन्दिर के नाम से एक शिवालय भी स्थापित है। इसकी शिल्पकला दक्षिण भारत की प्रमुख शिल्पकलाओं में गिनी जाती है। इसके अलावा एकामर नाथ मन्दिर का विशाल प्रांगण भी लोगों को खूब लुभाता है।
आज समाज में 22 अप्रैल 2008 को प्रकाशित
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