शनिवार, जनवरी 07, 2012

लखनऊ- अदाओं में डूबे शामे अवध के नजारे

उत्तर प्रदेश की राजधानी और गोमती किनारे बसा लखनऊ, नवाबी तहजीब, अदब और नफ़ासत की बारे में जाना जाता है। तेजी से हो रहे आर्थिक विकास ने लखनऊ को मेट्रो सिटी और आईटी हब बनाने की कवायद में शामिल कर दिया है। दूसरी कई खासियतों से अलग लखनऊ की शाम का जादू शामे अवध के नाम से जाना जाता है। 

कब जायें 
लखनऊ घूमने के लिये अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे बेहतर है। क्योंकि गर्मी के दिनों में यहां का औसत तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है और जाडे में तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है इसलिये घूमने के लिये यह समय ज्यादा उपयुक्त है। 

कैसे जायें 
लखनऊ तक पहुंचने के कई साधन आसानी से उपलब्ध हैं। देश के लगभग सभी मुख्य शहर यहां से सडक, रेल और हवाई मार्गों से जुडे हुए हैं। 
हवाई मार्ग: चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डा शहर से 14 किलोमीटर दूर अमौसी में स्थित है। दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता समेत भारत के कई बडे शहरों से यहां के लिये उडानें हैं। 
रेल मार्ग: 
लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन तक देश के कई शहरों से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। 
सडक मार्ग: 
दिल्ली, कानपुर, आगरा, इलाहाबाद, देहरादून हाइवे से जुडा होने से सडक मार्ग से लखनऊ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। 

कहां ठहरें 
होटल क्लार्क अवध, परिवर्तन चौक 
ताज रेजीडेंसी, गोमती नगर 
होटल कम्फर्ट इन, विभूतिखण्ड, गोमतीनगर 
होटल जेमिनी कांटिनेंटल, रानी लक्ष्मीबाई मार्ग 
होटल दीप पैलेस, चारबाग 
होटल पार्क इन, सप्रू मार्ग 
होटल पिकैडिली, कानपुर रोड 

कहां घूमें 
बडा इमामबाडा: यह लखनऊ की सबसे मशहूर इमारत है। इसका निर्माण 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला ने करवाया था। यह इमारत अजूबे की तरह है जिसके ऊपरी हिस्से में 409 गलियारे हैं जो एक जैसे हैं। विश्वप्रसिद्ध भूल भुलैया भी यहीं है। इस भवन के निर्माण में अनाजों और मसालों का इस्तेमाल किया गया था। 
छोटा इमामबाडा: बडे इमामबाडे से एक किलोमीटर दूर छोटा इमामबाडा है। इसका निर्माण नवाब मो. अली शाह ने किया था। इस इमारत की नक्काशी और झाड फानूस देखने लायक हैं। 
रूमी दरवाजा: 
इमामबाडे के बाहर 60 फीट ऊंचे दरवाजे को रूमी दरवाजा कहा जाता है। इस अनूठे दरवाजे की छत से पूरा शहर देखा जा सकता है। 
क्लार्क टावर: क्लार्क टावर बडे इमामबाडे और छोटे इमामबाडे के बीच में 221 फीट ऊंची मीनार को कहते हैं। 
रेजीडेंसी: 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने इस पर कब्जा करके इसे अपने रहने की जगह बना ली। इसलिये इसका नाम रेजीडेंसी पडा। यहां का काफी हिस्सा अब खण्डहर में तब्दील हो चुका है इसलिये इसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। 
शहीद स्मारक: गोमती किनारे रेजीडेंसी के करीब स्वतंत्रता संग्राम में मारे गये शहीदों की याद में एक स्मारक बनवाया गया है। 

क्या खायें 
स्वाद के नाम पर लखनऊ का नाम सारी दुनिया में जाना जाता है। यहां के मुगलई व्यंजनों में शाही अंदाज की झलक मिलती है। मसालों का काम्बिनेशन और उनकी लज्जत तो पीढी दर पीढी चली आ रही है। यहां के कबाब और परांठे की महक से दुनिया वाकिफ है। बिरयानी, नहारी कुल्चे, कोरमा, जर्दा तो बस ऐसा कि देखते ही मुंह में पानी आ जाये। मुगलई के अलावा यहां की मिठाई और चाट भी मशहूर है। यहां चौक में मशहूर टुण्डे कबाबी, रहीम की नहारी और वाहिद की बिरयानी के साथ राजा की ठण्डाई का लुत्फ उठाया जा सकता है। अमीनाबाद में भी टुण्डे कबाबी, आलमगीर के रोगनजोश के साथ शीरमाल का क्या कहना! यहां पर प्रकाश कुल्फी की ठण्डक भी लाजवाब है। 

अमीनाबाद से हजरतगंज की तरफ चलने पर परिवर्तन चौक के पास प्रेस क्लब की गली में तो मानों अवधी कुजीन की लज्जत हर ठीहे पर बिखरी है। दस्तरख्वान का मसाना चिकन, बिरयानी तो नौशीजान की अफगानी नान और दमपुख्त बिरयानी पूरी गली की रौनक में इजाफा करती है। बात हो चाट की तो हजरतगंज स्थित रॉयल कैफे की बास्केट चाट का मजा ही कुछ और है। टिक्की, मटर, दहीबडे, आलू के लच्छे और अनार के दानों के स्वाद से भरपूर बास्केट चाट चटपटे स्वाद से भरपूर होती है। यहां ज्यादातर चाट वाले बताशे के लिये दो तरह के पानी बनाते हैं और चौक में तो आठ तरह के पानी के बताशे खिलाये जाते हैं। 

क्या खरीदें 
चिकन के परिधान: लखनऊ के चिकन की कढाई भारतीय हस्तशिल्प कला की सबसे मशहूर कढाई है। धागों की यह कढाई कपडे पर की जाती है। इस कढाई के काम ने फैशन की दुनिया में खासा नाम कमाया है। चिकन की शापिंग के लिये आप पुराने लखनऊ की चौक और नक्खास की दुकानों पर जा सकते हैं। 
जरदोजी के परिधान: आरी जरदोजी के कपडों में नवाबी दौर की झलक मिलती है। सितारों और सलमे से सजे इन कपडों को पार्टीवियर माना जाता है। इनकी खरीदारी के लिये हजरतगंज जाया जा सकता है। 
रेवडी: यह एक खास तरह की मिठाई होती है जिसे चारबाग स्टेशन से लेकर बडे रेस्तरां तक से खरीदा जा सकता है। 

 लेख: स्मिता श्रीवास्तव (हिन्दुस्तान रीमिक्स में 27 सितम्बर 2008 को प्रकाशित)

1 टिप्पणी:

  1. जब मै पहली बार यहाँ गया था , तो रिक्शे वाले ने चिकन शॉप चलने के लिए कहा था ! मेरे साथ एक ब्रिटिश सज्जन थे !हम दोनों समझे --शायद बढ़िया चिकन के खाने मिलेंगे ! जाने के बाद तो हंशी आ गयी !

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