बुधवार, जनवरी 04, 2012

वनवासी राम और चित्रकूट

भारतभूमि सदैव से ही परमपूज्य रही है। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण चारों ओर से भक्ति की अलौकिक और अदभुत सुगन्ध सी आती है। सतयुग हो अथवा द्वापर या फिर कलियुग ही क्यों न हो, चित्रकूट का श्रद्धामय परिवेश सदैव अग्रणी रहा है। यहीं पर स्थित है बांदा जिला जिसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। धार्मिक आख्यानों में इसका यशगान किया गया है। यहीं पर एक पैसुनी नामक नदी प्रवाहित होती है जिसके किनारे बसा हुआ है चित्रकूट धाम जिसे प्राचीन काल से ही काफी आस्थायुक्त ख्याति प्राप्त है। पैसुनी नदी को कुछ लोग मंदाकिनी के नाम से भी जानते हैं। 

 चित्रकूट इलाहाबाद से बांदा मार्ग पर करीबन 185 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान की महत्ता अयोध्या के राजा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से जुडी हुई है। अपने वनवास के समय श्रीराम सीता और लक्ष्मण सहित यहां आकर कुछ समय रुके थे। इसके साथ-साथ रामभक्त कवि तुलसीदास ने भी यहां अनेक वर्षों तक रहकर पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस का सृजन कर उसे लोककल्याण के लिये प्रस्तुत किया। श्रीराम और सीता माता सहित लक्ष्मण ऋषि अत्री के आश्रम में कुछ समय रहे। यहीं पर माता अनुसुईया भी रहा करती थीं। इन सब की याद में यहां अनेक स्मारक और मन्दिर दिखाई पडते हैं, जिनके दर्शन करने के लिये देश-विदेश से अनेक तीर्थ यात्री हर वर्ष यहां आते रहते हैं। इसी कारण यह तीर्थ स्थान दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया। 

कामदगिरि के नाम से चित्रकूट में एक पहाडी भी प्रसिद्ध है। यहीं पर कामदनाथ का मन्दिर है। तीर्थयात्री इस पहाडी की परिक्रमा अवश्य ही करते हैं। तीन मील लम्बी इसकी परिक्रमा का रास्ता पक्का बनाया हुआ है। इस पूरी परिक्रमा में अनेक छोटे छोटे मन्दिर भी बने हुए हैं। इन्हीं में से एक मन्दिर में हनुमान, साक्षी गोपाल, लक्ष्मी नारायण आदि की प्रतिमाएं भी हैं। इस मन्दिर में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, कामथनाथ, गोस्वामी तुलसीदास, कैकई और भरत की प्रतिमाएं भी दिखाई देती हैं। भगवान श्रीराम के पदचिन्हों को भी यहां उकेरा गया है। इस प्रकार यहां के तीन स्थान सबसे ज्यादा मशहूर हैं जिनमें चरण पादुका, जानकी कुण्ड और स्फटिक शिला का नाम लिया जा सकता है। कामथनाथ की परिक्रमा में श्रीराम के चरणचिन्हों के इतने निशान देखने को मिलते हैं जिनसे स्वाभाविक रूप से भक्तों के मन में यह आशंकित विचार आता है कि ये चरणचिन्ह श्रीराम के काल के ही हैं अथवा इन्हें बाद में बनाया गया। इन्हीं चरण पादुकाओं की श्रंखला में भरत मिलाप का स्थान भी दिखाई पडता है जहां वनवास के बाद भरत जी उनसे मिलने आये थे। इसी के निकट एक पहाडी और भी है जिसे लक्ष्मण पहाड के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर लक्ष्मण जी का मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर पर पहुंचने के लिये 150 सीढियां भक्तों को चढनी होती हैं। मन्दिर को देखकर आज भी ऐसा प्रतीत होता है मानों लक्ष्मण, श्रीराम और सीता की रक्षा के लिये वहां पर तैनात हैं। स्फटिक शिला से लगभग चार किलोमीटर दूर अत्रेय ऋषि अर्थात अत्री ऋषि का आश्रम है जहां ऋषि अत्रेय के साथ माता अनुसुईया की भी प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह स्थान घने जंगलों के बीच बना है। यहां की सुख शान्ति कभी कभी जंगली जानवरों के कारण ही खण्डित भी होती है। इसी मन्दिर में दत्तात्रेय और दुर्वासा ऋषि की मूर्तियां भी स्थापित हैं। यहां से करीबन दस किलोमीटर की दूरी पर गुप्त गोदावरी नामक एक स्थान है जहां गुफा के भीतर से गुप्त गोदावरी नदी निकलती है। यहां गुफा के अन्दर एक छोटा सा तालाब स्थित है जिसे सीता कुण्ड के नाम से जाना जाता है। कम गहरे इस तालाब में कभी अचानक पानी कम हो जाता है और कभी बढ जाता है। यह दृश्य यहां की यात्रा पर आये तीर्थयात्रियों को कौतूहल में डाल देता है। 

 भरत कूप की यात्रा किये बिना यहां की यात्रा अपूर्ण ही मानी जाती हैं। यहां श्रीराम जी का एक मन्दिर है। कहते हैं कि भरत कूप में रामजी ने कई पवित्र नदियों का जल लाकर छोडा था। चित्रकूट की मुख्य नदी किनारे स्थित जानकी कुण्ड में कभी माता सीता स्नान किया करती थीं। यहां से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्फटिक शिला है जहां कभी श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ बैठकर प्राकृतिक दृश्यों को देखा करते थे। एक लोकोक्ति के अनुसार इन्द्र का बेटा जयन्त यहां आया और एक गाय पर हमला करने लगा। इस बात का विरोध करने पर वह सीताजी को उठा ले गया। स्फटिक शिला से कुछ दूर हनुमान धारा नामक स्थान है जहां से छोटा सा झरना निकलता है। कहते हैं कि हनुमान जी ने उसे प्रकट किया था इसलिये इसका नाम हनुमान धारा पड गया। 

चित्रकूट से लगभग 90 किलोमीटर दूर एक प्राचीन किला है जिसे कालिंजर किला कहा जाता है। इस किले में नीलकण्ठ मन्दिर, स्वर्गारोहण कुण्ड, बालखण्डेश्वर महादेव मन्दिर, शिवसारी गंगा और कोटि तीर्थ नामक स्थान प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं। इनके अलावा सीता सेज, पाताल गंगा, पाण्डु कुण्ड, बुद्धि ताल, भैरों की झरिया और मृग धारा भी यहां स्थित है। सीतापुर नामक स्थान भी पैसुनी नदी के किनारे पर बसा है। पहले इस स्थान को जयसिंहपुर के नाम से जाना जाता था। कामथनाथ यहां से दो किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। तीर्थयात्री यहां स्नान करने के बाद कामथनाथ की परिक्रमा करते हैं। उस स्थान को पन्ना के महाराजा अमरसिंह की ओर से महन्त चरणदास के सहयोग से बनाया गया था। बाद में इस स्थान का नाम परिवर्तित कर माता सीता के सम्मान में सीतापुर कर दिया गया। यहां चौबीस घाट और अनेक मन्दिर हैं। 

 चित्रकूट से 42 किलोमीटर की दूरी पर राजापुर नामक स्थान है। यह स्थान भक्त तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर गोस्वामी जी का जन्म हुआ था ऐसी मान्यता है। यहां तुलसी मन्दिर भी स्थित है। गुप्त गोदावरी से चार किलोमीटर दूर मरफा नामक जगह है। यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य के लिये जाना जाता है। यहां एक झरना भी स्थित है। उसके अलावा जलमोचन सरोवर, श्री बालाजी मन्दिर, पंचमुखी शिवलिंग भी स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसे चंदेल राजा ने बसाया था। चित्रकूट से 11 किलोमीटर दूर गणेश बाग स्थित है जहां शिव मन्दिर बना है। इसके अलावा यहां सात मंजिल की एक बावली भी बनी है। यह स्थान पेशवा राजाओं की निवास स्थली भी रही है। इसे छोटा खजुराहो भी कहा जाता है। 

 आज समाज में 22 अप्रैल 2008 को प्रकाशित

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