बुधवार, जनवरी 18, 2012

लद्दाख- खेल, पर्यटन और अपनेपन का पर्याय

प्रकृति की मनमोहक छटाओं से प्रेम करने वाले जितेन्द्र बाजवा की खेलों में गहरी दिलचस्पी है। उन्होंने वाटर स्पोर्ट्स, शूटिंग और मोटर स्पोर्ट्स में अपनी अलग पहचान बनाई है। तीन बार हिमालयन कार रैली ’रेड डी हिमालया’ के विजेता रहे बाजवा ने ’डेजर्ट स्टॉर्म’ में भी कई बार शिरकत की है। निशानेबाजी के शौक को अपनी बहुमुखी प्रतिभा के साथ जोडते हुए पाकिस्तान में आयोजित ’सैफ खेलों’ में शूटिंग स्पर्धा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। दुनिया के सबसे हसीन इलाके लद्दाख की खूबसूरती को बयां करता उनका यह आलेख... 

लद्दाख भारत के जम्मू कश्मीर प्रान्त का सबसे बडा पूर्ववर्ती जनपद है। समुद्र की सतह से 12000 फीट की गौरवमयी ऊंचाई लिये सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी को चूमता यह क्षेत्र सच में भारत का ताज है। यह अपनी अलग ही सांस्कृतिक व भौगोलिक पहचान लिये हुए है। उन चकरा देने वाली ऊंचाईयों में अगर गगन चूमते पर्वत हैं, तो उसी ऊंचाई पर हजारों वर्ग मील में फैले हैं वहां के ठण्डे रेगिस्तान। यहां का रहन-सहन, वेश-भूषा, धार्मिक सोच तिब्बत से इतना मिलता है कि इसे ‘भारत का तिब्बत’ कहना गलत नहीं होगा। यहां के दसवीं शताब्दी के ‘आल्ची’ व ‘लामायुरू’ मठ पूरे विश्व से बौद्ध धर्मावलम्बियों को ही नहीं, बल्कि पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं। यहां प्रकृति ने अपने भण्डार खोल कर अपना सौन्दर्य दोनों हाथों से लुटाया है। इस क्षेत्र में बहने वाली नदियां सिन्धु जिसे यहां सेंग्गे खब्बाब भी कहते हैं और श्योक जिन घाटियों से बहती हैं, उनके पहरेदार हैं कराकोरम पर्वतमाला, लद्दाख पर्वतमाला और जांस्कार पर्वतमाला। इन पर्वतमालाओं के चरण पखारती इन नदियों के सौन्दर्य को प्रतिद्वंदिता देती हैं इस क्षेत्र की झीलें, जिन्हें ‘त्सो’ कहते हैं। पेंगोंग त्सो इस क्षेत्र की ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बडी झील है। मोरीरी त्सो भी एक निर्मल जल की अत्यन्त सुन्दर झील है। 

1995 में यहां ‘लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल’ के सूत्रपात के बाद से जब उत्तरी भारत कडाके की सर्दी से ग्रस्त होता है और ठिठुरन हड्डियों को कंपाती है, तो ‘गुरगुर’ चाय का आनन्द उठाते हुए लद्दाखी जुट जाते हैं शीत खेलों के आयोजन की तैयारी में। कई सौ किलोमीटर में फैला लद्दाख का ‘ठण्डा मरुस्थल’ आयोजन स्थल होता है वहां के स्थानीय खेलों का। पोलो से मिलते जुलते एक खेल में प्रयोग होता है वहां के छोटे कद के जंगली घोडे ‘क्यांग’ का। उस क्षेत्र के लिये अति उपयुक्त ये तंदुरुस्त घोडे इस खेल की स्पर्धा को और भी रोचक बना देते हैं। लद्दाख में ‘लद्दाख शीत खेल क्लब’ के गठन के बाद से वहां शीतकालीन खेलों का नियमित रूप से वार्षिक आयोजन होने लगा है। इस क्लब के अथक प्रयासों ने लद्दाख को अब भारत के शीतकालीन खेलों के मानचित्र पर एक अलग ही स्थान प्रदान किया है। लद्दाख, जो किसी समय तक केवल अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ आत्मिक व धार्मिक वातावरण के लिये जाना जाता था, अब केवल पर्वत व मठों का प्रदेश न होकर अपने शीतकालीन खेलों से भी पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है। 

वहां के स्थानीय खेलों के अलावा अब आइस हॉकी और आइस स्केटिंग सरीखे खेल भी नियमित रूप से आयोजित किये जाते हैं, जो कि भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। आइस हॉकी की लद्दाख में बढती लोकप्रियता इस खेल ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण लद्दाख क्षेत्र के लिये ही एक वरदान प्रतीत हो रही है। कनाडा के इस राष्ट्रीय खेल को लोकप्रिय करने में लद्दाख शीत खेल क्लब को सहयोग मिल रहा है कनाडा के भारत स्थित उच्चायुक्त निकेल से। निकेल का कहना है कि अब इस खेल के प्रति रुचि केवल संगठनीय टीमों में ही नहीं, यहां के स्थानीय निवासियों में भी बढती जा रही है। उनकी अपनी टीम ‘न्यू देलही सेक्रेड बुल्स’, जो अब तक की सबसे लोकप्रिय टीम रही है और हर वर्ष लद्दाख शीतकालीन खेलों में आइस हॉकी टूर्नामेंट जीतती आ रही है, अब वहां की स्थानीय टीम से कडा मुकाबला पाती है। 

12000 फीट की ऊंचाई पर ठोस बर्फ में बदल जाती झीलें इन खेलों का आयोजन स्थल रहती हैं। ग्रीष्म ऋतु में जब लद्दाख की नदियां अपने हिम आवरण से बाहर निकलकर निर्मल जल की अविरल धाराएं बन जाती हैं, तब यहां व्हाइट वाटर राफ्टिंग में रुचि रखने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों का जमावडा देखते ही बनता है। यही वह समय भी होता है, जब लद्दाख का वातावरण बहुत लुभावना हो जाता है और ट्रेकिंग के शौकीनों को चुनौतियां स्वीकार करने का आमंत्रण देता है। यहां के दुर्गमताओं से परिपूर्ण ट्रेकिंग के रास्ते, अनछुई ऊंची पर्वत चोटियां उत्साहित करती हैं मनुष्य को अदम्य साहस का परिचय देने के लिये। 

आज कोई तो लद्दाख जाता है इन चुनौतियों का सामना करने, कोई आकर्षित होता है वहां की अद्वितीय मनोरम दृश्यावलियों से, तो कोई देखना चाहता है विश्व के इस ऊंचे अनूठे आश्चर्य को। कोई बौद्ध कलाकृतियों से आकर्षित है, तो कोई वहां की हिम-आच्छादित पर्वत चोटियों से, जहां से गुजरते हैं विश्व के कुछ अत्यंत जटिल, ऊंचे, जोखिम भरे रास्ते, जिनमें अब हिमालयन कार रैलियां (रेड डी हिमालया) अपना रास्ता चुनती हैं। बहरहाल, आज लद्दाख प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हुए अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर चल पडा है और वहां के लोग अपना आतिथ्य लिये, बाहें फैलाये हमेशा तैयार हैं सभी को अपना बनाने के आत्मीय जज्बे के साथ। 

बने हैं अटूट रिश्ते 

इन खेलों ने लद्दाख को नया आकर्षण दिया है तो पर्यटन भी बढाया, स्थानीय निवासियों को आजीविका दी, साथ ही कनाडा और भारत के रिश्तों को नया आयाम दिया। इन खेलों ने लद्दाख और कनाडा के लोगों के अटूट रिश्तों को जन्म दिया है। 2011 में लद्दाख शीत खेल क्लब ने विंटर टूरिज्म प्रमोशन कप का आयोजन किया, जिसमें लगभग 70 कनेडियाई खिलाडियों ने शिरकत की। इस क्लब द्वारा कई स्थानीय खिलाडियों को संरक्षण मिला और उन्हें फिनलैंड, चीन, अमेरिका व पोलैंड आइस हॉकी और आइस स्केटिंग प्रतिस्पर्धाओं में भेजा गया। 

टूटकर भी नहीं बिखरा 

भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान व चीन ने वृहद लद्दाख का क्रमशः 78114 वर्ग किमी और 37555 वर्ग किमी क्षेत्र गैर-कानूनी तरीके से कब्जा लिया। बाकी करीब 45110 वर्ग किमी क्षेत्र भारत से जुडा रहा। जो आज अपनी अनुपन छटा के लिये पूरी दुनिया में जाना जाता है। यह दुर्गम व दूरस्थ क्षेत्र भी भारत की अनोखी पहचान ‘अनेकता में एकता’ दर्शाने में पीछे नहीं है। यहां तिब्बती भाषा बोलने वाले बहुसंख्यक लद्दाखी हैं, लेकिन यहां पर मुस्लिम और ईसाई भी बसते हैं। 

दैनिक जनवाणी में 3 अप्रैल 2011 को प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें