बसन्त पंचमी आने वाली है। इसी माह विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होती है। विद्यार्थी खासतौर पर सरस्वती मां की पूजा करते हैं। कई लोग तो इसी दिन अपने बच्चे को पहली बार कलम पकडवाते हैं। हम में से कम ही लोगों को पता होगा कि सरस्वती देवी का मन्दिर कहां स्थित है। सरस्वती मां का विशेष मन्दिर आन्ध्र प्रदेश के अदिलाबाद जिले के बासर गांव में गोदावरी नदी के तट पर है। विद्या की देवी के दो मन्दिर ही हैं, एक आन्ध्र प्रदेश में और दूसरा लेह में।
इस मन्दिर के यहां बनने की कहानी है। वह यह कि महाभारत के रचयिता वेद व्यास, उनके शिष्य और ऋषि शुकदेव कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद शान्ति की तलाश में तीर्थ यात्रा पर निकले तो यहां भी पहुंचे। इस जगह की खूबसूरती को देखकर यहां रुक गये। उन्होंने यहां गोदावरी नदी में स्नान किया और मां शारदा की प्रार्थना की। वह रोजाना तीन मुट्ठी रेत को तीन जगह पर विधि-विधान के साथ स्थापित करके श्री सरस्वती, श्री महाकाली और श्री महालक्ष्मी का पूजन करते। इस तरह से मां शारदा यहां अवस्थित हो गईं। चूंकि वेद व्यास ने यहां काफी समय प्रार्थना में ही बिताया तो इसे वसरा कहा जाने लगा। बाद में मराठी में इसका नाम बासर पड गया। हालांकि ब्रह्मानन्द पुराण के अनुसार, वाल्मिकी ऋषि ने यहां मां शारदा की स्थापना की और बाद में रामायण की रचना की। यहां उनकी संगमरमर की मूर्ति स्थापित है और मन्दिर के समीप समाधि भी। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो कर्नाटक के राजा बिजालाडू ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया।
इस मन्दिर में मां शारदा की प्रतिमा पदमासन मुद्रा में चार फीट ऊंची है। उनके चेहरे पर हल्दी लगी हुई है। कहा जाता है कि इस हल्दी को चख लेने भर से ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। कई भक्तजन यहां अपने बच्चों का ‘अक्षर अभ्यासम’ समारोह करवाते हैं। ज्ञान की देवी को वे किताबें, कलम, पेंसिल आदि चढाते हैं। मन्दिर में पूजा सुबह चार बजे अभिषेकम से शुरू होती है, जो एक घण्टे तक चलती है। पांच बजे पुजारी अलंकरण शुरू करते हैं, जिसमें मां सरस्वती को नई साडी पहनाई जाती है। सुबह छह बजे सूरज की पहली किरण के साथ आरती शुरू हो जाती है, जिसके बाद भक्तजनों को प्रसाद वितरित किया जाता है। यहां ग्रेनाइट का स्तम्भ भी है, जिसमें अलग-अलग स्थान से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं। मन्दिर के प्रांगण में लगे वृक्ष पर दत्तात्रेय जी की खडाऊं हैं। कहा जाता है कि मात्र इसके स्पर्श से बांझ स्त्री को पुत्र प्राप्ति हो जाती है।
महाशिवरात्रि और बसन्त पंचमी से 15 दिन पहले से शुरू विशेष पूजा तीन दिन बाद तक चलती रहती है। यहां महाकाली और महालक्ष्मी की प्रतिमा भी हैं। नजदीक की पहाडी पर मां सरस्वती की एक और प्रतिमा है। सरस्वती, लक्ष्मी और काली की प्रतिमा यहां स्थित होने से बासर को धार्मिक लोगों के बीच विशेष स्थान प्राप्त है। मन्दिर के समीप ही एक पहाडी है, जिस पर एक गुफा बनी हुई है। इसे नरहरी गुफा कहा जाता है। इसका महत्व भी कम नहीं है। यहीं नाथ पंथ के घुंडीसूत नरहरी मालुका की समाधि बनी हुई है। कहा जाता है कि वे यहीं तप करते थे। यहां कई मन्दिर श्रंखलाएं हैं, जिनमें हनुमान मन्दिर, गणेश मन्दिर, पातालेश्वर मन्दिर, दत्त मन्दिर, एकवीर मन्दिर मुख्य हैं। मन्दिर की पूर्व दिशा में पापहरणी नामक झील है, जिसके आठ दिशाओं में तीर्थ हैं। यही वजह है कि इसे अष्टतीर्थ झील भी कहा जाता है। सूर्य तीर्थ, इंद्र तीर्थ, सरस्वती तीर्थ, व्यास तीर्थ, विष्णु तीर्थ, वाल्मिकी तीर्थ प्रसिद्ध हैं।
सरस्वती तीर्थ झील के बीच में है, यहीं से गोदावरी नदी का जल आता है। कहा जाता है कि दत्त मन्दिर से शारदा मन्दिर तक पापहरेश्वर मन्दिर के रास्ते गोदावरी नदी तक काफी पहले एक सुरंग थी, उसी रास्ते पहले के महाराजा मन्दिर में पूजन के लिये आया करते थे। यहां पूजा के लिये मां को फल-मेवा आदि चढाया जाता है। मन्दिर की दीवारों पर दर्शनार्थी सिक्का चिपकाते हैं। मान्यता है कि यदि सिक्का चिपक गया तो मां प्रसन्न होती है और मनोकामना पूरी करती है। कहा तो यह भी जाता है कि मन्दिर परिसर में रात में रुकने पर मां प्रसन्न होती हैं और अपना आशीर्वाद देती हैं। मन्दिर का द्वार तो पूजा के बाद रात को बन्द कर दिया जाता है लेकिन मन्दिर परिसर खुला रहता है। केवल ग्रहण के समय मन्दिर परिसर भी बन्द कर दिया जाता है। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि पहले यहां भयानक जंगल था। आम जंगलों की तरह ही यहां शेर, भालू, चीता जैसे जानवर खुले घूमते थे। इस मन्दिर की देखभाल श्री ज्ञान सरस्वती देवस्थानम संस्था द्वारा की जाती है। इसका जिम्मा अवकाश प्राप्त आईएएस अधिकारी या उसके समकक्ष किसी अधिकारी का है, जिसका सीधा नियन्त्रण आन्ध्र प्रदेश सरकार करती है।
लेख: प्रियंका सिंह (राष्ट्रीय सहारा, सण्डे उमंग में 6 फरवरी 2011 को प्रकाशित)
The Himalayas, home of the snow, is the most impressive system of mountains on the earth, and for centuries the setting for epic feats of exploration and mountain climbing / treks.
जवाब देंहटाएं