गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति जिस बोधि वृक्ष के नीचे हुई, वह जगह आज ‘बोध गया’ नाम से पहचानी जाती है। विश्व में बौद्ध गया को बौद्धों के महत्वपूर्ण धार्मिक और पवित्र स्थल के तौर पर जाना जाता है। 2002 में यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरीटेज घोषित की जा चुकी यह जगह बिहार की राजधानी पटना से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मौर्य सम्राट अशोक ने इस क्षेत्र को विकसित किया। यहां के बौद्धमठ को अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं के लिये बनाया। यहां अशोक स्तंभ भी स्थित है। मुख्य आकर्षण महाबोधि मन्दिर और बोधि वृक्ष के अलावा यहां श्रीलंका, म्यांमार और चीन के भी मन्दिर हैं। इस जगह को मन्दिरों का शहर भी कहा जाता है। यहीं पर भारत की सबसे ऊंची बुद्ध मूर्ति भी है, जो छह फीट ऊंचे कमल के फूल पर प्रतिष्ठापित है। माना जाता है कि मुख्य मन्दिर में भगवान बुद्ध की जो मूर्ति है, उसे स्वयं उन्होंने ही बनाया है।
महाबोधि मन्दिर
यह मन्दिर बोधि वृक्ष के पूर्व में स्थित है। इसका आर्किटेक्चर गजब का भव्य है। इस मन्दिर की कुल ऊंचाई 170 फीट है और इसके भीतरी चबूतरे पर छत्र बने हुए हैं, जो धर्म की प्रधानता के प्रतीक हैं। इस मन्दिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप सदृश्य है। मन्दिर के मुख्य हिस्से में बुद्ध की बहुत बडी मूर्ति पदमासन अवस्था (बैठे हुए है, जो दाहिने हाथ से धरती को छू रहे हैं) में हैं। माना जाता है कि बुद्ध को इसी अवस्था में ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह मूर्ति काले पत्थर की है। मन्दिर परिसर में स्तूप बने हुए हैं, जो हर आकार के हैं। माना जाता है कि ये 2500 साल पहले के अवशेष हैं। मन्दिर को घेरे हुए रेलिंग पत्थर की नक्काशीदार हैं, कहा जाता है कि ये ही बोधगया के सबसे पुराने अवशेष हैं। इस मन्दिर में सात स्थानों को चिह्नित किया गया है, जिनके बारे में माना जाता है कि बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह यहीं व्यतीत किये। मुख्य मन्दिर के पीछे बुद्ध की सात फीट ऊंची विराजमान मुद्रा में प्रतिमा है। यह प्रतिमा लाल बलुए पत्थर की है। माना जाता है कि सम्राट अशोक ने यहीं पर हीरे का राजसिंहासन लगवाया था और इसे धरती का नाभि-केंद्र कहा था। इस प्रतिमा के आगे बुद्ध के बडे बडे पदचिह्न भी बने हुए हैं।
रत्नागढ
मन्दिर के उत्तर पश्चिम भाग में छतविहीन भग्नावशेष हैं, जिसे रत्नागढ कहा जाता है। यहां बुद्ध ने चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। मान्यता है कि जब बुद्ध ध्यान में मग्न थे तो उनके शरीर से पांच रंग की किरणें निकलीं। इन्हीं रंगों का प्रयोग विभिन्न देशों ने यहां लाई अपनी पताकाओं में किया है। बुद्ध ने मुख्य मन्दिर से थोडी दूर स्थित अजपाला-निग्रोधा पेड के नीचे पांचवां सप्ताह और छठा सप्ताह मूचालिंडा झील के पास बिताया था। इस झील के बीचोंबीच बुद्ध की मूर्ति है, जिसमें एक सांप उनकी रक्षा कर रहा है। इसके बारे में कथा यह है कि बुद्ध तपस्या में इतने लीन थे कि वे बारिश में फंस से गये। तब सांपों के राजा मूचालिंडा ने उनकी रक्षा की। पास में राजयातना पेड के नीचे बुद्ध ने सातवां सप्ताह बिताया। यहां बर्मा के दो निवासियों ने बुद्ध से आश्रय मांगा था। यहीं उन्होंने प्रार्थना के रूप में ‘बुद्धमं शरणं गच्छामि’ का जाप किया था।
मठ
तिब्बती मठ बोधगया का सबसे पुराना मठ है। बर्मी विहार में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा के अलावा दो प्रार्थना कक्ष भी हैं। यहां थाई मठ भी है, जिसकी स्थापना थाईलैण्ड के राजपरिवार ने की थी। इसे गोल्डन मठ भी कहा जाता है। दरअसल इसकी भीतरी छत को सोने के पानी से रंगा गया है। इंडोसन-निप्पन-जापानी मन्दिर को लकडी के प्राचीन जापानी मन्दिरों के आधार पर बनाया गया है। यहां बुद्ध के जीवन को तस्वीरों के माध्यम से दिखाया गया है। चीनी मन्दिर में बुद्ध की प्रतिमा सोने की है। भूटानी मठ की दीवारों पर नक्काशी का काम है। नवीनतम मन्दिर वियतनाम का है। यहां बुद्ध के अवतार अवलोकितेश्वर की मूर्ति स्थापित है।
चंक्रमना
मुख्य मन्दिर के उत्तरी भाग को चंक्रमना कहा जाता है। माना जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने तीसरा सप्ताह यहीं बिताया था। यह भी माना जाता है कि जहां जहां बुद्ध ने अपने पैर रखे, उस जगह पर कमल के फूल खुद ही खिल गये। यहां काले पत्थर का कमल का फूल भी है।
महाबोधि वृक्ष
माना जाता है कि वर्तमान का बोधि वृक्ष असल में बोधि पेड की पांचवीं पीढी है, जिसके नीचे बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। यहां वज्रासन भी है यानी स्थिरता की जगह। यह पत्थर का प्लेटफॉर्म है, जिसके बारे में मान्यता है कि बुद्ध बैठकर पूर्व की ओर देखते हुए ध्यान लगाते थे।
लेख: स्पर्धा (राष्ट्रीय सहारा में 15 मई 2011 को प्रकाशित)
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