तीर्थ नगरी आपके स्वागत के लिये तैयार है। पर्यटन के रूप में आपके जेहन में हरिद्वार का नाम आते ही हर की पैडी, मां मंसा-चण्डी देवी व आश्रमों का चित्र उभर आता है। परन्तु तीर्थ नगरी में इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे आप बार-बार देखना चाहेंगे। आप हर की पैडी जायें, स्नान ध्यान करें तो टहलते हुए गंगा घाटों का आनन्द जरूर उठायें। दक्षिण की ओर फैले लम्बे चौडे घाटों से कल कल बहती गंगा, मन्द हवा और पहाड के नजारे सचमुच आनन्दित करने वाले हैं।
यहां आकर वन्य जीवन को करीब से देखने का मौका न गंवाये। हाथियों का घर कहा जाने वाला राजाजी नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार भी यहीं है। नगर से सटे चीला, मोतीचूर व कौडिया रेंज में आपको हाथी, तेंदुए, बाघ व हिरण खूब देखने को मिलेंगे। इसके लिये हाथी की सवारी का आनन्द भी उठाया जा सकता है।
भीमगोडा बैराज के पास सर्दियों में बनने वाला पक्षी विहार भी मन मोह लेने वाला है। यहां अक्टूबर से फरवरी के मध्य हजारों की संख्या में देशी-विदेशी दुर्लभ पक्षी देखे जाते हैं। शान्ति और आध्यात्मिक आनन्द की अनुभूति लेने वालों के लिये नीलधारा बांध पर ध्यान केन्द्र, चण्डी घाट के पास लाहिडी महाशय की समाधि, दक्षेश्वर महादेव यानी शिव की ससुराल व आनन्दमयी मां की समाधि महत्वपूर्ण हैं। पावन धाम सप्तऋषि क्षेत्र में भारत माता मन्दिर, शान्ति कुंज समेत कई आश्रम दर्शनीय हैं। यहां स्थित लालमाता मन्दिर में वैष्णों देवी की गुफा आपको वास्तविक यात्रा का एहसास करा देगी। स्वामी रामदेव का पतंजलि योगपीठ व योग ग्राम भी देखने योग्य हैं। हरिद्वार से 15 किलोमीटर दूर यहां जाने के लिये कनखल दिव्ययोग आश्रम से योग पीठ निशुल्क बसें उपलब्ध कराती है।
यहां यातायात, लॉजिंग भी खास महंगे नहीं हैं। बस अड्डे व रेलवे स्टेशन से उतरने के बाद आपको हर समय रिक्शा, तांगा, थ्रीव्हीलर व टैक्सी मिलेंगी। दूरी के हिसाब से आप वाहन का चयन कर सकते हैं। ठहरने के लिये यहां अलकनंदा सरकारी गेस्ट हाउस से लेकर साधारण व थ्री स्टार सुविधाओं से युक्त होटल आपके इंतजार में हैं। होटल का चयन आप स्वयं करें। इससे आप वाहन चालकों की कमीशन खोरी से बच जायेंगे। एक बात से सावधान! यहां जहरखुरानी गिरोह भी ताक में रहते हैं। इसलिये न तो किसी अनजान शख्स से दोस्ती बढायें, न ही प्रसाद की शक्ल में दिया कोई खाद्य पदार्थ खायें।
लेख: प्रदीप गर्ग (हिन्दुस्तान रीमिक्स, 27 सितम्बर 2008)
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