गुरुवार, जनवरी 26, 2012

मनमोहक डलहौजी

चिलचिलाती गर्मी से दूर किसी ठण्डे स्थान पर जाने का मन किसका नहीं करेगा, जहां चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड व हरी-भरी वादियों का विहंगम नजारा देखने को मिले। यदि आप टूर डेस्टिनेशन अभी तक तय नहीं कर पाये हैं, तो हिल स्टेशन डलहौजी जायें। चीड के पेडों से घिरे ढलाननुमा पहाडों पर विभाजित रास्तों से पर्यटक पैदल यात्रा कर डलहौजी की खूबसूरत वादियों का नजारा ले सकते हैं। ‘गेटवे ऑफ चम्बा वैली’ से मशहूर इस कोलोनियल टाउन की स्थापना 1854 में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी ने की थी। पहाडों से बहती मंद-मंद हवा और विहंगम दृश्य रोमांच से भर देने के लिये काफी हैं। यहां की नैसर्गिक खूबसूरती पर्यटकों को अपने आगोश में समाने के लिये हमेशा तैयार प्रतीत होती है। डलहौजी का प्राकृतिक महत्व के साथ ऐतिहासिक महत्व भी है। यहां की खूबसूरती से अंग्रेज इतने प्रभावित हुए थे कि 18वीं शताब्दी में यहां के राजा से कुछ पहाडियों को लॉर्ड डलहौजी ने खरीद लिया था। 

आकर्षण 

जंध्री घाट: सुभाष बावली से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित जंध्री घाट में मनोहर पैलेस ऊंचे-ऊंचे चीड के पेडों के बीच स्थित है। लॉर्ड डलहौजी के आने से पहले यहां चम्बा के पूर्व शासक का शासन था। पैलेस के अलावा यहां आप चाहें तो चीड के पेड से होकर निकलती सुगंधित मंद-मंद हवा में बैठकर पिकनिक का भी मजा ले सकते हैं। डलहौजी से पांच किलोमीटर दूर बकरोटा हिल्स से भी बर्फ से ढकी पहाड की चोटियों का नजारा मिलता है। 
सतधारा: पंजपुला के रास्ते में 2036 मीटर ऊंचाई पर स्थित सात झरनों वाली सतधारा है, जिसका उपचारात्मक महत्व भी है। पानी में मौजूद मिका मेडिसिनल प्रॉपर्टी के लिये मशहूर है। 
सुभाष बावली: यहां से भी आप बर्फ से ढके ऊंचे पर्वतों का विहंगम नजारा देख सकते हैं। यहां स्थित झरने की ऊंचाई 2085 मीटर है। 
कैथोलिक चर्च: डलहौजी अपने अनगिनत पुराने चर्चों के लिये भी मशहूर है। यहां स्थित सेंट फ्रांसिस के कैथोलिक चर्च का निर्माण 1894 में हुआ था। 

आसपास 

बडा पत्थर: कालाटोप के रास्ते में पडने वाले अहला गांव में घने जंगलों के बीच भुलवानी माता का छोटा सा मन्दिर स्थित है। यहां जुलाई में माता के आदर सत्कार व पूजा-अर्चना के लिये मेले का भी आयोजन किया जाता है। यह डलहौजी से चार किलोमीटर दूर है। 
डैनकुण्ड: डलहौजी से दस किलोमीटर दूर 2745 मीटर की ऊंचाई पर स्थित डैनकुण्ड से पहाडियों, घाटियों और नदी व्यास, रावी, चेनाब की कलकल लहरें देख सकते हैं। 
पंजपुला: डलहौजी से सिर्फ दो किलोमीटर दूर पांच पुल ‘फाइव ब्रिजेज’ को भारत के फ्रीडम फाइटर अजित सिंह की याद में बनवाया गया है। यहां स्थित प्राकृतिक टैंक और प्रतिष्ठित लोगों की मूर्ति इस स्थान को और भी शान्ति का आभास दिलाती है। इन छोटे छोटे पांच पुलों के नीचे से बहता पानी काफी आकर्षक लगता है। मान्यता है कि इसके पानी से कई तरह की बीमारियां ठीक होती हैं। 
साथ ही डलहौजी से ढाई किलोमीटर दूर खजियार झील है, जिसका आकार तश्तरीनुमा है। 

कैसे जायें 

हवाई मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल (कांगडा) है, जो डलहौजी से 140 किलोमीटर दूर है। 
रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है, जो अमृतसर, जम्मू, दिल्ली और जालंधर से रेल मार्ग से जुडा हुआ है। 
सडक मार्ग: पठानकोट से डलहौजी बस या टैक्सी से जा सकते हैं। पंजाब और हिमाचल रोडवेज भी बस सेवा उपलब्ध कराती हैं। 

कहां ठहरें 

आप फाइव स्टार होटल में नहीं रहना चाहते, तो स्मॉल बजट होटल के साथ टूरिस्ट लॉज भी हैं, जहां उचित कीमत पर कमरा मिल जाता है। 

मौसम:
गर्मी में यहां का अधिकतम तापमान 30 और सर्दियों में 0 डिग्री से नीचे चला जाता है। 

लेख: अंशुमाला (राष्ट्रीय सहारा में 29 मई 2011 को प्रकाशित)

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