बुधवार, सितंबर 07, 2011

छितकुल- भारत का अन्तिम गांव

यात्रा वृत्तान्त- वरुण वागीश

नवभारत टाइम्स 9 मई 2006

हिमाचल प्रदेश का मैप उठाकर देखिये। तिब्बत से सटे इसके दो जिले किन्नौर और लाहौल-स्पीति नजर आयेंगे। इन दोनों ही जिलों को शिमला की तरफ से देश के बाकी हिस्से से जोडने वाली सिर्फ एक ही सडक है, जिसे हिन्दुस्तान-तिब्बत व्यापार मार्ग भी कहा जाता है। इसी मार्ग के एक छोर पर बसा है छोटा सा गांव छितकुल, जहां से आगे भारत और तिब्बत की सीमा तक कोई मानव बस्ती नहीं है।

छितकुल हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में बसा है। बेहद छोटा सा यह गांव आम पर्यटकों के बीच ज्यादा मशहूर नहीं है। हां, एडवेंचर टूरिज्म के शौकीन जरूर इसके बारे में थोडा बहुत जानते हैं। यह गांव किन्नौर की सांगला घाटी में स्थित है। सांगला का नाम मैंने काफी सुना था और एडवेंचर का शौक तो है ही, इसलिये हिमालय के इस अंदरूनी हिस्से को देखने का मन बनाया।

दिल्ली से किन्नौर जाने के लिये एक ही बस जाती है। इस जिले के हेड क्वार्टर रिकॉंग पीओ तक जाने वाली यह बस शाम को दिल्ली से रवाना होती है और अगली सुबह शिमला पहुंच जाती है। इस रूट (नेशनल हाइवे- 22) पर शिमला से आगे कुफरी, फागू और नारकण्डा तक लगभग सभी पर्यटक जाते हैं, लेकिन इससे आगे का हिमाचल कम ही लोगों ने देखा है। कुछ ही दूर जाने पर सतलुज नदी दिखाई देने लगती है। यह नदी इसी हाइवे के साथ-साथ भारत-तिब्बत सीमा तक चलती रहती है। इसका उदगम स्थल तिब्बत में है। नारकण्डा के बाद रामपुर बुशहर और झाकडी आता है। झाकडी में नाथपा झाकडी हाइडल पावर प्रोजेक्ट नाम से देश का ऐसा सबसे बडा प्रोजेक्ट है, जहां पानी से बिजली बनाई जाती है। झाकडी के बाद करछम नाम की एक छोटी जगह से बस रिकॉंग पीयो की तरफ मुड जाती है। मुझे छितकुल जाना था, इसलिये मैं करछम उतर गया और यहां हाइवे को छोडकर छितकुल की ओर बढ गया।

करछम तक हाइवे होने के कारण सडक लगभग अच्छी हालत में है, लेकिन इसके बाद छितकुल की ओर जाने वाली सडक थोडी संकरी हो जाती है। यह सडक छितकुल तक बस्पा नदी के साथ चलती रहती है। छितकुल की तरफ से आने वाली यह नदी करछम में आकर सतलुज में मिल जाती है। करछम से लगभग 18 किलोमीटर चलने पर सांगला (2680 मीटर) में सडक एक नई घाटी में खुलती है, जिसे सांगला घाटी कहा जाता है। चारों तरफ बरफ से ढके पहाडों और उनके ढलानों पर सीढीनुमा खेत और सबसे नीचे बस्पा नदी के किनारे बसा सांगला। यह दृश्य मैंने शायद कभी सपने में भी नहीं देखा था। यहां की सुन्दरता ही इसे हिमाचल की चुनिन्दा घाटियों में शुमार कर देती है। अन्धेरा हो चुका था, इसलिये मैंने रात यही बिताई।

सांगला इस घाटी का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला गांव है। यहां बाकी गांवों की जनसंख्या आमतौर पर 1000 से कम ही है। लगभग 15 किलोमीटर और आगे जाने पर रकछम पडता है। यहां से छितकुल सिर्फ दस किलोमीटर दूर रह जाता है। बेशक सांगला और छितकुल से यह गांव बहुत दूर नहीं है, फिर भी यहां की बोली इन जगहों से बिल्कुल अलग है। इतनी अलग कि आसपास के लोग भी रकछम की बोली को नहीं समझ पाते। यहां लगभग सभी मकान लकडी के बने हुए हैं। वर्ष 2002 में एक दुर्घटना में पूरा रकछम गांव जल गया था। आज तक यहां के निवासी अपनी जिन्दगी को फिर से बसाने की कोशिश कर रहे हैं।

रकछम से थोडा आगे जाने पर पक्की सडक खत्म हो जाती है। घने जंगल और बडे-बडे पत्थरों से गुजरती इस कच्ची सडक पर चलने का मजा ही कुछ और है। रास्ते में कई नाले दिखे, जो ऊपर से बरफ का पानी लाकर बस्पा नदी में मिल जाते हैं। मैं इन दृश्यों की फोटो खींचते हुए बढ ही रहा था कि आगे कुछ घर नजर आने लगे और फिर अचानक एक जगह आकर सडक गायब। यही है छितकुल। इस सडक का अन्तिम गांव। ऊंचाई लगभग 3450 मीटर यानी शिमला से 1250 मीटर और ऊंचा। बर्फ आपके और करीब आ जाती है और नीचे बहती बस्पा नदी का शोर साफ सुनाई पडता है। अपना सामान एक गेस्ट हाउस में रखकर मैं छोटे से ट्रेक पर निकल गया। पगडण्डियों पर चलते हुए नीचे बस्पा नदी के किनारे पहुंच गया और इसके साथ चलते चलते आईटीबीपी (इण्डो तिब्बत बॉर्डर पुलिस) की चौकी नजर आने लगी। इससे आगे जाने के लिये परमिट की जरुरत होती है, क्योंकि कुछ ही दूरी पर तिब्बत की सीमा है। यह इलाका भारी बर्फ से ढके होने के कारण साल में सिर्फ छह महीनों के लिये खुलता है।

छितकुल के आसपास कुछ छोटे-बडे ट्रेक रूट भी हैं। किन्नौर में स्थित किन्नर कैलाश पर्वत चोटी की परिक्रमा की जाती है। श्रद्धालुओं के अलावा कई एडवेंचर प्रेमी भी यह परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा में छितकुल अन्तिम पडाव है। इसके अलावा यहां कंडा लेक ट्रेक रूट भी है। रॉक क्लाइम्बिंग और रैपलिंग की भी यहां काफी सम्भावना है। बस्पा नदी पर रिवर क्रासिंग भी की जा सकती है, यानी एडवेंचर के शौकीनों के लिये छितकुल में करने के लिये काफी कुछ है।

छितकुल के आसपास भोजपत्र का जंगल है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने इन्हीं भोजपत्रों पर ग्रंथ लिखे थे। इसके अलावा यहां सेब के बाग भी हैं। अपनी यात्रा में मैं एक बंगाली परिवार से मिला जो हिमालय में काफी यात्राएं कर चुका है। छितकुल और सांगला घाटी की सुन्दरता से वह इतना प्रभावित हुआ कि उसकी तुलना कश्मीर से कर डाली।

छितकुल चूंकि एक छोटा सा गांव है, इसलिये यहां ठहरने के लिये बडे होटल या गेस्टहाउस नहीं मिलेंगे। कुछ लोगों ने अपने घरों में ही कुछ कमरों को पर्यटकों के लिये खोल रखा है। इस तरह यहां ऐसे कुछ छोटे-मोटे गेस्टहाउस जरूर मिल सकते हैं। अगर यहां ठहरने की जगह न मिले तो सांगला में रुका जा सकता है, जहां कुछ होटल और गेस्टहाउस मिल सकते हैं। वैसे कुछ लोगों ने बस्पा नदी के पास कैम्प रिजार्ट भी बना रखे हैं। अगर आप एडवेंचर के शौकीन हैं तो अपना टेण्ट साथ जरूर ले जायें, तभी आप सांगला घाटी को अच्छी तरह एक्सप्लोर कर पायेंगे।

दूरी: 250 किलोमीटर (शिमला से)

मौसम: दिन तेज धूप के कारण गर्म और रात ठण्डी

तापमान: 5 से 30 डिग्री के बीच

कब जायें:

· बर्फ और ग्लेशियर देखने हों, तो अप्रैल और मई।

· पहाडों से गिरते झरनों को बस्पा नदी में मिलते देखना हो, तो बर्फ पिघलने के बाद यानी जून।

· रंग बिरंगे फूलों और पेड-पौधों से सजी घाटी देखनी हो, तो अगस्त-सितम्बर हालांकि इन दिनों बारिश भी काफी होती है।

· चांदनी में नहाई घाटी के दीदार करने हों, तो किसी भी महीने की पूर्णिमा की रात।

सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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